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चरणामृत भी फिल्टर्ड ही पीएं
Posted on 07 May, 2012 04:47 PM

पेयजल के प्रदूषण से एक बहुत बड़ी आबादी प्रभावित होती रहती है इसलिए पेयजल को लेकर आम लोगों में चेतना भरने की भारी

कई को मालामाल कर रही है मनरेगा
Posted on 07 May, 2012 02:43 PM

सिर्फ मनरेगा ही नहीं, जो ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार में आकंठ डुबी हुई है बल्कि ऐसी कई योजनाएं भी भ्रष्टाचार

सरकार ही करे पानी के साथ न्याय
Posted on 04 May, 2012 05:27 PM

राजस्थान में जब स्थानीय लोगों ने अपने अथक प्रयासों से सूखी नदियों को जीवित कर सदानीरा बना दिया तो स्थानीय प्रशासन की नजर उसके पानी पर टिक गई। जब तक नदी सूखी रही तब तक तो सरकार की ओर से उसे जीवित बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया लेकिन जैसे ही आम लोगों ने उसे पानीदार बना दिया तो मत्स्य विभाग के करिंदे उसके टेंडर बांटने के लिए आ पहुंचे। इस मामले में सामान्य व्यक्ति भी न्याय कर सकता है कि उस नदी और उसके पानी पर किसका हक होना चाहिए जिसे लोगों ने अपना खून-पसीना बहाकर जीवित किया हो।

जल संसाधन मंत्री पवन कुमार बंसल ने हाल ही में संसद के उच्च सदन को बताया कि बीते 65 साल में देश में पानी की उपलब्धता गिरकर एक-तिहाई रह गई है। उन्होंने यह भी कहा है कि यदि सिकुड़ते जल संसाधनों का न्यायसंगत तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो लोगों की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। पानी की उपलब्धता में कमी का यह खुलासा निश्यच ही चौंकाने वाला तो नहीं है। पानी की कमी और इससे पाद होने वाली हिंसक स्थितियां जनता पिछले कई सालों से, खासतौर से गर्मियों में झेल रही है। 50 साल पहले देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5 हजार क्यूबिक मीटर/सालाना थी जो अब घटकर 15 सौ क्यूबिक मीटर के आसपास है। पानी की उपलब्धता में इसलिए कमी आई है क्योंकि जनसंख्या बढ़ने के साथ ही पानी मांग में वृद्धि हुई है। यह बात सहज समझी जा सकती है। कमी की वजहें और भी हैं।
देश में बढ़ता जल संकट
Posted on 04 May, 2012 03:56 PM हमारे देश में पनबिजली परियोजनाओं के नाम पर हजारों बांध बनाए जा रहे हैं जिससे अब नदियां सूखती जा रही हैं। गंगा और यमुना जैसी नदियों की सफाई के नाम पर अरबों रुपए खर्च करने के बावजूद हमारी नदियां गंदगी ढो रही हैं। खेतों में रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं का भरपूर उपयोग हो रहा है और भूजल के अत्यधिक दोहन से अब देश में जल संकट मडराने लगा है।
फ्लश लैट्रींन से क्या होगा उद्गम
Posted on 03 May, 2012 10:04 AM पानी के बढ़ते समस्या के कारण अब तीसरा विश्व युद्ध होने के कगार पर है। हमारे एक टन मानवीय मल को बहाने के लिए 2000 टन शुद्ध जल बर्बाद किया जाता है। ऐसे फ्लश लैट्रींन से हमें बचना चाहिए। जिनसे हमारे पीने के शुद्ध जल बर्बाद होता हो। हमें अपने पुराने पद्धतियों के तरफ ही रुख करना होगा। तभी हमारा पानी बच सकता है। इसी फ्लश लैट्रींन के बारे जानकारी दे रहे हैं विनीत नारायण।
ईको-फ्रेंडली इंडक्शन चूल्हा
Posted on 03 May, 2012 08:46 AM अगर एलपीजी गैस ना हो तो इंडक्शन चूल्हा बहुत ही उपयोगी है। इस इंडक्शन चूल्हा से ना ही धुआं और न ही आग निकलता है इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं हो सकता है और आपके पैसों की बचत भी करता है। इसी इंडक्शन चूल्हा के बारे में बताते अरविंद्र मिश्रा।
पानी का निजीकरण एक खतरनाक संकट की तैयारी
Posted on 02 May, 2012 11:26 AM पानी के निजीकरण होने का मतलब एक खतरनाक संकट की तैयारी हो रही है जिससे लोग पानी के लिए आपस में लड़कर मरेंगे। इससे भ्रष्टाचार के साथ-साथ लोगों के लिए पानी की समस्या भी उत्पन्न हो जाएगी। पानी की कोई कमी नहीं है बस जरूरत है उसे सहेजने की। पानी को सहेज कर ही हम अपने आने वाले संकट से ऊबर सकते हैं। इस आने वाली संकट के बारे में बताते कुमार प्रशांत।
सिर पर मैला
Posted on 02 May, 2012 09:30 AM अक्टूबर 2007 में उच्चतम न्यायालय ने राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों को मैला ढोने की प्रथा खत्म करने के लिए अधिसूचना जारी करने के निर्देश दिए थे लेकिन उस आदेश की अवहेलना जगजाहिर है। देश में वर्तमान समय में कितने लोग इस अभिशप्त जीवन को जी रहे हैं इसका अनुमान लगाना मुश्किल है, क्योंकि कोई भी राज्य यह स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि उनके राज्य में मैला ढोने की प्रथा कायम है। इसी कुप्रथा के बारे
मानवीय गरिमा पर कलंक
मजदूरों की रोटी छीनता हार्वेस्टर
Posted on 01 May, 2012 04:14 PM

पर्यावरण और मिट्टी को बचाने की जरूरत है। खेतों के आसपास हरे-भरे वृक्षों को बचाने की जरूरत है। मेढ़बंदी और भू तथा

harvester
प्रलय के पदचिह्न
Posted on 30 Apr, 2012 03:37 PM भारत में पूर्वाशा और बांग्लादेश में दक्षिणी तालपट्टी कहा जाने वाला द्वीप समुद्र में समा चुका है, तो घोड़ामारा द्वीप का 90 फीसदी हिस्सा जलसमाधि ले चुका है। क्या यह प्रलय की आहट है? न भी हो तो भी बंगाल की खाड़ी में समुद्र का 3.3 मिमी प्रतिवर्ष की रफ्तार से बढ़ता जलस्तर वर्ष 2020 तक 14 द्वीपों का अस्तित्व मिटा चुका होगा। इन्ही द्वीपों के बढ़ते संकट को उजागर कर रहे हैं दीपक रस्तोगी।

वैज्ञानिकों की नजर में भारत का घोड़ामारा द्वीप, समंदर बढ़ने के खतरे का सबसे बड़ा उदाहरण है। यह द्वीप क्षेत्रफल में सबसे बड़ा और जैव-विविधता के लिहाज से समृद्ध रहा है। पिछले कुछ वर्षों में तो यह मशहूर पर्यटन स्थल भी बन चुका था। बंगाल की खाड़ी में स्थित यह द्वीप कभी नौ वर्ग किलोमीटीर के क्षेत्र में फैला हुआ था। पिछले 25 वर्षों में इसका क्षेत्रफल घटकर 4.7 वर्ग किलोमीटर रह गया है। इस द्वीप को लेकर बड़े पैमाने पर चिंता जताई जा रही है।

ये प्रलय के पदचिह्न नहीं तो और क्या हैं? समंदर का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है और जीवन से सराबोर द्वीप शनैःशनैः जलसमाधि ले रहे हैं। भारत और बांग्लादेश जिस एक द्वीप पर अपना हक जताते हुए पिछले तीन दशकों से खुद को विवादों में उलझाए हुए थे उसका आदर्श न्याय प्रकृति ने खुद ही कर दिया है। ताजा शोध रपटों के अनुसार, भारत द्वारा पूर्वाशा और बांग्लादेश द्वारा दक्षिणी तालपट्टी नाम से अलंकृत साढ़े तीन वर्ग किलोमीटर का वह द्वीप अब समुद्र में समा चुका है। बंगाल की खाड़ी में 70 के दशक में खोज निकाले गए एक द्वीप पर दोनों ही देश अपना हक जता रहे थे।
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