पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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भू-जल संग्रह दोहावली
Posted on 28 Jul, 2011 03:03 PM

धरती माँ की कोख में, जल के हैं भंडार।
बूंद-बूंद को तड़प रहे, फिर भी हम लाचार।।

दोहन करने के लिये, लगा दिया सब ज्ञान।
पुनर्भरण से हट गया, हम लोगों का ध्यान।।

गहरे से गहरे किये, हमने अपने कूप।
रही कसर पूरी करी, लगा लगा नलकूप।।

जल तो जीवन के लिए, होता है अनमोल।
पर वर्षा के रूप में,मिलता है बेमोल।।

एक तिनके से आई क्रांति
Posted on 10 May, 2011 03:15 PM

प्रस्तावना

गीत नदी की रक्षा का
Posted on 20 Apr, 2011 10:29 AM नदियों को आजाद करो
अब न उन्हें बर्बाद करो,
नदियाँ अविरल बहने दो
उनको निर्मल रहने दो,
नदियों को यदि बहना है
तो जंगल को रहना है,
बॉंध नदी के दुश्मन हैं
जंगल उसके जीवन हैं,
मत काटो-बर्बाद करो,
उन्हे पुनः आबाद करो।

धरती का सम्पूर्ण जहर
गाँव-गाँव और शहर-शहर
बहा सिंधु मे ले जातीं
कुदरती खेतीः बिना कर्ज, बिना जहर
Posted on 06 Apr, 2011 09:50 AM कर्ज और जहर बगैर खेती के कई रूप और नाम हैं- जैविक, प्राकृतिक, जीरो-बजट, सजीव, वैकल्पिक खेती इत्यादि। इन सब में कुछ फर्क तो है परन्तु इन सब में कुछ महत्वपूर्ण तत्त्व एक जैसे हैं। इसलिये इस पुस्तिका में हम इन सब को कुदरती या वैकल्पिक खेती कहेंगे। कुदरती खेती में रासायनिक खादों, कीटनाशकों और बाहर से खरीदे हुए पदार्थों का प्रयोग या तो बिल्कुल ही नहीं किया जाता या बहुत ही कम किया जाता है। परन
दिल्ली में अब पानी के निजीकरण की तैयारी
Posted on 21 Mar, 2011 04:36 PM

हंगामे की शुरुआत, कांग्रेस में ही झलके मतभेद

दो घूंट पानी
Posted on 19 Mar, 2011 10:15 AM ‘पानी पिलाया?’ दो शब्दों का यह छोटा सा सवाल अपने भीतर ग्रंथों के बराबर का जवाब समेटे हुए है। एक ‘हां’ सुनते ही प्यासे कंठ के तृप्त होने के बात चेहरे पर उभरे संतुष्टि के भाव याद हो आते हैं और जब इसका प्रयोग मुहावरे के रूप में हो तो जवाब सुन दूसरे पक्ष की हार सुकून देती है। पानी है ही ऐसी चीज निर्जीव में प्राणों का संचार कर देने वाला पानी असल आब है। आजकल तो नहीं दिखता लेकिन कुछ बरस पहले तक पानी पिला
तालाब का सूखना
Posted on 19 Mar, 2011 10:12 AM तालाब या झील के मायने क्या हैं? मिट्टी की दीवारों के बीच सहेजा गया पानी कहीं प्राकृतिक संरचना तो कहीं इंसानी जुनून का परिणाम। यही तालाब, पोखर, झील आज सूख रहे हैं... देखभाल के अभाव में रीत रहे हैं और कहीं मैदान, कहीं कूड़ागाह के रूप में तब्दील हो रहे हैं। कितना दुखद पहलू है कि जिन झीलों में जहाज चला करते थे... जिनको नाप लेने के लिए भुजाएं आजमाईश किया करती थीं...जो प्यास बुझाते थे...
पानी को न जाना कुछ भी
Posted on 19 Mar, 2011 10:08 AM मीरा बाई ने बरसों पहले एक भजन में कुछ सवाल पूछे थे। उनका पहला प्रश्न था- जल से पतला कौन है? सभी जानते हैं कि जल से पतला ज्ञान बताया गया था। बात इतनी सी है कि जल की इस तरलता को समझने में हमने बरसों लगा दिए, फिर भी अज्ञानी ही रहे।
पेप्सी-कोक का आर्थिक साम्राज्य
Posted on 10 Mar, 2011 11:56 AM

इन्हें स्कूल की कैण्टीन से बाहर करें, खेलकूद के मैदान से और बस अड्डों से बाहर करें। छतरियों, कुर्सियों, दुकानों की दीवारों, टी शर्टों और हार्डिंग्स से इन्हें बाहर करें। वैश्विक गाँव में वैश्विक उपनिवेशवादियों के चंगुल में भारत को नहीं फँसने देना है। दुनिया के स्तर पर परिवर्तन बहुत तेजी से हुआ है। राष्ट्र कमजोर हुए हैं, बाजार मजबूत हुआ है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ वैश्विक ताकत हैं। दुनिया में नई ग

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