दिल्ली

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पहाड़ों पर चढ़ता विकास का भूत
Posted on 09 Dec, 2010 09:21 AM आज मुख्य समस्या यह है उफनती नदियों का वेग कैसे कम करें। बारिश तो कम ज्यादा होती रहती है और होती रहेगी । इसके चक्र को हमें पूरी तरह से समझना होगा । हमारे देश की गंगा, सिन्धु, एवं ब्रह्मपुत्र की सहायक धाराएं हिमालय क्षेत्र से ही नहीं अपितु इनकी कई धाराएं भूटान, नेपाल के पहाड़ों के साथ-साथ तिब्बत से भी निकलती हैं । इसी प्रकार गोदावरी, नर्मदा आदि अनेकों नदियां पूर्वी घाट, पश्चिमी घाट या देश के छोटे-बड़े पहाड़ों एवं जंगलों से निकलती है । इस वर्ष उत्तराखंड में आई बाढ़ ने एक बार पुन: विकास की नई अवधारणा के यंत्रों जैसे सड़क व बिजली व पानी के न्यायोचित इस्तेमाल की ओर इशारा किया है। उत्तराखंड एवं अन्य पहाड़ी क्षेत्रों को मैदानी प्रभावी तबका दुधारू गाय की तरह दुहता रहता है । पहले यहां के पानी और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को अपने उपयोग में लाकर और बची- कुची कसर यहां पर छुटि्टयां बिताने के लिए होटल और मनोरंजन केन्द्र बनाकर पूरी कर लेता है । धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले पहाड़ी क्षेत्र अब शोषण के प्रतीक बन कर रह गए हैं ।

इस वर्ष पहाड़ों से लेकर मैदानों तक लगातार नदियों में आयी बाढ़ से डूब क्षेत्रों का विस्तार हुआ है । २५ अगस्त की सुबह दिल्ली के अन्तर्राष्ट्रीय बस अड्डे सहित यमुना नदी के किनारे की बस्तियों एवं गांवों में पानी घुसने के समाचार प्रमुखता से प्रसारित होते रहे ।
शैतानी गैसों के साए में
Posted on 08 Dec, 2010 02:23 PM
दुनिया भर में इलेक्ट्रानिक और औद्योगिक कचरे के निपटान को लेकर बहस चल रही है। विकसित देश अपना कचरा विकासशील और अविकसित देशों के मत्थे मढ़ रहे हैं और उन देशों को बीमार और बदहाल बना रहे हैं। भारत में भी कई देश अपना कचरा डाल रहे हैं। इसका जायजा ले रहे हैं
Air pollution
क्या आप बेस्ट वाटर एनजीओ हैं
Posted on 09 Nov, 2010 06:24 PM

जल संरक्षण के लिए विभिन्न कंपनियों द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्य के सम्मान के लिए वाटर डाइजेस्ट वाटर पुरस्कार, 2006 में स्थापित किए गए थे। यह पुरस्कार यूनेस्को और भारत के जल संसाधन मंत्रालय द्वारा समर्थित है। पुरस्कार का मुख्य फोकस लोग, नवीनता और वह प्रक्रिया है जिसका जल संसाधनों के स्थायित्व या अविरलता के लिये महत्वपूर्ण योगदान है, इसका मुख्य फोकस वें गैर सरकारी संगठन और कॉर्पोरेट भी हैं जो लोग

वाटर डाइजेस्ट वाटर अवार्ड
जल बोर्ड में प्राइवेटाइजेशन की आहट
Posted on 02 Nov, 2010 12:47 PM नई दिल्ली।। वॉटर लॉस कम करने के लिए दिल्ली जल बोर्ड ऑपरेशंस और मैनेजमेंट का जिम्मा प्राइवेट हाथों में सौंपने की तैयारी कर रहा है। इसकी शुरुआत नांगलोई जोन से होगी। इसके लिए प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की जा रही है। नए साल की शुरुआत में प्रोजेक्ट रिपोर्ट आ जाएगी जिसके बाद इस पर अमल किया जाएगा। टेंडर के जरिए जिसे भी नांगलोई जोन का जिम्मा दिया जाएगा उसे 30 सालों तक ऑपरेट और मेंटेन की जिम्मेदारी संभालनी हो
पानी महँगा, जहर सस्ता
Posted on 02 Nov, 2010 12:33 PM उदारवादी अर्थव्यवस्था में पले-बढ़े आधुनिक शिक्षित युवाओं के इस सवाल का जवाब शायद सरकार के पास नहीं है कि केवल भारत देश में पानी को अमृत क्यों कहा जाता है ? अब तेल, गैस, परमाणु ऊर्जा को वरदान क्यों नहीं माना जाता।दिल्ली सरकार अब एक बूँद पानी भी मुफ्त में नहीं देगी। देश इतनी तरक्की कर गया। परमाणु बम के टॉप क्लब का सदस्य बन गया। हवाई जहाज इंद्रप्रस्थ के आकाश से नीचे उतरने के लिए इंतजार करते रहते हैं। जनता के चुनिंदा प्रतिनिधियों और मंत्रियों के पास कारें ही नहीं, अपने हवाई जहाज हैं।

बड़े नेताओं को जेबी कम्प्यूटर से देश-दुनिया की जानकारी पल-पल मिलती रहती है। जनता के लिए पेरिस-बर्लिन की तरह मेट्रो ला दी गई।
हमारी सोच से भी ज्यादा पर्यावरण का ख्याल रखते हैं वृक्ष
Posted on 22 Oct, 2010 04:08 PM
पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखने में वृक्ष अहम योगदान देते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि वृक्ष पहले किए गए शोध से निकले परिणाम से तीन गुना अधिक पर्यावरण को पदूषण मुक्त रखते हैं। वृक्ष वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों को अवशोषित कर उन्हें वायुमंडल में जाने से रोकते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि शहरों में सामान्य और खतरनाक वायु प्रदूषक अवयवों को वृक्ष आसानी से अवशोषित करते हैं। इसलिए पर्यावरण को प्रदूषण मु
देश बदनाम हुआ
Posted on 28 Sep, 2010 08:20 AM
देश जब बदनाम होता है, डॉर्लिंग, हमारी गंदगी के कारण तो तकलीफ होती है, न?
सड़क से भूजल भरिए
Posted on 27 Sep, 2010 08:15 AM


सड़कों को नुकसान पहुंचाने वाले वर्षा जल का ठीक से इस्तेमाल कर देश में घटते भूजल स्तर को संभाला जा सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि योजनाओं को समावेशी बनाए जाए और जल की उपलब्धता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।

भूजल
..और नदियों के किनारे घर बसे हैं
Posted on 23 Sep, 2010 01:02 PM मानव सभ्यता और बाढ़ का रिश्ता आदिकाल से चला आ रहा है। अनेक सभ्यताएं नदियों के किनारे पनपी और बाढ़ से नेस्तनाबूद हो गई। आज भी बाढ़ एक ऐसी आपदा है जिसके नाम से ही देश के अनेक गांवों एवं नगरों के लोग थर्रा उठते हैं। एक शोध के अनुसार 1980 से 2008 के दौरान भारत में चार अरब से भी अधिक लोग बाढ़ प्रभावित हुए। प्रति वर्ष बाढ़ से करोड़ों रुपयों के घर-बार, खेती और मवेशी नष्ट हो जाते हैं।
लोक जीवन में जल
Posted on 23 Sep, 2010 11:50 AM
देश के बहुरंगी सांस्कृतिक परिवेश को एकता का सूत्र जल ही प्रदान करता है। जल की इस शक्ति का अनुभव लोक ने कर लिया था, इसलिए उसका प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान जल के पूजन से प्रारंभ होता है।
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