एक नए शोध का कहना है कि बांग्लादेश के तालाब लाखों लोगों तक आर्सेनिक का ज़हर पहुंचाने के ज़िम्मेदार हैं.शोध का कहना है कि तालाबों में मौजूद आर्सेनिक ज़हर भूमिगत जल को भी प्रदूषित कर रहा है.
मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्युट ऑफ टेक्नोलोजी के शोधकर्ताओं का कहना है कि बांग्लादेश के तालाबों में ऐसा कचरा फेंका जा रहा है जिसमें जैविक कार्बन की बहुतायत है और उससे भूमिगत जल भी प्रदूषित हो रहा है.
अभी तक शोधकर्ता ये तो जानते थे कि आर्सेनिक मिट्टी में होता है और जैविक कार्बन के मिलते ही वो भूजल में मिल जाता है पर ये कार्बन कहां से आता है इसका पता नहीं चल रहा था.अब नेचर जियोसाइंस नामक पत्रिका में शोध का नेतृत्व कर रहे चार्ल्स हारवे का कहना है कि ट्युबवेलों से निकलने वाले पानी और तालाबों में सबसे ज़्यादा कार्बन उस पानी में पाया गया जो पचास साल पुराने ट्यूबवेल से निकला हो.विडंबना ये है कि ये ट्युबवेल साफ पानी के लिए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा बनवाए गए थे जिससे ख़राब पानी से फैलने वाले रोगों से लोगो को बचाया जा सके.
शोधकर्ता कहते है कि कृत्रिम जलाशयों के उपर कुओं के निर्माण से जहां तक हो सके बचना चाहिए और पीने के पानी के कुएं मौजूदा तालाबों से नीचे बह रहे पानी की तरफ नहीं बनाए जाने चाहिए.
इस समस्या का निदान गहरे कुएं खोदकर किया जा सकता है और ये शोधकर्ता अब बांग्लादेश में गहरे कुएं खोदकर देखेंगे कि ऐसा करने से समस्या दूर की जा सकती है या नहीं.
तीन दशकों से वैज्ञानिक ये जानने की कोशिश कर रहे है कि बंग्लादेश के लगभग बीस लाख लोगों की बीमारी का कारण क्या है.
आर्सेनिक के ज़हर से पेट दर्द, उल्टी, दस्त जैसी शिकायते होती है और लंबे समय तक आर्सेनिक युक्त पानी के सेवन से कई तरह के कैंसर होने का अंदेशा रहता है और अगर ये बढ़ी मात्रा में शरीर में घुस जाए तो मौत भी हो सकती है.
आर्सेनिक प्रदूषण की शिकायत भारत, चीन, मेक्सिको, अमरीका जैसे कई देशों में पाई जाती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में आर्सेनिक फैला हुआ है और खनिजों में धुलकर पानी में आ जाता है. पर एक लीटर पीने के पानी में 0.01 मिलीग्राम से ज़्यादा आर्सेनिक की मात्रा नहीं होनी चाहिए.
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