अल्मोड़ा के मोहन कांडपाल के 'पानी बोओ, पानी उगाओ अभियान' से सूखती रिस्कन नदी के बचने की उम्मीद जागी

पानी बोओ, पानी उगाओ अभियान
पानी बोओ, पानी उगाओ अभियान

उत्तराखंड में 6000 से ज्यादा छोटी-बड़ी नदियां हैं। जिसमें से ज्यादातर या तो मर चुकी हैं, बरसाती हो गई हैं, या सूख रही हैं या जिनके हालात खराब हैं और बुरी तरह बीमार हैं। आपदा अब उत्तराखंड की नियति बनती जा रही है। भूस्खलन, नदियों में अवैध अतिक्रमण, एक्सट्रीम वेदर कंडीशन, जलवायु परिवर्तन के नए संकेत साफ-साफ दिखाई पड़ रहे हैं। देहरादून के शहर के अंदर 23 से ज्यादा नदियां हैं। लेकिन कोई भी अब सदानीरा नहीं रही हैं। ज्यादातर अब केवल बरसाती हो गई हैं, मल-मूत्र ढोने वाली हो गई हैं।

गंगा-यमुना जैसी नदियों के मायके के प्रदेश उत्तराखंड में नदियों के हालात पर चर्चा और कुछ अच्छे प्रयोगों के बारे में जानकारी साझा करने के लिए एक मीडिया मित्र मिलन का कार्यक्रम रखा गया।

देहरादून शहर की 23 नदियों में से सभी की सभी सूख चुकी हैं। इसी तरह से 2005 में द्वाराहाट, अल्मोड़ा की रिस्कन नदी की सांस बिल्कुल टूट गई थी। बिल्कुल सूख गई थी। पर आज बहती है। अभी बहुत काम बाकी है, फिर भी अपने सबसे सुंदर रूप में बहने की उम्मीद जागी है। आज उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून के उज्वल रेस्टोरेंट में 'पर्यावरण वाले मनस्साब' के नाम से मशहूर, द्वाराहाट विकास खंड के ग्राम कंडे के निवासी मोहनचंद्र कांडपाल जी की एक प्रेस कांफ्रेंस हुई। इस दौरान वह मीडिया से मुखातिब हुए और कई सालों से नदियों को बचाने का जो कार्य कर रहे है, उसे उन्होंने साझा किया। 

मोहन कांडपाल ने बताया कि वह पिछले 34 सालों से पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं,  जिसके अंतर्गत उन्होंने गांव की महिलाओं और बच्चों  के साथ  मिलकर 1 लाख से अधिक वृक्ष रोपित किये हैं, जो आज जंगल बन गए हैं। इसके साथ ही उनके द्वारा जल सरंक्षण हेतु लगभग 5  हज़ार से अधिक खाव एवं खंतिया (चाल-खाल) खुदवाई गई हैं। और  पिछले 10 वर्ष से  उनके द्वारा 'पानी बोओ पानी उगाओ' अभियान  चलाया जा रहा  है उनका मानना है कि गांव से पलायन बढ़ जाने के कारण खेत बंजर हो गए हैं। अब उनमें वर्षा का पानी नहीं रुकता है। जिसके कारण  नौले- धारे सूखते जा रहे हैं। उसका प्रभाव गैर बर्फानी नदियों पर भी पर पड़ रहा है, जिससे उनका जलस्तर घट रहा है। ऐसी ही उनके विकास खंड की नदी है रिस्कन, 40 किलोमीटर लम्बी नदी पर लगभग 46 गांव का अस्तित्व निर्भर करता है। 

मई-जून में यह नदी कुछ वर्ष पूर्व सूख जाती थी। उनके द्वारा ‘पानी बोओ, पानी उगाओ’ अभियान के माध्यम से जागरूकता लाने के साथ-साथ प्रयोगात्मक कार्य ग्रामीणों के साथ मिलकर रिस्कन नदी बचाने का के लिए  नि:शुल्क प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अंतर्गत पूजाकार्य, नौकरी लगने, सेवानिवृत्त होने, शादी व संतान होने पर लोगों से अपील की जाती है कि वह जल संरक्षण हेतु खाव खुदवाएं व पेड़ लगाएं। ताकि  वह रिस्कन नदी को बचा सके। मोहनचंद्र कांडपाल ने बताया कि उनके इस अभियान के बाद ग्रामीणों ने 10 लाख से अधिक की राशि के खाव और खंतिया बनाई है। और अब मोहनचंद्र कांडपाल  चाहते हैं कि उनके पिछले 10 वर्ष से की जा रहे प्रयास को केंद्र और राज्य सरकार उदाहरण के तौर पर लें।      

संपर्क - मोहनचंद्र कांडपाल, 9411346715    


 

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Post By: Kesar Singh
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