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हमारी सोच से भी ज्यादा पर्यावरण का ख्याल रखते हैं वृक्ष
Posted on 22 Oct, 2010 04:08 PM
पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखने में वृक्ष अहम योगदान देते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि वृक्ष पहले किए गए शोध से निकले परिणाम से तीन गुना अधिक पर्यावरण को पदूषण मुक्त रखते हैं। वृक्ष वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों को अवशोषित कर उन्हें वायुमंडल में जाने से रोकते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि शहरों में सामान्य और खतरनाक वायु प्रदूषक अवयवों को वृक्ष आसानी से अवशोषित करते हैं। इसलिए पर्यावरण को प्रदूषण मु
देश बदनाम हुआ
Posted on 28 Sep, 2010 08:20 AM
देश जब बदनाम होता है, डॉर्लिंग, हमारी गंदगी के कारण तो तकलीफ होती है, न?
सड़क से भूजल भरिए
Posted on 27 Sep, 2010 08:15 AM


सड़कों को नुकसान पहुंचाने वाले वर्षा जल का ठीक से इस्तेमाल कर देश में घटते भूजल स्तर को संभाला जा सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि योजनाओं को समावेशी बनाए जाए और जल की उपलब्धता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।

भूजल
..और नदियों के किनारे घर बसे हैं
Posted on 23 Sep, 2010 01:02 PM मानव सभ्यता और बाढ़ का रिश्ता आदिकाल से चला आ रहा है। अनेक सभ्यताएं नदियों के किनारे पनपी और बाढ़ से नेस्तनाबूद हो गई। आज भी बाढ़ एक ऐसी आपदा है जिसके नाम से ही देश के अनेक गांवों एवं नगरों के लोग थर्रा उठते हैं। एक शोध के अनुसार 1980 से 2008 के दौरान भारत में चार अरब से भी अधिक लोग बाढ़ प्रभावित हुए। प्रति वर्ष बाढ़ से करोड़ों रुपयों के घर-बार, खेती और मवेशी नष्ट हो जाते हैं।
लोक जीवन में जल
Posted on 23 Sep, 2010 11:50 AM
देश के बहुरंगी सांस्कृतिक परिवेश को एकता का सूत्र जल ही प्रदान करता है। जल की इस शक्ति का अनुभव लोक ने कर लिया था, इसलिए उसका प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान जल के पूजन से प्रारंभ होता है।
संदर्भ राजस्थान: पानी के रास्ते में खड़े हम
Posted on 21 Sep, 2010 02:41 PM मौसम को जानने वाले हमें बताएंगे कि 15-20 वर्षो में एक बार पानी का ज्यादा होना या ज्यादा बरसना प्रकृति के कलेंडर का सहज अंग है। थोड़ी-सी नई पढ़ाई कर चुके, पढ़-लिख गए हम लोग अपने कंप्यूटर, अपने उपग्रह और संवेदनशील मौसम प्रणाली पर इतना ज्यादा भरोसा रखने लगते हैं कि हमें बाकी बातें सूझती ही नहीं हैं। वरूण देवता ने इस बार देश के बहुत-से हिस्से पर और खासकर कम बारिश वाले प्रदेश राजस्थान पर भरपूर कृपा की है। जो विशेषज्ञ मौसम और पानी के अध्ययन से जुड़े हैं, वो हमें बेहतर बता पाएंगे कि इस बार कोई 16 बरस बाद बहुत अच्छी वर्षा हुई है।

हमारे कलेंडर में और प्रकृति के कलेंडर में बहुत अंतर होता है। इस अंतर को न समझ पाने के कारण किसी साल बरसात में हम खुश होते हैं, तो किसी साल बहुत उदास हो जाते हैं। लेकिन प्रकृति ऎसा नहीं सोचती। उसके लिए चार महीने की बरसात एक वर्ष के शेष आठ महीने के हजारों-लाखों छोटी-छोटी बातों पर निर्भर करती है। प्रकृति को इन सब बातों का गुणा-भाग करके अपना फैसला लेना होता है। प्रकृति को ऎसा नहीं लगता, लेकिन हमे जरूर लगता है कि अरे, इस साल पानी कम गिरा या फिर, लो इस साल तो हद से ज्यादा पानी बरस गया।

water rajasthan
ग्रीन मार्केटिंग वक्त की जरूरत
Posted on 21 Sep, 2010 02:31 PM वर्तमान व्यापारिक जगत में, मार्केटिंग के क्षेत्र में पर्यावरण पर आधारित मुद्दों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। उत्पादों व सेवाओं का, उनके पर्यावरणीय लाभों के आधार पर विक्रय करने की प्रक्रिया को 'ग्रीन मार्केटिंग' कहा जाता है। इसके अंतर्गत वे सभी क्रय/विक्रय आते हैं जिनके द्वारा मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके और साथ ही पर्यावरण को न्यूनतम क्षति पहुंचे। ऎसा उत्पाद या तो स्वयं पर्यावरण मित्र हो अथ
सितारों के आगे जहां और भी हैं
Posted on 13 Sep, 2010 03:29 PM

इस साल प्रकृति ने भारत के अधिकांश हिस्से में और दुनिया के कुछ हिस्सों में जो नजारा पेश किया है, वह हैरान करने वाला है। इतनी बारिश हो रही है कि हर कोई चकित है।

मौसम परिवर्तन से बढ़ती आपदाएं
Posted on 13 Sep, 2010 01:31 PM
हर कोई मौसम की बात करता है, लेकिन उसके बारे में कोई कुछ कर नहीं सकता। यही बात प्राकृतिक आपदाओं के बारे में भी कही जा सकती है।
झूठा है खतरा, बाढ़ का प्रकोप
Posted on 12 Sep, 2010 08:59 AM
जिस भेड़िये के आने का डर दिखाकर पिछले महीने भर से हमारा मीडिया अपनी भेड़ों को हांक रहा था, उस भेड़िये की आहट आ गयी है. हरियाणा के हथिनीकुण्ड से आठ लाख क्यूसेक पानी 'छोड़' दिया गया है. दिल्ली में बाढ़ वाले हालात हैं. नहीं नहीं, मीडिया हाइप नहीं है. सच में, बाढ़ के हालात हैं. यमुना के किनारे किनारे लो लाइंग (निचले) इलाकों में पानी पसर रहा है. लेकिन रुकिए.
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