पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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खेती करै अधिया
Posted on 22 Mar, 2010 08:57 AM
खेती करै अधिया।
न बैल न बधिया।।


भावार्थ- बटाई पर खेती करने में किसान को बैल-बधिया (हल) किसी की चिंता नहीं रहती है।

खेती। खसम सेती
Posted on 22 Mar, 2010 08:55 AM
खेती। खसम सेती।।
आधी केकी? जो देखै तेकी।।
बिगड़ै केकी? घर बैठे पूछे तेकी।।


भावार्थ- जिस प्रकार पत्नी पति की सेवा कर सुखी होती हैं उसी प्रकार लाभ प्राप्त करने के लिए खेती की सेवा करनी चाहिए। जो सिर्फ निगरानी करता है, उसे खेती से आधा लाभ मिलता है, लेकिन जो घर बैठे-बैठे पूछ लेता है कि खेती का क्या हाल है? उसकी खेती बिल्कुल बेकार होती है।
खेती तो थोड़ी करे
Posted on 22 Mar, 2010 08:52 AM
खेती तो थोड़ी करे, मिहनत करे सिवाय।
राम चहें वही मनुष को, टोटा-कभी न आय।


शब्दार्थ- टोटा-कमी।

भावार्थ- यदि खेती कम है और किसान मेहनत अधिक करे तो ईश्वर की कृपा से उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं आयेगी।

खेती करै बनिज को धावै
Posted on 22 Mar, 2010 08:50 AM
खेती करै बनिज को धावै।
ऐसा डूबै थाह न पावै।।


शब्दार्थ- बनिज- व्यापार।

भावार्थ- घाघ कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति खेती के साथ-साथ व्यापार भी करता है तो वह इस प्रकार डूबता है कि उसकी थाह भी नहीं मिलती अर्थात् दो कार्य एक साथ करने वाला व्यक्ति कभी सफल नहीं होता।

कर्म हीन नर खेती करै
Posted on 22 Mar, 2010 08:48 AM
कर्म हीन नर खेती करै।
बरधा मरै कि सूखा परै।।


भावार्थ- जिस किसान का भाग्य खराब होगा वह यदि खेती करेगा तो या तो उसका बैल मर जायेगा या सूखा पड़ जायेगा।

कामिनि गरभ औ खेती पकी
Posted on 22 Mar, 2010 08:46 AM
कामिनि गरभ औ खेती पकी।
ये दोनों हैं दुर्वल बदी।।


भावार्थ- ऐसा माना जाता है कि गर्भवती स्त्री और पकी खेती दोनों दुर्बल होती है।

कपास चुनाई। खेत खनाई
Posted on 22 Mar, 2010 08:43 AM
कपास चुनाई। खेत खनाई।।

भावार्थ- कपास चुनने से और खेत को खोदने से लाभ की सम्भावना बढ़ जाती है।

एक हर हत्या दो हर काज
Posted on 22 Mar, 2010 08:41 AM
एक हर हत्या दो हर काज।
तीन हर खेती चार हर राज।।


भावार्थ- यदि किसान के पास एक हल की खेती है, तो हत्या के बराबर है, दो हल की खेती है, तो काम चलाऊ है, लेकिन यदि किसान के पास तीन हल या चार हल की खेती है तो वह राजा के बराबर है।

उर्द मोथी की खेती करिहौ
Posted on 20 Mar, 2010 04:58 PM
उर्द मोथी की खेती करिहौ।
कुँड़िया तोर उसर में धरिहौ।।


शब्दार्थ- कुड़िया-कूँड़ा (मिट्टी का घड़ा जिसमें अनाज रखा जाता है)।

भावार्थ- यदि उरद और मोथी की खेती करोगे तो कूँड़ा को तोड़ कर ऊसर में रखना पड़ेगा क्योंकि उर्द और मोथी की फसल ऊसरीली जमीन में अधीक होती है।

ऊख करै सब कोई
Posted on 20 Mar, 2010 04:54 PM
ऊख करै सब कोई।
जो बीच में जेठ न होई।।


भावार्थ- यदि ज्येष्ठ जैसा गर्मी का महीना न हो तो हर किसान ईख की खेती करना चाहेगा।

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