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नदियां
गंगा का लोकतन्त्र
Posted on 24 May, 2015 03:43 PMहिन्दी के प्रसिद्ध कवि निलय उपाध्याय ने गंगोत्री से गंगा सागर तक की 2500 किलोमीटर की यात्रा पैदल और साइकिल से की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने गंगा के ‘माँ’ होने और गंगा के ‘जल संसाधन’ होने की समझ के बीच की दूरी को देखा और महसूस किया। प्रस्तुत है उनके यात्रा-वृत्तांत का एक अंश-एनसीआर का पानी, नदी और ग्रीन ट्रिब्युनल
Posted on 23 May, 2015 04:17 PMराष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दायरा फैला; आबादी बढी; साथ-साथ पर्यावरण की चिन्ता की लकीरें भी। कहना न होगा कि पानी और नदी के मोर्चे पर र
भगवान को न्याय हेतु एक न्यायाधिकरण (National Green tribunal)
Posted on 23 May, 2015 12:43 PMराष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने पूरे देश में नदी तट व तलहटी से बिना लाइसेंस व पर्यावरणीय मंजूरी क
विस्थापन के बीज
Posted on 22 May, 2015 11:42 AMठेले से कुछ दूरी पर खड़े बूढ़े पर उसकी नजर पड़ी। पता नहीं कब से खड़ा था!
बाढ़, सूखा और नदी
Posted on 22 May, 2015 09:38 AMबाढ़ और सूखा कोई नई बात नहीं है। सदियों से हमारा समाज इनके साथ रहना सीख चुका था और इनसे निपटने के लिए उसने अपनी देसी तकनीक भी तैयार कर ली थी जो प्रकृति और नदियों को साथ लेकर चलती थी। लेकिन दिक्कत तब हुई जब हमने प्रकृति और नदियों की उपेक्षा शुरू की, उन्हें बाँधना शुरू किया। इसके बाद से ही बाढ़ और सूखे ने विभीषिका का रूप लेना शुरू कर दिया।
अकाल और बाढ़ अकेले नहींं आते। इनसे बहुत पहले अच्छे विचारों का भी अकाल पड़ने लगता है। इसी तरह बाढ़ से पहले बुरे विचारों की बाढ़ आ जाती है। ये केवल विचार तक सीमित नहींं रहते, ये काम में भी बदल जाते हैं। बुरे काम होने लगते हैं और बुरे काम अकाल और बाढ़ दोनों की तैयारी को बढ़ावा देने लगते हैं।
अपनी नदियों से हमारा नाता
Posted on 18 May, 2015 12:56 PMगंगा और दूसरी नदियाँ मात्र पानी से भरी नदियाँ नहीं हैं। ये हमारी संस्कृति का प्रतीक हैं। भारतीय जनमानस की स्वच्छता और निर्मलता का प्रतीक हैं। लेकिन आज ये प्रतीक मानवीय लोभ के कारण दूषित होते जा रहे हैं। अगर हमें अपनी संस्कृति की रक्षा करनी है तो गंगा सहित अपनी तमाम नदियों को बचाना होगा।नदी तुम बहती जाओ
Posted on 18 May, 2015 11:47 AMप्रकृति और नदियों के प्रति हम अपने कर्तव्यबोध से च्युत हुए हैं। संकट चौतरफा है। हमें विकास चाहि
पतित-पावनी गंगा
Posted on 17 May, 2015 11:18 AMगंगा को पतित-पावनी कहा गया है। गीता से लेकर पुराणों तक में इसकी चर्चा मिलती है। वहीं शंकराचार्य
वैदिक-पौराणिक चिन्तन का गंगा तत्त्व
Posted on 16 May, 2015 03:24 PM‘वह ध्रुव-रूपी शैल शिखर से उतरती है। दुग्ध की तरह श्वेत धवल है। पूरी सृष्टि में वह व्याप्त है। उसका शब्द (अट्टहास) बहुत ही भयंकर है। वह अन्तरिक्ष में समुद्र की तरह विशाल झील का निर्माण करती है। उसे धारण करने में पर्वतगण समर्थ नहीं। महादेव ने उसे एक लाख वर्ष से धारण कर रखा है। वह पवित्रतम और पुण्यदायिनी है। उसके स्पर्श मात्र से सारे पापों से मुक्ति मिल जातकरे हाहाकार नि:शब्द सदा
Posted on 16 May, 2015 12:33 PMराजनीतिक कारणों से कलकत्ता और हावड़ा की आर्थिक स्थितियाँ बदलने लगीं। इसी प्रकार धीरे-धीरे गंगा