Posted on 22 Mar, 2010 12:31 PM हथिया में हाथ गोड़ चित्रा में फूल। चढ़त सेवाती झम्पा झूल।
भावार्थ- हस्त नक्षत्र में जड़हन (धान) की फसल में डण्ठल निकलना शुरू होता है। चित्रा में फूल निकलने लगता है और स्वाति नक्षत्र के प्रारम्भ में बालें लटक आती है।
Posted on 22 Mar, 2010 12:26 PM सर्व तपै जो रोहिणी, सर्व तपै जो मूर। परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
भावार्थ- यदि रोहिणी पूरी तरह से तपे और मूल में भी उसी तरह गर्मी रहे और जेठ की परिवा भी उसी प्रकार तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे, ऐसा घाघ का मानना है।
Posted on 22 Mar, 2010 12:24 PM बिधि का लिखा न होवै आन। बिना तुला ना फूटै धान।। सुख सुखराती देवउठान। तेकरे बरहे करौ नेमान।। तेकरे बरहे खेत खरिहान। तेकरे बरहे कोठिलै धान।।