पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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थोड़ा जोतै बहुत हेंगावै
Posted on 22 Mar, 2010 03:50 PM
थोड़ा जोतै बहुत हेंगावै, ऊँच न बाँधै आड़।
ऊँचे पर खेती करै, पैदा होवै भाड़।।


शब्दार्थ- आड़- मेंड़। भाड़-भड़भाड़ (घमोय या सत्यानाशी, एक काँटेदार चितकबरा पत्ती वाला पौधा)।

भावार्थ- कम जोते और अधिक सिरावन दे, ऊँची जगह पर खेती करे और मेड़ न वाँधे तो वहाँ भड़भाड़ ही पैदा होंगे।

थोर जोताई बहुत हेंगाई
Posted on 22 Mar, 2010 03:48 PM
थोर जोताई बहुत हेंगाई, ऊँचे बाँधै आरी।
खेत जो तोरे उपजै नाहीं, घाघै दीह गारी।।


शब्दार्थ- थोर – कम। हेंगाई – पाटे से सिरावन देना। आरी – मेंड़।

भावार्थ- कम जुताई से और बहुत बार हेंगाई करने से एवं मेंड़ बाँधने से अन्न की उपज अच्छी होती हैं। घाघ कहते हैं कि यदि ऐसा न हो तो मुझे गाली देना।

तेरह कातिक तीन अषाढ़
Posted on 22 Mar, 2010 03:46 PM
तेरह कातिक तीन अषाढ़।
जो चूका सो गया बजार।।


शब्दार्थ- चूका- भूलना।

भावार्थ- जो किसान तेरह बार कार्तिक और तीन बार आषाढ़ में खेत जोतने से चूका, वह बाजार से ही अन्न खरीद कर खायेगा अर्थात् जो ऐसा नहीं करेगा उसे अन्न नहीं मिलेगा।

जोंधरी जोतै तोड़ मड़ोर
Posted on 22 Mar, 2010 03:42 PM
जोंधरी जोतै तोड़ मड़ोर।
तब वह डारै कोठिला फोर।।


भावार्थ- जोंधरी के खेत की जुताई अधिक करनी चाहिए। यदि किसान ने ऐसा किया तो पैदावार इतनी अधिक होगी कि कोठिले में नहीं समायेगी।

जब सैल खटाखट बाजै
Posted on 22 Mar, 2010 03:39 PM
जब सैल खटाखट बाजै।
तब चना खूब ही गाजै।।


शब्दार्थ- सैल-हल के किनारे पर लगाई जाने वाली खूँटी।

भावार्थ- जिस खेत में ढेले अधिक हों और जुताई के समय बैलों के जुए की सैल खट-खट बजती रहे, उस खेत में चने की अच्छी पैदावार होगी।

जोत न मानै अरसी चना
Posted on 22 Mar, 2010 03:38 PM br>जोत न मानै अरसी चना।
कहा न मानै हरामी जना।।


भावार्थ- अलसी और चना अधिक जुताई को अच्छा नहीं मानते, ठीक उसी प्रकार जैसे दुष्ट जन कथन या सीख को अच्छा नहीं मानते।

जेतना गहिरा जोतै खेत
Posted on 22 Mar, 2010 03:34 PM
जेतना गहिरा जोतै खेत।
बीज परे फल अच्छा देत।।


भावार्थ- खेत की जुताई जितनी गहरी होती है, बीज पड़ने पर वह उतना ही अच्छा फल देता हैं।

जोतै खेत घास न टूटै
Posted on 22 Mar, 2010 03:31 PM
जोतै खेत घास न टूटै।
तेकर भाग साँझ ही फूटै।।


शब्दार्थ- तेकर-उसका। भाग – भाग्य।

भावार्थ- खेत की जुताई के बाद भी यदि उस खेत की घास समाप्त न हुई तो समझो उस किसान का भाग्य ही फूट गया।

जो जौ चहै तो उत्तर गहै
Posted on 22 Mar, 2010 02:59 PM
जो जौ चहै तो उत्तर गहै।
काँच पकै के जोतत रहै।।


भावार्थ- यदि किसान को जौ की अच्छी पैदावार चाहिए तो उत्तरा नक्षत्र में कच्चे खेतों को जोतकर उसे पकाकर फिर ढेलों की रोरी एवं उसके बारीक कण बनाकर उसमें जौ बोयें तो फसल अच्छी होगी।

छोटी नसी धरती हँसी
Posted on 22 Mar, 2010 02:57 PM
छोटी नसी धरती हँसी।
हर लगा पताल, तो टूट गया काल।।


शब्दार्थ- नसी-हल का फाल (हल के नीचे लगा नुकीला लोहा)।

भावार्थ- हल के छोटे फाल को देखकर धरती हँसती है कि इसकी जुताई से कैसे पैदावार होगी? यदि हल के लम्बे फाल से गहरी जुताई होती है तो अकाल भी समाप्त हो जाता है अर्थात् अल्प वृष्टि की स्थिति में भी पैदावार हो जाती है।

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