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प्राकृतिक आपदाओं के आघात का शमन (Mitigation of Natural Disasters, trauma)
Posted on 08 May, 2015 09:48 AM 1985-94 के दौरान मौतों के लिहाज से सबसे अधिक जानलेवा प्राकृतिक आपद
आपदा प्रबन्धन में रोजगार की सम्भावनाएँ (Employment in Disaster Management)
Posted on 08 May, 2015 09:39 AM आपदाओं से किसी समाज की कार्यप्रणाली में गम्भीर व्यवधान आता है, जिससे मानव, सामग्री या पर्यावरण को व्यापक क्षति पहुँचती है, जो प्रभावित समाज की स्वयं के संसाधनों से निपटने की क्षमता से अधिक होती है। आपदाएँ आकस्मिक (भूकम्प/सुनामी) अथवा धीरे-धीरे आने वाली (जैसे सूखा) या प्राकृतिक अथवा मानवजन्य हो सकती हैं।
विकास के सम्मुख खड़ी चुनौती
Posted on 05 May, 2015 02:18 PM यह आलेख इण्टरनेशनल काँफ्रेंस ऑन स्पेशल डाटा इनफ्रास्ट्रक्चर एण्ड इट
कोबे से कच्छ तक : आपदा प्रबन्धन में नवाचार
Posted on 05 May, 2015 02:11 PM हाल के दिनों में प्राकृतिक आपदाओं की दो सर्वाधिक प्रलयंकारी घटनाएँ
ई-एग्रीकल्चर और व्यावसायिक कृषि क्यों नहीं!
Posted on 03 May, 2015 04:34 PM कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की हमेशा से ही रीढ़ रही है, पर सबसे अधिक दुश्वारियाँ इसी ने झेली हैं। भारत में अधिकांशत: जीविका और गुजारे की फसल का ही उत्पादन हो रहा है, ऊपर से दैवीय आपदा, ओलावृष्टि और बेमौसम बारिश से खेती झुरमुट हो गई और खेती करने वाला इसका शिकार होता जा रहा है। 65 बरस की कृषि नीति और इतने ही प्रतिशत के आसपास कृषि के कारोबारी तबाही के मंजर से न उबर रहे हैं और न ही कृषक होने का गौरव हासि
e agriculture
व्यावसायिक दृष्किोण की आवश्यकता
Posted on 03 May, 2015 04:29 PM हम प्रकृति के अनुकूल रहना भूल चुके हैं अतः समय-समय पर आपदाएँ तो आत
आपदाओं से क्या सीखते हैं हम
Posted on 02 May, 2015 04:12 PM प्रसाद की रचना कामायनी का प्रमुख पत्र मनु उस विनाश का साक्षी है, जहाँ देवताओं की घोर भौतिकतावादी प्रवृत्ति भोग, विलास और उनके द्वारा प्रकृति के अनियन्त्रित दोहन के परिणामस्वरूप पूरी सभ्यता का विनाश हो जाता है। सिवाय मनु के कोई भी नहीं बचता है। देव सभ्यता के प्रलय के बाद नए जीवन की उधेड़बुन में लगे मनु के जीवन में श्रद्धा और इड़ा नामक दो स्त्रियाँ आती हैं। श्रद्धा मनु को अहिंसक तथा प्रकृति प्रेमी बना
धरती-आकाश दोनों नाराज
Posted on 02 May, 2015 04:09 PM ऐसा लग रहा है कि धरती और आकाश के बीच एक-दूसरे से ज्यादा बरबादी कर ड
किसान और पर्यावरण एक-दूसरे के पूरक
Posted on 30 Apr, 2015 02:45 PM आज फिर लखीमपुर खीरी के अवधी कवि व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के तत्कालीन विधायक पण्डित बंशीधर शुक्ल जी याद आ गए और याद आ गई उनकी वह कविता ‘चौराहे पर ठाढ़ किसनऊ ताकए चारिहवार...।’ आज चारों तरफ किसानों के मरने की खबरे गूंज रही हैं। अभी कुछ अरसा पहले एक सरकारी दिवस था किसान दिवस और भारत के प्रधानमन्त्री रहे चौधरी चरण सिंह के जन्म दिवस को यह गरिमा प्रदान की भारत सरकार ने, बड़ी-बड़ी बातें हुईं, पर सब बेनतीजा,
संसाधनों की देखभाल में बनाएँ कैरियर
Posted on 28 Apr, 2015 01:34 PM प्रकृति को नजदीक से देखने की ख्वाहिश बहुत से लोगों की होती है। लेकिन इसे नजदीक से जानने की तमन्ना बहुत कम लोगों की पूरी हो पाती है। यदि आप इसी तरह की तमन्ना रखते हैं और प्रकृति से जुड़कर अपना कैरियर संवारना चाहते हैं तो ‘नेचुरल रिसोर्स मैनेजर’ बनकर इन्हीं ख्वाबों को पंख देकर बेहतर कैरियर की रोमांचक उड़ान भर सकते हैं।
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