अंग्रेजों के शासनकाल में साल 1880 में इसी पहाड़ी में भारी भूस्खलन हुआ था, जिसमें 151 लोग मारे गए थे। इसमें 43 अंग्रेज अधिकारी भी शामिल थे। हादसे के बाद अंग्रेजों ने इस पहाड़ी पर निर्माण पर पाबंदी लगा दी थी। बावजूद इसके अब तक यहां निर्माण हो रहे हैं। लगभग 10 हजार लोग यहां मकान बनाकर रह रहे हैं। 1880 के इस हादसे के बाद नैनीताल में 79 किलोमीटर का एक बड़ा ड्रेनेज सिस्टम बनाया गया था जो विश्व धरोहर है। इसी ड्रेनेज की वजह से नैनीताल स्थिर रहा है।
समिति ने सिफारिश की है कि प्रवासी पक्षियों और जैव विविधता के अन्य रूपों के महत्त्व को देखते हुए प्राकृतिक नमक क्षेत्रों के नियमों के तहत सुरक्षा दी जानी चाहिए।
इसके अलावा मामले में अधिकारियों की जवाबदेही तय हो, जुर्माना लगे।
कुदरेमुख चिकमंगलूर, उडुपी, दक्षिण कन्नड और शिमोगा जिलों में फैला है। पश्चिमी घाट के 'घोड़ेनुमा' अक्स से इसे यह नाम मिला है। यह क्षेत्र लौह अयस्क से समृद्ध है। दरअसल पश्चिमी घाट दुनिया के जैव विविधता से समृद्ध 18 इलाकों में से एक है।
भूजल का आपके लिए महत्व तभी होता है जब आप पानी का अभाव भोग रहे होते हैं। इक्कीसवीं सदी का भारत जिन सबसे जटिल व सामाजिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण मुद्दों का सामना कर रहा है उनमें से बहुत से मुद्दे भूजल प्रबंधन से सम्बंधित हैं। इनका निराकरण किस तरह किया जाता है इसका सीधा प्रभाव पर्यावरण और अधिकांश ग्रामीण व शहरी लोगों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी पर पड़ेगा।
शहरों में भूजल स्तर लगातार नीचे को खिसकता जा रहा है। पारंपरिक जल संरक्षण के व्यावहारिक उपायों को हमने आधुनिकता के दबाव में त्याग दिया। लेकिन आज जल संरक्षण को एक राष्ट्रीय दायित्व के रूप में अपनाने का समय आ गया है। लेखक भारतीय संदर्भ में जल संसाधन के अनुभवी विशेषज्ञ है और प्रस्तुत लेख में उन्होंने भारत में जल के भौगोलिक वितरण, वर्षा के पैटर्न, पेयजल, तालाब संस्कृति और जल संरक्षण हेतु जल जागरूकता जैसे मुद्दों पर चर्चा की है।
जल बजट क्षेत्र के पानी के इनपुट और आउटपुट के बीच संबंध को दर्शाता है" जल बजट आमतौर पर इस बारे में ज्ञान प्रदान करता है कि कितना पानी उपलब्ध है, यह प्रवाह की गतिशीलता की विस्तृत समझ के साथ कहां उपलब्ध है। जल बजट अध्ययन जल विज्ञान चक्र के विभिन्न जलाशयों के भीतर पानी की और पुनर्भरण से निर्वहन तक प्रवाह पथ पर विचार करता है।
पिछले कुछ सालों में यहां पानी की कमी बहुत गंभीर हो गई है। गांव का मुख्य कुआं गंगाजलिया भी 1993 की गर्मियों में सूख गया था। बाहर से टैंकर बुलवाकर गंगाजलिया में पानी डालना पड़ा था। इस वर्ष से पहले जब गर्मियों में अरलावदा के बहुत सारे कुएं सूख जाते थे तब भी गंगाजलिया में पानी रहता था। इसलिये लोग इस पर बहुत भरोसा करते थे। कुछ साल पहले गंगाजलिया से पास के एक शहर को भी पानी सप्लाई किया गया था।
This book is a valuable resource for everyone concerned with the changing water situation in the country, and the potential of new technologies for sustainable use of water.
अभिसरण वह प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप, वित्तीय और मानव संसाधनों के लक्षित और कुशल उपयोग के माध्यम से सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति होती है। समन्वित योजना और सेवा वितरण कई स्रोतों से समय पर इनपुट सुनिश्चित करता है। साथ ही साथ दोहराव और अतिरेक से बचा जाता है। योजना
पर्यावरण संरक्षण का तात्पर्य है कि हम अपने चारों ओर के वातावरण को संरक्षित करें तथा उसे जीवन के अनुकूल बनाए रखें। पर्यावरण और प्राणी एक-दूसरे पर आश्रित हैं। यही कारण है कि भारतीय चिन्तन में पर्यावरण संरक्षण की अवधारणा उतनी ही प्राचीन है जितना यहाँ मानव जाति का ज्ञात इतिहास है।
जल संसाधन विभाग द्वारा जल स्रोतों के निर्माण, इसके उपचार और वितरण के उद्देश्य से विभिन्न योजनाएं शुरू की गई हैं। मुख्य रूप से सतह और भूजल दोनों स्रोतों का उपयोग करते हुए।
सिंचाई का प्रभाव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिलक्षित होता है। पानी के अभाव के कारण गरीबी बढ़ती है जिससे अशिक्षा, अज्ञानता, कुपोषण, बेरोजगारी, अस्वच्छता व बीमारियाँ आदि समस्यायें मनुष्य को चारों तरफ से घेर लेती हैं। असिंचित क्षेत्रों की अपेक्षा सिंचित क्षेत्रो में केवल फसलों की उत्पादन क्षमता ही अधिक नहीं होती है बल्कि मानव की क्षमता अधिक होती है।
कम ढालू भूमि में ये बंधियां बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई है। यह पानी को रोक कर इकट्ठा करती है और भूमि कोकटने व बहने से बचाती है। समतल खेत की मेढ़ मजबूत बनाकर रखनी चाहिए, जिससे खेत का पानी बाहर न निकल सकें। ये बांध खेत के चारों ओर सीमा पर बनाये जाते हैं। समतल खेतों में इनका क्रॉस-सेक्शन बहुत कम होता है, किन्तु असमतल खेतों में इनका आकार पानी रोकने की दृष्टि से बड़ा बनाया जाता है। इन बांधों से घेर बाड़ का भी कार्य लिया जाता है
सहभागी भूजल प्रबंधन का अर्थ है भूजल प्रणाली के प्रत्येक स्तर पर भूजल प्रबंधन में किसानों एवं विभाग की वित्तीय, प्रशासनिक तथा तकनीकी भागीदारी । प्रत्येक स्तर से अर्थ है कि डिमाण्ड को कम करना जैसे कृषि में स्प्रिंकलर, ड्रिप, अन्डर ग्राउन्ड पाइप, पाइप से सिंचाई तथा घरेलू कार्यों में पानी को बचाना जैसे गाड़ी को साफ करने के लिए पाइप के स्थान पर कपड़े का उपयोग, औद्योगिकों में पानी का कम उपयोग आदि ।
हाइड्रोक्लोरोफ्लोरो कार्बन के मामले में औद्योगिक देशों के लिए समयावधि 2030 है और विकासशील देशों के लिए 2040। तो उम्मीद की जाए कि 2040 तक ओज़ोन घटाऊ रसायन नहीं रहेंगे। इससे ओज़ोन का सुराख धीरे-धीरे कम होता जाएगा और इस सदी के अंत तक पूरी तरह से बंद हो जाएगा। बहरहाल अभी ओज़ोन घटने की प्रक्रिया के बारे में हमारा ज्ञान अधूरा है। आज कई ऐसे रसायन बनाए जा रहे हैं जो हो सकता है आने वाले समय में ओज़ोन ह्रास का कारण बन जाएं।
अटल भूजल योजना को स्थायी भूजल प्रबंधन पर लक्षित किया गया है, मुख्य रूप से स्थानीय समुदायों और हितधारकों की सक्रिय भागीदारी के साथ विभिन्न चालू योजनाओं के बीच अभिसरण से यह सुनिश्चित होगा कि योजना क्षेत्र में, केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा आवंटित धन विवेकपूर्ण तरीके से भूमिगत जल संसाधनों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए खर्च किए जायेगें। अभिसरण के परिणामस्वरूप उपयुक्त निवेश के लिए राज्य सरकारों को योजना को पायलट भूजल प्रबंधन के लिए संस्थागत ढांचे को मजबूत करने के प्रमुख उद्देश्य के साथ पायलट के रूप में डिजाइन किया गया है। इसका उद्देश्य जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से सामुदायिक स्तर पर व्यवहार परिवर्तन लाना और भाग लेने वाले राज्यों में स्थायी भूजल प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए क्षमता निर्माण करना है। इस योजना में प्रोत्साहन मिलेगा, मजबूत आधार, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सामुदायिक भागीदारी सम्मिलित है।