संदूषण, प्रदूषण और गुणवत्ता

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May 6, 2024 In our quest to spotlight dedicated entrepreneurs in the water sector, we bring you the inspiring story of Priyanshu Kamath, an IIT Bombay alumnus, who pivoted from a lucrative corporate career to tackle one of India's most intricate water quality challenges, that of pollution of its urban water bodies.
Innovative solutions to clean urban water bodies, Floating islands (Photo Credit: Priyanshu Kamath)
April 1, 2024 Decoding the problems and solutions related to stubble burning
Burning of rice residues after harvest, to quickly prepare the land for wheat planting, around Sangrur, Punjab (Image: 2011CIAT/NeilPalmer; CC BY-SA 2.0 DEED)
February 20, 2024 This study predicts that sewage will become the dominant source of nitrogen pollution in rivers due to urbanisation and insufficient wastewater treatment technologies and infrastructure in worse case scenario projections in countries such as India.
The polluted river Yamuna at Agra (Image Source: India Water Portal)
January 30, 2024 The workshop provided inputs into the newly formed committee for “Standard Operation Procedure for Quality Testing of Drinking Water Samples at Sources and Delivery Points”
Sector partners come together to supplement the efforts of the government on water quality and surveillance (Image: Barefoot Photographers of Tilonia)
July 26, 2023 While pit lakes are formed as discards of open pit mining operations, they store huge amounts of water and support the drinking and daily water needs of communities living around them. Sustainable plans to improve water quality and biodiversity in the pit lakes are crucial.
Pit lakes can provide a great source of water. Image for representation only (Image Source: Aniket Rajendra Ingole via Wikimedia Commons)
भटिंडा सहित पंजाब के कई जिलों के पानी में नाईट्रेट का जहर
Posted on 29 Apr, 2010 10:21 AM

पांच दरिया वाली धरती पंजाब में तो भू-जल की स्थिति बेहद चिंताजनक है। सूबे के तीन जिलों मुक्तसर, बठिंडा और लुधियाना में धरती के नीचे पानी में नाईट्रेट की मात्रा बेइंतहा बढ़ चुकी है। नाईट्रेट से जहरीले हुए पानी के इस्तेमाल से लोग कैंसर और अन्य घातक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। यह खुलासा बेंगलुरु के एक गैर-सरकारी संगठन 'ग्रीन पीस इंडिया' ने किया है। ग्रीन पीस इंडिया की नवम्बर 2009 में प्रकाशित रिपोर्ट की प्रति भी संलग्न है। (यह रपट द संडे पोस्ट से ली गयी है।)

पंजाब के तीनों जिलों के विभिन्न गांवों से पानी के नमूनों की जांच के आधार पर ग्रीन पीस द्वारा तैयार रिपोर्ट के मुताबिक यह बात भी सामने आई कि इन जिलों में धरती के पानी में नाईट्रेट की खतरनाक मात्रा किसी कुदरती प्रकोप से नहीं बढ़ी है, बल्कि इसके लिए धरती-पुत्र (किसान) सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। जिन्होंने अपनी जमीनों में फसल की पैदावार बढ़ाने के लालच में रासायनिक खादों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया। नतीजतन नाईट्रेट ने मिट्टी को अपना निशाना बनाने के साथ धरती के पानी को भी अपनी चपेट में

कैंसर से तड़पता मालवा
Posted on 13 Apr, 2010 08:46 AM पंजाब का मालवा क्षेत्र राजनीतिक और भौगोलिक तौर पर सबसे महत्वपूर्ण है। राज्य के 117 विधानसभा क्षेत्रों में से 65 मालवा में हैं। सिर्फ एक मुख्यमंत्री दरबारा सिंह को छोड़कर पंजाब के सभी मुख्यमंत्री मालवा से रहे। पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह भी इसी क्षेत्र के थे। इतने महत्वपूर्ण नेताओं को मान सम्मान देने वाला यह क्षेत्र इन दिनों कैंसर की गिरफ्त में है, और इस बीमारी की रोकथाम के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं हो रहा है।

दरअसल, वर्ष 1993 के बाद ही वहां के कई गांवों से अजीब किस्म के रोगों के संकेत मिलने शुरू हो चुके थे। इलाके के दो गांव, झजर और ज्ञाना में तो प्रत्येक घर में एक रोगी था। वहां लोगों को कैंसर होने की आशंका थी। बहुत ज्यादा हो हल्ला मचने के बाद अंतत: पंजाब सरकार ने पीजीआई के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के नेतृत्व में एक सर्वेक्षण करवाने का फैसला किया। पीजीआई की टीम ने दो ब्लॉकों, तलवंडी साबो और चमकौर साहिब, का अध्ययन किया। इस टीम ने 1993 से 2003 तक
पानी में जहर
Posted on 02 Apr, 2010 10:06 AM गया से महज़ चौंसठ किलोमीटर के फ़ासले पर है आमस प्रखंड का गांव भूपनगर, जहां के युवक इस बार भी अपनी शादी का सपना संजोए ही रह गए. कोई उनसे विवाह को राज़ी न हुआ. वजह है उनकी विकलांगता. इनके हाथ-पैर आड़े-तिरछे हैं, दांत झड़ चुके हैं, हड्डियां ऐंठ गई हैं. जवानी में ही लोग बूढ़े हो गये हैं. गांव के लोग बीमारी का नाम बताते हैं- फ्लोरोसिस.
बचपन में बुढ़ापा
एक्‍वाकल्‍चर के जरिये गंदे पानी की सफाई
Posted on 21 Feb, 2010 09:22 AM

हाल के वर्षों में देश में बढ़ती जनसंख्‍या के साथ औद्योगिक कचरे और ठोस व्‍यर्थ पदार्थों से अलग गंदे पानी की मात्रा भी उसके प्रबंधन की क्षमता से कहीं अधिक बढ़ी है। प्राकृतिक जल स्रोतों तक उन्‍हें पहुँचाने के लिए घरेलू सीवर के जरिए तेज प्रयास किए जा रहे हैं।
 

आओ जाने अपना पानी अभियान
Posted on 14 Jan, 2010 12:55 PM

अभियान में निकले चौंकाने वाले तथ्य

तालाब पहुंचा रहे हैं भूजल तक ज़हर
Posted on 13 Dec, 2009 07:39 AM

एक नए शोध का कहना है कि बांग्लादेश के तालाब लाखों लोगों तक आर्सेनिक का ज़हर पहुंचाने के ज़िम्मेदार हैं.शोध का कहना है कि तालाबों में मौजूद आर्सेनिक ज़हर भूमिगत जल को भी प्रदूषित कर रहा है.

आर्सेनिक का प्रदूषण तालाबों से भूजल तक पहुंच रहा है.
भारत के कुछ राज्यों के भूजल में उच्च आर्सेनिक की मौजूदगी
Posted on 21 Oct, 2009 08:53 AM

असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों में आर्सेनिक प्रदूषण काफी बड़े स्तर तक प्रभावित कर रहा है।
अटैचमेंट में देखें कि किस राज्य के किस ब्लॉक में यह प्रदूषण कहां तक फैला है।
उत्तर प्रदेश, असम और छत्तीसगढ़ राज्यों के मामले में आर्सेनिकप्रदूषण की पहचान केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड और राज्य भूमि जल विभागों के निष्कर्ष के आधार पर की गई है ।

Arsenic
दिल्ली के पोखरे नहीं रहे मछलियों के रहने लायक
Posted on 16 Oct, 2009 10:04 AM

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के जलाशय इतने प्रदूषित हो चुके हैं कि ये जलचर जीवों के जीवन जीने लायक नहीं रह गए हैं। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार 96 जलाशयों में से तकरीबन 70 फीसदी में जलचर जीवों का बच पाना मुश्किल है। डीपीसीसी द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार यह पाया गया कि 42 जलाशय सूख गए थे। अन्य 24 जलाशयों में सीवेज के कारण से जाम हो गया था और उसमें

हम पी रहे है मीठा जहर
Posted on 08 Oct, 2009 10:26 AM

गंगा के मैदानी इलाकों में बसा गंगाजल को अमृत मानने बाला समाज जल मेंव्याप्त इन हानिकारक तत्वों को लेकर बेहद हताश और चिंतित है। गंगा बेसिनके भूगर्भ में 60 से 200 मीटर तक आर्सेनिक की मात्रा थोडी कम है और 220मीटर के बाद आर्सेनिक की मात्रा सबसे कम पायी जा रही है। विशेषज्ञों केअनुसार गंगा के किनारे बसे पटना के हल्दीछपरा गांव में आर्सेनिक की मात्रा1.8 एमजी/एल है। वैशाली के बिदुपूर में विशेषज्ञों ने पानी की जांच की तोनदी से पांच किमी के दायरे के गांवों में पेयजल में आर्सेनिक की मात्रादेखकर वे दंग रह गये। हैंडपंप से प्राप्त जल में आर्सेनिक की मात्रा 7.5एमजी/एल थी ।

तटवर्तीय मैदानी इलाकों में बसे लोगों के लिए गंगा जीवनरेखा रही है। गंगा ने इलाकों की मिट्टी को सींचकर उपजाऊ बनाया। इन इलाकों में कृषक बस्तियां बसीं। धान की खेती आरंभ हुई। गंगा घाटी और छोटानागपुर पठार के पूर्वी किनारे पर धान उत्पादक गांव बसे। बिहार के 85 प्रतिशत हिस्सों को गंगा दो (1.उत्तरी एवं 2. दक्षिणी) हिस्सों में बांटती है। बिहार के चौसा,(बक्सर) में प्रवेश करने वाली गंगा 12 जिलों के 52 प्रखंडों के गांवो से होकर चार सौ किमी की दूरी तय करती है। गंगा के दोनों किनारों पर बसे गांवों के लोग पेयजल एवं कृषि कार्यों में भूमिगत जल का उपयोग करते है।


गंगा बेसिन में 60 मीटर गहराई तक जल आर्सेनिक से पूरी तरह प्रदूषित हो चुका है। गांव के लोग इसी जल को खेती के काम में भी लाते है जिससे उनके शरीर में भोजन के द्वारा आर्सेनिक की मात्रा शरीर में प्रवेश कर जाती है।

भटिण्डा के पानी में यूरेनियम, रेडियम और रेडॉन
Posted on 29 Aug, 2009 10:50 AM
पंजाब के मालवा इलाके के भटिण्डा जिले और इसके आसपास का इलाका 'कॉटन बेल्ट' के रूप में जाना जाता है, तथा राज्य के उर्वरक और कीटनाशकों की कुल खपत का 80% प्रतिशत इसी क्षेत्र में जाता है। पिछले कुछ वर्षों से इस इलाके में कैंसर से होने वाली मौतों तथा अत्यधिक कृषि ॠण के कारण किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आते रहे हैं। इस इलाके के लगभग 93% किसान औसतन प्रत्येक 2.85 लाख रुपये के कर्ज़ तले दबे हुए