जल का एक प्रमुख उपयोग पीने का पानी है। विश्व में जितने भी गर्म देश हैं अथवा गर्म क्षेत्र हैं, वहां गर्मियों में शरीर से विभिन्न रूपों में अधिक मात्रा में पानी निकलता है। इस कमी को पूरा करने के लिए पानी पीने की आवश्यकता होती है। जबकि ठंडे देशों में पीने के पानी की कम आवश्यकता होती है। वहां कॉफी, चाय, फलों का रस, बीयर और शराब तो पी जाती है, पर पानी नहीं पीया जाता क्योंकि वहां जलवायु के कारण शरीर से पानी अधिक नहीं निकलता और जो थोड़ी बहुत पानी की कमी होती भी है, वह उपर्युक्त वस्तुओं से पूरी हो जाती है।
समुद्र और महासागर के जल का उपयोग घरेलू और औद्योगिक कार्यों में कर पाना मुश्किल है, क्योंकि इस खारे जल को पहले मृदु बनाना पड़ता है। प्राकृतिक झीलें हमारे देश में कम हैं, परन्तु पानी की कमी वाले क्षेत्रों में मानव निर्मित अनेक झीलों का भरपूर उपयोग होता है। प्रायः झीलों के आसपास घनी आबादी रहती है। कई गांवों में तालाब भी जल के स्रोत हैं। बढ़ती आबादी ने जल संसाधनों को प्रदूषित करने के साथ जल की मांग को भी बढ़ाया है। विश्व की नदियों में प्रतिवर्ष बहने वाले 41,000 घन किलो मीटर जल में से 14,000 घन किलोमीटर का ही उपयोग किया जा सकता है। इस 14,000 घन किलो मीटर जल में भी 5,000 घन किलोमीटर जल ऐसे स्थानों से गुजरता है, जहां आबादी नहीं है और यदि है भी तो उपयोग करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इस प्रकार केवल 9,000 वर्ग किलोमीटर जल का ही उपयोग पूरे विश्व की आबादी करती है।स्थानीय जल की उपलब्धता जनसंख्या से बहुत प्रभावित होती है। कनाडा में प्रतिवर्ष प्रतिव्यक्ति जल की उपलब्धता 1,22,000 घन मीटर है, जबकि माल्टा में मात्र 70 घन मीटर। सहारा रेगिस्तान के आस-पास स्थित देश और मध्य-पूर्व एशिया के देशों में जल का भयंकर अभाव है। भूतपूर्व सोवियत संघ, आस्ट्रेलिया, अमेरिका और भारत के कई क्षेत्रों में भी पानी की कमी है। हैती, पोलैंड और बेल्जियम जैसे देश जल की दृष्टि से सम्पन्न हैं, पर वहां भी घनी आबादी के कारण कई क्षेत्रों में पानी का अभाव बना रहता है। जहां बेल्जियम में प्रतिवर्ष 12.5 घन किलोमीटर जल का उपयोग होता है वहां ओमान में उपयोग के लिए मात्र 0.66 घन किलोमीटर जल उपलब्ध है। लेकिन प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता के संदर्भ में यह अंतर बहुत कम हो जाता है। बेल्जियम में यह मात्र 1,270 घन मीटर प्रतिवर्ष है और ओमान में 540 घन मीटर प्रतिवर्ष।
विशेषज्ञों के अनुसार यदि 2,000 या इससे अधिक व्यक्तियों के बीच प्रतिवर्ष दस लाख घन मीटर की खपत होती हो, तो जल की कमी हो जाती है। इतने ही जल के लिए इंग्लैंड, इटली, फ्रांस, भारत और चीन में औसतन 350 व्यक्ति हैं, जबकि ट्यूनेशिया में 2000 व्यक्ति और इस्राइल तथा सऊदी अरब में 4000 व्यक्ति हैं। नेपाल, स्वीडन, इंडोनेशिया और बांग्लादेश में प्रतिवर्ष दस लाख घन मीटर जल सौ से भी कम व्यक्तियों के लिए उपलब्ध रहता है। अमेरिका में सौ से थोड़े ज्यादा और जापान में 200 व्यक्ति इतने जल का उपयोग कर पाते हैं। जल की उपलब्धता, वर्षा की मात्रा और अवधि पर भी निर्भर करती है। सहारा रेगिस्तान के आस-पास बसे देशों, दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका, सऊदी अरब, दक्षिण ईरान, पश्चिमी भारत, पाकिस्तान, दक्षिणी-पश्चिमी मेक्सिको, चिली और ब्राजील के कुछ भागों में पहले जिस जगह अधिक समय तक औसत वर्षा होती थी वहां पिछले कुछ वर्षों में 40 प्रतिशत से भी कम वर्षा हुई है। इसके कारण इन क्षेत्रों में अब सूखा पड़ जाता है। लगभग 50 वर्ष पहले माले के कुछ भागों में 715 मिली लीटर औसत वर्षा होती थी, किन्तु पिछले 15 वर्षों में इन्हीं क्षेत्रों में मात्र 517 मिली मीटर वर्षा दर्ज की गई है।
एक अनुमान के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष 2,600 से 3,500 घन किलो मीटर के बीच जल की वास्तविक खपत है। मनुष्य को जिंदा रहने के लिए प्रतिवर्ष एक घन मीटर पीने का पानी चाहिए, परन्तु समस्त घरेलू कार्यों को मिलाकर प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष 30 घन मीटर जल की आवश्यकता होती है। विश्व जल की खुल खपत 6 फीसदी हिस्सा घरेलू कार्यों में प्रयुक्त होता है। कृषि कार्यों में 73 प्रतिशत जल और उद्योगों में 21 प्रतिशत जल की खपत होती है। पूर्वी यूरोप के देशों में जल की कुल खपत का 80 प्रतिशत उद्योगों में प्रयुक्त होता है, जबकि तुर्की में यही खपत 10 प्रतिशत, मैक्सिको में 7 प्रतिवशत और घाना में 3 प्रतिशत है। कुछ देश जल की उपलब्धता की दृष्टि से सम्पन्न हैं क्योंकि उनकी जनसंख्या कम है। कनाडा में प्रतिव्यक्ति जल की उपलब्धता 1,22,000 घन मीटर प्रतिवर्ष है, जबकि वास्तविक खपत मात्र 1,500 घन मीटर है। इसके विपरीत मिस्र में जल की प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष उपलब्धता 1,180 घन मीटर के मुकाबले उसकी खपत 1,470 घन मीटर है।
उत्तरी अमेरिका में जल की वास्तविक खपत 2,230 घन मीटर प्रतिवर्ष पश्चिम यूरोप के देशों में 656 घन मीटर और जापान, आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड में 945 घन मीटर प्रतिव्यक्ति है। वर्ष 1950 में विश्व में प्रतिव्यक्ति जल की औसत खपत मात्र 1,000 घन मीटर प्रतिवर्ष थी, जो 1980 में बढ़कर 3,600 घन मीटर हो गई। विकासशील देशों में घरेलू कार्यों में जल की उपलब्धता में बहुत असमानता है। अफ्रीका के लोसेथों क्षेत्रों में केवल 13 प्रतिशत व्यक्तियों को पीने का साफ पानी मिलता है, जबकि लीबिया में 96 प्रतिशत जनसंख्या को यह सुविधा मिली हुई है। भारत में 70 फीसदी से अधिक आबादी को पीने का सुरक्षित पानी मिलता है, जबकि पराग्वे में केवल 25 फीसदी आबादी को पीने का सुरक्षित पानी मिल पाता है।
विश्व में लगभग 1.2 अरब व्यक्तियों को, जो पूरी आबादी का 24 प्रतिशत हैं पीने का साफ पानी नहीं मिल पाता है। इस कारण गंदे पानी के इस्तेमाल से होने वाले रोगों जैसे-हैजा, टाइफाइड, दस्त पेचिश, मलेरिया और आंतों के रोगों से करीब 50 लाख व्यक्ति हर साल मौत का शिकार होते हैं। जल का एक प्रमुख उपयोग पीने का पानी है। विश्व में जितने भी गर्म देश हैं अथवा गर्म क्षेत्र हैं, वहां गर्मियों में शरीर से विभिन्न रूपों में अधिक मात्रा में पानी निकलता है। इस कमी को पूरा करने के लिए पानी पीने की आवश्यकता होती है। जबकि ठंडे देशों में पीने के पानी की कम आवश्यकता होती है। वहां कॉफी, चाय, फलों का रस, बीयर और शराब तो पी जाती है, पर पानी नहीं पीया जाता क्योंकि वहां जलवायु के कारण शरीर से पानी अधिक नहीं निकलता और जो थोड़ी बहुत पानी की कमी होती भी है, वह उपर्युक्त वस्तुओं से पूरी हो जाती है। भारत, अमेरिका के कुछ क्षेत्रों, मैक्सिको, कनाडा, चीन, जापान, श्रीलंका, और पाकिस्तान जैसे देशों में पीने के पानी की बहुत खपत होती है। गर्मी के दिनों में जब लू चलती है, तब लगातार पानी नहीं पीने से शरीर में पानी की कमी हो सकती है।
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