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घर को बारिश में भी रखें सुरक्षित
Posted on 11 Sep, 2010 10:25 AM नई दिल्ली: बारिश के मौसम में धूप न मिलने के चलते आपको कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनसे बचने के लिए आप अपने घर को बारिश के असर से बचाएं या इसे मानसून से पूरी सुरक्षा दें। घरों और बगीचों के लिए सबसे जरूरी पर्याप्त मात्रा में धूप का पहुंचना होता है। बारिश के मौसम में आपके घर में पर्याप्त मात्रा में धूप पहुंचे, इसके लिए कुछ छोटे-मोटे बदलाव करने पड़ें, तो उसे समय रहते करा लेना च
अधिकार कागजों तकः अनुपम मिश्र
Posted on 31 Aug, 2010 09:49 AM अधिकार तो लोगों को मिले हैं लेकिन सिर्फ कागजों पर। जल, जंगल और जमीन की लड़ाई जारी है और अधिकारों की भी। लेकिन इससे भी जरूरी, बात यह है कि आप अपना कर्त्तव्य करते रहें, अधिकार पीछे-पीछे चल कर आएगा। मशहूर पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र का ऐसा मानना है। अमेरिका सहित कई देशों के विरोध के बावजूद हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने फैसला सुनाया है कि सफाई और साफ पानी लोगों का बुनियादी अधिकार है। अनुपम मिश्र इस मामले
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पानी पियो बार-बार
Posted on 28 Aug, 2010 09:27 AM बहुत देर तक बैठना पड़ता था उन्हें। काम ही कुछ ऐसा था। वह कोशिश करते थे कि कुछ एक्सरसाइज हो जाए, लेकिन रोज कर नहीं पाते थे। वजन बढ़ता ही जा रहा था। वैन्डरबिल्ट यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च के मुताबिक अगर हम दिन में तीन गिलास पानी ज्यादा पी लेते हैं, तो एक साल में पांच किलो वजन कम कर सकते हैं। इसके अलावा पानी पीने से हम कहीं ज्यादा तरोताजा होते हैं। हमारा मेटाबॉलिज्म भी बेहतर होता है।
मनरेगा, गरीबी और नौकरशाही
Posted on 23 Aug, 2010 01:00 PM कई अध्ययनों से पता चला है कि ब्लाक स्तर पर कायम नौकरशाही ने मनरेगा में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया है। अनुमान है कि ग्रामीण मजदूरों के नाम पर आवंटित राशि में से 30 फीसद राशि नौकरशाही की जेब में पहुंची और करीब 20 फीसद राशि जनप्रतिनिधियों की। इस तरह मजदूरों तक सिर्फ पचास फीसद राशि ही पहुंच पाई। यह योजना नौकरशाहों और नेताओं की संपन्नता का एक बहुत बड़ा जरिया बन गई। इस भ्रष्टाचार का दूसरा सिरा भारत
आ जा चिड़िया आ जा री, चुग-चुग दाना खा जा री
Posted on 23 Aug, 2010 12:05 PM
अपने नाती के मुंह में ग्रास डालते हुए मैं वही गाना गाती हूं जो बरसों पहले उसकी मां के लिए गाती थी- 'आ जा चिड़या आ जा री / चुग-चुग दाना खा जा री / आती हूं मैं आती हूं / फुदक-फुदक कर आती हूं / चुग-चुग दाना खाती हूं / झट ऊपर उड़ जाती हूं।' पर एक भी चिड़िया नहीं आती। लेकिन तब तो आंगन भर जाता था। एक ग्रास बच्चे के मुंह में डालती और एक के नन्हे-नन्हे टुकड़े कर के आंगन में छितरा देती। बड़ों के नाश
जन आंदोलन के बिना नहीं बच सकेगी यमुना
Posted on 19 Aug, 2010 09:21 AM

प्रबुद्ध नागरिकों से मुहिम में जुड़ने की अपील, गोष्ठी के जरिए लाएंगे जागरुकता


अब दिल्ली नागरिक परिषद ने यमुना बचाने के लिए दिल्ली के नागरिकों का जनांदोलन खड़ा करने का फैसला किया है। परिषद के अध्यक्ष वीरेश प्रताप चौधरी कहते हैं कि यमुना की दुर्दशा खुद नहीं हुई है। अगर इसके नैसर्गिक बहाव को रोका नहीं जाता तो यमुना दिल्ली के साथ कई शहरों की प्यास बुझाती। साथ ही लाखों एकड़ खेतों और जंगलों को आबाद करती। यमुना की यह दशा सरकारों के नाकारापन और स्वार्थ के कारण हुई है। इसलिए केवल सरकारों से यमुना को बचाने की उम्मीद करना गलत होगा। अभी इस अभियान में प्रबुद्ध नागरिकों को जोड़ने के लिए अनेक गोष्ठी आयोजित की जा रही है। इस कड़ी में पिछले महीने एक गोष्ठी हुई और अगले महीने 11 सितंबर को बीपी हाउस में पूरे दिन की गोष्ठी होने वाली है।

यमुना बचाओ अभियान के नाम से एक अपील
सोलर सूनामी का पहला ज्वार
Posted on 19 Aug, 2010 08:21 AM एक और दो अगस्त को सूरज से उठकर सीधे अपनी तरफ बढ़े दो तूफानों का झटका धरती पिछले दो-तीन दिनों में झेल चुकी है। एक वैज्ञानिक के शब्दों में कहें तो इस वक्त भी यह उनके असर से झनझना रही है। सूरज की सतह पर होने वाले विस्फोटों से निकली सामग्री का सीधे धरती की तरफ आना एक विरल घटना है। लेकिन इस बार तो लगातार दो विस्फोटों से निकले आवेशित कण हजारों मील प्रति सेकंड की रफ्तार से इसी तरफ दौड़ पड़े थे। बताते हैं कि ऐसे एक भी विस्फोट से निकली ऊर्जा को अगर किसी तरह काबू में कर लिया जाए तो इससे धरती की सारी ऊर्जा जरूरतें दसियों लाख साल तक पूरी की जा सकती हैं। इतनी ज्यादा ऊर्जा अचानक अपने ग्रह की तरफ आ जाना कोई मामूली बात तो थी नहीं।

एक के पीछे एक चले आ रहे इन दोनों सौर तूफानों
ग्लोबल वॉर्मिंग की बंद गली, और एक रास्ता
Posted on 19 Aug, 2010 08:09 AM ग्लोबल वॉर्मिंग के बारे में आम लोगों का रवैया संशयवादी हो सकता है लेकिन साइंटिस्टों में इस समस्या को लेकर कोई दुविधा नहीं है। वे हमेशा मानते रहे हैं कि इंसान की पैदा की हुई यह समस्या वास्तविक है और अगर इसकी अनदेखी की गई तो इससे इंसान के वजूद को ही खतरा हो सकता है।

लेकिन, यदि इस समस्या से निपटना है तो जरूरी सवाल यह है कि हम इस बारे में करें तो क्या करें। इस बारे में सबसे आम सुझाव यह है कि दुनिया को हर दिन वातावरण में झोंकी जाने वाली ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में भारी-भरकम कटौती करनी चाहिए। कहा जा रहा है कि इस सदी के मध्य तक कार्बन-डाइ-ऑक्साइड के ग्लोबल इमिशन में 50 फीसदी की कमी लानी चाहिए। लेकिन, इस मत के समर्थक भी मानते हैं कि यह टारगेट हासिल कर पाना आसान नहीं है, और इस मामले में वे सही हैं। बल्कि असल में वे
बोल मेरी धरती कितना पानी..
Posted on 18 Aug, 2010 12:47 PM पानी की समस्या हमारे देश के लिए ही नहीं, समूचे विश्व के लिए दिनोंदिन गंभीर हो रही है। जीवन के लिए जरूरी जल का संकट ही आने वाले समय की सबसे बड़ी चुनौती है, जिस पर गौर करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। आने वाले दिनों की संभावित स्थिति पर गौर करें तो इसका मुकाबला कर पाने की सामर्थ्य जुटा पाना बेहद मुश्किल जरूर होगा। ऐसे में तमाम संभावित जल-प्रबंधन के उपायों पर ध्यान दिया जाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए
जल तत्व
Posted on 18 Aug, 2010 12:28 PM गर्मी में जब धरती तपने लगती है तब हमें जल का महत्त्व समझ में आने लगता है। आयुर्वेद की भाषा में इसे समझें तो जल श्रम की थकान दूर करने वाला, बेहोशी और प्यास मिटाने वाला, खेद नाशक, बेवक्त आने वाली नींद को मिटाने वाला, आलस्य को भगाने वाला, तृप्तिकारक, हृदय का मित्र, शीतल हल्का और अमृत के समान जीवन का सबसे बड़ा सहायक तत्व है।
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