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दुनिया
टिकाऊ भविष्य की ओर ले जायेगा क्या रियो+20?
Posted on 11 Jun, 2012 05:24 PMयह सम्मेलन धरती को ताप और जलवायु परिवर्तन से बचाने के अलावा भी कई और मायनों में खास है, इसीलिये इसमें प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों के अलावा निजी क्षेत्र से लेकर सिविल सोसायटी तक के नेतागण शामिल हो रहे हैं। यहां तक कि इस सम्मेलन को सदी में एक-आध बार आने वाले अवसर की तरह भी देखा जा रहा है। भविष्य की आर्थिकी टिकाऊ कैसे बने, इस विषय पर नेतागण इसमें गहन मंथन करेंगे।
भारत जैसे देश में रियो+20 का मतलब कितने प्रतिशत लोग समझते हैं, यह तो नहीं मालूम; लेकिन इतना ज़रूर है कि 1992 में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन के 20 साल बाद हो रहे रियो+20 सम्मेलन से जो कुछ निकलेगा, उसका प्रभाव भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लोगों और तमाम प्राणिमात्र पर पड़ेगा। आशा और आशंका के बीच ब्राज़ील के रियो दी-जानीरो शहर में संयुक्तराष्ट्र का रियो+20 सम्मेलन 13 से 22 जून तक होने जा रहा है, हालांकि राष्ट्राध्यक्षों और प्रधानमंत्रियों की मुख्य बैठक 20 से 22 जून तक होगी। सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत दुनियाभर के 100 से ज्यादा देशों के राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष तथा विभिन्न क्षेत्रों के अग्रणी लोग हिस्सा लेंगे।वैश्विक जल संसाधन
Posted on 11 Jun, 2012 11:49 AM
प्रस्तुत प्रेजेन्टेशन सीबीएसई- कक्षा दस एनसीईआरटी की भूगोल की पाठ्यपुस्तक- समकालीन भारत II पर आधारित है।
![global water](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/global%20water_3.jpg?itok=EHIclU6_)
एटमी ऊर्जा व्यापार या विरोध
Posted on 06 Jun, 2012 03:53 PMफुकुशीमा दुर्घटना के बाद जर्मनी ने घोषणा की कि सन 2022 तक देश के सारे न्यूक्लियर रिएक्टर बन्द कर दिए जाएंगे। जर्मन कम्पनी सीमैंस ने कहा है कि हम एटमी ऊर्जा की तकनीक का कारोबार खत्म कर रहे हैं। सवाल रोचक है कि जर्मनी अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को कैसे पूरा करेगा। एक तरफ तो जर्मनी एटमी ऊर्जा का विरोधी और अक्षय ऊर्जा का समर्थक बन रहा है वहीं दूसरी तरह एक जर्मन नागरिक जोनटेग रेनर हर्मन भारत से निकाला जापर्यावरण संकट और भारतीय चित्त
Posted on 05 Jun, 2012 04:38 PMजैन समाज में लंबी तपस्याएं (निराहार) करने की परंपरा रही है। ‘उणोदरी-तप’ को एक श्रेष्ठ तप माना जाता है इसमें अपेक्षा या आवश्यकता से एक चौथाई कम खाने की परंपरा है। जीवन में खाद्य वस्तुओं का सेवन कम करने, वस्त्रों का सेवन कम करने और भौतिक संसाधनों का सेवन कम करने उणोदरी-तप की मुख्य साधना है। भारतीय चित्त और मानस प्रकृति के साथ सामंजस्य से चलता है बता रहे हैं शुभू पटवा।जलवायु परिवर्तन एवं मानवाधिकार
Posted on 04 Jun, 2012 08:36 AMइस आने वाले अजूबे से विश्व में प्रत्येक देश और व्यक्ति केवल अपने संकीर्ण लाभ के लिए ऐसे पागलपन के साथ जूझेगा जिस
कोप 15 : जलवायु वार्ताओं को होपलेसहेगन से बचाना होगा
Posted on 02 Jun, 2012 09:24 AMसंयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर विचार और इस बारे में किसी सर्वसम्मत और बाधाकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौते तक पहुंचने के लिए गत वर्ष 7 से 18 दिसम्बर तक कोपेनहेगन में चली वार्ता (कॉप-15) बुरी तरह से फ्लॉप रही चूंकि इस वार्ता के अंत में आम सहमति से कोई ऐसा अंतर्राष्ट्रीय समझौता नहीं हो सका जिसे दुनिया के तमाम देश मानने के लिए ब
![art hopenhagen](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/art%20hopenhagen_7.jpg?itok=KG8xTcu-)
साफ माथे का पानी
Posted on 01 Jun, 2012 11:32 AMआज का विज्ञान और तकनीकी की बात करने वाला नदियों से अलग-थलग पड़ा यह समाज जल-चक्र को ही नकार रहा है। इस नई सोच का मानना है कि नदियां व्यर्थ में ही पानी समुद्र में बहा रही हैं। ये लोग भूल रहे हैं कि समुद्र में पानी बहाना भी जल-चक्र का एक बड़ा हिस्सा है। नदी जोड़ परियोजना पर्यावरण भी नष्ट करेगी और भूगोल भी। नदियों को मोड़-मोड़ कर उल्टा बहाने की कोशिश की गई तो आने वाली पीढ़ियां शायद ही हमें माफ कर पाएंगी।
दृष्टि, दृष्टिकोण, दर्शन, विचार और उसकी धारा में पानी खो रहा है। पानी के अकाल से पहले माथे का अकाल हो चुका है; अच्छे कामों और विचारों का अकाल हो चुका है। नदी समाजों से खुद को जोड़ने की बजाय सरकारें समाज को नदियों से दूर करना चाहती है। आजादी से अब तक की सरकारी योजनाओं में सबसे खतरनाक और अव्यावहारिक नदी-जोड़ योजना की कोशिश हो रही है। भूगोल को कुछ लोग ‘ठीक’ करना चाहते हैं। कानून से पर्यावरण बचाना और पेड़ लगाना चाहते हैं। बड़े-बड़े बांध बांधकर लोगों की प्यास बुझाना चाहते हैं। कहना ना होगा कि ये बड़े- बड़े विचार लोगों की प्यास तो बिल्कुल नहीं बुझा पा रहे हैं। उदाहरणों के लिये इतिहास में ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। अभी पिछले साल ही मध्य प्रदेश के कई शहरों में पानी के वितरण के लिए सीआरपीएफ लगानी पड़ी। नदी की बाढ़ से ज्यादा माथे की बाढ़ दुखदायी बन गई है।विकसित देश दोषी तो हमारे अमीर क्यों नहीं
Posted on 25 May, 2012 09:10 AMक्योटो प्रोटोकॉल को 2012 से आगे बढ़ाना, न्यायोचित सिद्धांत के आधार पर तापमान समझौता के नीतियों को पारित करना और 'सामूहिक जवाबदेही' के उसूल को संयुक्त राष्ट्र की तापमान कमेटी में समाहित कराना। भारत इन तीन लक्ष्यों के साथ क्योटो प्रोटोकॉल को आगे बढ़ाना चाहता था। भारत का प्रस्ताव यों तो न्यायसंगत लगता है। पृथ्वी का तापमान बढ़ने का कारण औद्योगिक सभ्यता है जिसका विशेष लाभ उन्नत देशों और बाकी देशों मइजराइल में सीखी जल तकनीक
Posted on 23 May, 2012 09:57 AMमप्र के उन्नतशील किसानों ने इजराइल के तेल अबीब शहर में हाल ही में संपन्न हुए अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में हिस्सा लिया। दरअसल इन किसानों ने इस बात को समझा है कि खेती में पानी और तकनीक का बेहद महत्व है। इजराइल का किसान संपन्न होने के साथ-साथ दुनिया में मॉडल इसलिए बन गया है क्योंकि वहां अशुद्ध पानी को शुद्ध कर उसे खेती के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है। इतना ही नहीं पानी की सुरक्षा और उसके प्रति संरक्षण का अभाव वहां के किसानों में बेहद है।
आने वाला विश्व पर्यावरण दिवस का त्यौहार
Posted on 22 May, 2012 03:50 PMगंगा नदी मैली और संकरी हो रही है। देश कि अन्य छोटी व मझली नदियों को तो बीझन लग गई है। धरती के सीने में अमृत समान