जलवायु परिवर्तन के उपजे खतरे से कॉप 28 से अपेक्षाएं

जलवायु परिवर्तन के उपजे खतरे से कॉप 28 से अपेक्षाएं
जलवायु परिवर्तन के उपजे खतरे से कॉप 28 से अपेक्षाएं

आर्थिक विकास की अन्धी दौड़ में विकास के लिए ईंधन का काम करने वाले ऊर्जा के पारम्परिक स्रोतों-कोयला, पेट्रोलियम पदार्थों से उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते सान्द्रण ने मानव सहित समस्त जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों का जीवन संकट में डाल दिया है।  वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों (कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, ओजोन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन तथा वाष्प कण) की बढ़ती सान्द्रता से पृथ्वी के सामान्य तापक्रम लगातार वृद्धि हो रही है। इससे पर्यावरणविद. वैज्ञानिक, चिकित्सक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, भू वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ आदि सभी चिंतित हैं और राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय मंचों एवं मीडिया प्लेटफार्मों पर सम्पूर्ण पृथ्वी और उसके संघटकों के समक्ष आसन्न संकट पर चिन्ता जताते रहते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन की समस्या दिन-प्रतिदिन गम्भीर होती जा रही है।  

यूरोपीयन सेन्टर फॉर मीडियम रेंज वेदर फोरकास्ट्स के एक हालिया विश्लेषण के अनुसार 17 नवम्बर, 2023 को पृथ्वी का तापमान औद्योगिक क्रान्ति काल से पहले (सन् 1850-1900) के दौरान रहे औसत तापमान की तुलना में 2:06 C अधिक दर्ज किया गया। 17 नवम्बर, 2023 को वैश्विक तापमान 1991-2020 के दौरान रहे औसत तापमान की तुलना में 1-17C अधिक था  स्टेट ऑफ क्लाइमेट रिपोर्ट 2023 के अनुसार पृथ्वी के औसत तापमान में हो रही लगातार वृद्धि इस बात का संकेत है कि पृथ्वी और प्रकृति की प्रणालियाँ खतरनाक रूप से अस्थिरता की ओर जा रही है।  क्लाइमेट इमरजेंसी इंस्टीट्यूट के संस्थापक पीटर कार्टर के अनुसार, गोलार्द्ध में जाड़े के मौसम में बढ़ता तापमान गर्मियों की तुलना में अधिक है।  विगत 12 महीनों में पृथ्वी पिछले एक लाख पच्चीस हजार वर्षों में सर्वाधिक गर्म रहे हैं. इस दौरान वैश्विक औसत तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1-32 C अधिक दर्ज किया गया है. वैज्ञानिकों का आकलन है 2023 में सर्वाधिक गर्म महीना यदि अक्टूबर रहा है। तो वर्ष 2023 सबसे अधिक गर्म वर्ष होगा।  

पृथ्वी के औसत तापमान में हो रही वृद्धि के कारणों की खोज के लिए किसी वैज्ञानिक शोध की आवश्यकता नहीं है. ये तो हम सबके इर्द-गिर्द मौजूद है संक्षेप में पृथ्वी के तापमान में वृद्धि के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी माने जाते हैं।  

उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आई औद्योगिक क्रान्ति के दौरान Industry 2-0, Industry 3.0 तथा Industry 4.0 में मानव गतिविधियों-उत्पादन से जुडी तथा सुख- सुविधाओं के विस्तार से जुड़ी के परिणामस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य ग्रीन हाउस गैसों की बहुत बड़ी मात्रा वायुमण्डल में छोड़ी गई है, जिसने पृथ्वी की जलवायु को परिवर्तित किया है. सूर्य की ऊर्जा एवं ज्वालामुखियों के फटने तथा लम्बे समय तक धधकते रहने जैसे प्राकृतिक कारणों से भी पृथ्वी की जलवायु प्रभावित हुई है

  •  ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन तथा
  •  सूर्य की ऊर्जा का अवशोषण एवं परावर्तकता के माध्यम से मानव गतिविधियों ने जलवायु परिवर्तन में बड़ी सीमा तक योगदान दिया है।  
जलवायु परिवर्तन के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी कतिपय कारण निम्नलिखित प्रकार के हैं-
ग्रीनहाउस गैसों -

कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड एवं हाइड्रोफ्लोरोकार्बन, (HFCs) सल्फर हेक्साफ्लोराइड, (SF) नाइट्रोजन ट्राई फ्लोराइड, (NF) परफ्लोरोकार्बन (PFCs) (फ्लोरीनेटेड गैसें) आदि का उत्सर्जन। 

सूर्य की ऊर्जा की परावर्तकता एवं अवशोषण

कृषि, सड़क निर्माण तथा वनों की कटाई पृथ्वी के सतह की परावर्तकता में परिवर्तन लाती है यह प्रभाव उष्म द्वीपों (Heat Islands)- शहरी क्षेत्रों में देखने को मिलता है, जो आस-पास के कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों की तुलना में अधिक गर्म हैं।  प्राकृतिक सतहों की तुलना में पक्की सड़कें, भवन, पटरियों, छतें, सूर्य के प्रकाश और ऊर्जा को कम परावर्तित करती है घने वनों के अन्तर्गत लम्बे पेड़ लगाकर  सूर्य की ऊर्जा की परावर्तकता को बढ़ाया जा सकता है।  

ज्वालामुखियों का फटना तथा लम्बे समय तक धधकना 

ज्वालामुखियों का फटना तथा लम्बे समय तक धधकते रहने से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें तथा कार्बन कण वायुमण्डल में फैलते रहते हैं।  

बढ़ता उत्सर्जन
  1.  कोयला, पेट्रोल, डीजल, केरोसिन तेल गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों को जलाने से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन:
  2.  बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई:
  3. नाइट्रोजन युक्त रासायनिक उर्वरकों का खेतीबाड़ी में बढ़ता उपयोग,
  4. तेजी से बढ़ता पशुपालन.
  5.  एरोसोल स्प्रे, एयर- कण्डीशनरों, रेफ्रिजरेटरों, इन्स्यूलेशन, विद्युत पारेषण प्रणाली के अन्तर्गत स्विचगेयरों के प्रयोग से फ्लोरीनेटेड गैसों का उत्सर्जन.

पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन के संकट से बचाने की अन्तर्राष्ट्रीय मुहिम

कारण चाहे मानव निर्मित हों या प्राकृतिक पृथ्वी के वायुमण्डल के तापमान में हो रही वृद्धि के परिणामस्वरूप जलवायु में हो रहे वैश्विक परिवर्तनों से मानव, जीव- जन्तुओं तथा वनस्पतियों के समक्ष संकट उत्पन्न कर दिया है. औद्योगिक कृषि एवं सेवा क्षेत्र का विकास जितना अधिक हो रहा है. पृथ्वी का तापमान उतनी ही गति से बढ़ता जा रहा है, जिससे सारा विश्व लगातार बढ़ती गर्मी, लू असामयिक वर्षा, बाढ़ों, बर्फबारी या हिमशीतों के पिघलने से किसी-न-किसी रूप में संकट में है। वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन पर चिन्ता पृथ्वी सम्मेलन (1992) में मुखर होकर सामने आई और उसी के निर्णयों को कार्यरूप देते हुए 21 मार्च, 1994 को जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCC) अस्तित्व में आया संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों की सदस्यता वाले इस निकाय की सम्पुष्टि 198 देशों द्वारा की जा चुकी है और इन्हें सामूहिक रूप से 'पार्टीज टु द कन्वेंशन' कहा जाता है.

कन्वेंशन का उद्देश्य ग्रीन हाउस सान्द्रता को "उस स्तर पर स्थिर करना है, जो जलवायु प्रणाली में खतरनाक मानव जनित (मानव प्रेरित) हस्तक्षेप को रोक सकें." इस तरह के स्तर को समय-सीमा के भीतर हासिल किया जाना चाहिए, ताकि पारिस्थितिक तन्त्र प्राकृतिक रूप से जलवायु परिवर्तन के अनुकूल हो सके, यह सुनिश्चित हो सके कि खाद्य उत्पादन को खतरा न हो और आर्थिक विकास को स्थायी तरीके से आगे बढ़ने में सक्षम बनाया जा सके।   " विचार यह है कि वे अधिकांशतया अतीत और वर्तमान ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का स्रोत है, इसलिए औद्योगिक देशों जो विश्व में सर्वाधिक प्रदूषण फैलाने वाले देश हैं वहां घरेलू स्तर पर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करने के लिए सर्वाधिक प्रयास किए जाने की अपेक्षा की जाती है।औद्योगिक देश जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तनरोधी गतिविधियों का समर्थन करने के लिए कन्वेंशन के तहत सहमत हैं।  

विश्व के निर्धन देशों के लिए आर्थिक विकास विशेषरूप से महत्वपूर्ण है जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिलताओं के बिना भी ऐसी प्रगति हासिल कर पाना मुश्किल है। इसमें किसी को भी सन्देह नहीं है कि पिछड़े तथा विकासशील देश जैसे-जैसे आर्थिक प्रगति करेंगे, वैसे-वैसे इन देशों द्वारा उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसों का हिस्सा कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में बढ़ेगा दूसरी ओर विकसित देशों द्वारा उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसों के परिमाण में कोई सार्थक कमी नहीं आएगी, क्योंकि जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोतों पर उनकी निर्भरता अभी भी बनी हुई है।  

इन परिस्थितियों के बीच विकसित देश विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तनरोधी उत्पादन तकनीक अपनाने के लिए आर्थिक सहायता देने के लिए सिद्धान्ततः तो सहमत हैं, लेकिन उसे कार्यरूप देने में हीला-हवाली करते रहते हैं यूएनएफसीसीसी के तत्वावधान में कन्वेंशन से जुड़े देशों के वार्षिक सम्मेलन का सिलसिला सन् 1995 में बर्लिन (जर्मनी) से प्रारम्भ हुआ और प्रतिवर्ष CoP के आयोजन के रूप में आज भी जारी है. इस दिशा में अब तक की सबसे सार्थक पहल क्योटो प्रोटोकॉल (1997) के रूप में मानी जाती है, जिसमें कन्वेंशन से जुड़े सभी देश ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करने के लिए सहमत हुए थे, लेकिन विडम्बनात्मक वास्तविकता यह है कि क्योटो प्रोटोकॉल में आम सहमति से की गई अनेक प्रतिबद्धताएं अभी भी पाइपलाइन में है।  

विभिन्न वर्षों में COP28 सम्मेलन 

cop28

कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP)

ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को स्थिर करने तथा पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने के लिए 1994 में गठित UNFCCC के तहत 1995 से Cop सदस्य राष्ट्रों का सम्मेलन प्रतिवर्ष होता है। CoP संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कन्वेंशन (UNFCCC) का निर्णय लेने वाला सर्वोच्च निकाय है। कन्वेंशन के पक्षकार सभी राष्ट्रों को CoP में प्रतिनिधित्व प्राप्त है. जहाँ वे कन्वेंशन के निर्णयों के कार्यान्वयन और CoP द्वारा अपनाए गए किसी भी अन्य कानूनी उपकरणों की समीक्षा करते हैं और संस्थागत तथा प्रशासनिक व्यवस्थाओं सहित कन्वेंशन के निर्णयों के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देने के लिए यथोचित निर्णय लेते है। CoP की बैठक प्रतिवर्ष होती है, जब तक कि सदस्य राष्ट्र अन्यथा निर्णय न ले। CoP की बैठक उस देश या शहर में होती है, जो सम्मेलन की मेजबानी की पेशकश करता है। यदि अगली बैठक के लिए कोई पेशकश न हो, तो वार्षिक सम्मेलन UNFCCC के सचिवालय बॉन जर्मनी में ही होगी CoP की अध्यक्षता संयुक्त राष्ट्र के मान्यता प्राप्त पाँच क्षेत्रों में अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमरीका और कैरेबियन, मध्य और पूर्वी यूरोप तथा पश्चिमी यूरोप तथा अन्य के बीच घूमती है,

CoP 28 (2023)

जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव औद्योगिक विकास के सम्पूर्ण काल में दिखाई दिए हैं तथा उनका परिमाण भी बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2023 को अब तक के इतिहास में सर्वाधिक गर्म वर्ष माना जा था। इस बढ़ती गर्मी के दश सम्पूर्ण विश्व यहाँ तक कि विश्व के वे देश जिसमें सारे वर्ष मौसम ठण्डा रहता था के सभी देश झेल रहे हैं विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने भविष्यवाणी की है कि वर्ष 2023 सहित अगले चार वर्षों में कम-से-कम एक वर्ष में तापमान में 1.5 सेल्सियस से अधिक की वृद्धि हो जाएगी।   

वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है।  लेकिन उसे रोकने या नियन्त्रित करने के लिए वैश्विक अनुक्रिया में अपेक्षित तेजी दिखाई नहीं दे रही है।  देशों की जलवायु कार्ययोजनाओं पर नवीन संश्लेषण रिपोर्ट में हालिया आकलन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई पर देशों द्वारा अब तक व्यक्त की गई सहमति के अति आशावादी परिदृश्य में 2019 के स्तर से 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में मात्र 2 प्रतिशत की कमी आएगी अन्तर सरकारी जलवायु परिवर्तन पैनल का आकलन है कि यदि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 सेल्सियसतक सीमित रखता है, तो उत्सर्जन में 43 प्रतिशत की कमी लानी होगी।  वर्तमान प्रगति को देखते हुए यह दिवा स्वप्न ही है.

मिस्र के शर्म-अल- शेख में आयोजित CoP27 में मुख्य रूप से निम्नलिखित निर्णय लिए गए थे-

• जलवायु परिवर्तन से हुई हानि एवं विनाश हेतु कोष (Loss and Damage Fund) की स्थापना
• वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 C तक सीमित रखने के लिए वर्ष 2025 में अधिकतम स्तर को देखते हुए उत्सर्जन में 2030 तक 43 प्रतिशत की कमी लाना। 
• व्यवसायों एवं संस्थाओं की जबावदेही तय करना
• विकासशील देशों के लिए अधिक वित्तीय सहायता जुटाना
• क्रियान्वयन हेतु सतत् एवं ठोस प्रयास जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न संकट का सामना करने के लिए वैश्विक स्तर पर जो प्रयास किए जा रहे हैं उसके केन्द्र में वित्त सर्वाधिक प्रमुख है जलवायु परिवर्तनों को रोकना, यथोचित स्वच्छ प्रौद्योगिका एवं उपाय अपनाना, नुकसान एवं विनाश, जलवायु परिवर्तन आदि सभी के लिए बड़े पैमाने पर वित्त की आवश्यकता है।  

2009 में सदस्य राष्ट्रों के बीच सहमति बनी थी कि विकसित देश प्रतिवर्ष विकासशील देशों को 100 बिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता मुहैया कराएंगे, ताकि वे जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं का समाधान खोज सके और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम कर सकें जो पिछले वर्षों में किसी भी वर्ष इस लक्ष्य को पूरा नहीं किया।  जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन इस सहायता को ऊँट के मुँह में जीरा की भाँति मानता है। इसके हालिया विश्लेषण में विकासशील देशों को अपने मौजूदा राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के आधे से भी कम को पूरा करने के लिए 2030 तक कम से कम 6 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता है।  

आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) द्वारा प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक रूप से विकसित देश 2021 में विकासशील देशों की जलवायु शमन और अनुकूलन आवश्यकताओं के लिए संयुक्त रूप से प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर जुटाने के अपने वायदे से पीछे रह गए। विकसित देशों द्वारा 2021 में मात्र 89.6 बिलियन डॉलर ही जुटाए गए पर्याप्त जलवायु वित्त जुटाने में विफलता विकासशील देशों में जलवायु शमन (जैसे-नवीकरणीय ऊर्जा के साथ उत्सर्जन में कमी) को सम्बोधित करने की क्षमता को कम करती है और अनुकूलन की आवश्यकताएं (जैसे जलवायु लचीली कृषि को विकसित करना और प्रोत्साहित करना) और दुनिया के निर्धन देशों के बीच इस विश्वास को कम कर देती है कि विकसित देश जलवायु सकट से निपटने के बारे में गम्भीर हैं।  अब विश्व के 198 देशों-विकसित (अमीर), विकासशील, अल्पविकसित (निर्धन) के प्रतिनिधि 30 नवम्बर से 12 दिसम्बर, 2023 तक मध्य-पूर्व के अतिविकसित एवं सम्पन्न देश संयुक्त अरब अमीरात के दुबई में एकत्रित हुए हैं।  

अन्य सम्मेलनों की भाँति इस सम्मेलन में चर्चा निम्नलिखित बिन्दुओं पर केन्द्रित रहने वाली हैं-
  •  सम्पोषणीय भविष्य हेतु जेण्डर एवं पर्यावरणीय ऑकडे।  
  • विद्यार्थियों और युवाओं को ऊर्जा सम्बन्धित मुद्दों से जोड़ना.जलवायु वित्त रूपान्तरण।  
  • जलवायु नवोन्मेषी फोरम।  
  • जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में खाद्य प्रणालियों का रूपान्तरण।  
  •  जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में मानवीय आवश्यकताओं को कम करना एकीकृत लचीलेपन कार्यों को बढ़ाकर लोगों तथा पृथ्वी की रक्षा करना.
  •  अन्तिम व्यक्ति तक पहुँच सुनिश्चित करना।  
  • नेट जीरो ट्रांजीशन
  • खाद्य एवं कृषि प्रणालियों के लिए पुनर्योजी परिदृश्य
  •  ऊर्जा दक्षता।  

जैसाकि प्रत्येक CoP में होता आया है।  संयुक्त राज्य अमरीका और उनके सहयोगी विकसित देश CoP28 में भी ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन का ठीकरा भारत और चीन जैसे विकासशील देशों के सिर फोड़ते रहेंगे विकासशील एवं पिछड़े देश एक स्वर से वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने का दबाव विकसित देशों पर डालेंगे नुकसान एवं विनाश हेतु कोष अभी तक क्रियान्वित नहीं हो पाया है इसकी कार्यप्रणाली भी तय नहीं हो पायी है भारत जैसे विकासशील देशों को आपत्ति है कि उन्हें इस कोष की परिधि से बाहर रखा गया है।  

CoP28 से विश्व के विकासशील देशों और निर्धन देशों को अनेक अपेक्षाएं हैं. ये देश विकासोन्मुख हैं और अपनी ऊर्जा, जो आर्थिक विकास का एक प्रमुख संसाधन है , कि  आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को यकायक समाप्त नहीं कर सकते ऐसे देशों को नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विकास की सार्थक रणनीति बनानी होगी। 

स्रोत :- प्रतियोगिता दर्पण/जनवरी/2024/73

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Post By: Shivendra
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