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मनरेगा
Posted on 27 Aug, 2015 04:29 PM पाठ-10
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम का उद्देश्य

महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम एक ऐसा कानून है, जिसमें ग्रामीण परिवारों के व्यस्क सदस्यों को, जो अकुशल कार्य करने के इच्छुक हों, वित्तीय वर्ष में 100 दिन का रोजगार सुनिश्चित किया गया है।
आर्थिक विकास का पर्यावरणीय मूल्यांकन (Environmental Assessment of Economic Growth and Green Audit)
Posted on 27 Aug, 2015 01:46 PM

इस अध्ययन में आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया में पारिस्थितिकीय आधुनिकीकरण का कार्यक्रम अपनाने की

पर्यावरण-अनुकूल खेती (Climate Change Adaptation in Agriculture)
Posted on 27 Aug, 2015 11:48 AM पर्यावरण-अनुकूल खेती ही स्थाई खाद्य और आजीविका सुरक्षा प्रदान कर सक
उपभोक्ता समूह
Posted on 25 Aug, 2015 11:06 AM पाठ-7
जलागम की परियोजना के अन्तर्गत होने वाले प्रत्येक कार्य के लाभार्थियों के अलग-अलग समूह बनाये जायेंगे जिनको उपभोक्ता समूूह के नाम से जाना जायेगा। ये समूह अपने प्रत्येक कार्य के क्रियान्वयन, संचालन एवं देख-रेख के प्रति जिम्मेदार होंगे। सदस्य एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए संगठित होंगे। एक आदर्श उपभोक्ता समूह में सदस्यों की संख्या 5 से 20 तक हो सकती है।
मैं पेड़ ही बनूँगा
Posted on 24 Aug, 2015 04:10 PM यदि बन सका सहारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।
शिवमय स्वरूप प्यारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

हिन्दू, इसाई, मुस्लिम, जिन बौद्ध,पारसी, सिख,।
हर धर्म का दुलारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

भूखे-तृषित पथिक का, बेघर उदास यति का,
लेकर आशीष सारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

पशु, भूत, प्रेत, बिच्छू, कृमि, बर्र, साँप, शिव के-
सिंगार का पिटारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।
माँ नर्मदा
Posted on 24 Aug, 2015 04:02 PM अमरकंटक की सुता तुम, शाँत कभी विकराल।
विध्वंशक पावस ऋतु, ग्रीष्म करे हड़ताल।।

सलिलापुण्य प्रदायनी, घाट-घाट नव नीर,
बिदा ले रही तटों से , है बिछुडन की पीर।

गर्मी में जलधार का, मध्यम हुआ प्रवाह,
घाट-घाट देता रहा, अपने जल की थाह।

आड़ी-तिरछी चाल भी, खोती नहीं विवेक,
बालूकण करते रहे, माता का अभिषेक।
कहा नदी ने मेघ से
Posted on 24 Aug, 2015 03:57 PM नहीं आचमन योग्य जल, नदियाँ हुई अस्वस्थ
जीव- जन्तु हैं त्रस्त अब, मृत्यु सोच निकटस्थ

कहा नदी ने मेघ से, बरसो प्रियतम झूम
प्यास मिटा दो अमृता, मैं लूंगी मुंह चूम

गाते मेघ मल्हार हैं, मेरे दोनों कूल
अब आओ भुजबन्ध में, प्रकृति हुई अनुकूल

चरण पखारूंगी विमल, बरसो हे! घनश्याम
शुष्क दृगों को तृप्ति दो, रसमय रूप ललाम
पानी
Posted on 24 Aug, 2015 03:52 PM पानी तेरा दास जग, तू ही जग की आस।
सब में तेरा वास है, सबमें तेरी प्यास।।

जड़-चेतन, जीवन-जगत्, सृजन और विध्वंस।
सब पानी के अंश हैं, सब पानी के वंश।।

पानी है तो प्राण हैं, पानी है तो देह।
पानी है तो आँख में, जिन्दा जग का स्नेह।।

पड़े न वृक्षों पर कभी, बुरी किसी की दृष्टि।
वृक्षों से जल, और है, जल से सारी सृष्टि।।
लौटना ही होगा जैविक खेती की ओर
Posted on 24 Aug, 2015 01:44 PM

भारत में जैविक खेती की अवधारणा नई नहीं है। हमारे यहाँ परम्परा से इसी तरह से ही खेती होती रही है। स्वतन्त्रता मिलने के बाद देश की खाद्यान स्थिति में आत्म निर्भर बनने के लिए साठ–सत्तर के दशक में हरित क्रान्ति के तहत खेती के परम्परागत तरीकों में तब्दीलियाँ की गई। इससे कृषि उत्पादन में भले ही हमने अपेक्षाकृत उपलब्धियाँ हासिल कर ली हो पर लम्बे समय बाद इसके बुर

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