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इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार – 2010 के लिए आवेदन आमंत्रित
Posted on 15 Jul, 2010 10:20 AM वर्ष 2010 के लिए इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार के लिए (भारतीय नागरिकों/संगठनों) जिन्होंने पर्यावरण की सुरक्षा/संरक्षण के लिए विशिष्ट कार्य किए हों, से नामांकन आमंत्रित किए जाते हैं। भारत के ऐसे कोई भी नागरिक जिनके पास पर्यावरण के क्षेत्र में कम से कम 10 वर्षों का कार्य अनुभव हो (उन्हें इस अनुभव के समर्थन में प्रकाशित/फिल्ड कार्य का विवरण प्रस्तुत करना होगा)/ऐसे एनजीओ जो कम से कम पांच वर्षों से पर
कमजोर ‘लैला’ से प्रभावित हो सकता है मानसून
Posted on 12 Jul, 2010 10:10 AM
चारों ओर लैला की ही चर्चा है। हर कोई लैला के बारे में ही बात कर रहा है। कोई इसे जबर्दस्त चक्रवाती तूफान करार देता है, तो कोई इसके कमजोर होने पर राहत महसूस कर रहा है। अब तक करीब 25 जानें लेने वाला यह तूफान भले ही कमजोर पड़ गया हो, पर सच तो यह हे कि इसके हमारे मेहमान मानसून का मिजाज बिगाड़ दिया है। अब मानसून हमसे रुठ जाएगा, जो पहले आने वाला था, अब उसे आने में कुछ देर हो जाएगी। हमारे देश में मानसून एक ऐसी शक्ति है, जो अच्छे से अच्छे बजट को बिगाड़ सकती है। कोई भी तुर्रमखाँ वित्तमंत्री इसके बिना अपना बजट बना ही नहीं सकता। पूरे देश का भविष्य मानसून पर निर्भर करता है। इसलिए इस बार मानसून को लेकर की जाने वाली तमाम भविष्यवाणियों को प्रभावित कर
पीपल कथा अनंता
Posted on 10 Jul, 2010 09:40 AM
कबीर कह गए हैं कि कुदरत की गति न्यारी और निराली होती है। संसार का नियम सोच-समझ और विचार से परे चलता है। तो क्या कोई कुदरत की कला का पारखी हो सकता है?
खरे उतरे जलवायु वैज्ञानिकों के निष्कर्ष
Posted on 09 Jul, 2010 09:13 PM

इंग्लैंड के ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय की जलवायु परिवर्तन शोध इकाई के निष्कर्षों की स्वतंत्र समीक्षा करने वाली समिति का कहना है कि जलवायु वैज्ञानिकों ने पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ काम किया है। समीक्षा समिति का कहना है कि “वैज्ञानिकों के निष्कर्षों में कोई त्रुटि नहीं है लेकिन उन्होंने अपने काम की पूरी जानकारी देने में कोताही बरती है और निष्कर्षों का बचाव करने की कोशिश की है।”

रस ही जीवन / जीवन रस है
Posted on 09 Jul, 2010 05:09 PM साल भर हमारे कोमल मनों में जो तनाव जमा होते रहते हैं, उनसे उल्लासपूर्ण विमुक्ति का दुर्लभ मौका, जब आप कोयले को कोयला और कीचड़ को कीचड़ कह सकते हैं। होली के दिन कोई किसी का गुसैयां नहीं रह जाता। किसी से भी प्यार किया जा सकता है और किसी पर भी छींटाकशी की जा सकती है। लेकिन यह छींटाकशी भी विनोद भाव के परिणामस्वरूप मृदु और सहनीय हो जाती है। बल्कि जिसका परिहास किया जाता है, वह भी बुरा न मानने का अभिनय करते हुए बरबस हंस पड़ता है। शायद यही 'बुरा न मानो होली है' के हर्ष-विनोद घोष का उद्गम स्थल है। भारत में होली सबसे सरस पर्व है। दशहरा और दीपावली से भी ज्यादा। दूसरे त्योहारों में कोई न कोई वांछा है। या वांछा की पूर्ति का सुख। होली दोनों से परे है। यह बस है, जैसे प्रकृति है। अस्तित्व के आनंद का उत्सव। वांछा और वांछा की पूर्ति, दोनों में द्वंद्व है। यह जय-पराजय से जुड़ा हुआ है। दोनों ही एक अधूरी दास्तान हैं। सच यह है कि दूसरा हारे, तब भी हमारी पराजय है। कोई भी सज्जन किसी और को दुखी देखना नहीं चाहता। किसी का वध करके उसे खुशी नहीं होती। करुणानिधान राम ने जब रावण पर अंतिम प्राणहंता तीर चलाया होगा, तो उनका हृदय विषाद से भर गया होगा। उनके दिल में हूक उठी होगी कि काश, रावण ने ऐसा कुछ न किया होता जो उसके लिए मृत्यु का आह्वान बन जाए; काश, उसने अंगद के माध्यम से भेजे गए संधि प्रस्ताव को मंजूर कर लिया होता; काश, उसने विभीषण की सत सलाह का तिरस्कार नहीं किया होता। अर्जुन का विषाद तो बहुत ही प्रसिद्ध है। युद्ध छिड़ने के ऐन पहले उसे अपने तीर-तूरीण भारी लगने लगे।
ए बादल जी
Posted on 09 Jul, 2010 09:28 AM
कभी गरजते बादल जी,
कभी बरसते बादल जी।
बंदर, हाथी, घोडे बन,
सुंदर दिखते बादल जी।

दौड़-धूप दिन-रात, मगर
तनिक न थकते बादल जी।
बूंदा-बांदी और झड़ी,
रस्ते-रस्ते बादल जी।

धरती पर हरियाली की,
रचना रचते बादल जी।
इंध्रधनुष के देते हैं,
प्रिय गुलदस्ते बादल जी।

बिन पानी सब सून रहे,
खूब समझते बादल जी।
पानी की छोटी-छोटी कहानियां
Posted on 08 Jul, 2010 07:27 PM
यूं तो मौसम कई होते हैं। परंतु बच्चों से पूछा जाए कि सबसे अच्छा मौसम कौन सा है, तो अधिकांश का कहना होगा-रेनी सीजन, यानी बारिश। चलिए इस बार आपको बरसात से जुड़ी कुछ खास जानकारियां देते हैं।

 

 

वर्षा जल का संरक्षण


आम तौर पर लोग बरसाती पानी का महत्त्व नहीं समझते। इसीलिए भगवान की इस देन की सब उपेक्षा करते हैं और सारा पानी जमीन में या नदियों में चला जाता है। फिर नदियों का

तापमान पर अंकुश से ही बचेगी दुनिया
Posted on 08 Jul, 2010 03:27 PM

दुनिया में पर्यावरण क्षरण और जलवायु परिवर्तन का सवाल आज सबसे अहम बना है। जब तक इसका हल नहीं निकलेगा, दुनिया पर संकट मंडराता रहेगा।संयुक्त राष्ट्र सहित दुनिया के अधिकतर सरकारी, गैर-सरकारी व निजी संस्थानों के हालिया अध्ययन व शोध इसकी पुष्टि करते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही आज महासागरों में मौजूद बर्फीली चट्टानों (आईसबर्ग) का उन्मुक्त बहते रहना पर्यावरण संतुलन के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा ह

Global warming
प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा
Posted on 08 Jul, 2010 11:32 AM जब से कृष्ण कथा प्रचलित हुई या जब से सावन-भादों का मुहावरा बना, मौसम का चक्र ठीक वैसा नहीं था जैसा आज होता है। अगर प्रकृति अपने ही कारणों से मौसम के चक्र को बदलती रहती है तो चिंता किस बात की?कहा जाता है कि भारतीय कृषि मॉनसून पर दांव लगाने पर निर्भर है। लग गया तो बढ़िया बरसात होगी। पासा उल्टा पड़ा तो सूखा और अकाल। जमाने से हम इस जुए के नियम-कायदे सीखते रहे हैं। अब तक तो हमने सारे के सारे रट भी लिए हैं। अधिक से अधिक हम अड़तालिस घंटे पहले से भविष्यवाणी करने लगते हैं, लेकिन चौबिस घंटे से पहले की भविष्यवाणी बस उम्मीद पर आधारित होती है और अक्सर निराश ही कर देती है। अपनी सारी जानकारी और अपने सारे विज्ञान को इस जुए में झोंक देने के बावजूद प्रकृति हमसे बड़ी खिलाड़ी सिद्ध हो गई है। उसने इस मॉनसून के नियम-कायदे ही बदल दिए हैं।
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