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तेलंगाना के हितों की बलि चढ़ता विदर्भ
Posted on 14 May, 2012 11:15 AM अपनी सरकार को संकट से बचाने के लिए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी ने कांग्रेस आलाकमान को इस परियोजना के लिए महाराष्ट्र सरकार से हरी झंडी दिलवाने की गुहार लगाई। इसके बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने परियोजना के करार पर हस्ताक्षर कर अपने विदर्भ के हितों की बलि दे दी। वैसे पश्चिम महाराष्ट्र के नेताओं द्वारा विदर्भ के हितों की बलि कोई पहली बार नहीं दी गई। इन्हीं विदर्भ के हितों के बल
वैकल्पिक ऊर्जा से ही संकट दूर होगा
Posted on 11 May, 2012 05:43 PM 1954 में परमाणु ऊर्जा विकास के लिए तीन चरणों के एक विशाल कार्यक्रम की घोषणा की गई थी। उस समय 1980 तक 8000 मेगावाट परमाणु बिजली उत्पादन का दावा किया गया। समय बीतता गया तथा परमाणु ऊर्जा समर्थकों के दावे, वादे तथा अनुमान भी बढ़ते गए। 2003 तक मात्र 2,720 मेगावाट क्षमता का ही निर्माण हो पाया। विकास के अंधी दौड़ में वैकल्पिक ऊर्जा को छोड़ते जा रहे हैं। इसी एटमी ऊर्जा के बारे व्याख्या करते रमेश कुमार
सिर पर मैला ढोने का कलंक कब मिटेगा
Posted on 11 May, 2012 12:10 PM सिर पर मैला ढोने की कुप्रथा रोकने के लिए बने कानून को आज भले ही 18 साल हो गए हों, लेकिन फिर भी समाज में इस कानून का कोई असर नहीं दिखलाई देता। जहां मानव समाज आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है वहीं आज भी कुछ लोग मैला ढोने के लिए मजबूर हैं अगर वह इस मैला ढोने के काम को छोड़कर एक अच्छा जीवन जीना चाहे तो समाज उसे जीने नहीं देती है। इस कलंक के बारे में बताते जाहित खान।
ई-कचरे से बढ़ता संकट
Posted on 11 May, 2012 08:05 AM दुनिया भर में 80 प्रतिशत ई-वेस्ट चीन, पाकिस्तान और भारत में पैदा होता है और दुर्भाग्य है कि ई-वेस्ट को मैनेज करने के बारे में सबसे कम जागरूकता इन्हीं देशों में देखने को मिलती है। ई-वेस्ट निश्चित तौर पर कई बीमारियों को तो जन्म देता ही है उसके साथ पर्यावरण के लिए भी भयानक खतरा पैदा करता है और ये खतरा भारतीयों की बढ़ती तादात के बाद और भी भयानक रूप में सामने आने की कगार पर है। इसी ई-कचरे के बारे मे
क्या नहरों से नलकूपों पर शिफ्ट होगी सिंचाई
Posted on 10 May, 2012 12:02 PM

सिंचाई हेतु जहां एक भी समर्सिबल पहुंच गया हैं, वहां आसपास के कई ट्युबवेल, कुंए, तालाब और हैंडपम्पों की छुट्टी हो

समर्सिबल भूजल को खत्म कर रहा है
रोजगारों का भी विकल्प है जंगल
Posted on 09 May, 2012 12:42 PM जंगल किसी भी देश के वित्तीय विकास के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। हमारा जीवन-चक्र इन पर पूरी तरह से निर्भर करता है, क्योंकि जंगल प्राकृतिक संसाधनों में सबसे जरूरी संसाधन माना जाता है। चाहे वह कोई जड़ी-बूटी हो या फिर प्राकृतिक खाद्य पदार्थ, जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण चीजें जंगल में ही उपलब्ध हैं। यही बात वन्य जीवों पर भी लागू होती है। वैसे जंगलों में जाना, घूमना-फिरना, पिकनिक मना
बढ़ता बंजर, घटती जमीन
Posted on 09 May, 2012 12:24 PM

हमारे देश में कोई तीन करोड़ 70 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि ऐसी है, जो कृषि योग्य समतल है। अनुमान है कि प्रति हेक्टेयर

degradation of soil
जनभागीदारी से होगा जल संरक्षण
Posted on 09 May, 2012 11:29 AM नदियों की सामाजिक व पर्यावरणीय भूमिका निभाने के लिए व आसपास के रिचार्ज के लिए जितना जल जरूरी है, कम से कम उतना जल नदियों में बहाना ही होगा। यही हमारे देश के भूजल संकट को दूर करने का मुख्य आधार है। हमारे देश के कानून में नदियों, झीलों व अन्य सब जल स्रोतों की रक्षा को भी शामिल करना चाहिए। इन्हीं जल संग्रहण व सरंक्षण के जनभागीदारी के बारे में बताते भारत डोगरा
केंद्रीय जलसंसाधन मंत्री के बयान के निहितार्थ
Posted on 09 May, 2012 11:04 AM “बीते 65 वर्षों में भारत में उपयोग लायक पानी की उपलब्धतता एक -तिहाई रह गई है।’’
mithi river
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