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दिल्ली
ए बादल जी
Posted on 09 Jul, 2010 09:28 AMकभी गरजते बादल जी,
कभी बरसते बादल जी।
बंदर, हाथी, घोडे बन,
सुंदर दिखते बादल जी।
दौड़-धूप दिन-रात, मगर
तनिक न थकते बादल जी।
बूंदा-बांदी और झड़ी,
रस्ते-रस्ते बादल जी।
धरती पर हरियाली की,
रचना रचते बादल जी।
इंध्रधनुष के देते हैं,
प्रिय गुलदस्ते बादल जी।
बिन पानी सब सून रहे,
खूब समझते बादल जी।
पानी की छोटी-छोटी कहानियां
Posted on 08 Jul, 2010 07:27 PMयूं तो मौसम कई होते हैं। परंतु बच्चों से पूछा जाए कि सबसे अच्छा मौसम कौन सा है, तो अधिकांश का कहना होगा-रेनी सीजन, यानी बारिश। चलिए इस बार आपको बरसात से जुड़ी कुछ खास जानकारियां देते हैं।
वर्षा जल का संरक्षण
आम तौर पर लोग बरसाती पानी का महत्त्व नहीं समझते। इसीलिए भगवान की इस देन की सब उपेक्षा करते हैं और सारा पानी जमीन में या नदियों में चला जाता है। फिर नदियों का
तापमान पर अंकुश से ही बचेगी दुनिया
Posted on 08 Jul, 2010 03:27 PMदुनिया में पर्यावरण क्षरण और जलवायु परिवर्तन का सवाल आज सबसे अहम बना है। जब तक इसका हल नहीं निकलेगा, दुनिया पर संकट मंडराता रहेगा।संयुक्त राष्ट्र सहित दुनिया के अधिकतर सरकारी, गैर-सरकारी व निजी संस्थानों के हालिया अध्ययन व शोध इसकी पुष्टि करते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही आज महासागरों में मौजूद बर्फीली चट्टानों (आईसबर्ग) का उन्मुक्त बहते रहना पर्यावरण संतुलन के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा ह

प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा
Posted on 08 Jul, 2010 11:32 AMजब से कृष्ण कथा प्रचलित हुई या जब से सावन-भादों का मुहावरा बना, मौसम का चक्र ठीक वैसा नहीं था जैसा आज होता है। अगर प्रकृति अपने ही कारणों से मौसम के चक्र को बदलती रहती है तो चिंता किस बात की?कहा जाता है कि भारतीय कृषि मॉनसून पर दांव लगाने पर निर्भर है। लग गया तो बढ़िया बरसात होगी। पासा उल्टा पड़ा तो सूखा और अकाल। जमाने से हम इस जुए के नियम-कायदे सीखते रहे हैं। अब तक तो हमने सारे के सारे रट भी लिए हैं। अधिक से अधिक हम अड़तालिस घंटे पहले से भविष्यवाणी करने लगते हैं, लेकिन चौबिस घंटे से पहले की भविष्यवाणी बस उम्मीद पर आधारित होती है और अक्सर निराश ही कर देती है। अपनी सारी जानकारी और अपने सारे विज्ञान को इस जुए में झोंक देने के बावजूद प्रकृति हमसे बड़ी खिलाड़ी सिद्ध हो गई है। उसने इस मॉनसून के नियम-कायदे ही बदल दिए हैं।घनन-घनन घिर-घिर आए बदरा
Posted on 05 Jul, 2010 04:28 PMबादलों की पूरी सज-धज के साथ आखिर फिर आ गई बरसात। धरती ने धानी चुनर ओढ़ ली है तो मेघ-मल्हार और कजरी की उत्सवधर्मिता का भी यह आगाज है। उमड़ते-घुमड़ते, गरजते-बरसते बादल वन-उपवन, खेत-खलिहान, पर्वत-मैदान हर कहीं हरियाली की सौगात लेकर आते हैं, तो बाजवक्त डराते भी हैं। बारिश न हो तो जिंदगी न हो और बारिश ज्यादा हो जाए तो भी जिंदगी पर बन आए। इंद्रधनुषी मौसम के असल रंग कितने हैं, क्या समझ पाना इतना आसान है
कृष्ण जब जन्मे तब अंधेरी रात थी, लेकिन आकाश जलभरे बादलों से भरा हुआ था। काले-काले मेघों की पंचायत जुटी थी और काला अंधेरा उनसे मिलकर कृष्ण का सृजन कर रहा था। राधा उनकी वर्षा बनीं और कृष्ण बरस कर रिक्त हो गए। राधा भी बरस कर रिक्त हो गईं। काले मेंघों की उज्ज्वल वर्षा ने बरस-बरस कर पृथ्वी को उर्वर बनाकर रस से भर दिया। यही रस भारतीय साहित्य,यमुना को बचाने के लिए व्यापक अभियान
Posted on 05 Jul, 2010 12:00 PMनई दिल्ली, 4 जुलाई (जनसत्ता)। नागरिक परिषद यमुना को बचाने का व्यापक अभियान शुरू करेगी। परिषद के अध्यक्ष वीरेश प्रताप चौधरी ने रविवार को दिल्ली में इस बारे में विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों की बैठक बुलाई। इस मौके पर यहां एक संगोष्ठी का भी आयोजन हुआ जिसमें पर्यावरणविद, जल-विशेषज्ञों और पूर्व नौकरशाहों सहति कई राजनेताओं व गैरसरकारी संगठनों ने जमना-सफाई पर अपने अनुभव और विचार रखे।इतिहास बनता जा रहा है भूगोल
Posted on 02 Jul, 2010 10:23 AMदिल्ली में 1857 के गदर का हाल बताते हुए मिर्जा गालिब अपनी एक चिट्ठी में दरियागंज का जिक्र 'दरिया किनारे बसा नया मुहल्ला' के रूप में करते हैं। पढ़ कर आश्चर्य होता है कि दरियागंज क्या सचमुच कभी यमुना नदी के किनारे रहा होगा? अभी तो इससे यमुना की दूरी दो-ढाई किलोमीटर से कम नहीं होगी। नदियों की धारा पलटना भूगोल में एक स्वाभाविक घटना मानी जाती है, लिहाजा डेढ़ सौ सालों में घटित इस आश्चर्य को हम अनदेखा भी कर सकते हैं। लेकिन राजधानी के तेजी से बदलते भूगोल के साथ इस तरह के कई आश्चर्य जुड़े हैं, जिनकी वजह कोई प्राकृतिक घटना नहीं बल्कि मानवीय गतिविधियां हैं। जैसे रायसीना हिल्स का किसी पहाड़ी से नाता अब बिल्कुल समझ में नहीं आता। लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य ने खुद को सल्तनत-ए-मुगलिया का कहीं बेहतर वारिस साबित करने की कोशिश में रायसीना नाम की पहाड़ी को समतल करके वहां वाइसराय हाउस की स्थापना की, जिसे हम आजनागरिक परिषद जुटेगी यमुना बचाने में
Posted on 01 Jul, 2010 09:33 AMनदी को बचाने के लिए अदालतों के आदेश को ठीक से लागू नहीं किया सरकार नेः वीरेशनई दिल्ली, 30 जून। नागरिक परिषद दिल्ली ‘यमुना बचाओ अभियान’ शुरु करने जा रही है जिसकी अगुआई परिषद के अध्यक्ष वीरेश प्रताप चौधरी, पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना और दिल्ली के पूर्व मंत्री राजेंद्र गुप्ता करेंगे। इसकी जानकारी बुधवार को परिषद की ओर से हुई प्रेस कांफ्रेंस में दी गई। इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना और वीरेश प्रताप चौधरी ने बताया कि परिषद ने दिल्ली में चार जुलाई को एक संगोष्ठी का आयोजन किया है, जिसमें चंद विशेषज्ञों को भी आमंत्रित किया गया है। उस बैठक में अभियान की आगे की रूपरेखा तैयार की जाएगी। खुराना ने कहा कि यमुना दिल्ली और दिल्लीवालों के लिए सिर्फ एक नदी नहीं, इसकी जीवन रेखा है। यह हमारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत