पंजाब में टिकाऊ कृषि हेतु जलसंसाधनों का प्रबंधन

पंजाब में टिकाऊ कृषि हेतु जलसंसाधनों का प्रबंधन,Pc-ToI
पंजाब में टिकाऊ कृषि हेतु जलसंसाधनों का प्रबंधन,Pc-ToI

प्रस्तावना

हमारे देश में उपलब्ध कुल जल संसाधनों की 85% से अधिक खपत कृषि के क्षेत्र में होती है और इसमें से हम भूजल द्वारा ही फसलों की 72% से अधिक सिंचाई की माँग को पूरा करते हैं जिससे देश में उपलब्ध भूजल संसाधनों पर बहुत अधिक दबाव पड़ रहा हैं। इन भूजल संसाधनों में आ रही गिरावट के मुख्य कारण हर साल नलकूपों की संख्या में वृद्धि, वर्षा की असमान प्रवृत्ति, प्रचलित फसल पद्धति, बढ़ती जनसंख्या औद्योगीकरण, शहरीकरण आदि हैं। अतः इस गंभीर समस्या पर काबू पाने के लिए कृषि में जल का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करने का हमारा कर्तव्य बन जाता है। यह तभी संभव है जब कृषि के लिए भूजल एवं सतही जल संसाधनों का उचित रूप से दक्ष प्रबंधन किया जाए। एक अध्ययन के अनुसार, पंजाब राज्य में वर्ष 1998 से लेकर वर्ष 2017 तक भूजल के दोहन में 28% तक की वृद्धि हुई है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के अभियांत्रिकी विभाग द्वारा जीआईएस तकनीक का उपयोग कर भूजल स्तर के नक्शे तैयार किए गए जिससे पता चला कि पंजाब राज्य में वर्ष 1998 के दौरान औसत भूजल स्तर की गहराई 7.33 मीटर थी और जो वर्ष 2017 में 16.8 मीटर तक पहुँच गई। इस प्रकार, भूजल स्तर के मानचित्र से 50 सेमी / वर्ष की औसत गिरावट का संकेत मिलता है जिसको नीचे दिए गए चित्र में दर्शाया गया है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना पिछले कई सालों से इस गंभीर समस्या पर काम कर रहा है और इसके लिए ऐसी कई तकनीकों को विकसित भी किया गया है जो भूजल रिक्तीकरण को कम कर सकती हैं। ऐसी ही कुछ महत्वपूर्ण तकनीकों की चर्चा नीचे की जा रही है

पंजाब राज्य में भूजल स्तर की स्थिति
पंजाब राज्य में भूजल स्तर की स्थिति

लेजर लैवलर द्वारा खेतों का समतलन

इस तकनीक द्वारा किसान अपने खेतों को कृषि के लिए अच्छी तरह से समतल करके एक उपयुक्त ढलान दे सकते हैं। ऐसा करने से पूरे खेत में एक समान जल का वितरण होगा जिससे सिंचाई के जल में 25 प्रतिशत तक की बचत हो सकती है। एक एकड़ खेत को लेजर लैवलर द्वारा 1 से 2 घंटे में अच्छी तरह से समतल किया जा सकता है। सामान्य तौर पर इसकी लागत 500-700 /घंटे आती है। इस तरह थोड़ा सा खर्चा करके किसान सिंचाई जल के उपयोग में बहुत ज्यादा बचत कर सकते है। इसके अलावा इस तकनीक से खेत में खरपतवारों की वृद्धि में कमी के साथ-साथ फसलों की पैदावार में भी 10-20 प्रतिशत तक का इजाफा होता है।

लेजर लैवलर द्वारा खेतों का समतलन
लेजर लैवलर द्वारा खेतों का समतलन

धान की खेती में सिंचाई जल की बचत

आमतौर पर पंजाब में धान की रोपाई को 20 जून के बाद करने की सलाह दी गयी है जिससे सिंचाई जल की काफी बचत होती है धान को उगाने के पश्चात खेतों में 30 दिन के बजाय 15 दिन तक जल भराव रखने की सिफारिश भी दी गई है। और उसके बाद खेतों को पूरी तरह से सूखने नहीं देना चाहिए। ऐसा करने से भी सिंचाई जल में काफी बचत प्राप्त होती है। इसके अलावा, धान के खेतों में डाइक की ऊँचाई को बढ़ाकर वर्षा के जल को संग्रहीत या सरंक्षित किया जा सकता है। यहाँ किसानों को यह भी सुझाव दिया गया कि अधिकतम वर्षा जल के संरक्षण के लिये धान के खेतों में इष्टतम एवं प्रभावी मेड़ की ऊँचाई क्रमश: हल्की, मध्यम और भारी मृदाओं के लिए 15, 17.5 और 22.5 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए जैसा कि नीचे दिए गए चित्र में दिखाया गया है।

इष्ठतम बंड की ऊँचाई द्वारा धान के खेतों में वर्षा जल संरक्षण
इष्ठतम बंड की ऊँचाई द्वारा धान के खेतों में वर्षा जल संरक्षण

लघु अवधि वाली धान की किस्मों का उपयोग

धान की बुआई हेतु लंबी अवधि की किस्मों के उपयोग से इस फसल की सिंचाई जल की आवश्यकता में बहुत वृद्धि हुई है। अतः किसानों को कम अवधि की किस्मों और बेहतर गुणवत्ता वाली बासमती धान की ऐसी किस्मों को उगाना चाहिए जिनको सिंचाई जल की कम आवश्यकता पड़ती है। धान की अन्य किस्मों की तुलना में छोटी अवधि की किसमें जैसे पीआर 126 (93 दिन) पीआर 121 (110 दिन) पीआर 122 (117 दिन) और पीआर 114 (112 दिन) आदि करीब 15-20 दिन पहले ही परिपक्व हो जाती हैं। इन किस्मों के लिये नर्सरी को मई के आखिरी सप्ताह में लगाया जाता है और उसके बाद पौध की रोपाई जून के आखिरी सप्ताह में की जा सकती है इस तरह वाष्पीकरण काल की अवधि को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। इसके अलावा, सीधे बीज बुआई वाले धान की किस्म पी आर 115 भी बहुत लोकप्रिय है।

कुंड (Furrow) सिंचाई विधि

अधिक दूरी पर उगाई जाने वाली फसलों जैसे कपास, मक्का, सूरजमुखी आदि को ऊँची क्यारियों पर उगाया जाना चाहिए और इनकी सिंचाई कुडो (furrows) में करनी चाहिए। किसानों द्वारा इस विधि को अपनाकर बाद सिंचाई विधि की तुलना में 20-25 प्रतिशत तक सिंचाई जल को बचाया जा सकता है और फसलों की उपज में काफी वृद्धि भी हो सकती है। मेड़ व कुड़ विधि से एवं समतल क्यारी में मक्का की खेती को नीचे दिए गए चित्र में दर्शाया गया है।

मेड़ और कुंड विधि द्वारा मक्का की खेती
मेड़ और कुंड विधि द्वारा मक्का की खेती
समतल क्यारियों में मक्का की खेती
समतल क्यारियों में मक्का की खेती

फव्वारा (छिड़काव सिंचाई प्रणाली)

यह प्रणाली असमतल भूमि रेतीली मृदा या चिकनी मुदा पर कम दूरी वाली फसलों को ड्रिप सिंचाई प्रणाली उगाने के लिए उपयुक्त है। इस सिंचाई प्रणाली से जल के प्रयोग की दर को कृषि भूमि की स्थिति के हिसाब से नियंत्रित किया जा सकता है। फसलों की उपज में वृद्धि एवं सिंचाई जल की बचत के हिसाब से बाढ़ सिचाई विधि की तुलना में फव्वारा सिचाई प्रणाली 1.5 गुना अधिक कुशल साबित होती है। गेहूँ की फसल में फव्वारा सिंचाई प्रणाली के उपयोग को नीचे चित्र में बताया गया है।। 

ड्रिप सिंचाई प्रणाली

यह प्रणाली असमतल भूमि, रेतीली मृदा या चिकनी मृदा  पर अधिक दूरी पर उगाई जाने वाली अधिक मूल्य वाली फसलों जैसे फलदार फसलें, सब्जियाँ और फूलों के लिए बहुत ही उपयुक्त है (तालिका 3)। इस प्रणाली का एक अन्य लाभ यह भी है कि इसमें यूरिया जैसे घुलनशील उर्वरकों को सिंचाई जल के साथ ही प्रयोग किया जा सकता है और इस तरह फसलों को पूरे मौसम के दौरान एक समान पोषक तत्वों की उपलब्धता प्राप्त होती रहती है।यह प्रणाली बाढ़ सिंचाई विधि की तुलना में 3 गुना अधिक कुशल साबित हुई है। जहाँ भूजल की गुणवत्ता खराब हो या नहर के जल का (टैक में संग्रहित कर) संयोजी उपयोग करना हो तो वहाँ भी इस प्रणाली का इस्तेमाल बहुत अच्छी तरह से किया जा सकता है।

तालिका 3 ड्रिप सिंचाई के तहत पानी की बचत और उपज में वृद्धि
तालिका 3 ड्रिप सिंचाई के तहत पानी की बचत और उपज में वृद्धि, स्त्रोत:-पंजाब की फसलों और सब्जियों के लिएसिफारिश पैकेज( 2018-19) 

खेत का आकार

पंजाब राज्य की गेहूँ एक प्रमुख फसल है जिसकी आमतौर पर खेतों में क्यारे बनाकर सिंचाई की जाती है। अगर क्यरों को वहाँ की कृषि भूमि के अनुसार सही ढलान दिया जाये तो सिंचाई जल उपयोग की क्षमता को 60-70% तक बढ़ाया जा सकता है, जबकि ऐसा न करने से सिंचाई जल की उपयोग क्षमता केवल 30-40% तक ही प्राप्त हो पाती है। विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति और उनके अनुमेय इलानों के आधार पर पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा क्यारों के अलग-अलग आकारों की सिफारिश का सुझाव दिया है जिसे तालिका 4 में प्रस्तुत किया गया है। तालिका 4 एक एकड़ लंबे खेत की कुशल सिंचाई के लिए, विभिन्न प्रकार के भूमि, ढलानों, और निर्वहन के तहत उपयुक्त क्यारे का आकार।   

तालिका 4 एक एकड़ लंबे खेत की कुशल सिंचाई के लिए, विभिन्न प्रकार के भूमि, ढ़लानों, और निर्वहन के तहत उपयुक्त क्यारे का आकार
तालिका 4 एक एकड़ लंबे खेत की कुशल सिंचाई के लिए, विभिन्न प्रकार के भूमि, ढ़लानों, और निर्वहन के तहत उपयुक्त क्यारे का आकार,स्त्रोत:-पंजाब की फसलों और सब्जियों के लिएसिफारिश पैकेज( 2018-19) 

 


 

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Post By: Shivendra
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