भटिंडा सहित पंजाब के कई जिलों के पानी में नाईट्रेट का जहर

पांच दरिया वाली धरती पंजाब में तो भू-जल की स्थिति बेहद चिंताजनक है। सूबे के तीन जिलों मुक्तसर, बठिंडा और लुधियाना में धरती के नीचे पानी में नाईट्रेट की मात्रा बेइंतहा बढ़ चुकी है। नाईट्रेट से जहरीले हुए पानी के इस्तेमाल से लोग कैंसर और अन्य घातक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। यह खुलासा बेंगलुरु के एक गैर-सरकारी संगठन 'ग्रीन पीस इंडिया' ने किया है। ग्रीन पीस इंडिया की नवम्बर 2009 में प्रकाशित रिपोर्ट की प्रति भी संलग्न है। (यह रपट द संडे पोस्ट से ली गयी है।)

पंजाब के तीनों जिलों के विभिन्न गांवों से पानी के नमूनों की जांच के आधार पर ग्रीन पीस द्वारा तैयार रिपोर्ट के मुताबिक यह बात भी सामने आई कि इन जिलों में धरती के पानी में नाईट्रेट की खतरनाक मात्रा किसी कुदरती प्रकोप से नहीं बढ़ी है, बल्कि इसके लिए धरती-पुत्र (किसान) सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। जिन्होंने अपनी जमीनों में फसल की पैदावार बढ़ाने के लालच में रासायनिक खादों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया। नतीजतन नाईट्रेट ने मिट्टी को अपना निशाना बनाने के साथ धरती के पानी को भी अपनी चपेट में ले लिया है। उल्लेखनीय है कि पंजाब की धरती का पानी पहले ही यूरेनियमयुक्त है। अब नाइट्रोजन की अधिकता और युरेनियम के प्रभाव के चलते प्रभावित जिलों में लोग कैंसर व अन्य गंभीर बीमारियों का शिकार बन रहे हैं।

रिपोर्ट में लुधियाना, मुक्तसर व बठिंडा जिलों के खेतों में रासायनिक खादों की सबसे अधिक खपत होने की तस्दीक की गई है। यह परीक्षण करने के लिए लुधियाना और मुक्तसर में 18-18 और बठिंडा में 14 धान व गेहूं के खेतों से भू-जल के नमूने लिए गए। इस सर्वेक्षण में तीनों जिलों के 9 ब्लॉक और 18 गांव कवर किए गए। जांच से बाद जो नतीजा सामने आया, वह काफी भयावह था। मुख्यमंत्री के गृह जिले मुक्तसर के ब्लॉक गिदड़बाहा के गांव दोदा के नमूने में पानी में नाईट्रेट की मात्रा बहुत अधिक, सुरक्षित-निर्धारित मानक पांच मिलीग्राम प्रति लीटर से कहीं ज्यादा 94.3 पाई गई। बठिंडा जिला के सीमावर्ती गांव पथराला के भू-जल में भी नाईट्रेट की मात्रा 64.3 तक दर्ज की गई। जगरांव, लुधियाना व गिदड़बाहा के पानी के नमूनों में नाईट्रेट की उच्च उपस्थिति देखी गई। जबकि पायल, फूल, रायकोट, मलोट के क्षेत्रों में पानी के नमूनों में नाईट्रेट पाई गई। इन नमूनों की जांच में बठिंडा के गांव रायकेकलां से लिए 7 नमूनों में से तीन में नाईट्रेट की उच्च उपस्थिति 61.1, 59.6 व 53.2 दर्ज की गई। भू-जल के नमूने वाले कुल 18 गांवों में से 8 में नाईट्रेट की उपस्थिति उच्च मात्रा में पाई गई।

ग्रीन पीस इंडिया की कम्युनिकेशन अधिकारी प्रीति हरमन का कहना है कि किसानों द्वारा खेतों में रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग से भू-जल दूषित हुआ है। भूजल को पीने के लिए उपयोग करने के कारण नाईट्रेट मनुष्य के शरीर में जा रहा है। किसानों द्वारा अपनी फसलों की अधिक मात्रा में नाईट्रेट की तय दर 223 किलोग्राम प्रति हैक्टेअर से कहीं ज्यादा 322 किलो प्रति हैक्टेयर रासायनिक खादों का उपयोग किया गया। इतनी मात्रा में नाईट्रोजन सीधे तौर पर मनुष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित करने में सक्षम है। खेतों में रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग न केवल मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर खाद्य उत्पादन को प्रभावित करता है, बल्कि पेयजल को प्रदूषित कर लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालता है। वैसे भी हरित क्रांति के बाद नाईट्रोजन के बढ़ते प्रकोप से मनुष्य अछूता नहीं है क्योंकि नाईट्रेटयुक्त फसलें ही मनुष्य के रोजाना के खानपान का हिस्सा हैं। वहीं रही सही कसर नाईट्रोजन से दूषित भू-जल पूरी कर रहा है। इससे कैंसर व अन्य गंभीर बीमारियां फैल रही हैं।

प्रीति हरमन का यह भी कहना है कि किसान तो अधिक फसल लेने के लालच में रासायनिक खाद का अधिक उपयोग करते हैं। जबकि सरकार इनके दुष्परिणामों से भली-भांति परिचित होने के बावजूद हर साल खाद पर सैकड़ों करोड़ रुपये की सब्सिडी देकर बराबर की जिम्मेवार बनी हुई है। जिसके चलते रासायनिक खादें आम लोगों के लिए मौत का कारण बन रही हैं। उनका कहना है कि सरकार को चाहिए कि रासायनिक खादों पर सालाना सैकड़ों करोड़ रुपये सब्सिडी के तौर पर खर्च करने की बजाए वह किसानों को आर्गेनिक खेती के प्रति उत्साहित करें ताकि खेती के जरिए जीवन के साथ खिलवाड़ को बंद किया जा सके।

खेती विरासत मिशन के कार्यकारी निदेशक व वरिष्ठ पर्यावरणविद उमिंदर दत्त भू-जल में नाईट्रोजन की अत्यधिक मात्रा को बड़ा संकट मानते हैं। उन्होंने कहा कि इन जिलों में दूषित भू-जल के कारण कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों ने अपना जाल बिछाया हुआ है। इस क्षेत्र के गांवों में एक-एक घर में कैंसर से पीड़ित एक से ज्यादा मरीज होना आम बात है। जबकि इससे पहले बड़ी संख्या में लोग कैंसर व अन्य नामुराद बीमारियों के कारण अपनी जिंदगी से हाथ धो चुके हैं। उमिंदर दत्त कहते हैं, 'वक्त रहते लोगों को भू-जल के दूषित प्रभाव से मुक्त करने के लिए सरकार को रासायनिक खादों की जगह ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना चाहिए।' वह चेताते हैं कि अगर सरकार ने पानी में जहर व किसानों को फर्टिलाइजर्स के नुकसान के प्रति सचेत नहीं किया तो मालवा के घर-घर में अपनी जड़ें फैला रही कैंसर की नामुराद बीमारी एक दिन पूरे पंजाब को निगल जाएगी। रिपोर्ट में बठिंडा जिले के गांव जज्जल व ग्याना कैंसर के पिन-प्वाइंट बताए गए हैं। जिसके चलते इन गांवों में बहुत से परिवार कैंसर से तबाह हो चुके हैं।

हालात यह हैं कि राजस्थान के बीकानेर में कैंसर का इलाज कराने वाले मरीजों में ज्यादातर पंजाब के मालवा क्षेत्र के बठिंडा व मुक्तसर जिलों के हैं। यही नहीं, मालवा का कैंसर रेलवे पर भी छा गया है। अबोहर से बीकानेर वाया बठिंडा जाने वाली रेलगाड़ी 399 अप कैंसर ट्रेन के नाम से जानी जाने लगी है। एक अनुमान के मुताबिक एक महीने में सिर्फ बठिंडा स्टेशन से बीकानेर जाने वाले यात्रियों की संख्या लगभग 200 है। जबकि क्षेत्र के दूसरे शहरों के रेलवे स्टेशनों से बीकानेर जाने वाले मरीजों की गिनती इससे जुदा है। यह भी एक जमीनी सच है कि माली हालत खराब होने के कारण कैंसर से पीड़ित बहुत सारे लोग अपना पूरा इलाज करवाने से भी महरूम हैं। कैंसर की रोकथाम के लिए पंजाब सरकार द्वारा साल भर पहले बठिंडा के सिविल अस्पताल कांप्लैक्स में एक कैंसर अस्पताल का शिलान्यास भी किया गया था, लेकिन बात अभी तक उससे आगे नही बढ़ पाई।

आदेश मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च (भुच्चो) के निदेशक प्रिंसिपल (लेफ्टिनेंट) डा जीपीआई सिंह कहते हैं कि भू-जल में नाईट्रेट ज्यादा होने से मनुष्य में कई तरह के कैंसर के अलावा बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम और गर्भवती महिलाओं में भी कई तरह की बीमारियां पैदा होने का खतरा रहता है। ग्रीन पीस इंडिया के सहयोग से जारी इस अभियान के तहत विदेशी वैज्ञानिक टिराडो ने भू-जल जांच के बारे में सार्वजनिक जानकारी देकर लोगों को सचेत किया। उन्होंने गांव पथराला के किसान गुरसेवक सिंह के खेत में ट्यूबवैल से पानी लेकर विशेष मशीन से मौके पर ही परीक्षण किया। यहां जांच के दौरान भू-जल में नाईट्रेट की मात्रा 58.2 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मानकों के अनुसार पानी में 5 ़2 मिलीग्राम प्रति लीटर तक नाईट्रेट की मौजूदगी स्वास्थ्य के अनुकूल मानी जाती है। उन्होंने बताया कि खेतों में किसानों द्वारा बेहिसाब रासायनिक खाद डालने के कारण नाईट्रेट अब भूमि को पार करके भू-जल में मिल गया है।

उल्लेखनीय है कि जब इसी जगह मार्च में भू-जल परीक्षण किया गया था तो उस समय नाईट्रेट की मात्रा 64.3 के करीब दर्ज की गई थी। टिराडो ने चिंता जताई कि भू-जल में नाईट्रेट की मात्रा अधिक होने से लोगों में कई तरह के कैंसर फैलने के अलावा बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम के लक्षण और गर्भवती महिलाओं में भी खतरनाक बिमारियों पनपने की आशंका रहती है। इस मौके पर मौजूद उमिंदर दत्त ने बताया कि ग्रीन पीस से पहले पंजाब सरकार के सहयोग से पीजीआई चंडीगढ़ ने भी कैंसर को लेकर एक सर्वेक्षण कराया था। उन्होंने राय जाहिर की कि टुकड़ों में बँटे अध्ययन से कुछ फायदा होने वाला नहीं है, अब जरूरत केन्द्र व पंजाब सरकार द्वारा युद्ध स्तर पर योजना बनाने की है। वह बठिंडा में विशेष केन्द्र स्थापित कर पर्यावरण में पैदा हुए असंतुलन से लोगों की सेहत पर पड़ने वाले असर का पता लगाने पर जोर देते हैं।

उधर, सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही गांव पथराला में साल 2001 से लेकर अब तक 13 लोग कैंसर का शिकार हो चुके हैं। गांव की डिस्पेंसरी में तैनात फार्मासिस्ट सुरेश शाद ने बताया कि कैंसर पीड़ितों में से छह रोगियों की मौत भी हो चुकी है। पीड़ितों में से छह को पेट, तीन को गले और बाकी को बच्चेदानी का कैंसर था। रासायनिक खादों के नुकसान से जागरूक हुए जैतो गांव के किसान गुरमेल सिंह ढिल्लों रासायनिक खाद त्यागकर अपनी चार एकड़ में से दो एकड़ जमीन पर पिछले छह साल से जैविक-खेती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जैविक खेती से उत्पन्न फसलें मनुष्य की सेहत के लिए हानिकारक भी नहीं हैं और इसकी फसल का बाजार में अच्छा मूल्य भी हासिल होता है।

मूल रिपोर्ट के लिए संलग्नक देखें, सुविधा के लिए डाऊनलोड करें
 

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