अमर उजाला कॉम्पैक्ट

अमर उजाला कॉम्पैक्ट
समुद्र का मरीन इको सिस्टम खतरे में
Posted on 15 Jul, 2011 12:53 PM

हिमालय के ग्लेशियर ही नहीं, बल्कि समुद्र की मरीन इकोलॉजी पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। यह खतरा समुद्री मालवाहक जहाजों के घिट्टी पानी (ब्लास्ट वाटर) से आ रहे जीवाणुओं से हो रहा है जो एक महाद्वीप का पानी लेकर दूसरे में डाल रहे हैं। पानी के जहाजों के इस घिट्टी पानी के कारण जापान के समुद्र में फैले फुकुशिमा रिएक्टरों के रेडियो एक्टिव तत्व दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में पहुंचने का खतरा भी कायम

हरियाली बदल रही लेह की सूरत
Posted on 15 Jul, 2011 12:20 PM

‘ठंडे रेगिस्तान’ के नाम से मशहूर मटमैले लेह में अब हरी चादर दिखने लगी है। यह हरियाली लेह की शक्ल-सूरत बदल रही है। माना जा रहा है कि हरियाली बादल खींचने लगी है और यहां हर साल बारिश का दर बढ़ रही है। नतीजतन सदियों से लगभग नहीं के बराबर बारिश में जिंदगी गुजारने वाले लेह के लोगों का सामना अब हर साल होने वाली बरसात से हो रहा है।उधर, प्रशासन का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से यहां गर्मी बढ़ी है

बढ़ते जलस्तर ने अमेरिकी शहरों के लिए खतरा पैदा किया
Posted on 19 Feb, 2011 12:08 PM


समुद्र का बढ़ता जलस्तर कई बड़े अमेरिकी तटीय शहरों को 2100 तक बुरी तरह प्रभावित करेगा। यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक शोध में यह बात सामने आई है कि समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण अमेरिका के करीब 180 बड़े शहरों की करीब 9 फीसदी भूमि के ऊपर खतरा मंडरा रहा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक 2100 तक इन शहरों की 9 फीसदी भूमि समुद्र में समाहित हो जाएगी।

 

हिंद महासागर की गर्मी ने अफ्रीका में सूखे को दिया जन्म
Posted on 29 Jan, 2011 12:28 PM
वैश्विक तापमान में वृद्घि तथा हिंद महासागर के लगातार गर्म होने के कारण पूर्वी अफ्रीका में सूखे की स्थिति पिछले 20 वर्षों से लगातार बढ़ रही है और यह स्थिति भविष्य में भी जारी रहने वाली है। यह बात एक नए शोध में सामने आई है, जो कि क्लाइमेट डायनेमिक्स में प्रकाशित हुआ है। यूएस जूलॉजिकल सर्वे और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं ने नए शोध में बताया कि पूर्वी अफ्रीका में सूखा तीव्र गति से अपना प
विकसित होने में पानी का कम प्रयोग करेंगे पौधे!
Posted on 12 Jan, 2011 10:27 AM


भविष्य में हो सकता है कि पौधों को विकास करने के लिए बहुत अधिक पानी की जरूरत न पड़े, क्योंकि पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पौधों में आनुवांशिक परिवर्तन की खोज की है, जो कि पौधों को बायोमास की हानि के बिना बेहतर ढंग से टिकाए रख सकता है। ऐसे में पौधों को विकास करने के लिए अधिक पानी की जरूरत नहीं पड़ती है। साथ ही उसे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी टिके रहने में मदद मिलती है।

हिमालय में भी पड़ेगा सूखा, बीमारियां करेंगी घुसपैठ
Posted on 20 Nov, 2010 07:08 AM

ग्रीन हाउस गैसों और जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा बुरा असर हिमालयी क्षेत्र पर पड़ रहा है। वर्ष 1970 की तुलना में 2030 तक हिमालयी क्षेत्र खासतौर पर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में औसत तापमान 1.7 से 2.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। इस क्षेत्र में बारिश और सूखा दोनों बढ़ेंगे। यहां का प्रमुख फल सेब भी संकट में घिरा होगा। हालांकि इसमें सिर्फ चार क्षेत्रों, हिमालयी क्षेत्र, पूर्वोत्तर, पश्चिमी घाट और तटीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से कृषि, जल, जंगल और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया गया है। इसमें वर्ष 1970 के आंकड़ों को आधार मानकर 2030 तक की स्थिति का आकलन
ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण प्रभावित हो रही है एशियाई वर्षा
Posted on 06 Nov, 2010 08:34 AM
ज्वालामुखी विस्फोट की बढ़ती घटनाओं का मौसम पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। पहले तो इसका प्रकोप पश्चिमी देशों में ज्यादा था, पर इन गतिविधियों की चपेट में अब एशियाई बारिश भी आ चुकी है। यह बात कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए शोध में सामने आई है। शोधकर्ताओं ने बताया कि ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बहुत-से हानिकारक कण निकलते हैं, जो बहुत तेज गति से जाकर सौर ऊर्जा को ब्लॉक कर देते हैं। इसके कारण आसपास का वातावरण काफी ठंडा हो जाता है।

बढ़ रहा है आर्कटिक का तापमान
Posted on 23 Oct, 2010 02:26 PM

आर्कटिक को पृथ्वी का फ्रिज (रेफ्रिजरेटर) भी कहा जाता है, क्योंकि पृथ्वी का ध्रुव यह बहुत अधिक ठंडा है। लेकिन वायुमंडल में प्रदूषण फैलने की वजह से अब यह भी अभूतपूर्व दर से गर्म होता जा रहा है। आर्कटिक का गर्म होना पूरी पृथ्वी के अस्तित्व के लिए खतरे का संकेत है। आर्कटिक के लगातार गर्म होने की घटना के कारण पूरा उत्तरी गोलार्ध सबसे अधिक संकट में है। यह बात अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने
पर्यावरण संरक्षण में अहम रोल निभा रहा है समुद्री शैवाल
Posted on 23 Oct, 2010 11:21 AM
मौसम में असमय बदलाव और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में बढ़ोतरी से सभी पर्यावरणविद परेशान हैं। किंतु, इस दिशा में आशा की एक नई किरण दिखी है। कैनबरा यूनिवर्सिटी और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने दावा किया है कि समुद्री पौधों की मदद से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम किया जा सकता है। उनका कहना है कि दुनिया के महासागरों का कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर और जलवायु परिवर्तन पर गहरा प्रभाव पड
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