शास्त्रों से संगम तक मूल सरयू

मूल सरयू बचाओ अभियान
मूल सरयू बचाओ अभियान
मनुना मानवेन्द्रण या पुरी निर्मिता स्वयं 

आदिकवि वाल्मीकि ‘श्री सरयू जी’ को अयोध्या धाम से उत्तर की ओर प्रवाहित होना बताते हैं। श्रीराम और विश्वामित्र के संवाद में ब्रह्मर्षि बताते हैं कि ‘श्री सरयू’ भगवान के मानस से संभव हुई हैं। श्री रुद्रयामल के श्री अयोध्या महात्म्य में राजा दशरथ कहते हैं- "त्वन्तु नेत्रोद्भवा देवि हर्रेनारायणस्य हि ।" हे देवि! आप तो नारायण के नेत्रों से उत्पन्न हुई हैं।

"ब्रह्मापि तज्जलं ज्ञात्वा ब्रहमद्रवमिदं शुभम्।" ब्रह्माजी ने स्वयं इस जल को मंगलमय एवं ब्रह्मद्रव कहा है। इसके लिए अपने मानस से मानसरोवर की रचना की। सातवें मन्वन्तर में श्राद्धदेव नामक मनु अयोध्यापुरी के महाराज हुए, उनके पुत्र इक्ष्वाकु की इच्छा पर वशिष्ठ जी द्वारा माता सरयू धरती पर लायी गयीं। धरती पर इनके अवतरण का दिवस ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी है। इनका एक नाम रामगंगा भी है।  प्रयाग में 12 मास तक प्रवास और भी सरयू जी के दर्शन मात्र का एक ही फल है, काशीपुरी में योगाभ्यास से शरीर छोड़ने वालों की जो गति होती है। वही गति एकादशी को सरयू जी में स्नान मात्र से मिल जाती है। ऐसा रूद्र यामल वर्णन करते हैं।

श्री रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि 

उत्तर दिशि सरयू बह पावनि

"जा मज्जन ते विनहि प्रयासा मम समीप नर पावहिं बासा।”

“सरयू सरि कलि कलुष नसावनि।"

"मज्जहिं सज्जन वृंदबहु पावन सरजू नीर।"

बौद्ध ग्रंथों में इन्हें सरभ नाम दिया गया है। मेगास्थनिस इन्हें सोलोमत्तिस नदी कहता है। टॉलेमी इन्हें सरोबेस नदी के रूप में मानते हैं। 

रामायणकालीन नदी 

श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान, दिल्ली के सूत्र संचालक डॉ० राम अवतार शर्मा ने बाल्मीकि कृत रामायण और रामचरितमानस के आधार पर अपने शोध द्वारा यह सिद्ध किया कि मूल सरयू नदी के दक्षिणी तट से प्रभु राम भैय्या लक्ष्मण के साथ यज्ञ की रक्षा करने के लिए सिद्धाश्रम, बक्सर ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के नेतृत्व में पैदल गए हैं। यह इस क्षेत्र के लिए गौरव का विषय है। इस मार्ग में प्रभु राम आगमन स्थलों को डॉ० साहब द्वारा ही चिह्नित किया गया है। प्रतिवर्ष लोक दायित्व इन स्थलों की यात्रा करता है।

वर्तमान उद्गम स्थल

आज बाढ़ खंड जिसे छोटी सरयू कहता है मूलतः वह कभी सरयू की मुख्य धारा थीं। 1955 में बने महुला गढ़वल बांध ने इनको मुख्य धारा से अलग कर दिया। इनका उद्गम कम्हरियाँ घाट से लगभग 2.5 किमी० पूरब कम्हरियाँ माझा से हुआ है। जो अंबेडकरनगर के आलापुर तहसील में पड़ता है। जिसका स्पष्ट मार्ग और प्रवाह आज भी देखने को मिलता है। इसके उद्गम को सत्यापित करने के लिए वहाँ की कई बार यात्रा की गई है। जिसमें से दो यात्राएं विशेषज्ञों द्वारा की गयी। प्रथम बार बाद-खंड के अधिशासी अभियंता श्री दलीप कुमार एवं अभियानियों के साथ तथा दूसरी बार भूगोलवेत्ताओं श्री घनश्याम दूबे एवं उनके मित्रों के साथ यात्रा की गयी।

नदी का मार्ग

मूल सरयू नदी कम्हरियों माझा से निकल कर मोहारे बाबा पहुंचती है। यहाँ से मुबारकपुर पिकार होते हुए आराजी देवारा के रास्ते मुडियारी के ब्रह्मचारी जी की कुटिया से करीब 300 मी० पूरब से होते हुए महुला गढ़वल बाँध पार करती साबितपुर बाजार पहुँचती है। इसके उपरांत आजमगढ़ में जोडवार, सतई का पूरा बनकटा बुजुर्ग, देवारा कदीम, खंजरपुर, घुघुरपट्टी होते हुए त्रिमुहानी भैरो बाबा पहुँचती है।

भैरवधाम महाराजगंज से आगे प्रतापपुर, मुडीलपुर, पैकोली जमालपुर, भीलमपुर, महरूपुर, औसानपुर, गोंदापुर, टेढवा, बंजरिया, (महाजीसिंहवारा) करखिया रूस्तमसराय होते चॉदपट्टी पहुंचती हैं। इनके किनारे साबितपुर और महाराजगंज के बाद तीसरी बाजार चाँदपट्टी है। चाँदपट्टी के बाद खैरघाट, भैंसाड़, कांतिपुर, अखईपुर के रास्ते बरहपुर पहुँचती हैं। यहाँ नदी की दो शाखा हो जाती है। एक बदरहुआ नाला जो कल्याणपुर फाटक की और चला जाता है तथा बड़ी सरयू में मिल जाता है तथा दूसरी शाखा जो कि पूर्व में मुख्य शाखा रही है, लाटघाट की तरफ चली जाती है।

बरहपुर से आगे नदी लुचुई खांड, लाटघाट, महादेवा तरौका, पारनकुंडा, कटिहारी के मध्य मऊ एवं आजमगढ़ की सीमा बनाती बहवल घाट होते हुए एक नाले के माध्यम से ताल सलोना से जुड़ती है तथा मऊ में प्रवेश कर जाती है। सहरोज के पास बारहदुआरिया मंदिर पर तमसा के साथ संगम करती हैं और आगे जाकर बलिया में गंगा से मिल जाती हैं।

मूल सरयू प्रवाहहीन एवं सूखने का कारण

मूल सरयू जो पूर्व में सदानीरा पानीदार और अविरल थीं। 1970 के बाद उनमें पानी धीरे-धीरे कम होने लगा और 1995 आते-आते सूखने लगीं। इसके तीन सबसे बड़े कारण हैं। पहला 1955 में बना महुला-गढ़वल बाँध, जिसने मूल सरयू के मुख्य जल स्रोत यानि बड़ी सरयू से अलग कर दिया तथा दूसरा प्रमुख कारण स्थानीय जलस्रोतों का तेजी से नष्ट होना। तीसरा कारण बरहपुर में बदरहुआ नाले पर बना फ्लैपर गेट जिसने मूल सरयू को खांड और लाटघाट की तरफ जाने से ही रोक दिया। इसके कारण बरहपुर से लेकर शहरोज तक नदी की अविरलता पर ग्रहण लग गया। मूल सरयू पर जगह-जगह खनन ने मार्ग में अन्य बाधाएं भी उत्पन्न कीं। महादेवा गांव के एक बुजुर्ग ने बाताया कि हम अपनी जवानी में जेठ - वैशाख के समय इस नदी में मछलियां पकड़ी हैं, नाव चलाईं हैं। 

महाराजगंज, आजमगढ़ से उत्तर मूल सरयू का जलश्रोत नष्ट होने से किसान उस जदमीन पर कृषि करने लगे। इस कारण नदी की जमीन नदी सेही छिन गई। साबितपुर बाजार, अंबेडकर नगर में जहां नदी बाजार के बीच से गुजरती है,  नदी के क्षेत्र में ही ज़मीन खरीदकर लोगों ने घर बनवा लिया। जगह-जगह नगी पर चकरोड बना गिया गया। 

ठीक इसी तरह खांड से लेकर महादेवा गांव होते हुए बहवलघाट तक नदी सिकुड़ गई। महादेवा के एक बुजुर्ग ने बताया कि यहां यह नदी लाटघाट पुल से भी चौड़ी थी, जिसे 1972 की चकबंदी ने नाला बना दिया। नदी की ज़मीन की मालियत लगाकर लेखपालों ने उस ज़मीन को लोगों को दे दिया। जो नदी पूर्व में 14-21 कट्ठा चौड़ी थी, आज तीन मीटर रह गई है। खांड में नदी पर साइफन लगा दिया तथा उसके ऊपर शारदा सहायक नहर निकाल दी गई। पानी का प्रवाह नहीं होने से वह साइफन भी लगभग जाम हो गया है। 

मूल सरयू की अविरलता में बाधा उत्पन्न होने का परिणाम 

1955 में महुला- गढ़वल बाँध बनाने का उद्देश्य ठीक था कि सरयू जी की बाढ़ को नियंत्रित कर एक बड़ी जनसंख्या की बाढ़ से रक्षा करना, परन्तु बाढ़ नियंत्रित हुई तो उसका   परिणाम घातक हुआ। बांध के उत्तर बाढ़ पीड़ित क्षेत्र जीवन-मरण का प्रश्न झेलने लगा, तथा बांध के दक्षिण का क्षेत्र जल-जमाव और जल स्रोतों के विनाश को झेलने लगा। आज के समय के बांध के दक्षिण लगभग सभी ताल, तीन नदियां और दो दर्जन जल स्रोत कृषकाय और मरणासन्न हैं। मनुष्य की लालच इस प्राकृतिक संपदा पर कब्जा कर अपना पीठ थप-थपा रही है। 

बरहपुर में बदरहुआ नाले के पहले से मूल सरयू के मुहाने पर फ्लैपर गेट लगा देने से आगे नदी में पानी का आवक ही रुक गया। नदी का स्वरूप नाले में बदल गया। प्रतिवर्ष इसकी सफाई पर लाखों खर्च भी किया गया। साथ ही इसके दोनों तरफ तटबंध भी बना दिए। इसका एक बड़ा परिणाम यह हुआ कि नदी के गर्भ तक वर्षा का पानी पहुंच ही नहीं पा रहा। जिसके कारण जल-जमाव हो रहा है। नदी सिकुड़ती जा रही है। जैव-विविधता नष्ट हो रही है। 

बरहपुर में फ्लैपर गेट लगाने से मूल सरयू के प्रवाह को रोक दिया गया। वेदों ने नदी का मार्ग और जल रोकने वालों को असुर कहा है। इसके लिए कई बार देवासुर संग्राम हुए हैं। यहाँ भी बिना दूर तक परिणाम जाने यह कार्य किया गया। थोड़ी सी लालच में इतनी बड़ी गलती की गई कि उसका खामियाजा बार-बार वहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा भुगता जा रहा है। 

जोकहरा बाँध टूटने का कारण

बदरहुआ नाला मूल सरयू के अतिरिक्त जल को बड़ी सरयू में पहुँचाने का काम करता है। इस कार्य के लिए कल्याणपुर में फाटक लगा है, लेकिन जब बड़ी सरयू का पानी विकराल रूप धारण कर लेता है, तो कल्याणपुर फाटक बंद कर दिया जाता है। ऐसी दशा में बरसात के पानी को मूल सरयू एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा तथा कैचमेंट एरिया का पानी भी लाया जाता है, उसको कहीं अन्यत्र जाने का मार्ग नहीं मिलता और वह बदरहुआ नाले में एकत्रित होने लगता है, क्योंकि बरहपुर मूल सरयू की मुख्य धारा पर फ्लैपर गेट बंद रहता है। यह पानी जब बदरहुआ नाला के धारण क्षमता से अधिक होता है, तो किसी न किसी तरफ बाँध को तोड़ देता है और अपार जन-धन एवं कृषि की हानि करता है। पिछले तीन साल में ऐसा दो बार हो चुका है। न जाने कितने घर बह जाते हैं। कृषि नष्ट हो जाती है। गृहस्थी उजड़ जाती है, फिर लोगों को मुआवजा दिया जाता है। 2022 में जोकहरा बाँध का टूटना तथा 2020 में भी बदरहुआ बाँध का टूटना हजारों की आबादी का परेशान होना, पानी की निकासी नहीं होने का परिणाम है। नदी तो आखिर नदी है, उसमें प्रवाहित जल पंचमहाभूतों में से एक है। आखिर उसे भी तो उसकी जमीन उसका मार्ग चाहिए। यदि हम इसके प्राकृतिक प्रवाह को बनाये रखेंगे तो इससे क्षति नहीं होगी, यदि होगी भी तो बहुत कम होगी।

सलोना ताल 

सगड़ी तहसील से लगभग तीन किमी० पूरब में स्थित ताल सलोना जनपद में गौरवशाली स्थान रखता है। सलोना ताल पूर्व में सरयू का पेटा रहा है। ऐसा कहा जाता है कि माता सरयू यहाँ विश्राम करती थीं। भौगोलिक शब्दावली में इसे गोखरू झील कहा जाता है, कभी मूल सरयू यहीं से होकर प्रवाहित होती रही होंगी। बाद में मार्ग परिवर्तन के कारण यह झील में परिवर्तित हो गयी होगी।

लगभग 977 एकड़ में फैला ताल दशकों पूर्व तक क्षेत्र की सुख समृद्धि का साधन था। ताल के आस-पास के गाँव धनछुला, मसोना, डिगवनिया, इसरहा, भरौली, अजमतगढ़, ढेलुवा, बसंतपुर, नरहन, पारनकुंडा आदि कई दर्जन गाँव के लोगों की रोजी-रोटी का साधन हुआ करता था। ताल किनारे के लगभग हजार मलाहों के परिवार मछली मारकर अपना जीवनयापन करते थे। आज भी इनकी आजीविका का साधन यह ताल है। ताल सलोना कमलगट्टा, सिरसी, सुथनी और तिन्नी का चावल के उत्पादन का स्थानीय एवं बड़ा साधन रहा है। आज भी यहाँ इनका उत्पादन होता है। कभी अजमतगढ़ रियासत के लोग इसके सुंदरीकरण का ध्यान रखते थे। इसी ताल के किनारे मां दुर्गा मंदिर, गणेश मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर तथा ताल के बीच में माता काली का मंदिर आज भी है। ताल के दक्षिणी छोर पर रामवाटिका है। डॉ० रामअवतार शर्मा (प्रभुराम आगमन स्थलों के शोधकर्ता) का कहना है कि रामवाटिका और मंदिर के स्थान पर ही कही रामजी का आना हुआ था। इसी छोर पर अजमतगढ़ रियासत द्वारा बनवाया गया सुंदर घाटयुक्त तालाब और भव्य मंदिर है, जो आज जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़ा हुआ है। यह वही अजमतगढ़ का क्षेत्र है, जहाँ 1857 में बाबू कुंवर सिंह के आगमन पर यहाँ के बड़े व्यवसायी गोगा साव एवं भीखी साव ने इनके स्वागत में कुएं में ही खांड घोलवा दी थी।

सुंदर और रमणीय सलोना ताल आज भूमाफियों के वक्रदृष्टि का शिकार है, सैकड़ों एकड़ जमीन पर कब्जा हो चुका है। ताल अतिक्रमण के प्रभाव और जल के अभाव के कारण सिकुड़ता जा रहा है। कभी स्थानीय एवं साइबेरियन पक्षियों के कलरव हाथियों की अठखेलियाँ- मछलियों की अधिकता, छोटी डोंगियाँ लोगों के आकर्षण का केन्द्र थीं। यदि ऐसे ही ताल सूखता रहा और माफियाओं का कब्जा उस पर होता रहा तो आने वाले समय में ताल का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

ताल सलोना अपने स्वतंत्र अस्तित्व को बनाए रखने के लिए लगातार संघर्षरत हैं। इसके सिकुड़ने से एक बड़ा इकोसिस्टम बिगड़ रहा है, जबकि इसके बने रहने से भूजल सहित तमाम पर्यावरणीय लाभ और आर्थिक लाभ होंगे। इस हेतु लोक दायित्व चिंतित है तथा आस-पास के लोगों से लगातार अपील कर रहा है कि इस ताल को बचाए रखने के लिए आगे आएं। सलोना ताल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। इससे स्थानीय प्रशासन सहित लोक मानस को भी लाभ प्राप्त होगा।

बेपानी होने का कारण

मूल सरयू नदी के जल विहीन होने के कई बड़े कारण हैं, जिनमें से मुख्यतः निम्न हैं -

1. महुला गढ़वल बाँध द्वारा नदी के मूल स्रोत को रोक देना। 

2. नदी की जमीन पर भूमाफियाओं का अतिक्रमण ।।

3. लेखपालों द्वारा नदी की जमीन की मालियत लगाकर उसका आवंटन एवं पट्टा करना जिसके कारण नदी का बंध जाना।

4. नदी के किनारे बसे गांवों के आस-पास का जल स्रोत समाप्त होना, ताल तलैया, आदि पर कब्जा होना ।

5. छोटी सहायक नदियों का जलविहीन होना।

6. महाराजगंज भैरव बाबा एवं चाँदपट्टी तथा खेरघाट आदि स्थलों पर नदी में हो रहा भारी प्रदूषण । 

7. नदी किनारे नगर पंचायतों का कूड़ा निस्तारण ।

8. स्थान-स्थान पर नदी को बाँधना, पुलिया डालना, आदि ।

मूल सरयू की सहायक नदियाँ

मूल सरयू की निम्न सहायक नदियाँ है- 

1. पिकिया

अतरौलिया, जहाँगीरगंज, शंकरपुर तथा गढ़वल की ओर से आती हुई यह नदी मोहारे बाबा स्थान के पास मूल सरयू में मिलती है। यहाँ से मूल सरयू का उद्गम स्थल बमुस्किल 1.5 किमी0 है, वर्तमान में इसे पीकिया नाला के नाम से जाना जाता है।

2. छोटी सरयू

इसका उद्गम अंबेडकर नगर शुक्ल बाजार से दक्षिण मसड़ा के ताल से हुआ है। यह नदी भी अतरौलिया, बूढ़नपुर आदि क्षेत्र से होती हुई, महाराजगंज भैरव बाबा स्थान से उत्तर में मूल सरयू से संगम बनाती है, वर्तमान में इसे त्रिमुहानी के नाम से जाना जाता है। पूर्व में कभी यह संगम भैरव बाबा मंदिर से ठीक उत्तर में होता था। इसका नामकरण अदूरदर्शिता और श्रम का परिणाम है। यह नदी कभी भी छोटी (मूल) सरयू नहीं हो सकती। यह मूल (छोटी) सरयू की सहायक नदी है। इस विषय पर स्वतंत्र रूप से शोध की आवश्यकता है।

3. चौरासिड़ी नदी

इस नदी का उद्गम आजमगढ़ में कप्तानगंज के पास चौरासी नामक ताल से है। वहीं से यह राड़ी का पूरा, मिस्रपुर (महाराजगंज) के पश्चिम से अक्षयवट गाँव होते हुए महाराजगंज त्रिमुहानी से पहले जाकर मूल (छोटी) सरयू में मिल जाती थी। आज वर्तमान में भी वर्षाकाल में इसका मार्ग स्पष्ट हो जाता है। मिश्रपुर (राड़ी के पूरा) के एक वयोवृद्ध अध्यापक महोदय ने बताया कि उनके दादा जी बताते थे कि इसका नाम चौरासिणी है। तत्कालीन समय में यह बहुत पवित्र मानी जाती थी। आज यह लगभग विलुप्त है। इसका पूरा मार्ग अतिक्रमण एवं कृषि के अधीन है।

4. शुभकरणी नदी

यह औघड़गंज के पास बड़ी सरयू से निकली थी। यह नदी इस बात का प्रमाण है कि आज की सरयू का मूल मार्ग मूल सरयू नदी से होकर ही जाता था। जैसे-जैसे यह नदी उत्तर दिशा में बढ़ती गयी, अपना अंश पीछे छोड़ती गयी। इसका कोई नाम सरकारी अभिलेख में नहीं है, नहीं इसका कोई चित्र है। कभी इस पर बाढ़ खंड द्वारा कोई काम नहीं हुआ है। लोकदायित्व द्वारा ही अपनी यात्रा के दौरान 2022 में इस नदी का नामकरण "शुभकरणी नदी के रूप में किया गया।

श्री लालसा यादव ने बताया कि इस नदी में पानी 12 माह रहता था। 1955 में बाँध बंधने के बाद इसका पानी सूखने लगा। 1984 में भी यहीं औघड़गंज में बंधा टूटा था। पूर्व नौबरार देवारा जदीद किता प्रथम से होकर यह नदी आगे बढ़ती है। नकीयहवा ताल जो कि लगभग 2.5 किमी लंबा तथा 500 मीटर चौड़ा है, से होकर यह नदी प्रवाहित होती रही है। गणेश का पूरा कोपास शुभकरणी नदी तथा नकीयहवा ताल का संगम आज भी होता है। मुर्दहिया के पास नगी आज भी 4-5 कट्ठा चौड़ी है। देवारा कदीम में सैनी माण्टेसरी स्कूल के ठीक उत्तर से होकर मनोगा का पुरा होते हुए (त्रिपुरापुर आइमा), सहाई का पूरा पार करके आराजी देवारा हुकहिया, शिवपुर, चौकीदार का पूरा एवं हन्नु का पूरा होते हुए सैदपुर विद्यालय के पश्चिम से चपरी में दो स्थानीय नदियों, जलस्रोतों के साथ संगम करती है। इससे आगे चौकना रामचन्दर, गोंदापुर के रास्ते जाकर यह नगी टेढ़वा बंजरिया में मूल सरयू के साथ संगम करती है। 

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