पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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जल चक्र
Posted on 01 Mar, 2012 05:25 PM बर्फ, जल और वाष्प, पानी के तीन स्वरूप हैं। व्यापक अर्थ में देखें तो ये लगातार एक दूसरे में परिवर्तित होते रहते हैं। वैसे तो यह एक सामान्य-सी प्रक्रिया है, पर सागर की सतह का निर्धारण, तापक्रम का सामंजस्य और धरती को जीवन धारण करने योग्य बनाए रखने में इनका बहुत महत्व है। पानी के एक स्वरूप से दूसरे स्वरूप में परिवर्तित होने की प्रक्रिया ही जल-चक्र कहलाती है। विश्व में पानी की कुल मात्रा 1.4 बिलियन घन
विश्व में मौजूदा जल-चक्र
हमारी नदियां : बिन पानी सब सून
Posted on 01 Mar, 2012 01:03 PM

वैज्ञानिकों का मत है कि जीवन की शुरुआत जल में हुई। यदि पृथ्वी पर जल नहीं होता तो, यह अन्य ग्रहों जैसे जीवन शून्य

अरुणाचल यात्रा
Posted on 28 Feb, 2012 11:17 AM

पहले सुवर्णसीरी वर्षा में भी पारदर्शी रहती थी। अब शायद सड़क आदि के कारण मिट्टी आने लगी है। बाढ़ भी आने लगी है। ज

लातूर भूकंप
Posted on 27 Feb, 2012 04:57 PM

लातूर जिले में जो अधिकांश मकान ध्वस्त हुए वे सब पत्थर से निर्मित थे। लेकिन यहां मकान पर जो पत्थर थोपे गए थे वे ब

ब्रह्मपुत्र की गोद में कुदरत से बर्ताव
Posted on 25 Feb, 2012 03:29 PM

असम में ब्रह्मपुत्र का विराट रूप मिलता है तो अरुणाचल में उसकी शाखाओं तथा बिगड़े हुए जल संग्रह क्षेत्रों को जानने

गंगा के साथ-साथ
Posted on 21 Feb, 2012 05:27 PM

बनारस जिले में गंगा-वरुणा संगम के समीप पर स्थित सरायी गोहना गांव में गंगा द्वारा भूमि कटान से कई मकान कट रहे हैं

सतलज यात्रा
Posted on 21 Feb, 2012 02:07 PM

अब हम सतलज के काफी निकट पहुंचे गए थे। उसका विशाल स्वरूप दिखने लग गया था। वह शोर करती हुई आगे बढ़ रही थी। उसका पा

चिशूल के आसपास
Posted on 21 Feb, 2012 12:42 PM

यूरा की देखभाल एवं पानी के वितरण की भी गांवों में परंपरा से ही प्रबंध है। इस कार्य में बारी लगाई जाती है। इसे छु

रंग-बिरंगे पहाड़ों के बीच हरी-भरी घाटियां
Posted on 15 Feb, 2012 05:45 PM

सुरू नदी फिर एक तिकोने फैले हुए पाट में पहुंचती है। यहां भी हरियाली बनी है। इस गांव को पानीखर के नाम से पुकारा ज

आज भी खरे हैं तालाब (बंगाली)
Posted on 03 Feb, 2012 02:00 PM

अपनी पुस्तक “आज भी खरे हैं तालाब” में श्री अनुपम जी ने समूचे भारत के तालाबों, जल-संचयन पद्धतियों, जल-प्रबन्धन, झीलों तथा पानी की अनेक भव्य परंपराओं की समझ, दर्शन और शोध को लिपिबद्ध किया है।

आज भी खरे हैं तालाब (बंगाली)
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