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सामूहिक संसाधन प्रबन्धन परियोजना : सामुदायिक संगठन सहभागिता और महिलाओं के बढ़ते कदम की कहानी
Posted on 18 Mar, 2015 12:57 PM ऊँची भूमि हेतु पूर्वोत्तर क्षेत्र सामुदायिक संसाधन प्रबन्धन परियोजना (एनईआरसीओ आरएमपी) की शुरुआत वर्ष 1999 में अन्तरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएफएडी) के आर्थिक सहयोग से की गई थी। इसका उद्देश्य वंचित समूहों के लिए प्राकृतिक संसाधन के प्रबन्धन में सुधार कर स्थायी रूप से उनकी आजीविका में सुधार करना था। इससे पर्यावरण के संरक्षण में भी मदद मिलेगी।

परियोजना क्षेत्र

जरूरत जैव कृषि की
Posted on 17 Mar, 2015 12:48 PM जैविक कृषि का नीतिगत दृष्टिकोण मिशन-आधारित और किसानोन्मुखी होना चा
कूड़ा ढोने का मार्ग बन गई हैं नदियाँ
Posted on 16 Mar, 2015 12:44 PM

विश्व जल दिवस पर विशेष


अब सुनने में आया है कि लखनऊ में शामे अवध की शान गोमती नदी को लन्दन की टेम्स नदी की तरह सँवारा जाएगा। महानगर में आठ किलोमीटर के बहाव मार्ग को घाघरा और शारदा नहर से जोड़कर नदी को सदानीरा बनाया जाएगा। साथ ही इसके सभी घाट व तटों को चमकाया जाएगा। इस पर खर्च आएगा ‘महज’ छह सौ करोड़।
river pollution
पूर्वोत्तर भारत में अन्तर्देशीय जल परिवहन
Posted on 14 Mar, 2015 08:47 AM भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों में आपदाएँ आती रहती हैं। भू-स
प्राकृतिक आपदा के संकट में खेती-किसानी
Posted on 14 Mar, 2015 07:15 AM मध्य प्रदेश समेत पूरे देश में बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि से खेती-किसानी जबरदस्त संकट में हैं। इस संकट से बेपरवाह भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था और राजनीतिक लापरवाही ने किसान को बेहद मायूस कर दिया है। किसान को जहाँ खरीफ फसल की बुवाई के दौरान सूखे ने परेशानी में डाला, वहीं ओलावृष्टि और बेमौसम बरसात ने किसान को लगभग तबाह कर दिया है। इस कुदरती आपदा का असर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
Agriculture
बच्चों के लिए हानिकर खाद्य व्यापार
Posted on 13 Mar, 2015 09:54 AM ‘बच्चों के लिए हानिकर खाद्य व्यापार’ शीर्षक निबन्ध प्रतियोगिता में पहले, दूसरे और तीसरे पुरस्कार के लिए चयनित निबन्धों को एक-एक कर हम योजना के अंकों में प्रकाशित कर रहे हैं। इस कड़ी में यहाँ प्रस्तुत है द्वितीय पुरस्कार प्राप्त प्रविष्टि —वरिष्ठ सम्पादक
वनों को संरक्षित करता लाख उद्योग
Posted on 12 Mar, 2015 07:51 AM लाख उद्योग एक ऐसा मुनाफे का उद्योग है जो कम लागत के साथ आरम्भ किया
जलवायु परिवर्तन से स्वास्थ्य को खतरा
Posted on 10 Mar, 2015 07:28 AM धरती संकट में है। इंसान ने अपने कर्म से अपने और अपनी भावी पीढ़ियों के भविष्य को खतरे में डाल लिया है। दुनियाभर में चिन्ता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। एक सवाल हम सब के समक्ष है कि क्या हम खुद और अपनी आने वाली पीढ़ियों को बिगड़ते पर्यावरण के असर से बचा सकते हैं? जवाब स्पष्ट है— अगर हम अब भी नहीं सम्भले तो शायद बहुत देर हो जाएगी। चुनौती हर रोज ज्यादा बड़ी होती जा रही है।
सिंचाई : अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा
Posted on 10 Mar, 2015 07:16 AM जितनी सिंचाई क्षमता का उपयोग किया जा सकता था, उसके करीब 73.5 प्रति
आपदा प्रबन्धन : जरूरी है इच्छाशक्ति
Posted on 09 Mar, 2015 12:42 PM आपदा प्रबन्धन का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि सरकार की ओर से इच्छ
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