भारत में वन एवं वृक्ष की क्षेत्रवार सूची को प्रणालीगत स्वरूप तथा नियमितता प्रदान करने की शुरुआत दो दशक पूर्व 1987 में हुई थी। नियमित समय पर वैज्ञानिक आधार पर प्रत्येक दो वर्ष में सुदूर संवेदी प्रौद्योगिकी के द्वारा वन की स्थिति रिपोर्ट बनाना, देश के नवीनतम वन क्षेत्र का मूल्यांकन उपलब्ध कराना तथा इसमे आए बदलाव को ध्यान में रखना और राष्ट्रीय वन क्षेत्रों का सूचीकरण एवं वन क्षेत्रों के बाहरी वृक्षों के संसाधनों को रखने का कार्य भारतीय वन सर्वेक्षण को सौंपा गया है। यह वन संसाधनों के आँकड़ों की सूची के संग्रह को जमा करने के लिए केन्द्रीय एजेंसी की तरह कार्यरत है।
भारत की वन स्थिति रिपोर्ट-2005 के अनुसार, देश में कुल 6.771 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 20.60 प्रतिशत है। भारत की ‘वन स्थिति रिपोर्ट-2005’ दसवीं रिपोर्ट है जो वर्ष 2008 में प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट के लिए 1987 से देशज उपग्रह लैण्डसैट के आँकड़ों के प्रयोग की शुरुआत करते हुए आईआरएसपी 6 संसाधन उपग्रह लिस 111 के उपग्रह आँकड़ों का दसवीं रिपोर्ट के लिए उपयोग किया गया है। सुदूर संवेदी प्रौद्योगिकी के माध्यम से वन संसाधनों के आकलन में महत्त्वपूर्ण मदद मिलती है।
भारत की वन स्थिति रिपोर्ट-2005 के अनुसार, देश में कुल 6.771 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 20.60 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार, इस वन क्षेत्र में से 54.6 लाख हेक्टेयर (1.66 प्रतिशत) क्षेत्र में सघन वन, 3.326 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र (10.12 प्रतिशत) में घने वन तथा बाकी 2.899 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र (8.82 प्रतिशत) में अन्य वन शामिल हैं, जिनमें 4.4 लाख हेक्टेयर मैनग्रोव्स भी आते हैं। 1.816 करोड़ हेक्टेयर ऐसा क्षेत्र है जो ग्लेशियरों, बर्फ और चट्टानों आदि से घिरा होने के कारण वृक्षारोपण के लिए अनुकूल नहीं है। वैसे अगर इस सबको जोड़ा जाए तो वनाच्छादित क्षेत्र 21.81 प्रतिशत है लेकिन इसे अलग करने पर वन क्षेत्र 20.60 प्रतिशत ही है। पहाड़ी क्षेत्रों में वनाच्छादित क्षेत्र 38.85 प्रतिशत है लेकिन अगर इसमें वृक्षारोपण के लिए अनुपलब्ध क्षेत्र को भी जोड़ा जाए तो यह 52.4 प्रतिशत है।
देश में वनाच्छादित क्षेत्र के मामले में मध्य प्रदेश का पहला स्थान है, जहाँ देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र के 11.22 प्रतिशत में वन है। अरुणाचल में 10.01 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 8.25 प्रतिशत, ओडिशा में 7.15 प्रतिशत तथा महाराष्ट्र में 7.01 प्रतिशत क्षेत्र वनाच्छादित है। देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र का 25.11 प्रतिशत वन क्षेत्र पूर्वोत्तर के सात राज्यों में है, जहाँ सभी 188 आदिवासी (जनजाति) जिलों में देश के कुल क्षेत्र का 60.11 प्रतिशत वन है।
मैनग्रोव (तटीय क्षेत्र के वन) के अन्तर्गत देश का कुल 4.4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र आता है। इसमें कुल मैनग्रोव का पश्चिम बंगाल के सुन्दरवन में 47.6 प्रतिशत, गुजरात में 21 प्रतिशत तथा अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह में 14 प्रतिशत हैं।
वृक्षों के आँकड़े जुटाने के लिए उच्च प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जा रहा है। देश के 120 जिलों में वृक्षों के बारे में की गई मैपिंग के अनुसार 91.7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्षाच्छादन हैं, जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.8 प्रतिशत है। वृक्षाच्छादन के मामले में महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश और गुजरात शीर्षस्थ हैं जबकि वन सम्पन्न राज्यों, विशेष रूप से पूर्वोत्तर में सीमित वृक्ष कवर हैं।
वन स्थिति रिपोर्ट, 2003 की तुलना में वनस्थिति रिपोर्ट, 2005 में किए गए आकलन के अनुसार, वर्ष 2002-04 के दौरान वनाच्छादित क्षेत्र में 728 कि.मी. की गिरावट दर्ज की गई, जो कि देश के कुल वन क्षेत्र का 0.11 प्रतिशत है। यह गिरावट घने वनों में ही दर्ज की गई। इस गिरावट का कारण अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह में सुनामी, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बाँध के कारण जंगलों का डूब क्षेत्र में आना और नागालैण्ड एवं मणिपुर में झूम खेती का प्रचलन रहा है। अनेक राज्यों ने अपने यहाँ बेहतर सुरक्षा के साथ वृक्षारोपण को बढ़ाया ताकि वन क्षेत्र कवर को और बढ़ाया जा सके। तकनीकी सीमाओं की वजह से वन स्थिति रिपोर्ट में ताजा वन रोपण को वन में शामिल नहीं किया गया है।
वर्ष 2005 के आँकड़ों के अनुसार विश्व में विशालतम वन क्षेत्र वाले देशों में भारत का दसवाँ स्थान है, जहाँ 68 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र हैं। एशियन फेडरेशन में सर्वाधिक 809 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र हैं। ब्राजील में 478 करोड़ हेक्टेयर, कनाडा में 310 करोड़ हेक्टेयर, संयुक्त राज्य अमेरिका में 303 करोड़ हेक्टेयर, चीन में 197 करोड़ हेक्टेयर, ऑस्ट्रेलिया में 164 करोड़ हेक्टेयर, कांगों में 134 करोड़ हेक्टेयर, इण्डोनेशिया में 88 करोड़ हेक्टेयर तथा पेरू में 69 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र हैं।
एफएओ की वानिकी रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1948 में विश्व में 4 अरब हेक्टेयर वन क्षेत्र था जो 1963 में 3.8 अरब हेक्टेयर और 1990 में 3.4 अरब हेक्टेयर हो गया। एफएओ की एफआरए, 2005 के अनुसार विश्व में वन 3.952 अरब हेक्टेयर क्षेत्र में हैं, (जो कि 1948 की स्थिति के अधिक या कम - लगभग बराबर है) यह विश्व के कुल भौगोलिक क्षेत्र का करीब 30 प्रतिशत है। इनमें पाँच देशों - रूस, ब्राजील, कनाडा, अमेरिका और चीन में विश्व का आधा वन क्षेत्र है।
सघन वनों में ऐसे वन आते हैं जहाँ वृक्षों का घनत्व 70 प्रतिशत से अधिक है, इसके बाद घने वन आते हैं जिनमें वृक्षों का घनत्व 40 से 70 प्रतिशत होता है। खुले वन में वृक्षों का घनत्व 10 से 40 प्रतिशत होता है। झाड़ियों में ऐसे वन क्षेत्र आते हैं जहाँ वन-भूमि में पेड़ों की पैदावार बहुत कमजोर होती है और वृक्षों का घनत्व 10 प्रतिशत से भी कम होता है, गैर-वन क्षेत्र में ऐसे क्षेत्र आते हैं जो वनों के किसी भी वर्गीकरण में शामिल नहीं हो।
पहाड़ी क्षेत्रों में वनों का होना पारिस्थतिकी सन्तुलन और पर्यावरणीय स्थिरता की दृष्टि से तो आवश्यक है ही, इससे भूमि कटाव और जमीन की गुणवत्ता में गिरावट को रोकने में भी मदद मिलती है। राष्ट्रीय वन नीति 1988 में इस बात पर बल दिया गया है कि देश के पहाड़ी क्षेत्रों में दो-तिहाई भौगोलिक क्षेत्र वनाच्छादित हो। देश के 16 राज्यों और संघ राज्यों में 124 पहाड़ी जिले हैं। पहाड़ी जिलों में वनाच्छादित क्षेत्र 2,74,932 कि.मी. है जो इन जिलों के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 38.85 प्रतिशत है। पहाड़ी जिलों में 1,83,135 कि.मी. क्षेत्र ऐसा है जो बंजर, चट्टानी, ढलवाँ, बर्फीला और ग्लेशियर वाला है, अगर इस क्षेत्र को न जोड़ा जाए तो पहाड़ी जिलों में वनाच्छादित क्षेत्र 52.40 प्रतिशत हो जाता है। अरुणाचल, हिमाचल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, सिक्किम, त्रिपुरा और उत्तराखण्ड के नौ पहाड़ी राज्यों में वनाच्छादित क्षेत्र 62.99 प्रतिशत है।
देश के 124 पहाड़ी जिलों में से 55 जिलों में दो-तिहाई भौगोलिक क्षेत्र, 36 जिलों में एक तिहाई से लेकर दो-तिहाई भौगोलिक क्षेत्र तथा 33 जिलों में एक-तिहाई से कम भौगोलिक क्षेत्र वनाच्छादित है। अगर वर्ष 2003 की वन स्थिति रिपोर्ट की तुलना की जाए तो वर्ष 2005 की रिपोर्ट में इन जिलों में वन क्षेत्र में 255 कि.मी. की गिरावट दर्ज की गई है। इसका मुख्य कारण झूम खेती है।
भारत सरकार ने अरुणाचल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, सिक्किम, त्रिपुरा के सभी जिलों को आदिवासी जिलों में शामिल किया है। दादरा एवं नागर हवेली और लक्षद्वीप को भी आदिवासी जिलों में गिना जाता है। इन जिलों की एकीकृत जनजाति विकास कार्यक्रम (आईटीडीपी) के अन्तर्गत आदिवासी जिलों के रूप में पहचान की गई है। पूरे देश के 26 राज्यों और संघ राज्यों में 188 जिले आदिवासी जिले घोषित किए गए हैं। सभी आदिवासी जिलों का कुल भौगोलिक क्षेत्र देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 33.57 प्रतिशत तथा वनाच्छादित क्षेत्र 60.11 प्रतिशत है। असम और सिक्किम को छोड़कर समूचे पूर्वोत्तर क्षेत्र में 75 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वनाच्छादित हैं। असम में 16 आदिवासी जिलों में 23.89 प्रतिशत तथा सिक्किम में 45.97 प्रतिशत वन है।
वर्ष 2003 की वन स्थिति रिपोर्ट की तुलना में वर्ष 2005 की रिपोर्ट में 635 कि.मी. वन क्षेत्र की कमी दर्ज की गई है। वैसे यह स्पष्ट है कि वन संसाधन की दृष्टि से आदिवासी जिले सामान्यतः काफी सम्पन्न हैं, जबकि पूर्वोत्तर में विशेष रूप से सम्पन्न हैं।
देश में पूर्वोत्तर के सात राज्य वन संसाधन के मामले में काफी सम्पन्न हैं, यहाँ देश की आदिवासी आबादी का 27 प्रतिशत रहती है। पूर्वोत्तर राज्यों का क्षेत्रफल देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 7.76 प्रतिशत तथा वन क्षेत्र 25.11 प्रतिशत है। यहाँ आज भी झूम खेती का प्रचलन है, जो कि इनकी जातीय सांस्कृतिक जनजीवन का हिस्सा है। हालाँकि आबादी बढ़ने के साथ-साथ झूम खेती के प्रचलन में पिछले 5 वर्ष में कमी देखी गई है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में 1,70,054 कि.मी. वनाच्छादित क्षेत्र है जो कि इनके कुल भौगोलिक क्षेत्र का 67 प्रतिशत है।
वर्ष 2003 की वन स्थिति रिपोर्ट की तुलना में वर्ष 2005 की रिपोर्ट में 278 कि.मी. की गिरावट दर्ज की गई है जिसमें असम में 90 किमी., मणिपुर में 173 कि.मी. तथा नागालैण्ड में 296 कि.मी. की गिरावट पाई गई है। इस गिरावट का कारण झूम खेती, बाँस का फूलना तथा अवैध तरीके से पेड़ों की कटाई है।
विश्व के तटीय वन क्षेत्र (मैनग्रोव) का मात्र 5 प्रतिशत (4,500 कि.मी.) क्षेत्र ही भारत में है, जो समुद्र तटीय राज्यों में फैला है, जिसमें आधा क्षेत्र पश्चिम बंगाल के सुन्दरवन में है। इसके बाद गुजरात और अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह आते हैं।
कुल मिलाकर देश के 12 राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों में मैनग्रोव (समुद्र तटीय वन) हैं जिनमें आन्ध्र प्रदेश, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, अण्डमान एवं निकोबार, पुड्डुचेरी, केरल और दमन एवं दीव शामिल हैं। कर्नाटक में वर्ष 1995 में, पुड्डूचेरी में वर्ष 2001 में तथा केरल और दमन एवं दीव में वर्ष 2003 में समुद्र तटीय वन क्षेत्र की मामूली उपस्थिति दर्ज की गई, जो कुल मिलाकर अब तक मात्र 13 कि.मी. है। वर्ष 1987 से 1999 के दौरान मैनग्रोव के क्षेत्र में जहाँ लगातार वृद्धि दर्ज की गई वहीं 2001 के बाद इसमें गिरावट दर्ज की गई।
देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के मात्र 0.14 प्रतिशत क्षेत्र में ही मैनग्रोव (समुद्र तटीय वन क्षेत्र) हैं। अण्डमान एवं निकोबार में सुनामी ने मैनग्रोव में 21 कि.मी. की कमी की, जबकि गुजरात में 20 कि.मी. की वृद्धि पाई गई। पश्चिम बंगाल में भी 2 कि.मी. की कमी दर्ज की गई।
(लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं)
भारत की वन स्थिति रिपोर्ट-2005 के अनुसार, देश में कुल 6.771 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 20.60 प्रतिशत है। भारत की ‘वन स्थिति रिपोर्ट-2005’ दसवीं रिपोर्ट है जो वर्ष 2008 में प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट के लिए 1987 से देशज उपग्रह लैण्डसैट के आँकड़ों के प्रयोग की शुरुआत करते हुए आईआरएसपी 6 संसाधन उपग्रह लिस 111 के उपग्रह आँकड़ों का दसवीं रिपोर्ट के लिए उपयोग किया गया है। सुदूर संवेदी प्रौद्योगिकी के माध्यम से वन संसाधनों के आकलन में महत्त्वपूर्ण मदद मिलती है।
भारत की वन स्थिति रिपोर्ट-2005 के अनुसार, देश में कुल 6.771 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 20.60 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार, इस वन क्षेत्र में से 54.6 लाख हेक्टेयर (1.66 प्रतिशत) क्षेत्र में सघन वन, 3.326 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र (10.12 प्रतिशत) में घने वन तथा बाकी 2.899 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र (8.82 प्रतिशत) में अन्य वन शामिल हैं, जिनमें 4.4 लाख हेक्टेयर मैनग्रोव्स भी आते हैं। 1.816 करोड़ हेक्टेयर ऐसा क्षेत्र है जो ग्लेशियरों, बर्फ और चट्टानों आदि से घिरा होने के कारण वृक्षारोपण के लिए अनुकूल नहीं है। वैसे अगर इस सबको जोड़ा जाए तो वनाच्छादित क्षेत्र 21.81 प्रतिशत है लेकिन इसे अलग करने पर वन क्षेत्र 20.60 प्रतिशत ही है। पहाड़ी क्षेत्रों में वनाच्छादित क्षेत्र 38.85 प्रतिशत है लेकिन अगर इसमें वृक्षारोपण के लिए अनुपलब्ध क्षेत्र को भी जोड़ा जाए तो यह 52.4 प्रतिशत है।
देश में वनाच्छादित क्षेत्र के मामले में मध्य प्रदेश का पहला स्थान है, जहाँ देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र के 11.22 प्रतिशत में वन है। अरुणाचल में 10.01 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 8.25 प्रतिशत, ओडिशा में 7.15 प्रतिशत तथा महाराष्ट्र में 7.01 प्रतिशत क्षेत्र वनाच्छादित है। देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र का 25.11 प्रतिशत वन क्षेत्र पूर्वोत्तर के सात राज्यों में है, जहाँ सभी 188 आदिवासी (जनजाति) जिलों में देश के कुल क्षेत्र का 60.11 प्रतिशत वन है।
मैनग्रोव (तटीय क्षेत्र के वन) के अन्तर्गत देश का कुल 4.4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र आता है। इसमें कुल मैनग्रोव का पश्चिम बंगाल के सुन्दरवन में 47.6 प्रतिशत, गुजरात में 21 प्रतिशत तथा अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह में 14 प्रतिशत हैं।
वृक्ष कवर
वृक्षों के आँकड़े जुटाने के लिए उच्च प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जा रहा है। देश के 120 जिलों में वृक्षों के बारे में की गई मैपिंग के अनुसार 91.7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्षाच्छादन हैं, जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.8 प्रतिशत है। वृक्षाच्छादन के मामले में महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश और गुजरात शीर्षस्थ हैं जबकि वन सम्पन्न राज्यों, विशेष रूप से पूर्वोत्तर में सीमित वृक्ष कवर हैं।
वन क्षेत्र में कमी
वन स्थिति रिपोर्ट, 2003 की तुलना में वनस्थिति रिपोर्ट, 2005 में किए गए आकलन के अनुसार, वर्ष 2002-04 के दौरान वनाच्छादित क्षेत्र में 728 कि.मी. की गिरावट दर्ज की गई, जो कि देश के कुल वन क्षेत्र का 0.11 प्रतिशत है। यह गिरावट घने वनों में ही दर्ज की गई। इस गिरावट का कारण अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह में सुनामी, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बाँध के कारण जंगलों का डूब क्षेत्र में आना और नागालैण्ड एवं मणिपुर में झूम खेती का प्रचलन रहा है। अनेक राज्यों ने अपने यहाँ बेहतर सुरक्षा के साथ वृक्षारोपण को बढ़ाया ताकि वन क्षेत्र कवर को और बढ़ाया जा सके। तकनीकी सीमाओं की वजह से वन स्थिति रिपोर्ट में ताजा वन रोपण को वन में शामिल नहीं किया गया है।
विश्व वन संसाधन और भारत
वर्ष 2005 के आँकड़ों के अनुसार विश्व में विशालतम वन क्षेत्र वाले देशों में भारत का दसवाँ स्थान है, जहाँ 68 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र हैं। एशियन फेडरेशन में सर्वाधिक 809 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र हैं। ब्राजील में 478 करोड़ हेक्टेयर, कनाडा में 310 करोड़ हेक्टेयर, संयुक्त राज्य अमेरिका में 303 करोड़ हेक्टेयर, चीन में 197 करोड़ हेक्टेयर, ऑस्ट्रेलिया में 164 करोड़ हेक्टेयर, कांगों में 134 करोड़ हेक्टेयर, इण्डोनेशिया में 88 करोड़ हेक्टेयर तथा पेरू में 69 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र हैं।
एफएओ की वानिकी रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1948 में विश्व में 4 अरब हेक्टेयर वन क्षेत्र था जो 1963 में 3.8 अरब हेक्टेयर और 1990 में 3.4 अरब हेक्टेयर हो गया। एफएओ की एफआरए, 2005 के अनुसार विश्व में वन 3.952 अरब हेक्टेयर क्षेत्र में हैं, (जो कि 1948 की स्थिति के अधिक या कम - लगभग बराबर है) यह विश्व के कुल भौगोलिक क्षेत्र का करीब 30 प्रतिशत है। इनमें पाँच देशों - रूस, ब्राजील, कनाडा, अमेरिका और चीन में विश्व का आधा वन क्षेत्र है।
वन क्षेत्र आकलन
सघन वनों में ऐसे वन आते हैं जहाँ वृक्षों का घनत्व 70 प्रतिशत से अधिक है, इसके बाद घने वन आते हैं जिनमें वृक्षों का घनत्व 40 से 70 प्रतिशत होता है। खुले वन में वृक्षों का घनत्व 10 से 40 प्रतिशत होता है। झाड़ियों में ऐसे वन क्षेत्र आते हैं जहाँ वन-भूमि में पेड़ों की पैदावार बहुत कमजोर होती है और वृक्षों का घनत्व 10 प्रतिशत से भी कम होता है, गैर-वन क्षेत्र में ऐसे क्षेत्र आते हैं जो वनों के किसी भी वर्गीकरण में शामिल नहीं हो।
पहाड़ी जिलों में वन क्षेत्र
पहाड़ी क्षेत्रों में वनों का होना पारिस्थतिकी सन्तुलन और पर्यावरणीय स्थिरता की दृष्टि से तो आवश्यक है ही, इससे भूमि कटाव और जमीन की गुणवत्ता में गिरावट को रोकने में भी मदद मिलती है। राष्ट्रीय वन नीति 1988 में इस बात पर बल दिया गया है कि देश के पहाड़ी क्षेत्रों में दो-तिहाई भौगोलिक क्षेत्र वनाच्छादित हो। देश के 16 राज्यों और संघ राज्यों में 124 पहाड़ी जिले हैं। पहाड़ी जिलों में वनाच्छादित क्षेत्र 2,74,932 कि.मी. है जो इन जिलों के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 38.85 प्रतिशत है। पहाड़ी जिलों में 1,83,135 कि.मी. क्षेत्र ऐसा है जो बंजर, चट्टानी, ढलवाँ, बर्फीला और ग्लेशियर वाला है, अगर इस क्षेत्र को न जोड़ा जाए तो पहाड़ी जिलों में वनाच्छादित क्षेत्र 52.40 प्रतिशत हो जाता है। अरुणाचल, हिमाचल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, सिक्किम, त्रिपुरा और उत्तराखण्ड के नौ पहाड़ी राज्यों में वनाच्छादित क्षेत्र 62.99 प्रतिशत है।
देश के 124 पहाड़ी जिलों में से 55 जिलों में दो-तिहाई भौगोलिक क्षेत्र, 36 जिलों में एक तिहाई से लेकर दो-तिहाई भौगोलिक क्षेत्र तथा 33 जिलों में एक-तिहाई से कम भौगोलिक क्षेत्र वनाच्छादित है। अगर वर्ष 2003 की वन स्थिति रिपोर्ट की तुलना की जाए तो वर्ष 2005 की रिपोर्ट में इन जिलों में वन क्षेत्र में 255 कि.मी. की गिरावट दर्ज की गई है। इसका मुख्य कारण झूम खेती है।
आदिवासी (जनजातीय) क्षेत्रों में वन क्षेत्र
भारत सरकार ने अरुणाचल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, सिक्किम, त्रिपुरा के सभी जिलों को आदिवासी जिलों में शामिल किया है। दादरा एवं नागर हवेली और लक्षद्वीप को भी आदिवासी जिलों में गिना जाता है। इन जिलों की एकीकृत जनजाति विकास कार्यक्रम (आईटीडीपी) के अन्तर्गत आदिवासी जिलों के रूप में पहचान की गई है। पूरे देश के 26 राज्यों और संघ राज्यों में 188 जिले आदिवासी जिले घोषित किए गए हैं। सभी आदिवासी जिलों का कुल भौगोलिक क्षेत्र देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 33.57 प्रतिशत तथा वनाच्छादित क्षेत्र 60.11 प्रतिशत है। असम और सिक्किम को छोड़कर समूचे पूर्वोत्तर क्षेत्र में 75 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वनाच्छादित हैं। असम में 16 आदिवासी जिलों में 23.89 प्रतिशत तथा सिक्किम में 45.97 प्रतिशत वन है।
वर्ष 2003 की वन स्थिति रिपोर्ट की तुलना में वर्ष 2005 की रिपोर्ट में 635 कि.मी. वन क्षेत्र की कमी दर्ज की गई है। वैसे यह स्पष्ट है कि वन संसाधन की दृष्टि से आदिवासी जिले सामान्यतः काफी सम्पन्न हैं, जबकि पूर्वोत्तर में विशेष रूप से सम्पन्न हैं।
पूर्वोत्तर राज्यों में वनाच्छादित क्षेत्र
देश में पूर्वोत्तर के सात राज्य वन संसाधन के मामले में काफी सम्पन्न हैं, यहाँ देश की आदिवासी आबादी का 27 प्रतिशत रहती है। पूर्वोत्तर राज्यों का क्षेत्रफल देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 7.76 प्रतिशत तथा वन क्षेत्र 25.11 प्रतिशत है। यहाँ आज भी झूम खेती का प्रचलन है, जो कि इनकी जातीय सांस्कृतिक जनजीवन का हिस्सा है। हालाँकि आबादी बढ़ने के साथ-साथ झूम खेती के प्रचलन में पिछले 5 वर्ष में कमी देखी गई है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में 1,70,054 कि.मी. वनाच्छादित क्षेत्र है जो कि इनके कुल भौगोलिक क्षेत्र का 67 प्रतिशत है।
वर्ष 2003 की वन स्थिति रिपोर्ट की तुलना में वर्ष 2005 की रिपोर्ट में 278 कि.मी. की गिरावट दर्ज की गई है जिसमें असम में 90 किमी., मणिपुर में 173 कि.मी. तथा नागालैण्ड में 296 कि.मी. की गिरावट पाई गई है। इस गिरावट का कारण झूम खेती, बाँस का फूलना तथा अवैध तरीके से पेड़ों की कटाई है।
समुद्र तटीय वन क्षेत्र
विश्व के तटीय वन क्षेत्र (मैनग्रोव) का मात्र 5 प्रतिशत (4,500 कि.मी.) क्षेत्र ही भारत में है, जो समुद्र तटीय राज्यों में फैला है, जिसमें आधा क्षेत्र पश्चिम बंगाल के सुन्दरवन में है। इसके बाद गुजरात और अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह आते हैं।
कुल मिलाकर देश के 12 राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों में मैनग्रोव (समुद्र तटीय वन) हैं जिनमें आन्ध्र प्रदेश, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, अण्डमान एवं निकोबार, पुड्डुचेरी, केरल और दमन एवं दीव शामिल हैं। कर्नाटक में वर्ष 1995 में, पुड्डूचेरी में वर्ष 2001 में तथा केरल और दमन एवं दीव में वर्ष 2003 में समुद्र तटीय वन क्षेत्र की मामूली उपस्थिति दर्ज की गई, जो कुल मिलाकर अब तक मात्र 13 कि.मी. है। वर्ष 1987 से 1999 के दौरान मैनग्रोव के क्षेत्र में जहाँ लगातार वृद्धि दर्ज की गई वहीं 2001 के बाद इसमें गिरावट दर्ज की गई।
देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के मात्र 0.14 प्रतिशत क्षेत्र में ही मैनग्रोव (समुद्र तटीय वन क्षेत्र) हैं। अण्डमान एवं निकोबार में सुनामी ने मैनग्रोव में 21 कि.मी. की कमी की, जबकि गुजरात में 20 कि.मी. की वृद्धि पाई गई। पश्चिम बंगाल में भी 2 कि.मी. की कमी दर्ज की गई।
(लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं)
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