दुनिया में करोड़ों लोग भूजल का इस्तेमाल पेयजल के रूप में करते हैं। इसमें कई तरह के बैक्टीरिया होते हैं जिसके कारण लोगों को तमाम तरह की जलजनित बीमारियां हो जाती हैं। इन बीमारियों के सबसे ज्यादा शिकार कम उम्र के बच्चे होते हैं। ऐसे में पानी को साफ करने के लिए एक बेहद आसान और कम लागत की तकनीक की जरूरत है। मोरिंगा ओलेफेरा नामक पौधा एक बेशकीमती पौधा है जिसके बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। भारतीय उपमहाद्वीप में यह पौधा आसानी से उपलब्ध है।
माइक्रोबायलोजी के करेंट प्रोटोकाल में कम लागत में पानी को साफ करने की तकनीक प्रकाशित की गई है। यह तकनीक आसान और सस्ती है। इस तकनीक की मदद से विकासशील देशों में जल जनित रोगों से बड़े पैमाने पर होने वाली मौत की घटनाओं पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। इस तकनीक में पानी को साफ करने के लिए मोरिंगा ओलिफेरा नामक पेड़ के बीज का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया के द्वारा पानी को 90.00 फीसदी से 99.99 फीसदी तक बैक्टरिया रहित किया जा सकता है।
एक अनुमान के मुताबिक एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में लगभग 1 अरब व्यक्ति अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए बिना साफ किए हुए सतह से निकले पानी का उपयोग करते हैं। इनमें से हर साल लगभग 20 लाख लोग प्रदूषित पानी से होने वाली बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। जलजनित बीमारियां सबसे ज्यादा पांच साल से कम उम्र के बच्चों को अपना शिकार बनाती हैं। क्लीयरिंग हाउस के शोधकर्ता और करंट प्रोटोकाल्स के लेखक माइकल ली का कहना है कि मोरिंगा ओलिफेरा पेड़ से पानी को साफ करके दुनिया मे जलजनित बीमारियों से होने वाली मौतों पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है।
ली का कहना है कि मोरिंगा ओलिफेरा एक शाकीय पेड़ है जो कि अफ्रीका, मध्य और दक्षिण अमेरिका, भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्वी एशिया में उगाया जाता है। इसे दुनिया का सबसे उपयोगी पौधा कहा जा सकता है। यह न सिर्फ कम पानी अवशोषित करता है बल्कि इसके तनों, फूलों और पत्तियों में खाद्य तेल, जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाली खाद और पोषक आहार पाए जाते हैं। मोरिंगा ओलिफेरा का बीज सबसे अहम है। इसके बीज से बिना लागत के पेय जल को साफ किया जा सकता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है जिससे जीवविज्ञान के नजरिए से मानवीय उपभोग के लिए अधिक योग्य बन जाता है। भारत जैसे देश में इस तकनीक की उपयोगिता असाधारण हो सकती है। यहां आम तौर पर 95 फीसदी आबादी बिना साफ किए हुए पानी का सेवन करती है।
गांवों और शहरों में भी लोग जमीन की सतह से निकले पानी का सेवन करते हैं। यहां पर ग्रामीण इलाकों में जलजनित बीमारियों जैसे- हैजा,डायरिया,खसरा और पीलिया आदि बीमारियों के कारण बड़े पैमाने पर धन और जन की हानि होती है। मिंगोरा के बीज से पानी साफ करने की तकनीक के बारे में लोगों को जानकारी देकर हर साल बड़े पैमाने पर होने वाली इस तबाही हो रोका जा सकता है। सबसे अहम बात यह है कि इस तकनीक का इस्तेमाल करने पर कोई लागत भी नहीं आती है। लोगो का जीवन बचाने की क्षमता होने के बावजूद उन इलाकों मे भी इस तकनीक के बार में लोगों को जानकारी नहीं है जहां मिंगोरा ओलिफेरा बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। ऐसे में ली का मानना है कि इस तकनीक को प्रकाशित करने से लोग इसके बार में जानेंगे और जिन लोगों को इसकी जरूरत होगी वे इसका फायदा भी उठा सकेंगे। ली का कहना है कि इस तकनीक से जलजनित बीमारियों के खतरे को पूरी तरह से नहीं मिटाया जा सकता।
हालांकि मिंगोरा की खेती से शुद्ध पेय जल के अलावा पोषक आहार और आय प्राप्त की जा सकती है। ली का कहना है कि उम्मीद की सकती है कि 21वीं सदीं में हजारों लोग मिंगोरा के बीज से पानी को साफ करके जलजनित बीमारियों के खतरे से खुद को मुक्त कर लेंगे। 19 वीं सदी में जलजनित बीमारियों से बड़े पैमाने पर मौतें होती है। यह अपने आप में शानदार है कि ये सब फायदे एक पेड़ से हासिल हो सकते हैं। भारत में यह तकनीक अपने आप आप में बेहद उपयोगी है। देश में हर साल लाखों लोगों की जलजनित बीमारियों से मौत हो जाती है। इस तकनीक के बार में लोगों को जानकारी देकर और पानी को साफ करके पीने के लिए लोगों को जागरुक करके ग्रामीण आबादी के स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है।
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