तेलंगाना के हितों की बलि चढ़ता विदर्भ

अपनी सरकार को संकट से बचाने के लिए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी ने कांग्रेस आलाकमान को इस परियोजना के लिए महाराष्ट्र सरकार से हरी झंडी दिलवाने की गुहार लगाई। इसके बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने परियोजना के करार पर हस्ताक्षर कर अपने विदर्भ के हितों की बलि दे दी। वैसे पश्चिम महाराष्ट्र के नेताओं द्वारा विदर्भ के हितों की बलि कोई पहली बार नहीं दी गई। इन्हीं विदर्भ के हितों के बलि के बारे में जानकारी देते अशोक वानखड़े

गढ़चिरोली जिले से बह रही प्राणहीता नदी पर चेवेल्ला परियोजना के बनते ही यहां की चामोर्च्ची तहसील की 550 हेक्टेयर तो गोंडपींपरी तहसील की 1374 हेक्टेयर खेती योग्य जमीन पानी में डूब जाएगी। इतना ही नहीं, दोनों राज्यों की सीमा पर बसे महाराष्ट्र के 500 गांवों पर बाढ़ की तलवार हमेशा लटकी रहेगी। इस परियोजना से एक बूंद पानी भी महाराष्ट्र को नसीब नहीं होगा। प्राणहीता नदी में 380 टीएमसी पानी उपलब्ध है। उस पानी में से 155 टीएमसी पानी का कोई नियोजन ही नहीं किया गया।

महाराष्ट्र ने आंध्र प्रदेश की विवादित प्राणहीता चेवेल्ला सुजाला श्रवंती सिंचाई परियोजना को हरी झंडी देते हुए कुछ वर्षों से चल रहे विवाद को समाप्त कर दिया है। परियोजना को शुरू करने के लिए दोनों राज्य एक कमेटी बनाएंगे। तीन साल पहले आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय राजशेखर रेड्डी ने महाराष्ट्र को विश्वास में लिए बिना दोनों राज्यों में बह रही प्राणहीता नदी पर आंध्र के तुमडीहेटी गांव के पास 38000 करोड़ रुपए की सिंचाई परियोजना की घोषणा की थी। 20 नवंबर 2008 को प्रस्तावित बांध का भूमि पूजन भी कर दिया। इसके बाद महाराष्ट्र में तूफान उठा और इस परियोजना का काम रोक दिया गया। तब इस विवाद को हल करने के लिए दोनों राज्यों ने केंद्र सरकार से गुहार लगाई। तेलंगाना की जनता आंध्र से अपना नाता तोड़ अलग राज्य की मांग कर रही है। उसका आरोप है कि आंध्र की सरकार ने विकास के मामले में हमेशा उसकी उपेक्षा की है।

राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी ने तेलंगाना के सात अकालग्रस्त जिलों में पानी की समस्या को हल करने के लिए प्राणहीता नदी पर एक बड़ी परियोजना की घोषणा की थी। इसमें 6477 मीटर लंबे बांध के बनने के बाद प्राणहीता नदी का 160 अरब घन फीट पानी निजामाबाद, आदिलाबाद, करीमनगर, मेढक, रंगा रेड्डी, वारंगल और नालगोंडरा जिले की 16.4 लाख एकड़ कृषि भूमि को सिंचित करेगा और 30 अरब घन फीट पानी हैदराबाद की प्यास बुझाएगा। दूसरी ओर महाराष्ट्र के पूर्वी विदर्भ में इस परियोजना से भारी नुकसान की आशंका है। राज्य के गढ़चिरोली जिले से बह रही इस नदी पर चेवेल्ला परियोजना के बनते ही यहां की चामोर्च्ची तहसील की 550 हेक्टेयर तो गोंडपींपरी तहसील की 1374 हेक्टेयर खेती योग्य जमीन पानी में डूब जाएगी। इतना ही नहीं, दोनों राज्यों की सीमा पर बसे महाराष्ट्र के 500 गांवों पर बाढ़ की तलवार हमेशा लटकी रहेगी। इस परियोजना से एक बूंद पानी भी महाराष्ट्र को नसीब नहीं होगा।

गोदावरी नदी की उपनदी प्राणहीता में 380 टीएमसी पानी उपलब्ध है। उस पानी में से 155 टीएमसी पानी का कोई नियोजन ही नहीं किया गया। अगर महाराष्ट्र सरकार चाहती तो इस पानी से अकाल की मार झेल रहे पूर्वी विदर्भ के कई जिलों का भला हो सकता था। महाराष्ट्र की इस गलती का फायदा उठाते हुए आंध्र ने इस परियोजना की नींव रखी। पूर्वी विदर्भ के पांच जिलों में कुल 129 सिंचाई परियोजनाएं लंबित पड़ी हैं। 73 परियोजनाएं वन कानूनों की जटिलताओं में उलझी हैं। अगर ये सारी परियोजनाएं पूरी हुई होतीं तो चंद्रपुर जिले की 1,24,634, गढ़चिरोली जिले की 92,122, वर्धा जिले की 30,483, गोंदिया जिले की 17,758, नागपुर जिले की 13,850 और भंडारा जिले की 12,406 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि कुल मिलाकर 3,01,245 हेक्टेयर भूमि सिंचित हो जाती।

प्राणहीता नदी पर बांध बनने से पूर्वी विदर्भ को पानी का संकट झेलना पड़ेगाप्राणहीता नदी पर बांध बनने से पूर्वी विदर्भ को पानी का संकट झेलना पड़ेगाआंध्र के लोकप्रिय कांग्रेस नेता राजशेखर रेड्डी की अकस्मात हेलीकॉप्टर दुर्घटना में हुई मौत के बाद राज्य में कांग्रेस लगातार अपना जनाधार खो रही है। अलग तेलंगाना राज्य के लिए हो रहे आंदोलन से राज्य सरकार ही नहीं, केंद्र सरकार भी कई बार परेशानी का सामना कर चुकी है। बाकी रही कसर राजशेखर रेड्डी के पुत्र जगन रेड्डी की बगावत ने पूरी कर दी है। कांग्रेस नेतृत्व को लगने लगा है कि अगर समय रहते दक्षिण के इस कांग्रेसी गढ़ को नहीं संभाला गया तो दक्षिण भारत में पार्टी का हाल वही होगा, जो उत्तर में हुआ है। अपनी सरकार को संकट से बचाने के लिए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी ने कांग्रेस आलाकमान को इस परियोजना के लिए महाराष्ट्र सरकार से हरी झंडी दिलवाने की गुहार लगाई। इसके बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने परियोजना के करार पर हस्ताक्षर कर अपने विदर्भ के हितों की बलि दे दी।

वैसे पश्चिम महाराष्ट्र के नेताओं द्वारा विदर्भ के हितों की बलि कोई पहली बार नहीं दी गई। 1980 में भी जब गोदावरी जल के बंटवारे को लेकर आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में अनबन हुई थी, तब भी विदर्भ को मिलने वाले 100 टीएमसी पानी को आंध्र प्रदेश को देकर उनसे 25 टीएमसी अतिरिक्त पानी पश्चिम महाराष्ट्र के कोटे में बढ़वा लिया गया था। लेकिन इस बार जब राज्य के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने लंबित सिंचाई परियोजनाओं पर सवाल उठाते हुए सिंचाई विभाग पर श्वेत पत्र की मांग की तो विदर्भ की जनता ने राहत महसूस की। उन्हें पहली बार लगा कि पश्चिम महाराष्ट्र का नेता उनकी भलाई के बारे में सोच सकता है। लेकिन चेवेल्ला परियोजना को हरी झंडी देकर मुख्यमंत्री ने फिर से विदर्भ के अकालग्रस्त व आत्महत्या पर उतारू किसानों को मायूस कर दिया।

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