वैकल्पिक ऊर्जा से ही संकट दूर होगा

1954 में परमाणु ऊर्जा विकास के लिए तीन चरणों के एक विशाल कार्यक्रम की घोषणा की गई थी। उस समय 1980 तक 8000 मेगावाट परमाणु बिजली उत्पादन का दावा किया गया। समय बीतता गया तथा परमाणु ऊर्जा समर्थकों के दावे, वादे तथा अनुमान भी बढ़ते गए। 2003 तक मात्र 2,720 मेगावाट क्षमता का ही निर्माण हो पाया। विकास के अंधी दौड़ में वैकल्पिक ऊर्जा को छोड़ते जा रहे हैं। इसी एटमी ऊर्जा के बारे व्याख्या करते रमेश कुमार दुबे

विकसित देश वैकल्पिक ऊर्जा के अनुसंधान और विकास पर ध्यान नहीं दिया। अब जब तेल के स्रोत सूखने लगे हैं और कोयले के जलाने से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है तब वे सौर, पवन, बायोगैस आदि का तेजी से विकास कर रहे हैं। जर्मनी ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अक्षय ऊर्जा का तेजी से विकास किया है और कई दूसरे देश इसी राह पर हैं। भारत की स्थिति तो सौर, पवन, बायोगैस, भूतापीय, ज्वारीय ऊर्जा आदि के अनुकूल है। ऐसे में यह समय की मांग है कि भारत भी एटमी ऊर्जा को बंद करे।

सुनामी से फुकुशिमा परमाणु संयंत्र के ध्वस्त होने और विकिरण फैलने के साल भर बाद जापान ने तोमारी में स्थित देश का आखिरी परमाणु संयंत्र भी बंद कर दिया। दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों में आई परमाणु ऊर्जा की लहर को 1970 के दशक में ओपेक देशों ने कच्चे तेल की कीमत बढ़ाकर और ऊंचाई दे दी। जापान में यह लहर कुछ ज्यादा ही ऊंची थी। जापान में परमाणु बिजली घरों की संख्या 55 तक पहुंच गई, जिससे उसकी एक-तिहाई बिजली पैदा होने लगी। इस शताब्दी के पहले दशक में वैश्विक तापवृद्धि ने परमाणु ऊर्जा को तीसरी बार उभरने का मौका दिया। इस बार की लहर तीसरी दुनिया विशेषकर भारत व चीन में उफान मार रही है। एक अनुमान के मुताबिक आज की तारीख में दुनिया के 30 देशों में 448 परमाणु ऊर्जा संयंत्र चल रहे हैं जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 376000 मेगावाट है। ये संयंत्र दुनिया की कुल विद्युत का 15 फीसदी उत्पादन करते हैं।

अगले दो दशकों के दौरान परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के जर्बदस्त विस्तार की योजना है। अनुमान है कि वर्ष 2020 तक 73000 मेगावाट अतिरिक्त ऊर्जा का उत्पादन होने लगेगा और 2030 तक दुनिया भर में 6 लाख मेगावाट परमाणु ऊर्जा उत्पादित होने लगेगी। लेकिन अब इन अनुमानों पर आशंकाओं के बादल मंडराने लगे हैं। वर्तमान में चीन में 13 रिएक्टर हैं, जिनकी उत्पादन क्षमता 10200 मेगावाट है। वहां 25 रिएक्टर अभी निर्माणाधीन हैं। भारत में 20 रिएक्टर हैं और उनकी मौजूदा उत्पादन क्षमता लगभग 4780 मेगावाट है लेकिन वह भी 2020 तक 20000 मेगावाट तथा 2030 तक 63000 मेगावाट की उत्पादन क्षमता हासिल करना चाहता है। लेकिन सच्चाई यह है कि कई परमाणु हादसों, भारी लागत, लेटलतीफी, पर्यावरण विनाश, भ्रष्टाचार आदि के कारण परमाणु ऊर्जा पूरी तरह विवादों के घेरे में आ चुकी है।

भारतीय संदर्भ में देखें तो आज यह सबसे महंगी पड़ रही है। इस महंगाई का मुख्य कारण परियोजनाओं की शुरुआत होने में देरी और क्षमता की तुलना में लगभग आधा उत्पादन है। भले ही भारत सरकार ने एटमी ऊर्जा का भारी-भरकम लक्ष्य रखा हो लेकिन अब तक के इतिहास को देखें तो यह दूर की कौड़ी साबित होगा। 1954 में परमाणु ऊर्जा विकास के लिए तीन चरणों के एक विशाल कार्यक्रम की घोषणा की गई थी। उस समय 1980 तक 8000 मेगावाट परमाणु बिजली उत्पादन का दावा किया गया। समय बीतता गया तथा परमाणु ऊर्जा समर्थकों के दावे, वादे तथा अनुमान भी बढ़ते गए। 1969 में परमाणु ऊर्जा विभाग ने दावा किया कि 1987 तक देश की ऊर्जा क्षमता में 43,500 मेगावाट परमाणु बिजली की होगी। यह हवाई आंकड़ेबाजी हो रही थी। 1983 में भारत ने एटमी ऊर्जा के संबंध में जमीनी आंकड़े जारी करना शुरू किया। उस समय कहा गया कि अगले दो दशकों में 10,000 मेगावाट बिजली परमाणु संयंत्रों से हासिल होगी लेकिन 2003 तक मात्र 2,720 मेगावाट क्षमता का ही निर्माण हो पाया।

आने वाली संकट से बचने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा का ही प्रयोग करना होगाआने वाली संकट से बचने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा का ही प्रयोग करना होगाइसी को देखते हुए 10,000 मेगावाट का लक्ष्य 2010 तक के लिए बढ़ा दिया गया, लेकिन अब तक परमाणु बिजली क्षमता 5,000 मेगावाट तक भी नहीं पहुंच पाई। फिर देश के परमाणु रिएक्टर अपनी क्षमता के आधे से भी कम बिजली पैदा कर रहे हैं। इसमें मुख्य बाधा ईंधन अर्थात यूरेनियम की कमी है। अभी भी देश के कुल बिजली उत्पादन में परमाणु बिजली की हिस्सेदारी तीन फीसदी से अधिक नहीं बढ़ पाई है। देखा जाए तो परमाणु बिजली की जोखिम भरी राह देश की परिस्थितियों के अनुकूल नहीं है। अभी तक विकसित देशों को पूरी दुनिया से कोयला, तेल-गैस सरलता से हासिल हो जाते थे इसलिए उन्होंने वैकल्पिक ऊर्जा के अनुसंधान और विकास पर ध्यान नहीं दिया। अब जब तेल के स्रोत सूखने लगे हैं और कोयले के जलाने से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है तब वे सौर, पवन, बायोगैस आदि का तेजी से विकास कर रहे हैं। जर्मनी ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अक्षय ऊर्जा का तेजी से विकास किया है और कई दूसरे देश इसी राह पर हैं। भारत की स्थिति तो सौर, पवन, बायोगैस, भूतापीय, ज्वारीय ऊर्जा आदि के अनुकूल है। ऐसे में यह समय की मांग है कि भारत भी एटमी ऊर्जा को 'सायोनारा' कहे।

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