पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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पानी
Posted on 06 Sep, 2012 12:59 PM पानी पर लिखी ये कवितायें नर्मदा जल सत्याग्रह के जन-संघर्ष को समर्पित हैं और पानीदार होने का दिखावा करने वाली इस असंवेदनशील व्यवस्था के विरोध में एक बयान है। इस सत्याग्रह ने पानी को एक संघर्ष के प्रतीक में बदल दिया है...।

पानी –I


कहते हैं
जब कुछ नहीं था
पानी था।

और जब
नहीं बचेगा कुछ भी

तब
पानी रहेगा।
गंगा चालीसा
Posted on 28 Apr, 2012 08:40 AM ।। दोहा ।।
जय जय जय जग पावनी,l जयति देवसरि गंग ।
जय शिव जटा निवासिनी,l अनुपम तुंग तरंग ।।


जय जय जननी हराना अघखानी। आनंद करनी गंगा महारानी ।।
जय भगीरथी सुरसरि माता। कलिमल मूल डालिनी विख्याता ।।

जय जय जहानु सुता अघ हनानी। भीष्म की माता जगा जननी ।।
धवल कमल दल मम तनु सजे। लखी शत शरद चंद्र छवि लाजे ।।
एक अनमोल, बेमोल और असाधारण पुस्तक
Posted on 13 Apr, 2012 02:04 PM ‘आज भी खरे हैं तालाब’ करीब दो दशक पूर्व पर्यावरण कक्ष, गांधी शांति प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशित की गई ऐसी पुस्तक थी जिस पर कोई कॉपीराइट नहीं है। तब से अब तक इस पुस्तक के बत्तीस संस्करण आ चुके हैं और करीब दो लाख से अधिक प्रतियां पाठकों तक पहुंच चुकी हैं। हिन्दी के अलावा इसके पंजाबी, बांग्ला, मराठी, उर्दू एवं गुजराती भाषा में संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इतना ही नहीं इक्कीस आकाशवाणी केंद्रों ने इस पुस्तक को संपूर्णता में प्रसारित किया है और कुछ ने तो श्रोताओं की मांग पर दो-तीन बार पुनः प्रसारित किया है। गांधी शांति प्रतिष्ठान ने इस ‘अनमोल’ पुस्तक के नवीनतम संस्करण को ‘बेमोल’ वितरित करने का अनूठा निर्णय लिया है। यह विशेष संस्करण भी दो हजार प्रतियों का है। पुस्तक का शुरुआती वाक्य है ‘अच्छे-अच्छे काम करते जाना।’
आज भी खरे हैं तालाब
मां भारती का जलगान
Posted on 20 Mar, 2012 12:13 PM

जयति जय जय जल की जय हो
जल ही जीवन प्राण है।
यह देश भारत....

सागर से उठा तो मेघ घना
हिमनद से चला नदि प्रवाह।
फिर बूंद झरी, हर पात भरी
सब संजो रहे मोती - मोती।।
है लगे हजारों हाथ,
यह देश भारत.....

कहीं नौला है, कहीं धौरा है
कहीं जाबो कूलम आपतानी।
कहीं बंधा पोखर पाइन है
कहीं ताल, पाल औ झाल सजे।।
कहीं ताल-तलैया ता ता थैया,
यह देश भारत....

bharat mata
उड़ीसा में समुद्री तूफान
Posted on 17 Mar, 2012 12:47 PM

उल्लेखनीय तथ्य यह है कि समुद्रतटीय इलाकों में समुद्री चक्रवात से बचाव के प्रथम प्रहरी समुद्रतटीय और कछारी वनों (

विकास और विनाश का रिश्ता
Posted on 17 Mar, 2012 12:44 PM हिमालय क्षेत्र में अक्तूबर 1991 में भीषण भूकंप आया था। उस त्रासदी के बाद तैयार की गई यह रिपोर्ट भूकंप से हुए भारी विनाश के लिए जिम्मेवार गलत नीतियों की पड़ताल करती है और अंधाधुंध विकास के दुष्परिणामों को लेकर चेताती है लेकिन जैसा कि जाहिर है, तब से लेकर आज तक हालात में ज्यादा बदलाव नहीं आया है।
कला के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करती गंगा नदी
Posted on 03 Mar, 2012 06:52 PM

संगीत में इसी नदी ने ‘भटियाली’ और ‘सरिगान’ नामक दो राग दिए। ‘भटियाली’ तो नाविकों द्वारा गाया जाने वाला सर्वाधिक

सभ्यता और संस्कृति की पोषक-गंगा
Posted on 03 Mar, 2012 06:35 PM

गंगाजल वर्षों तक किसी भी बर्तन में सुरक्षित रखा जा सकता है। इसलिए गंगा जल का विशेष महत्व है। क्योंकि वह अमृत तुल्य है अद्वितीय कोटि का है, जिसका वर्णन महाभारत एवं अन्य कई पौराणिक ग्रन्थों में किया गया है। पश्चिमी वैज्ञानिकों ने भी गंगा के जल की इस अद्भुत विशेषता को सिद्ध किया है। डॉ. एफ.सी. हैरिसन के अनुसार गंगा जल में एक अनोखा गुण है, जिसकी सन्तोषजनक व्याख्या मुश्किल है। इसमें हैजे के जीवाणु की तीन से पाँच घंटे में मृत्यु हो जाती है। जबकि कई नदियों में यही जीवाणु तेजी से फैलती हैं। फ्रांस के एक डॉक्टर हेरेल यील्डेड ने भी अपने अनुसंधान के दौरान ऐसा ही पाया।

प्राचीन काल से ही भारत भूमि को स्वर्ग बनाती और यहां की सभ्यता और संस्कृति का पोषण करती गंगा नदी इस धरती की अलौकिक शोभा है। पवित्र तीर्थों की जननी तथा ज्ञान-विज्ञान की रक्षक इस नदी के बारे में पं. जवाहर लाल नेहरू ने लिखा है, “गगा तो विशेषकर भारत की नदी है, जनता की प्रिय है, जिससे लिपटी हैं भारत की जातीय स्मृतियां, उसकी आशाएँ और उसके भय उसके विजयगान, उसकी विजय और पराजय। गंगा तो भारत की प्राचीन सभ्यता का प्रतीक रही है, निशान रही है। सदा बदलती, सदा बहती, फिर भी वही गंगा की गंगा”। पूरे विश्व में ऐसी कोई नदी नहीं जिसे इतना आदर मिला हो। इसे यहां केवल जल का स्रोत नहीं वरन् देवी मानकर पूजा जाता है। कोई भी विशेष धार्मिक अनुष्ठान गंगा-जल के बिना पूरा नहीं होता। दुर्भाग्य से आज गंगा पहले जैसी नहीं रही। आज इसका पावन जल प्रदूषण की चपेट में है।
भारतीय नदी जल सम्पदा
Posted on 03 Mar, 2012 06:12 PM

हिमखंडों से निकली नदियों में पानी के दिनों में भी काफी पानी उपलब्ध रहता है। जबकि दस प्रायद्वीप

विश्व में प्रतिवर्ष जल की खपत
Posted on 01 Mar, 2012 05:35 PM

जल का एक प्रमुख उपयोग पीने का पानी है। विश्व में जितने भी गर्म देश हैं अथवा गर्म क्षेत्र हैं, वहां गर्मियों में

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