शोध : गंगा नदी की ही भाँति सरयू नदी में भी पाई गई जीवाणु भोजी बैक्टीरियोफेज की उपस्थिति

गंगा नदी,गंगोत्री
गंगा नदी,गंगोत्री

अयोध्या 15 अक्टूबर। इंसानी कर्मों से प्रदूषित हो चुकी नदियों ने खुद को परिष्कृत करने की ठान लिया है। यूं तो उत्तर भारत की सभी नदियां बेहद प्रदूषित हो चुकी हैं लेकिन शारदा की सहायक नदी सरयू, जिसे घाघरा भी कहते हैं अभी सबसे कम प्रदूषित है। गंगा नदी की ही भांति सरयू नदी में भी जीवाणु भोजी बैक्टीरियोफेज की उपस्थिति पाई गई है। इसको लेकर शोध कर रहे अवध विश्वविद्यालय के उत्साहित हैं। गंगाजल की तरह सरयू का जल भी नहीं होगा खराब, नदी में पनप रहे जीवाणु भोजी बैक्टीरियोफेज।

अब वह दिन दूर नहीं कि गंगाजल की तरह सरयू जल को भी बोतल में सुरक्षित किया जा सकेगा और वह खराब नहीं होगा। प्रो. शैलेंद्र कुमार रामनगरी के अवध विश्वविद्यालय में सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग के वरिष्ठ आचार्य एवं पूर्व विभागाध्यक्ष हैं। वर्तमान में भेषजी संस्थान के निदेशक का भी दायित्व निभा रहे हैं। इन्होंने वर्ष 2022 में सिल्वर नैनो कणों से युक्त बैंडेज के डिजाइन का पेटेंट करवाया है।

सरयू नदी में पाए जाने वाले जीवाणु एवं विषाणुओं पर अध्ययन हेतु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग की आर्थिक सहायता प्राप्त की है। इनके निर्देशन में शोध छात्रों द्वारा अस्पताल में संक्रमण करने वाले जीवाणुओं की पहचान और उनकी एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बनने पर अध्ययन किया जा रहा है। गंगा गंगोत्री से निकलकर हरिद्वार, प्रयाग, वाराणसी होते हुए छपरा में सरयू से संगम करके आगे समुद्र तक की यात्रा करती है। सरयू नदी के तट पर कोई भी बड़े नगर या उद्योग नहीं होने के कारण यह सबसे कम प्रदूषित नदी के रूप में स्थापित है नदियों के जल में पाए जाने वाले जीवाणु कई एंटीबायोटिक के लिए प्रतिरोधकता विकसित कर रहे हैं। कुछ जीवाणु तो किसी भी एंटीबायोटिक से समाप्त नहीं किए जा सकते, इनको सुपरबग कहा जाता है। ऐसे सुपरबग द्वारा होने वाले संक्रमण का किसी एंटीबायोटिक द्वारा उपचार संभव नहीं हैए जो एक भयंकर समस्या है। ऐसे जीवाणु जो प्रतिरोधकता बना लेते हैं. उनका ट्रीटमेंट मुश्किल हो जाता है। ऐसे जीवाणुओं को समाप्त करने के लिए जीवाणु भोजी बैक्टीरियोफेज की खोज पर एक पीएचडी शोध निर्देशन किया जा रहा है।

सरयू नदी के जल में उपस्थित जीवाणु एवं विषाणुओं के अध्ययन के लिए भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग द्वारा एक शोध परियोजना स्वीकृत की गई है। इस परियोजना के अंतर्गत सरयू नदी के उद्गम स्थल से लेकर गंगा में मिलने के स्थान छपरा बिहार तक के विभिन्न महत्वपूर्ण स्थान से जल की सैंपलिंग की गई है। इस सैंपल किए गए जल में बहुत सारे भौतिक एवं रसायन सूचकांकों का अध्ययन किया गया है। तथा इसके साथ ही जल की सूक्ष्म जैविक गुणवत्ता का भी अध्ययन किया गया है। इन सूक्ष्म जीवाणुओं का विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है जिसमें इनकी जैव रासायनिक पहचान एवं एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता पर अध्ययन संचालित है जिसे शीघ्र ही पूरा किया जाएगा। अगले हिस्से में सैंपल किए गए जल में विभिन्न प्रकार के बीमारी करने वाले विषाणुओं का अध्ययन किया जाना प्रस्तावित है, जिसके लिए नदी के जल से विष्णु के जिनोम को निकाल कर उनकी पहचान किया जाना है जिससे जल से संभावित समस्याओं के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकेगी एवं नदी के जल की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकेगी। गंगा नदी के ही भांति सरयू नदी के जल में भी जीवाणु भोजी बैक्टीरियोफेज की उपस्थित का भी अध्ययन किया जा रहा है जिस दिशा में उनके समूह को शुरुआती सफलता मिली है।

क्या होता है जीवाणु भोजी या बैक्टीरियोफ़ेज

जीवाणु भोजी या बैक्टीरियोफ़ेज (Bacteriophage) जीवाणुओं को संक्रमित करने वाले विषाणु जीवाणुभोजी या बैक्टीरियोफेज या बैक्टीरियोफाज कहलाते हैं।
एक बैक्टीरियोफेज एक प्रकार का वायरस है जो बैक्टीरिया को संक्रमित करता है। वास्तव में, "बैक्टीरियोफेज" शब्द का शाब्दिक अर्थ "बैक्टीरिया खाने वाला" है, क्योंकि बैक्टीरियोफेज अपने मेजबान कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं। सभी बैक्टीरियोफेज एक न्यूक्लिक एसिड अणु से बने होते हैं जो प्रोटीन संरचना से घिरा होता है। एक बैक्टीरियोफेज खुद को एक अतिसंवेदनशील जीवाणु से जोड़ता है और मेजबान सेल को संक्रमित करता है। संक्रमण के बाद, बैक्टीरियोफेज बैक्टीरिया के सेलुलर तंत्र को बैक्टीरिया के घटकों के उत्पादन से रोकने के लिए अपहरण कर लेता है और इसके बजाय कोशिका को वायरल घटकों का उत्पादन करने के लिए मजबूर करता है। आखिरकार, नए बैक्टीरियोफेज लसिका नामक एक प्रक्रिया में जीवाणु से इकट्ठा होते हैं और फट जाते हैं। बैक्टीरियोफेज कभी-कभी संक्रमण प्रक्रिया के दौरान अपने मेजबान कोशिकाओं के जीवाणु डीएनए के एक हिस्से को हटा देते हैं और फिर इस डीएनए को नए मेजबान कोशिकाओं के जीनोम में स्थानांतरित करते हैं। इस प्रक्रिया को पारगमन के रूप में जाना जाता है। (विकिपीडिया से साभार)

स्रोत : 15 अक्टूबर 2023 (देशबन्धु)

 

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