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नदियां
तीर्थन बहती रहे हमेशा
Posted on 02 Jul, 2015 10:53 AMहिमाचल की बहुत सी नदियों में से एक तीर्थन कई मायनों में अनूठी है। ट्राउट मछलियों के लिए प्रसिद्ध इस नदी और तीर्थन घाटी में स्थित ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को 2014 में यूनेस्को से विश्व धरोहर का दर्जा मिल चुका है। लेखक और उनके साथियों के प्रयासों का नतीजा है कि यह नदी हमारे बीच आज जीवित है।नदियों की पवित्रता और उनकी सफाई
Posted on 21 Jun, 2015 01:54 PMदेश की कुछ महत्त्वपूर्ण नदियों के बारे में कूर्म पुराण की यह उक्ति बड़ी सामयिक है-“ऋषिः सारस्वतं तोSयं सप्ताहेनतु यामुनम्
सद्यः पुनाति गांगेयं दर्शनादैवतु नार्मदम्।”
सभ्यताओं को निगलतीं परियोजनाएँ
Posted on 16 Jun, 2015 04:27 PMननदियों को जब से हमने सिर्फ जल और ऊर्जा का स्रोत समझना शुरू किया, सारी समस्या वहीं से शुरू हो
हमारी सभ्यता संस्कृति और नदियाँ
Posted on 16 Jun, 2015 03:21 PMनदियों के बिना हम भारतीय संस्कृति की कल्पना ही नहीं कर सकते। जन्म से मृत्यु तक नदियों का हमार
नदी पुराण
Posted on 14 Jun, 2015 03:53 PM
आमतौर पर नदी वैज्ञानिक ही नदियों के जन्म या प्राकृतिक जिम्मेदारियों की हकीक़त को जानने का प्रयास करते हैं। आम नागरिक के लिये यह विषय बहुत आकर्षक नहीं है इसलिये वे उसे, सामान्यतः जानने का प्रयास नहीं करते। वास्तव में नदी की कहानी बेहद सरल और सहज है।
वैज्ञानिक बताते हैं कि प्रत्येक नदी प्राकृतिक जलचक्र का अभिन्न अंग है। उसके जन्म के लिये बरसात या बर्फ के पिघलने से मिला पानी जिम्मेदार होता है। उसका मार्ग ढ़ालू जमीन पर बहता पानी, भूमि कटाव की मदद से तय करता है। ग्लेशियरों से निकली नदियों को छोड़कर बाकी नदियों में बरसात बाद बहने वाला पानी ज़मीन के नीचे से मिलता है।
![नदी](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80_2_3.jpg?itok=8EYvqTMD)
विनाशकारी है नदी जोड़ योजना
Posted on 11 Jun, 2015 01:38 PMहमारे देश में नदियों को जोड़ने का मसला लम्बे वक्त से जेरे-बहस है। नदियों को जोड़ने की वकालत करने वाली सरकारों, विशेषज्ञों के अपने-अपने दावे हैं। तमाम सारे फायदे गिनाए जा रहे हैं। मसलन, बिजली परियोजनाएँ आसानी से चल पाएंगी, सिंचाई की सहूलियत होगी, अकाल से निजात मिलेगी, बाढ़ की समस्या हल हो जाएगी- वगैरह-वगैरह। लेकिन इन दावों की हकीकत क्या है।नदी और राजनीति
Posted on 11 Jun, 2015 12:28 PMसच तो यह है कि जब से राजनीति समाज का हिस्सा बनी है तब से नदियों को लेकर भी राजनीति होती ही आ रही है। यह राजनीति अच्छी और बुरी दोनों किस्म की रही है। नदियों को लेकर राजनीति का ज्यादा हिस्सा जरूर स्वार्थ प्रेरित रहा है। जो भी हो, इस समूची राजनीति का मूल कारण क्या रहा है, यही बता रहे हैं लेखक...आस्था और गंगा स्वच्छता के बीच नए रास्ते की खोज
Posted on 26 May, 2015 12:36 PMगंगा में प्रदूषण का एक बड़ा हिस्सा अन्तिम संस्कार भी है। उत्तर प्रदेश और बिहार के वे गाँव जो गंगा के किनारे या आस-पास बसे हैं उनके द्वारा किये जाने वाले प्रदूषण का बड़ा हिस्सा अन्तिम संस्कार से होता है। हिन्दू धर्म में अन्तिम संस्कार की अपनी रीति और नीति है। उसमें उन लोगों के साथ मिलजुल कर कुछ बदलाव ज़रूर किया जा सकता है। सिर्फ यह कह देने से कि गंगा में अन्तिम![](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/17489552274_085a0de52e_n_3.jpg?itok=Y7OEpVKD)
दिल्ली में बेहाल यमुना
Posted on 26 May, 2015 10:46 AMशहरी सभ्यता से नदियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। भारत में गंगा एवं यमुना नदी की उपयोगिता को देखते हुए इसे माँ की संज्ञा दी गई है। गंगा-यमुना को यदि अलग कर दिया जाए तो उत्तर भारत की कृषि और संस्कृति निष्प्राण हो जाएगी। करोड़ों लोगों के जीवन और आस्था की प्रतीक गंगा एवं यमुना इस समय प्रदूषण से जूझ रही है। केन्द्र सरकार गंगा एवं यमुना की सफाई के लिए दशकों![polluted yamuna](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/polluted%20yamuna_3.jpg?itok=3KWsKZhs)