रमेश कुमार दुबे

रमेश कुमार दुबे
पर्यावरण की चिंता किसी को नहीं
Posted on 22 Aug, 2013 11:45 AM
हिमखंडों के पिघलने से ताज़ा पानी की विशाल मात्रा समुद्र में नमक की मात्रा कम करती है जिससे समुद्री तूफान पैदा होते हैं। साथ ही, ब
climate change
धरती बचाने की एक और पहल
Posted on 02 Aug, 2013 10:45 AM

जलवायु परिवर्तन को रोकने में वृक्षों की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए आईपीसीसी ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन क

toothfish
छोटे बांधों से ही आएगी हरियाली
Posted on 15 Jun, 2013 11:25 AM
बदलते मौसम चक्र, वैश्विक तापवृद्धि, पिघलते ग्लेशियर, सिंचाई व पेयजल के लिए पानी की किल्लत आदि को देखते हुए यह समय की मांग है कि बड
जैव विविधता पर मंडराते संकट के बीच
Posted on 18 Jun, 2012 12:20 PM
दरअसल संसाधनों की लूट, उपभोक्तावादी संस्कृति, जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या वृद्धि वैश्विक गरीबी बढ़ाने में खाद्य-पानी का काम कर रहे हैं। जैव विविधता में हो रही कमी के कारण ही मौसमी दशाओं में बदलाव आ रहा है, जिसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव गरीबों पर पड़ रहा है। जिस पर चर्चा कर रहे हैं रमेश कुमार दुबे.....
फूड बैंक की स्थापना से क्या हासिल होगा
Posted on 15 Jun, 2012 01:44 PM
इन योजनाओं के व्यापक फलक के बावजूद देश में अधिकाधिक गरीब भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। यूनिसेफ के अनुसार कुपोषण से भारत में रोजाना पांच हजार बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं। यदि गहराई से देखा जाए तो अनाज भण्डारण की केंद्रीकृत व्यवस्था के कारण ही एक ओर अनाज का पहाड़ खड़ा है तो दूसरी ओर भुखमरी से मौतें हो रही हैं। इसकी जानकारी हमें रमेश कुमार दुबे दे रहे हैं।
वैकल्पिक ऊर्जा से ही संकट दूर होगा
Posted on 11 May, 2012 05:43 PM
1954 में परमाणु ऊर्जा विकास के लिए तीन चरणों के एक विशाल कार्यक्रम की घोषणा की गई थी। उस समय 1980 तक 8000 मेगावाट परमाणु बिजली उत्पादन का दावा किया गया। समय बीतता गया तथा परमाणु ऊर्जा समर्थकों के दावे, वादे तथा अनुमान भी बढ़ते गए। 2003 तक मात्र 2,720 मेगावाट क्षमता का ही निर्माण हो पाया। विकास के अंधी दौड़ में वैकल्पिक ऊर्जा को छोड़ते जा रहे हैं। इसी एटमी ऊर्जा के बारे व्याख्या करते रमेश कुमार
ताकि रोजगार गारंटी कार्यक्रम सार्थक साबित हो
Posted on 15 Feb, 2012 12:17 PM

यूपीए सरकार भी मनरेगा को अपनी एक उपलब्धि बताती रही है। इसके बावजूद भी वह उसकी खामियों को दूर करने के बजाय उसे न्

ज्यादा कारगर साबित हुए हैं छोटे बांध
Posted on 04 Jan, 2012 12:59 PM

बड़े बांधों से जुड़े विवादों की अंतहीन श्रृंखलाओं को देखते हुए इनकी जगह छोटे बांध प्रासंगिक बन

उपजाऊ भूमि के बंजर होने का खतरा
Posted on 22 Nov, 2011 09:05 AM

धरती के मरुस्थलीकरण और मिट्टी की ऊपरी परत के क्षरण को रोकने का सबसे बेहतर तरीका है जल प्रबंधन, वृक्षारोपण, सूखा रोधी बीज और मिट्टी बचाने वाले समुदायों की आर्थिक सहायता। पृथ्वी पर कार्बन का 25 फीसदी मिट्टी में ही है। ऐसे में मिट्टी के संरक्षण से कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी और वैश्विक तापवृद्धि रोकने में भी मदद मिलेगी। दुर्भाग्यवश जलवायु परिवर्तन के इस महत्वपूर्ण पहलू की ओर दुनिया नजर फेरे हुए है। अगर इस तरफ ध्यान दिया जाए तो कुछ समस्याएं हल हो सकती हैं।

संयुक्त राष्ट्र की एक समिति के मुताबिक रेगिस्तान के फैलते दायरे को रोकने की गंभीर कोशिश नहीं की गई तो आने वाले समय में अनाज का संकट खड़ा हो जाएगा। आज उपजाऊ भूमि के बंजर में तब्दील होने के खतरे बढ़ रहे हैं। हर साल खाद्यान्न उत्पादन में काफी कमी आ रही है। इसके लिए वन विनाश, खनन नीतियां, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, नकदी खेती आदि जिम्मेदार हैं। देखा जाए तो मिट्टी की ऊपरी 20 सेंटीमीटर मोटी परत ही हमारे जीवन का आधार है। यदि यह जीवनदायी परत नष्ट हो गई तो खाद्य पदार्थों की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी और दुनिया भर में संघर्ष की नई स्थितियां पैदा होंगी। गहन खेती के कारण 1980 से अब तक धरती की एक-चौथाई उपजाऊ भूमि नष्ट हो चुकी है। इसी को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 2010-2020 को मरुस्थलीकरण विरोधी दशक के रूप में मनाने का निश्चय किया।

वर्ल्ड वॉच इंस्टीट्यूट के अनुसार 25 सेंटीमीटर मोटी मिट्टी की ऊपरी परत के नवीकरण में 200 से 1000 साल का समय लगता है। इसके बावजूद वह सरकारों व किसानों
×