पराली जलाने से नुकसान एवं फसल अवशेष प्रबंधन

पराली जलाने से नुकसान एवं फसल अवशेष प्रबंधन
पराली जलाने से नुकसान एवं फसल अवशेष प्रबंधन

फसल अवशेष पक्की फसल के कटने के बाद बाकी बचा हिस्सा होता है. किसान फसल पकने के बाद उसका ऊपरी हिस्सा काट लेते हैं. बाकी हिस्सा खेत में छोड़ देते हैं, जो किसानों के लिए बेकार होता है वर्तमान में फसल अवशेष की समस्या इसलिए आ रही है, क्योंकि ज्यादातर किसान मशीनों से फसल की कटाई करते हैं, जो केवल फसल के ऊपरी हिस्से को काटता है.

पराली जलाने के नुकसान

पराली जलाने से पर्यावरण एवं मृदा स्वास्थ्य के साथ-साथ हमारे स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. इससे उत्पन्न वायु प्रदूषण से आँखों में जलन से लेकर श्वसन एवं हृदय सम्बन्धी रोगों के प्रभाव में बढ़ोतरी देखी गई है. दिल्ली में उत्पन्न धुंध की समस्या से वहाँ के लोगों की औसत आयु में 6 वर्ष की कमी दर्ज की गई है. इससे उत्पन्न वायु प्रदूषण का प्रभाव हमारे अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है. वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली में पर्यटकों से आमद में 25-30% की कमी आई है.

एक टन फसल अवशेष जलाने से उत्सर्जित होता है-

  • Particulate Matter-3 किग्रा कार्बन 
  • डाइऑक्साइड-1,460 किग्रा 
  • कार्बन मोनोऑक्साइड-60 किग्रा
  • सल्फर डाइऑक्साइड-2 किग्रा
  • नाइट्रस ऑक्साइड-3-8 किग्रा
  • मीथेन-2-7 किग्रा
  • राख-199 किग्रा
  1. फसल अवशेष जलाने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जो हमारे पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. दिल्ली एनसीआर में अक्टूबर-नवम्बर माह में धुंध की समस्या पराली जलाने से सम्बन्धित है.
  2. फसल अवशेष जलाने से एरोसॉल के कण निकलते हैं, जो हवा को प्रदूषित करते हैं। 
  3. मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों को नुकसान पहुँचाता है. मृदा की उर्वरता समाप्त हो जाती है। 
  4.  फसल अवशेषों को जलाने से उनके जड़, तना पत्तियों में संचित लाभदायक पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। 
  5.  लाभदायक मित्र कीट जल कर मर जाते हैं जिसके कारण वातावरण में विपरीत प्रभाव पड़ता है। 
  6.  पशुओं के चारे की व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 
  7.  फसल अवशेषों को जलाने से मृदा ताप में बढ़ोत्तरी होती है, जिसके कारण वातावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. इससे मृदा के तापमान में 42° तक बढ़ोतरी होती है, जो मृदा में उपस्थित सूक्ष्म जीवों को 2-5 सेमी की गहराई तक विस्थापित कर देता है या मार देता है। 
  8.  फसल अवशेष जलाने पर पड़ोस के खेतों में आग लगने की सम्भावना एवं खड़ी फसल अथवा आबादी में अग्नि कांड होने की संभावना बनी रहती है। 

फसल अवशेषों के उपयोग

फसल अवशेष को जलाने के बजाय किसान नए विकल्प अपना सकते है. इसके अनेक उपयोग है, फसल अवशेष किसानों के लिए कई प्रकार से लाभकारी है-

एक टन फसल अवशेष खेत में मिलाने से प्राप्त पोषक तत्व
  • नाइट्रोजन-10-15 किग्रा
  • पोटाश-30-40 किग्रा
  • सल्फर-5-7 किग्रा
  • ऑर्गेनिक कार्बन-600-800 किग्रा
  1.  चॉपर द्वारा फसल अवशेष को छोटे- छोटे टुकड़ों में काटने के बाद बायो वेस्ट डी कंपोजर का छिड़काव करके तथा डिस्क प्लाऊ से गहरी जुताई करके बेहतरीन खाद में बदल सकते हैं,
  2.  मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ जाती है. पराली में पाए जाने वाले क नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, सल्फर मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ाते हैं, जिससे खेत में उर्वरकों की आवश्यकता कम पड़ती है. अतः उत्पादन लागत में कमी आती है। 
  3.  फसल अवशेष को खेत में ही छोड़ देने के से मिट्टी में नमी बनी रहती है, जिससे भूमिगत जल स्तर में सुधार होता है। 
  4.  इसका उपयोग पशुओं के चारे के - रूप में, बिछाने के रूप में एवं छप्पर बनाने में किया जाता है। 
  5.  इसका उपयोग कम्पोस्ट खाद बनाने में किया जाता है। 
  6. पुआल का उपयोग सजावटी सामान न बनाने में किया जाता है, जो एक अतिरिक्त आय के स्रोत के रूप में सहायक होता है। 
  7.  इससे तैयार भूसे का उपयोग मशरूम उत्पादन में किया जाता है। 
  8. पदार्थों की पैकेजिंग में फसल अवशेष का उपयोग किया जाता है। 

इसका उपयोग कागज उद्योग, बायोमास आधारित पावर प्लांट जैव एथेनॉल उत्पादन इत्यादि में किया जाता है। 

पराली प्रबंधन का रोहतास मॉडल

पराली प्रबंधन का यह मॉडल कई जगह अपनाया जा रहा है. इसके तहत बेलर मशीन का प्रयोग करके पराली का प्रबंधन किया जा रहा है.
बेलर, खेतों में पड़े धान के बचे अवशेष यानी पराली का गट्ठर तैयार करती है. इसका वजन 25 किलो से लेकर 40 किलो तक होता है. एक बीघा धान के खेत से लगभग 10 से 12 क्विंटल पराली निकलती है.

 एकड़ क्षेत्र में लगभग ₹ 1,800 राउंड बेलर मशीन चलाने का खर्च आता है एवं 13 से 16 क्विंटल पुआल इकट्ठा होता है, इसे ₹ 2 प्रति किलो की दर से बेचने पर ₹ 2,600 से ₹ 3,200 तक लाभ कमाया जा सकता है. इकट्ठा किए गए पराली के बंडलों को पशु चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। बरसात के महीने तक अगर इसे सुरक्षित रखा जाए, तो ₹ 5,000 से ₹ 6,000 प्रति क्विंटल पशु चारा बेचा जा सकता है. इसे किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी और पराली जलाए जाने वाले प्रदूषण से भी निजात मिलेगी। 

आधुनिक मशीनों से फसल अवशेष प्रबंधन

  •  आधुनिक मशीनें फसल की कटाई एवं अवशेषों को इकट्ठा करने का काम आसान कर देती है।  
  •  हैप्पी सीडर मशीन खेत में फसलों के अवशेष होने के बावजूद इससे फसलों की बुवाई सीधी लाइन में की जा सकती है।  
  •  सुपर एक्स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम कंबाइन हार्वेस्टर के साथ जोड़कर पराली को बारीक काटकर मिट्टी पर फैलाया जाता है।  
  •  बेलर-यह फसल अवशेषों का गट्ठर बनाने का कार्य करती है।  
  • चॉपर, मल्चर फसल अवशेषों को छोटे- छोटे टुकड़ों में काटने का काम करती है।  

स्रोत-सामान्य ज्ञान दर्पण-जनवरी 2024 

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Post By: Shivendra
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