Posted on 20 Mar, 2010 12:50 PM माघे नौमी निरमली, बादर रेख न जोय। तौ सरवर भी सूखहीं, महि में जल नहिं होय।।
शब्दार्थ- निरमली-स्वच्छ। महि-धरती।
भावार्थ- यदि माघ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को आकाश बिल्कुल स्वच्छ हो और आकाश में बादल की एक रेख तक न हो तो सारे तालाब सूख जायेंगे, पूरी धरती पर कहीं भी पानी नहीं मिलेगा अर्थात् बिना पानी के पैदावार नहीं होगी।
Posted on 20 Mar, 2010 12:35 PM माघ सुदी पून्यो दिवस, चन्द्र निर्मलो जोय। पसु बेंचो कन संग्रहों, काल हलाहल होय।।
भावार्थ- यदि माघ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा स्वच्छ हो अर्थात् बादल न हों तो हे किसान! अपने जानवरों को बेचकर अन्न को इकट्ठा कर लो, क्योंकि भीषण अकाल पड़ने वाला है।
Posted on 20 Mar, 2010 12:15 PM मृगसिर वायु न बादला, रोहिनि तपै न जेठ। अद्रा जो बरसै नहीं, कौन सहै अलसेठ।।
शब्दार्थ- अलसेठ-झंझट।
भावार्थ- यदि मृगशिरा नक्षत्र में हवा चले और न ही बादल हों, ज्येष्ठ में गर्मी न पड़े और नहीं आर्द्रा में वर्षा हो तो खेती के झंझट में न पड़ों क्योंकि मौसम ठीक नहीं हैं। अर्थात् सूखा पड़ने वाला है।
Posted on 20 Mar, 2010 12:07 PM मृगसिर वायु न बाजिया, रोहिनि तपै न जेठ। गोरी बीनै काँकरा, खड़ी खेजड़ी हेठ।।
शब्दार्थ- खेजड़ी- एक प्रकार का वृक्ष। हेठ-नीचे।
भावार्थ- मृगशिरा नक्षत्र में यदि हवा न चले और ज्येष्ठ महीने में रोहिणी नक्षत्र न तपे तो निश्चय ही अकाल पड़ेगा और किसान की स्त्री खेजड़ी वृक्ष के नीचे कंकड़ चुनेगी।