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हर आदमी रोज बहाता है दो हजार लीटर पानी
Posted on 15 Dec, 2010 07:41 AM

पानी की महत्ता के बारे में अनभिज्ञ होने की वजह से औसतन हर आदमी अपनी दिनचर्या के दौरान, यानी नाश्ता और दिन के भोजन के दौरान रोजाना लगभग दो हजार लीटर पानी व्यर्थ बहा देता है।

पानी का दुरुपयोग
बागवानी प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा (पीजीडीपीएम)
Posted on 14 Dec, 2010 04:11 PM न्यूनतम अवधि: 1 वर्ष
अधिकतम अवधि: 4 वर्ष
पाठ्यक्रम शुल्क: 4,800 रुपये
न्यूनतम उम्र: कोई सीमा नहीं
अधिकतम उम्र: कोई सीमा नहीं

योग्यता:


• किसी भी विषय में स्नातक

कार्यक्रम सिंहावलोकन

डेयरी फार्म पर ग्रामीण किसानों के लिए जागरूकता कार्यक्रम (एपीडीएफ)
Posted on 14 Dec, 2010 04:07 PM न्यूनतम अवधि: 2 माह
अधिकतम अवधि: 2 वर्ष
पाठ्यक्रम शुल्क: 1,000 रुपये
न्यूनतम उम्र: कोई सीमा नहीं
अधिकतम उम्र: कोई सीमा नहीं

योग्यता:


कोई औपचारिक शिक्षा नहीं

कार्यक्रम सिंहावलोकन

जैविक कृषि में सर्टिफिकेट (सीओएफ)
Posted on 14 Dec, 2010 12:01 PM न्यूनतम अवधि: 6 माह
अधिकतम अवधि: 2 वर्ष
पाठ्यक्रम शुल्क: 3,600 रुपये
न्यूनतम उम्र: कोई सीमा नहीं
अधिकतम उम्र: कोई सीमा नहीं

योग्यता:


10+2 उत्तीर्ण / इग्नू से स्नातक तैयारी कार्यक्रम (बीपीपी)

कार्यक्रम सिंहावलोकन

जल संभर प्रबंधन में डिप्लोमा (डीडब्ल्यूएम)
Posted on 14 Dec, 2010 11:31 AM न्यूनतम अवधि: 1 वर्ष
अधिकतम अवधि: 4 वर्ष
पाठ्यक्रम शुल्क: 9,000 रुपये
न्यूनतम उम्र: कोई सीमा नहीं
अधिकतम उम्र: कोई सीमा नहीं

योग्यता:


10+2 उत्तीर्ण/ इग्नू से बीपीपी। दसवीं उत्तीर्ण विद्यार्थी बीपीपी और डिप्लोमा कार्यक्रम के लिए एक साथ पंजीकृत हो सकते हैं।

कार्यक्रम सिंहावलोकन

पहाड़ों पर चढ़ता विकास का भूत
Posted on 09 Dec, 2010 09:21 AM आज मुख्य समस्या यह है उफनती नदियों का वेग कैसे कम करें। बारिश तो कम ज्यादा होती रहती है और होती रहेगी । इसके चक्र को हमें पूरी तरह से समझना होगा । हमारे देश की गंगा, सिन्धु, एवं ब्रह्मपुत्र की सहायक धाराएं हिमालय क्षेत्र से ही नहीं अपितु इनकी कई धाराएं भूटान, नेपाल के पहाड़ों के साथ-साथ तिब्बत से भी निकलती हैं । इसी प्रकार गोदावरी, नर्मदा आदि अनेकों नदियां पूर्वी घाट, पश्चिमी घाट या देश के छोटे-बड़े पहाड़ों एवं जंगलों से निकलती है । इस वर्ष उत्तराखंड में आई बाढ़ ने एक बार पुन: विकास की नई अवधारणा के यंत्रों जैसे सड़क व बिजली व पानी के न्यायोचित इस्तेमाल की ओर इशारा किया है। उत्तराखंड एवं अन्य पहाड़ी क्षेत्रों को मैदानी प्रभावी तबका दुधारू गाय की तरह दुहता रहता है । पहले यहां के पानी और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को अपने उपयोग में लाकर और बची- कुची कसर यहां पर छुटि्टयां बिताने के लिए होटल और मनोरंजन केन्द्र बनाकर पूरी कर लेता है । धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले पहाड़ी क्षेत्र अब शोषण के प्रतीक बन कर रह गए हैं ।

इस वर्ष पहाड़ों से लेकर मैदानों तक लगातार नदियों में आयी बाढ़ से डूब क्षेत्रों का विस्तार हुआ है । २५ अगस्त की सुबह दिल्ली के अन्तर्राष्ट्रीय बस अड्डे सहित यमुना नदी के किनारे की बस्तियों एवं गांवों में पानी घुसने के समाचार प्रमुखता से प्रसारित होते रहे ।
शैतानी गैसों के साए में
Posted on 08 Dec, 2010 02:23 PM
दुनिया भर में इलेक्ट्रानिक और औद्योगिक कचरे के निपटान को लेकर बहस चल रही है। विकसित देश अपना कचरा विकासशील और अविकसित देशों के मत्थे मढ़ रहे हैं और उन देशों को बीमार और बदहाल बना रहे हैं। भारत में भी कई देश अपना कचरा डाल रहे हैं। इसका जायजा ले रहे हैं
Air pollution
क्या आप बेस्ट वाटर एनजीओ हैं
Posted on 09 Nov, 2010 06:24 PM

जल संरक्षण के लिए विभिन्न कंपनियों द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्य के सम्मान के लिए वाटर डाइजेस्ट वाटर पुरस्कार, 2006 में स्थापित किए गए थे। यह पुरस्कार यूनेस्को और भारत के जल संसाधन मंत्रालय द्वारा समर्थित है। पुरस्कार का मुख्य फोकस लोग, नवीनता और वह प्रक्रिया है जिसका जल संसाधनों के स्थायित्व या अविरलता के लिये महत्वपूर्ण योगदान है, इसका मुख्य फोकस वें गैर सरकारी संगठन और कॉर्पोरेट भी हैं जो लोग

वाटर डाइजेस्ट वाटर अवार्ड
जल बोर्ड में प्राइवेटाइजेशन की आहट
Posted on 02 Nov, 2010 12:47 PM नई दिल्ली।। वॉटर लॉस कम करने के लिए दिल्ली जल बोर्ड ऑपरेशंस और मैनेजमेंट का जिम्मा प्राइवेट हाथों में सौंपने की तैयारी कर रहा है। इसकी शुरुआत नांगलोई जोन से होगी। इसके लिए प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की जा रही है। नए साल की शुरुआत में प्रोजेक्ट रिपोर्ट आ जाएगी जिसके बाद इस पर अमल किया जाएगा। टेंडर के जरिए जिसे भी नांगलोई जोन का जिम्मा दिया जाएगा उसे 30 सालों तक ऑपरेट और मेंटेन की जिम्मेदारी संभालनी हो
पानी महँगा, जहर सस्ता
Posted on 02 Nov, 2010 12:33 PM उदारवादी अर्थव्यवस्था में पले-बढ़े आधुनिक शिक्षित युवाओं के इस सवाल का जवाब शायद सरकार के पास नहीं है कि केवल भारत देश में पानी को अमृत क्यों कहा जाता है ? अब तेल, गैस, परमाणु ऊर्जा को वरदान क्यों नहीं माना जाता।दिल्ली सरकार अब एक बूँद पानी भी मुफ्त में नहीं देगी। देश इतनी तरक्की कर गया। परमाणु बम के टॉप क्लब का सदस्य बन गया। हवाई जहाज इंद्रप्रस्थ के आकाश से नीचे उतरने के लिए इंतजार करते रहते हैं। जनता के चुनिंदा प्रतिनिधियों और मंत्रियों के पास कारें ही नहीं, अपने हवाई जहाज हैं।

बड़े नेताओं को जेबी कम्प्यूटर से देश-दुनिया की जानकारी पल-पल मिलती रहती है। जनता के लिए पेरिस-बर्लिन की तरह मेट्रो ला दी गई।
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