जिस भेड़िये के आने का डर दिखाकर पिछले महीने भर से हमारा मीडिया अपनी भेड़ों को हांक रहा था, उस भेड़िये की आहट आ गयी है. हरियाणा के हथिनीकुण्ड से आठ लाख क्यूसेक पानी 'छोड़' दिया गया है. दिल्ली में बाढ़ वाले हालात हैं. नहीं नहीं, मीडिया हाइप नहीं है. सच में, बाढ़ के हालात हैं. यमुना के किनारे किनारे लो लाइंग (निचले) इलाकों में पानी पसर रहा है. लेकिन रुकिए. अभी भी बाढ़ की रिपोर्टिंग में सब कुछ सच नहीं है.
आपने अगर मीडिया की खबरों को देखा सुना होगा तो पता चला होगा कि हरियाणा के हथिनि कुण्ड बैराज से आठ लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया है. मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की सांत्वना भी आयी कि चिंता मत करिए सारा पानी दिल्ली नहीं आयेगा. केवल साढ़े तीन लाख क्यूसेक पानी दिल्ली आकर आगे जाएगा इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. किसी पत्रकार ने पूछा कि प्रशासनिक तैयारियां क्या है? बकौल शीला दीक्षित बाढ़ से निपटने के लिए सारे इंतजाम कर लिए गये हैं. तैयारियों का विवरण इस प्रकार हैं. कुछ लाइफबोट दिल्ली में बहनेवाली यमुना में दौड़ रही हैं. पांच से छह स्थानों पर कुछ टेंट लगाए गये हैं जिसमें अभी तक रहने के लिए कोई नहीं आया है. इसके साथ ही क्योंकि दिल्ली में अभी भी बारिश हो रही है इसलिए कुछ नालों को तात्कालिक तौर पर नदीं में जाने से रोक दिया गया है. हमेशा पानी के लिए त्राहि त्राहि करनेवाली दिल्ली में कोई बाढ़ नियंत्रण विभाग भी है इसकी जानकारी भी इसी बाढ़ महोत्सव के दौरान सामने आ रही है. इसी बाढ़ विभाग के अधिकारी बता रहे हैं कि चार सौ अस्थाई टेंट लगाए गये हैं जिसमें निचले इलाकों में रहनेवाले लोगों को कहा गया है कि वे वहां जाकर रह सकते हैं. चार सौ टेन्ट? दिल्ली बाढ़ के कगार पर खड़ी है और पौने दो करोड़ की आबादी वाले महानगर को महज चार सौ टेन्ट लगाकर बाढ़ के प्रकोप से बचाने का आश्वासन दिया जा रहा है. अगर मान भी लें कि दिल्ली बाढ़ के मुहाने पर आ खड़ी हुई है तो क्या इसी व्यवस्था से दिल्ली बाढ़ से उबर जाएगी जिसे देखकर हमारी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित 'संतोष' जता रही हैं?
इस बात पर बाद में आयेंगे लेकिन पहले मीडिया द्वारा प्रसारित एक सबसे बड़े झूठ को पकड़िये. झूठ यह कि हथिनि बैराज से आठ से नौ लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया है. हथिनिकुण्ड बैराज हरियाणा के यमुनानगर में स्थित है और यह कोई बांध नहीं बल्कि बैराज है. बैराज बांध की तरह ऊंचे नहीं होते. इसलिए पानी को बांधी तर्ज पर रोका नहीं जा सकता. अगर बराज के गेट न खोले जाएं तो पानी अपने आप छलकर बहने लगता है. बांध और बराज दोनों ही नदी के पानी रोकने की व्यवस्था हैं लेकिन दोनों की संरचना में एक मूलभूत अंतर होता है. बराज नदी के तल से नदी की सतह तक पानी रोकने की व्यवस्था है इसलिए नदी में ऊफान आने पर पानी स्वत: ही बहकर निकल जाता है जबकि बांध की ऊंचाई बांध बनानेवाले अपनी जरूरत के हिसाब से तय करते हैं और जब तक न चाहें पानी को रोककर रख सकते हैं. देश के राष्ट्रीय मीडिया ने हम जनमानुस को समझा दिया कि हथिनिकुण्ड से पानी 'छोड़ा' गया है और हमने मान भी लिया और सवाल भी दागना शुरू कर दिया कि आखिर हरियाणा सरकार इस तरह से पानी छोड़ क्यों रही है? जब हरियाणा में उसी कांग्रेस की सरकार के बदनाम होने का खतरा पैदा हो गया जिसकी दिल्ली में सरकार है तो हरियाणा सरकार ने अपने ऊपर आये खतरे को मैनेज करने के लिए सच्चाई को सामने लाने की कोशिश शुरू कर दी. हरियाणा के प्रधान सिंचाई सचिव एसएस ढिल्लों ने एक न्यूज एजंसी से बात करते हुए आश्चर्य व्यक्त किया है कि हथिनी कुण्ड से एकसाथ इतना पानी छोड़ा ही नहीं जा सकता कि बाढ़ का खतरा पैदा हो, क्योंकि वह बांध नहीं बैराज है. दूसरी बात आठ सितंबर को हथिनि कुण्ड बैराज में ७ लाख ०७ हजार क्यूसेक पानी था जो कि आज (11 सितंबर) को घटकर महज ७४ हजार क्यूसेक रह गया है. अगर हरियाणा सरकार ने हथिनी कुण्ड बैराज से पानी 'छोड़ा' भी है जो कितना? तीन दिन पहले कुल अतिरिक्त बहाव ही अगर सात लाख क्यूसेक का था तो नौ लाख क्यूसेक पानी कहां से 'छोड़' दिया गया? खैर, इस वक्त इन गैर महत्व के विषयों पर बात करने की जरूरत शायद नहीं है. दिल्ली में बाढ़ आयी है और उस बाढ़ से निपटने के लिए दिल्ली सरकार के इंतजाम और मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की चिंताओं में शरीक होने की जरूरत है.
जिस कामनवेल्थ गेम्स विलेज का विरोध हो रहा था यह कहकर कि यह नदी का पेट है, यहां शहर क्यों बसाते हो, वहां अभी पानी तो नहीं आया है लेकिन उस विलेज को बचाने के लिए जो तटबंध बनाया गया था वहां तक यमुना का पानी जा पहुंचा है. इस बात की उम्मीद बहुत कम है कि कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज डूब पायेगा. पानी थोड़ी खाली बची जगहों पर फैल रहा है जो लक्ष्मी नगर और नोएडा की ओर हैं. वहां पानी और ऊपर ऊठा तो शायद कामनवेल्थ गेम्स विलेज को डुबाने के अलावा प्रशासन के पास कोई रास्ता नहीं बचे. लेकिन इसकी उम्मीद कम ही है. इंद्रदेव शीला दीक्षित से इतने भी नाराज शायद नहीं होंगे. अगर शीला दीक्षित से कोई नाराज है तो वे खुद शीला दीक्षित ही हैं. न जाने क्यों वे इस झूठ को जरूरत से ज्यादा बढ़ावा दे रही हैं कि दिल्ली में बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है? क्या कहीं इसके नाम पर वे कामनवेल्थ गेम्स की अधूरी तैयारियों को छिपा ले जाना चाहती हैं? अगर ऐसा नहीं है तो वे भला झूठ पर झूठ क्यों बोले जा रही हैं?
उनके झूठ को उन्हीं के मंत्रिमण्डल के एक मंत्री खारिज कर रहे हैं. अभी तक शायद ही किसी को पता हो कि दिल्ली में बाढ़ के लिए भी एक मंत्रालय है जिसके मंत्री राजकुमार चौहान हैं. राजकुमार चौहान वैसे तो पीडब्यूडी मिनिस्टर के रूप में ही जाने जाते हैं लेकिन आजकल उनका परिचय बदल गया है और हम उन्हें बाढ़ नियंत्रण मंत्री के रूप में देख सुन रहे हैं. राजकुमार चौहान जिनके पास दिल्ली में आनेवाली बाढ़ को नियंत्रित करने की सरकारी जिम्मेदारी हैं, पहली बार बोले हैं. दस दिन पहले जब बाढ़ का हौव्वा खड़ा किया गया था मंत्री जी ने बोलना भी जरूरी नहीं समझा था. लेकिन इस बार उनसे चुप नहीं रहा गया. राजकुमार चौहान कहते हैं -'नदी में फिलहाल इतना पानी नहीं आया है कि बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सके। यमुना के किनारे तथा निचले स्थानों पर जरूर पानी भर गया है।' ये निचले इलाके कौन से हैं इसे भी जान लीजिए. ये निचले इलाके वे हैं जहां सरकारी, निजी, प्राइवेट, पब्लिक हर प्रकार से अतिक्रमण करके भवन निर्माण, मेट्रो स्टेशन, झुग्गी बस्तियां, अवैध कालोनियों को बसा दिया गया है. अब यमुना नदीं में थोड़ा जरूरत से ज्यादा पानी आयेगा तो इधर उधर नहीं फैलेगा तो जाएगा कहां? दिल्ली के मेट्रोमैन ई श्रीधरन ने तीन साल पहले यमुना के घर में घुसकर यमुना डिपो बनाते समय यह कहते हुए उस डिपो का बचाव किया था कि यमुना को एक पतली संकरी धारा में बहाकर दिल्ली पार करा देना चाहिए. नाहक ही यमुना के नाम पर हमने इतनी जमीन बेकार छोड़ रखी है. अब उन मेट्रोमैन के यमुना डिपो में पानी घुस जाए तो क्या कहेंगे? दिल्ली में बाढ़ आ गयी है? फिर भी, दिल्ली में 'बाढ़ का खतरा' और झूठ का प्रकोप दोनों लगातार बढ़ रहा है. बाढ़ के खतरे से तो दिल्ली को कोई खास नुकसान नहीं होगा लेकिन झूठ के इस प्रकोप से दिल्लीवालों को कौन बचाएगा?
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