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पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा
पूर्वी घाट का प्रलय (समुद्री तूफान)
Posted on 21 Apr, 2013 12:54 PMबंगाल की खाड़ी में हवा के कम दबाव की बात मई के प्रथम सप्ताह के अंत से संचार माध्यमों से लगातार की जा रही थी। इसक
हमें भी जीने और रहने का अधिकार है
Posted on 19 Apr, 2013 04:07 PM बस्तर और विशेष रूप से बोधघाट परियोजना के क्षेत्र के अध्ययन और प्रभप्रकृति
Posted on 16 Apr, 2013 09:27 AMएक पेड़ था बहुत बड़ा
और अपनी अनोखी छाया से भरा
जितनी सुंदर उसकी काया
उतनी अद्भुत उसकी माया
धरती उदास है।
Posted on 22 Mar, 2013 04:05 PMकहते हैं, इन दिनों
धरती बेहद उदास है
इसके रंजो-गम के कारण
कुछ खास हैं।
कहते हैं, धरती को बुखार है;
फेफड़े बीमार हैं।
कहीं काली, कहीं लाल, पीली,
...तो कहीं भूरी पड़ गईं हैं
नीली धमनियां।
कहीं चटके...
कहीं गादों से भरे हैं
आब के कटोरे।
कुंए हो गये अंधे
बोतल हो गया पानी
कोई बताये
लहर कहां से आये ?
मिटकर जीना
Posted on 22 Mar, 2013 03:56 PM23 मार्च - शहीदी दिवस पर विशेष
चक्की में पिस आटा बनने को
दाने होते हैं मजबूर कई
बीज बन रहते हैं जो हरदम तैयार
मिटने को धरती के भीतर
वे ही बनते हैं दिवस शहीदी के आधार
वे ही बनते हैं वटवृक्ष एक दिन
वे ही भर सकते हैं घर
आंगन खुशबू से बन फूल
उनसे ही रहती है
यह सृष्टि सदाबहार
चक्की में........
मां भारती का जलगान
Posted on 22 Mar, 2013 03:48 PM22 मार्च- विश्व जल दिवस पर विशेष
जयति जय जय जल की जय हो
जल ही जीवन प्राण है।
यह देश भारत....
सागर से उठा तो मेघ घना
हिमनद से चला नदि प्रवाह।
फिर बूंद झरी, हर पात भरी
सब संजो रहे मोती - मोती।।
है लगे हजारों हाथ,
यह देश भारत.....
कहीं नौळा है, कहीं धौरा है
कहीं जाबो कूळम आपतानी।
खुद का मैं नीर बहूं गन्दी नदियों में
Posted on 07 Mar, 2013 10:13 AMखुद का मैं नीर बहूं गन्दी नदियों में , साफ सी नदियां लाओ नामै पानी हूँ लेकिन मेरी अब तक कोई शक्ल नही है
नाम कोई इंसा सा दे दो ,शक्ल कोई इंसा सा दे दो
मेरा कोई रंग नही है पर मै हर रंग में रंग जाता हूँ
तुम भी अब मेरी ही तरह से पानी क्यों नही बन जाते हो
रिश्ते सा कुछ रख भी लो मुझको, खून सा अब कर लो मुझको
तुमने पाले तोते, कबूतर, पानी पाल दिखाओ ना
एक निर्मल कथा
Posted on 04 Mar, 2013 10:41 AMहमारे दूसरे शहरों की तरह कोलकाता अपना मैला सीधे किसी नदी में नहीं उंडेलता। शहर के पूर्व में कोई 30 हजार एकड़ में फैले कुछ उथले तालाब और खेत इसे ग्रहण करते हैं और इसके मैल से मछली, धान और सब्जी उगाते हैं। यह वापस शहर में बिकती है। इस तरह साफ हो चुका पानी एक छोटी नदी से होता हुआ बंगाल की खाड़ी में विसर्जित हो जाता है। हुगली नदी के साथ कोलकाता वह नहीं करता जो दिल्ली शहर यमुना के साथ करता है या कानपुर और बनारस गंगा के साथ। इस अद्भुत कहानी को समझने का किस्सा बता रहे हैं एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी, जिनके कई सालों के प्रयास से यह व्यवस्था आज भी बची हुई है।
कोलकाता शहर को इतनी सेवाएं मुफ्त मिल रही हैं। अगर शहर ढेर-सा रुपया खर्च कर यह सब करने के आधुनिक संयंत्र लगा भी ले तो उनका क्या हश्र होगा? जानना हो तो राजधानी दिल्ली के सीवर ट्रीटमेंट संयंत्रों को देख लें। बेहद खर्चीले यंत्रों का कुछ लाभ है, प्रभाव है- इसे समझना हो तो यमुना नदी का पानी जांच लें।
कुंभ निवेदन
Posted on 15 Jan, 2013 02:36 PMए नये भारत के दिन बता!
ए नदिया जी के कुंभ बता!
उजरे-कारे सब मन बता!!
क्या गंगदीप जलाना याद तुम्हें
या कुंभ जगाना भूल गये ?
या भूल गये कि कुंभ सिर्फ नहान नहीं,
गंगा यूं ही है महान नहीं।
नदी सभ्यतायें तो कई जनी,
पर संस्कृति गंग ही परवान चढ़ी।
“नदियों में गंगधार हूं मैं’’
क्या श्रीकृष्ण वाक्य तुम भूल गये?
जल चालीसा
Posted on 07 Jan, 2013 04:17 PMजल मंदिर, जल देवता, जल पूजा जल ध्यान।जीवन का पर्याय जल, सभी सुखों की खान।।
जल की महिमा क्या कहें, जाने सकल जहान।
बूंद-बूंद बहुमूल्य है, दें पूरा सम्मान।।