पारंपरिक धोबियों के बजाय माइक्रोलॉन्ड्री का जोर पकड़ रहा चलन

पारंपरिक लॉन्ड्री
पारंपरिक लॉन्ड्री

विराग (नाम बदला हुआ) एक प्रसिद्ध सॉफ्टवेयर कंपनी में बेंगलुरु में काम करते थे, लेकिन इस साल उन्हें नोएडा जाना पड़ा। उनका दफ्तर बहुत दूर था, इसलिए उन्हें कपड़ों को धुलाने और धोने का समय नहीं मिलता था। उन्हें धोबी के द्वारा धुले कपड़ों की सफाई भी अच्छी नहीं लगती थी। लेकिन लॉन्ड्री स्टार्टअप कंपनियों के नजदीक के स्टोर ने उनकी यह समस्या हल कर दी। विराग का कहना है कि ये स्टार्टअप धोबियों से ज्यादा पैसे लेते हैं, लेकिन कपड़ों को बेहतर तरीके से साफ करते हैं।

अकेले या नौकरी करने वाले लोगों और बुजुर्गों के लिए बड़े शहरों में कपड़ों को धुलाना और इस्तरी करना एक मुश्किल काम हो सकता है। वे इसे खरीदारी की तरह आसानी से ऐप्लिकेशन के माध्यम से कर सकते हैं। राशन और सब्जी की तरह ड्राईक्लीनिंग भी फोन पर हो सकती है। इसलिए टंबलड्राई युक्लीन, धोबीलाइट जैसे स्टार्टअप के स्टोर बढ़ रहे हैं। रेडसियर की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का लॉन्ड्री बाजार 2025 तक 15 अरब डॉलर का हो जाएगा। लेकिन इस उद्योग की कंपनियां इसे और भी बड़ा बनाने की कोशिश कर रही हैं।

तेज रफ्तार से विस्तार

ये कंपनियां फ्रेंचाइज मॉडल पर काम करती हैं और फ्रेंचाइजी के स्टोर में ही कपड़ों को धोने और इस्तरी करने की सुविधा होती है। इसके लिए विशेष प्रकार की मशीनें होती हैं, जिनमें कपड़े नीचे वाले हिस्से में धुलते हैं और ऊपर वाले हिस्से में सूखते हैं। इसके लिए ज्यादा स्थान की आवश्यकता नहीं होती है। निगम कहते हैं कि टम्बलड्राई का सामान्य स्टोर 300 वर्गफुट का होता है। लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में जगह की कमी को देखते हुए उन्होंने इसे कम जगह में भी चलाया है। उनका काम पूरी तरह फ्रेंचाइज पर निर्भर है, जिसके लिए निवेशक को 25 लाख रुपये का एक बार का खर्चा करना पड़ता है। इसमें जीएसटी अलग से जुड़ता है। इस राशि में दुकान बनाने, मशीन लगाने और ब्रांडिंग करने का काम टम्बलड्राई अपने आप करती है और 6 लाख रुपये का फ्रेंचाइज फीस भी शामिल होता है। फिर हर महीने स्टोर से 7.5 फीसदी की रॉयल्टी वसूली जाती है।

यूक्लीन 200 से 250 वर्गफुट के स्टोर के लिए 20 लाख रुपये में फ्रेंचाइज देने का काम करती है, जिसमें 5 लाख रुपये का फ्रेंचाइज फीस होता है। अरुणाभ बताते हैं कि स्टोर खुलने के बाद पहले तीन महीने तक उनसे कुछ नहीं लिया जाता है और फिर हर महीने 7 फीसदी की रॉयल्टी देनी पड़ती है। निगम का कहना है कि स्टोर को बस खोलकर नहीं छोड़ते हैं, बल्कि उसे चलाने में भी पूरी मदद करते हैं, इसलिए पहले महीने से ही वे रॉयल्टी लेने का हकदार होते हैं। उनका दावा है कि जितनी रॉयल्टी उन्हें मिलती है, उससे 10 गुना ज्यादा खर्च भी उन्हें करना पड़ता है। निगम का यह भी दावा है कि उनके 12 फीसदी से ज्यादा पार्टनर दूसरे इलाकों में भी फ्रेंचाइज लेने का फैसला करते हैं।

दोनों कंपनियां फ्रेंचाइजी को अपने ट्रेन्ड स्टाफ भेजती हैं, जो स्टोर के सभी कामों को निभाते हैं। उनकी सैलरी फ्रेंचाइजी ही देते हैं। कंपनियां मशीन भी अपने ही जरिए लगवाती हैं। टम्बलड्राई कपड़ों को धोने के लिए कोरिया की कंपनी एलजी की इम्पोर्टेड मशीन का उपयोग करती है और फाइन कपड़ों के लिए स्वीडन की कंपनी इलेक्ट्रीलक्स या फ्रांस की कंपनी डोमस की मशीन का। यूक्लीन एलजी के साथ-साथ अमेरिका की स्पीडक्वीन और चीन की ओएसिस की मशीनें भी लेती हैं। ये सभी मशीनें पानी की बचत करती हैं। कंपनियों का कहना है कि घर की वॉशिंग मशीन 6 किलो कपड़े धोने में 90 लीटर पानी खर्च करती है, जबकि ये मशीनें 50 लीटर पानी में 10 किलो कपड़े धो लेती ह

फ्रेंचाइज पर दारोमदार

वे कंपनियां पूरी तरह फ्रैंचाइज पर चलती हैं और फ्रेंचाइजी स्टोर के भीतर ही धुलाई, और इस्तरी आदि होती है। इसके लिए खास मशीनें होती हैं, जिनके निचले हिस्से में कपड़े घुलते हैं और ऊपरी हिस्से में सुखाए जाते हैं। जाहिर है कि इसके लिए बहुत जगह की जरूरत नहीं होती। निगम बताते हैं कि टम्बलड्राई के आम स्टोर के लिए 300 वर्गफुट की जरूरत होती है। लेकिन पहाड़ी इलाकों में जगह की किल्लत देखते हुए इससे कम स्थान में भी काम चला लिया जाता है। उनका काम पूरी तरह फ्रेंचाइज पर चलता है, जिसके लिए निवेशक को 25 लाख रुपये का एकबारगी खर्च करना पड़ता है। इस पर जीएसटी अलग से लगता है। इस रकम में दुकान जमाने, मशीन लगाने और ब्रांडिंग का काम टंबलड्राई खुद करती है और 6 लाख रुपये फ्रैंचाइज शुल्क भी शामिल होता है। उसके बाद हर महीने स्टोर से 7.5 फीसदी रॉयल्टी ली जाती है।

यूक्लीन 200 से 250 वर्गफुट के स्टोर के लिए 20 लाख रुपये में फ्रेंचाइज देती है, जिसमें 5 लाख रुपये फ्रेंचाइज शुल्क होता है। अरुणाभ कहते हैं कि स्टोर खुलने के बाद तीन महीने तक कुछ नहीं लिया जाता और उसके बाद हर महीने 7 फीसदी रॉयल्टी ली जाती है। निगम की दलील है कि स्टोर खोलकर छोड़ने के बजाय उसे जमाने के लिए, टम्बलड्राई  पूरा सहारा देती है, इसीलिए पहले महीने से ही यह रॉयल्टी लेते हैं। उनका कहना है कि जितनी रॉयल्टी ली जाती है, उसका 10 गुना खर्च भी किया जाता है। निगम का दावा है कि मुनाफा देखकर उनके 12 फीसदी से अधिक पार्टनर दूसरे इलाके की फ्रेंचाइज भी लेते हैं।

दोनों कंपनियां फ्रेंचाइजी के पास अपने प्रशिक्षित कर्मचारी भेजती है,जो स्टोर का पूरा काम संभालते हैं। उनका वेतन फ्रेंचाइजी ही देते हैं। कंपनियां मशीन भी खुद ही लगवाती हैं।टम्बलड्राई  कपड़ों की धुलाई के लिए कोरियाई कंपनी एलजी की आयातित मशीन लगाती है और नाजुक कपड़ों के लिए स्वीडन की कंपनी इलेक्ट्रीलक्स या फ्रांस की कंपनी डोमस की मशीन इस्तेमाल की जाती है। यूक्लीन एलजी के अलावा अमेरिका की स्पीडक्वीन और चीन की ओएसिस से मशीन लेती हैं। ये सभी मशीनें पानी के मामले में काफी किफायती होती हैं। कंपनियों का दावा है कि घरेलू वॉशिंग मशीन अगर 6 किलो कपड़े धोने में 90 लीटर पानी लगाती है तो वे मशीने 50 लीटर पानी में ही 10 किलो कपड़े धो डालती है।

वोकल फॉर लोकल मगर दोनों कंपनियों किसी बाहरी निवेशक के बजाय स्थानीय लोगों की हो फ्रेंचाइज देती हैं। निगम कहते हैं, 'कपड़े पुलवाने के लिए कोई आलीशान मॉल में नहीं जाता। हमारे स्टीर गल्ली मुहल्लों या ऐसे शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में खुलते हैं, जहां लोग रोजमर्रा का सामान लेने आते रहते हैं। इसलिए स्थानीय लोगों को ही तरजीह दी जाती है। अरुणाभ का कहना है कि कपड़े पुलवाने कोई 10 किलोमीटर दूर नहीं जाता बल्कि दो-तीन किलोमीटर के दायरे में ही पहुंचता है। किसी भी व्यक्ति   को उसके घर के दो-तीन किलोमीटर आसपास के लोग जानते ही हैं। इसीलिए का समय देकर बढ़िया कारोबार चला सकता है। शायद यही वजह है कि इन कंपनियों का कारोबार छोटे शहरों में भी फैल रहा है। टम्बलड्राई के स्टोर बहराइच, गोंडा, बस्ती, मिर्जापुर जैसे छोटे शहरों में भी है। यूक्लीन भी मझोले और छोटे शहरों में पांव पसार रही है। धोबीलाइट दिल्ली- एनसीआर के अलावा हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा आदि में काम कर रही है। मिस्टर ब्लू के लॉन्ड्रोमेट पूर्वोत्तर भारत के अपेक्षाकृत छोटे शहरों में भी हैं। इसी तरह पिक माई लॉन्ड्री के आउटलेट दिल्ली, गुड़गांव, नोएडा, जयपुर, लखनऊ, राजकोट, हैदराबाद, इंदौर, सिलिगुडी आदि में चल रहे हैं। निगम का कहना है कि छोटे शहरों में किराये और वेतन पर कम खर्च होता है, इसलिए वहां धुलाई और ड्राईक्लीनिंग दिल्ली-एनसीआर के मुकाबले सस्ती रखी जाती है। इसलिए ग्राहकों को कमी नहीं होती। यूक्लीन भी इन शहरों में सस्तो सेवा देती है।

किफायती मगर बढ़िया

भारत में माइक्रोलॉन्ड्री कंपनियों की सबसे लोकप्रिय सेवा वॉश ऐड फोल्ड है, जो 59 रुपये से 79 रुपये प्रति किलो तक होती है। अरुणाभ कहते हैं, 'हमारी 'लॉन्ड्री बाई द किलो' सेवा में कर्मचारी पर जाकर तराजू पर कपड़े तोलता है और वजन को पर्ची दे आता है। इसमें वॉश ऐड आयरन तथा वॉश ऐंड फोल्ड श्रेणियां होती हैं। हॉस्टल में रहने वाले छात्रों और टी-शर्ट, जींस पहनने वाले युवाओं में किफायती वॉश ऐड फोल्ड लोकप्रिय है, जिसमें कपड़े धोने के बाद इस्तरी करने के बजाय मोड़कर दे दिए जाते हैं।

निगम बताते हैं कि वजन के हिसाब से धुलाई, वॉश ऐड फोल्ड और ड्राईक्लीनिंग के अलावा सॉफ्ट टॉय और जूतों की धुलाई टम्ब्लड्राई की सबसे ज्यादा चलने वाली सेवा है। वह कहते हैं, 'हमारे 800 स्टोरों में हर महीने कम से कम 10-12 हजार जूते साफ किए जाते है। तकरीबन सभी संगठित लॉन्ड्री कंपनियां कपड़ों की धुलाई 24 घंटे और  ड्राईक्लीनिंग 72 घंट में कर देती है। कुछ कंपनियां मासिक, तिमाही और छमाही पैकेज भी देती है, जिनमें कुछ और भी छूट मिल जाती है। ग्राहकों को कपड़े जल्द चाहिए तो अधिक पैसे लेकर उसका भी इंतजाम कर दिया जाता है। मसलन युक्लीन की एक्सप्रेस सर्विस में 4 घंटे में की कपड़े मिल जाते हैं मगर शुल्क दोगुना लिया जाता है।

संगठित लॉन्ड्री का कारोबार भी लगातार बढ़ रहा है। यूक्लीन का पिछले वित्त वर्ष में कारोबार 104 करोड़ रुपये था और चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही का प्रदर्शन देखकर अरुणाभ को कारोबार में 50 फीसदी इजाफे की उम्मीद है। टम्बलड्राई का पिछले वित्त वर्ष का कारोबार 110-115 करोड़ रुपये था। निगम का कहना है कि इस बार यह 200 करोड़ रुपये के पार चला जाएगा।

स्रोत-बिज़नेस स्टैण्डर्ड, दिसंबर 25, 2023

Path Alias

/articles/paramparik-dhobiyon-ke-bajay-microlaundry-ka-jor-pakad-raha-chalan-contrary-traditional

×