संगीत में इसी नदी ने ‘भटियाली’ और ‘सरिगान’ नामक दो राग दिए। ‘भटियाली’ तो नाविकों द्वारा गाया जाने वाला सर्वाधिक लोकप्रिय संगीत है। स्वर्गीय सचिन देव बर्मन ने अपने संगीत में इसका उपयोग कर इसे नया आयाम दिया। भटियाली को प्रायः मल्लाह आराम करते समय गाते हैं, और सरिगान प्रायः तेजी से चलती नौका पर गाया जाता है। एलोरा की गुफाओं में गंगा और यमुना को स्त्री-रूप में दर्शाया गया है। तमिलनाडु के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल महाबलिपुरम में एक ही चट्टान को काटकर अनेक छोटे-छोटे चित्र बनाए गए हैं। पूरे विश्व में यह अपने जैसी सबसे बड़ी रचना है।
ऐसा नहीं है कि गंगा नदी की महिमा केवल वेदों और पुराणों तक ही सीमित रही हो। इसका प्रभाव साहित्य, चित्रकला, मूर्तिशिल्प और फिल्मों पर भी पड़ा है। शाहजहाँ के दरबारी कवि पंडित जगन्नाथ ने एक मुस्लिम राजकुमारी से शादी की थी। इस अपराध में उन्हें जाति से निकाल दिया गया। इसी दौरान उन्होंने ‘गंगा-लहरी’ नामक पुस्तक लिखी, जिसमें गंगा की स्तुति है। कहा जाता है गंगा नदी उनकी स्तुति से प्रसन्न हुई और समाज से ठुकराए प्रेमियों को अपनी लहर रूपी गोद में डाल दिया। ब्रजभाषा के महान कवि पद्माकर ने ‘गंगा-तरंग’ की रचना की है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने अपने प्रसिद्ध नाटक ‘हरिश्चन्द्र’ में गंगा नदी की स्तुति में गंगा-वर्णन नामक एक अलग अध्याय लिखा था। इस क्षेत्र में जगन्नाथ दास रत्नाकर का योगदान अप्रतिम है। उन्होंने ‘गंगावतार’ की रचना की। इसी संदर्भ में उनकी दो और अधूरी रचनाएँ हैं, जिनके नाम ‘काला-काशी’ और ‘गंगा’ हैं। नंदकिशोर मिश्रा नामक कवि ने ‘गंगाभरण’ लिखा जिसमें गंगा की स्तुति माँ के रूप में की गई है।केशव प्रसाद मिश्र ने ‘गंगा-जल’ नामक उपन्यास की रचना की। शिवप्रसाद सिंह द्वारा रचित ‘गलि आगे मुड़ती है’ तथा ‘अलग-अलग वैतरिणी’, लक्ष्मीनारायण लाल द्वारा रचित ‘प्रेम अपवित्र नदी’ और नागार्जुन द्वारा रचित ‘वरुण के बेटे’ नामक उपन्यास भी गंगा के इर्द-गिर्द ही घूमते हैं। मराठी भाषा में मोरोपंत, बापूसाहेब कुरुंडवाडकर, जोनाबाई, तुकाराम, मुक्तेश्वर, नरहरि और चिन्तामणि पेटकर ने गंगा को आधार बनाकर अनेक काव्यों की रचना की। गुजराती के प्रसिद्ध कवि उमाशंकर जोशी ने अपने पहले काव्य संग्रह का नाम ‘गंगोत्री’ रखा। जापानी कवि योने नागुचि के एक काव्य संग्रह का नाम ‘द काल ऑफ दि गंगेज’ है। अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक टी. एस. इलियट ने अपनी पुस्तक ‘वेस्टलैंड’ में गंगा का वर्णन किया है। गंगा नदी ने कई वैज्ञानिकों को भी आकर्षित किया। शान्तिस्वरूप भटनागर ने इसकी महत्ता पर उर्दू भाषा में एक लंबी कविता की रचना की और सर जगदीश चन्द्र बोस ने इसके उद्भव से सम्बंधित एक लम्बा लेख लिखा।
संगीत में इसी नदी ने ‘भटियाली’ और ‘सरिगान’ नामक दो राग दिए। ‘भटियाली’ तो नाविकों द्वारा गाया जाने वाला सर्वाधिक लोकप्रिय संगीत है। स्वर्गीय सचिन देव बर्मन ने अपने संगीत में इसका उपयोग कर इसे नया आयाम दिया। भटियाली को प्रायः मल्लाह आराम करते समय गाते हैं, और सरिगान प्रायः तेजी से चलती नौका पर गाया जाता है। एलोरा की गुफाओं में गंगा और यमुना को स्त्री-रूप में दर्शाया गया है। तमिलनाडु के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल महाबलिपुरम में एक ही चट्टान को काटकर अनेक छोटे-छोटे चित्र बनाए गए हैं। पूरे विश्व में यह अपने जैसी सबसे बड़ी रचना है। इसे कुछ लोग भगीरथ की गंगा नदी को पृथ्वी पर उतारने के लिए की गई तपस्या का चित्र मानते हैं। इसमें एक व्यक्ति एक पैर पर खड़े होकर तपस्या में लीन है। ईश्वर, राक्षस, मनुष्य, जानवर और पक्षी सभी उसे देख रहे हैं। सभी चित्र सजीव हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि अभी बोल पड़ेंगे। अनेक आकृतियाँ गहरे ध्यान की मुद्रा में हैं। चट्टान के समीप एक दरार है जिसे गंगा नदी माना जाता है।
हिन्दी सिनेमा में गंगा के महत्व को कई तरह से उजागर किया गया है। ‘काबुलीवाला’ में मन्ना डे के स्वर से सुशोभित गीत ‘गंगा आए कहाँ से, गंगा जाए कहाँ रे’ हमेशा याद किया जाएगा। ‘गंगा तेरा पानी अमृत’ से लेकर ‘राम तेरी गंगा मैली’ तक फिल्मों में बताया गया है। एक अंग्रेजी फिल्म ‘सिद्धार्थ’ में हेमंत कुमार के स्वर में आज के समाज पर चोट करता बांग्ला में एक गाना था, जिसमें गंगा से पूछा गया था कि, ‘गंगा तुम बहती हो क्यूँ’। इसी गीत को हिन्दी में भूपेन हजारिका ने भी गाया। गंगा नदी को देवी की तरह माना जाता है, फिर भी यह आश्चर्य की बात है कि गंगा का कोई प्रसिद्ध मन्दिर नहीं है। शायद इसका कारण यह हो कि इस नदी ने जितने मंदिरों को संरक्षण प्रदान किया है, उतना किसी और ने नहीं। गंगोत्री, बद्रीनाथ, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर, कानपुर, बिठूर, इलाहाबाद, विध्यांचल, बनारस, बक्सर, सुलतानगंज, भागलपुर तथा पश्चिम बंगाल के अनेक शहरों में इस नदी के किनारे मंदिरों से भरे पड़े हैं।
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