तीखी हरी मीर्च ने लाया महिलाओ के जीवन में मिठास

तीखी हरी मीर्च ने लाया महिलाओ के जीवन में मिठास
तीखी हरी मीर्च ने लाया महिलाओ के जीवन में मिठास

क्या आपने कभी सुना है कि हरी मिर्च मीठी हो सकती है? सुखेडा गांव के छोटे सीमांत महिला किसानों के जीवन में मिठास ला रहे हैं। ये महिला किसान अपने खेतों में मक्का ,गेहूं और कपास जैसी पारंपरिक फसलें उगाते थे। इन फसलों से वे मुश्किल से रुपये कमा पाते थे।अपने कृषि जमीन में एकिकृत कृषि पद्धतियों में विविधता लाने और आजीविका में सुधार करने के लिए इस जनजातीय क्षेत्र में सब्जियों की फसल के रूप में मिर्च ,टमाटर , बैगन सब्जी  की शुरुआत की। इससे 35 साल की महिला किसान - टीना सहदेव अड़ और उनके परिवार की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। अपने सुखेडा गांव में 5 बीघा जमीन पर मिर्च उगाकर 50,000/- रु.से अपनी आजीविका बढ़ाई है । प्रारंभ में , वागधारा गठित महिला सक्षम समूह में जुड़ने के बाद इस गांव में 20 महिला किसानों को बीज किट प्रदान की गई थी। अब इस गांव में 40 महिला किसान सब्जी के रूप में मिर्च की खेती कर रहे हैं। यह सब्जियों की खेती से न केवल इन किसानों की आय बढ़ती है बल्कि उन्हें उपभोग के लिए ताजी सब्जियां भी मिलती हैं। 

hari mirch

दक्षिणी राजस्थान के जिला जिला बांसवाडा यह जनजातीय बाहुल्य आदिवासी क्षेत्र है इस जिले की 76 % आबादी आदिवासी है और कृषि गतिविधियों में शामिल है। ज्यादा तर किसानों के पास सीमांत ज़मीन है और इनके पास सिंचाई का कोई साधन नहीं है। सुखेडा बांसवाडा के सज्जनगढ ब्लॉक में स्थित है। इस गांव के अधिकांश किसान वर्षा आधारित खेती पर निर्भर हैं। वे अपनी ख़रीफ़ फ़सल के रूप में मक्का कपास ,अरहर जैसी पारंपरिक फ़सलें उगाते और पारंपरिक फसलों के माध्यम से, वे अपनी भूमि पर लगभग 10000-15000 /-रूपये कमाने में सक्षम थे। शेष मौसम में ये किसान अपने परिवार के साथ गुजरात और महाराष्ट्र के
अन्य जिलों में मजदूरी के लिए पलायन कर जाते थे।

2018 से सुखेडा गांव वागधारा ने सक्षम महिला समूह के गठन से सब्जी किट प्रदान करके सब्जियों को बढ़ावा दिया। वागधारा ने महिला किसानों के लिए प्रशिक्षण और एक्सपोज़र विजिट का भी आयोजन किया। इससे उन्हें सब्जी के रूप में उगाने के बारे में अपने ज्ञान और समझ को बेहतर बनाने में मदद मिली है। आय बढ़ाने के लिए सब्जियों को बढ़ावा देने के साथ-साथ वागधारा इन महिला किसानों की इनपुट लागत को कम करने के लिए भी काम किया। महिला किसानों को दसपर्णी , जीवामृत काढ़ा आदि जैसे जैव इनपुट तैयार करने का प्रशिक्षण दिया गया। इन इनपुट को तैयार करने की लागत कम है। इससे किसानों को रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग पुर्णतः बंद करने में भी मदद मिली है। जिससे खेती की लागत कम हो गई और मिट्टी के की गुणवत्ता में सुधार हुआ। सुखेडा गांव के सहदेव अड़ ने कहा,हमारे गांव में कोई आय गतिविधि नहीं थी, हम बेरोजगार थे और हमें मजदूरी करने के लिए महाराष्ट्र जाने के लिए मजबूर होना पड़ा रहा था । वागधारा हमें सब्जी की खेती में सहयोग दिया, इसलिए हमें अच्छा रिटर्न मिल रहा है।

सब्जियों की खेती कर आसानी से 50000 -65000/- रुपये कमा सकते हैं” बढ़ी हुई आय ने विभिन्न तरीकों से महिला किसानों के विकास में योगदान दिया है। उनमें से कुछ ने आय का उपयोग अपने खेतों को विकसित करने के लिए किया है और बेहतर सिंचाई के लिए उपकरण खरीदे हैं। उनमें से कुछ ने अपने मकान की दुरुस्ती करवाई हैं जबकि अन्य नेउनमें से कुछ ने इस आय का उपयोग अपने बच्चों की शिक्षा के लिए भी किया है।जैसे-जैसेकिसानों की आय बढ़ी, पलायन कम हुआ। किसानों को पूरे वर्ष गुजारा करने लायक आय होने लगी है। इससे उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। वागधारा ने महिला किसानों के साथ सक्षम समूह बनाकर व्यापक प्रभाव डाला है। ये किसान महिला इन सब्जियों के सेवन से अपनी आय बढ़ाने, अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने, प्रवासन को कम करने और पोषण में सुधार करने में कामयाब रहे हैं। किसानों की आजीविका मेंसुधार हुआ है, हमें उम्मीद है कि इस तरह की पहल कई छोटे और सीमांत किसानों के जीवन को रोशन करेगी और उन्हें सक्षम बनाएगी

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Post By: Shivendra
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