Posted on 08 May, 2015 09:39 AMआपदाओं से किसी समाज की कार्यप्रणाली में गम्भीर व्यवधान आता है, जिससे मानव, सामग्री या पर्यावरण को व्यापक क्षति पहुँचती है, जो प्रभावित समाज की स्वयं के संसाधनों से निपटने की क्षमता से अधिक होती है। आपदाएँ आकस्मिक (भूकम्प/सुनामी) अथवा धीरे-धीरे आने वाली (जैसे सूखा) या प्राकृतिक अथवा मानवजन्य हो सकती हैं।
Posted on 03 May, 2015 04:34 PMकृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की हमेशा से ही रीढ़ रही है, पर सबसे अधिक दुश्वारियाँ इसी ने झेली हैं। भारत में अधिकांशत: जीविका और गुजारे की फसल का ही उत्पादन हो रहा है, ऊपर से दैवीय आपदा, ओलावृष्टि और बेमौसम बारिश से खेती झुरमुट हो गई और खेती करने वाला इसका शिकार होता जा रहा है। 65 बरस की कृषि नीति और इतने ही प्रतिशत के आसपास कृषि के कारोबारी तबाही के मंजर से न उबर रहे हैं और न ही कृषक होने का गौरव हासि
Posted on 02 May, 2015 04:12 PMप्रसाद की रचना कामायनी का प्रमुख पत्र मनु उस विनाश का साक्षी है, जहाँ देवताओं की घोर भौतिकतावादी प्रवृत्ति भोग, विलास और उनके द्वारा प्रकृति के अनियन्त्रित दोहन के परिणामस्वरूप पूरी सभ्यता का विनाश हो जाता है। सिवाय मनु के कोई भी नहीं बचता है। देव सभ्यता के प्रलय के बाद नए जीवन की उधेड़बुन में लगे मनु के जीवन में श्रद्धा और इड़ा नामक दो स्त्रियाँ आती हैं। श्रद्धा मनु को अहिंसक तथा प्रकृति प्रेमी बना
Posted on 30 Apr, 2015 02:45 PMआज फिर लखीमपुर खीरी के अवधी कवि व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के तत्कालीन विधायक पण्डित बंशीधर शुक्ल जी याद आ गए और याद आ गई उनकी वह कविता ‘चौराहे पर ठाढ़ किसनऊ ताकए चारिहवार...।’ आज चारों तरफ किसानों के मरने की खबरे गूंज रही हैं। अभी कुछ अरसा पहले एक सरकारी दिवस था किसान दिवस और भारत के प्रधानमन्त्री रहे चौधरी चरण सिंह के जन्म दिवस को यह गरिमा प्रदान की भारत सरकार ने, बड़ी-बड़ी बातें हुईं, पर सब बेनतीजा,
Posted on 28 Apr, 2015 01:34 PMप्रकृति को नजदीक से देखने की ख्वाहिश बहुत से लोगों की होती है। लेकिन इसे नजदीक से जानने की तमन्ना बहुत कम लोगों की पूरी हो पाती है। यदि आप इसी तरह की तमन्ना रखते हैं और प्रकृति से जुड़कर अपना कैरियर संवारना चाहते हैं तो ‘नेचुरल रिसोर्स मैनेजर’ बनकर इन्हीं ख्वाबों को पंख देकर बेहतर कैरियर की रोमांचक उड़ान भर सकते हैं।