पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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अब नदियों पर संकट है सारे गांव इकट्ठा हों
Posted on 15 Dec, 2012 12:19 PM अब नदियों पर संकट है सारे गांव इकट्ठा हों।
अब सदियों पर संकट है सारे गांव इकट्ठा हों।

पानी डूबा फाइल में
गाड़ी में मोबाइल में
सारे वादे डूब गए
खून सने मिसाइल में

एक घाव पर संकट है
सारे गांव इकट्ठा हो
एक गांव पर संकट है सारे गांव इकट्ठा हों

निजी कम्पनी आई हैं, झूठे सपने लाई हैं
इन जेबों में सत्ता है सारी सुविधा पाई हैं
नदी तू बहती रहना
Posted on 15 Dec, 2012 12:15 PM पर्वत की चिट्ठी ले जाना, तू सागर की ओर,
नदी तू बहती रहना।

एक दिन मेरे गांव में आना, बहुत उदासी है,
सबकी प्यास बुझाने वाली, तू खुद प्यासी है,
तेरी प्यास बुझा सकते हैं, हम में है वो जोर।

तू ही मंदिर तू ही मस्जिद तू ही पंच प्रयाग,
तू ही सीढ़ीदार खेत है तू ही रोटी आग
तुझे बेचने आए हैं ये पूँजी के चोर।
कहीं पे आग कहीं पर नदी बहा के रहो
Posted on 15 Dec, 2012 11:29 AM गांवों-गांवों में नई किताब लेके रहो
कहीं पे आग कहीं पर नदी बहा के रहो

हर आंख में सवाल चिखता रहेगा क्या
जवाब अब टोपियों में बंद रहेगा क्या

गांव-गांव में अब पैर को जमा के रहो
कहीं पे आग कहीं पर नदी बहा के रहो

भ्रष्ट अंधकार का समुद्र आयेगा
सूर्य झोपड़ी के द्वार पहुंच जाएगा

आंधियों के घरों में भी जरा जा के रहो
आज तो नदियां हमारे पास हैं
Posted on 15 Dec, 2012 11:16 AM आज तो नदियां हमारे पास हैं,
कम न होगी यह नहीं आभास है।

पेड़ सांसों के कटे, नदियां बिकीं,
कुछ लुटेरों की यहां, रोटी सिकीं,

जेब भरते लोग अक्सर खास हैं
कम न होगी यह नहीं आभास है।

प्यास की नदियां बही है आजकल,
सूखती लहरें बहीं हैं आजकल,

गुम हुआ हर मौसमी आभास है
कम न होगी यह नहीं आभास है।
कह रही हर बार ये अपनी नदी
Posted on 15 Dec, 2012 11:11 AM कब से बह रही, यार ये अपनी नदी
कह रही हर बार ये अपनी नदी।

शोर है, गम्भीरता का, रंग है,
एक जीवित व्यक्ति है अपनी नदी।

काट डाले हाथ और फिर पैर उसके,
एक सिसकता गांव है, अपनी नदी,

औरतों के पेट तलवारों से चीरे
दंगों में फंसी हर सांस है, अपनी, नदी।

पंचतारा होटलों में बैठ कर,
बेचते हैं हुकमरां, अपनी नदी।
नदियों में आग लगी है इन दिनों
Posted on 15 Dec, 2012 11:01 AM पानी में आग लगी हैं, इन दिनों
नदियों में आग लगी है इन दिनों

सूरज के ताप से सागर की भाप से
हाथों में अंगारों, सूने पदचाप से

जंगल में आग लगी है इन दिनों
नदियों में आग लगी है इन दिनों

बहते पानी वाले, रिश्ते सब टूट रहें,
कितने गहरे वाले पीछे छूट रहे हैं

रिश्तों में आग लगी है इन दिनों
हिम युग की वापसी
Posted on 10 Dec, 2012 11:15 AM विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक और लेखक जयंत विष्णु नार्लीकर की हिमयुग को लेकर अपनी अलग संकल्पना है जिसे उन्होंने यहां एक विज्ञान-कथा के जरिये सहजता से समझाया है। आइए उनकी नजर से देखें कि अगर हिमयुग आएगा तो क्यों और कैसे?
पुस्तक: नदियां और हम
Posted on 16 Nov, 2012 11:00 AM रामेश्वर मिश्र पंकज द्वारा लिखी ‘नदियां और हम’ पुस्तिका की मूल प्रति यहां पीडीएफ के रूप में संलग्न है। पूरी किताब पढ़ने के लिए इसे डाउनलोड कर सकते हैं।

पुस्तक अंश

गोचर का प्रसाद बांटता लापोड़िया-भाग 1
कोई भी समाज शून्य में जीवित नहीं रह सकता। उसे अपने लोगों, अपने पशुओं, अपनी जमीन, अपने पेड़ पौधों, अपने कुएं, अपने तालाबों, अपने खेतों के लिए कोई न कोई ऐसी व्यवस्था बनानी पड़ती है, जो समयसिद्ध और स्वयंसिद्ध हो। काल के किसी खंड विशेष में समाज के सभी सदस्यों के साथ मिल-जुलकर जो व्यवस्था बनती है Posted on 14 Nov, 2012 09:23 AM

अनुपम जी द्वारा लिखी ‘गोचर का प्रसाद बांटता लापोड़िया’ पुस्तिका की मूल प्रति यहां पीडीएफ के रूप में संलग्न है। पूरी किताब पढ़ने के लिए इसे डाउनलोड कर सकते हैं।



जयपुर अजमेर रोड पर स्थित एक छोटा से गांव लापोड़िया ने तालाबों के साथ-साथ अपना गोचर भी बचाया और इन दोनों ने मिलकर यानि तालाब और गोचर ने लापोड़िया को बचा लिया। आज गांव की प्यास बुझ चुकी है। छः-छः साल के अकाल के बाद भी लापोड़िया की संतुष्ट धरती में हर तरफ हरियाली होती है।

चौका
जल का भंडारा
Posted on 03 Oct, 2012 04:43 PM
लेकिन इसी महाराष्ट्र में एक ऐसा भी इलाका है जो अकाल को अपने गांव की सीमा के बाहर ही रखता है। पानी सहेजने की एक लंबी सामाजिक परंपरा निभाते हुए यह अपनी गुमनामी में भी मस्त रहता है।अकाल की पदचाप सुनाई देने लगी है। पानी के अकाल के साथ-साथ इंसानियत के अकाल की खबरें भी अखबारों में आने लगी हैं। इस अकाल को और ज्यादा भयानक बनाने के लिए महाराष्ट्र राज्य की सरकार ने पहले से ही कमर कस ली थी! सन् 2003 में महाराष्ट्र राज्य की जलनीति तैयार हुई थी। इस नीति में पानी के इस्तेमाल का क्रम बदल डाला था। केंद्र सरकार की नीति में पहली प्राथमिकता पीने के पानी की, दूसरी खेती की और उसके बाद उद्योगों की रखी गई है। पर महाराष्ट्र सरकार ने इस क्रम को बदल कर पहली प्राथमिकता पीने के पानी को दी, दूसरी उद्योगों को और उसके बाद अंतिम खेती को।

बात यहीं तक सीमित नहीं थी। महाराष्ट्र जल क्षेत्र सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत सन् 2005 में दो कानून बहुत आनन फानन में बना दिए गए थे। पहला था महाराष्ट्र जल नियामक प्राधिकरण अधिनियम और दूसरा सिंचाई में किसानों की सहभागिता अधिनियम। पहले कानून का आधार लेकर महाराष्ट्र में जल नियामक प्राधिकरण की स्थापना की गई। प्राधिकरण पानी की दरों को तय करेगा, जल वितरण करेगा और जल संबंधी विवादों का निपटारा भी वही करेगा अब। ये सारे काम अब तक शासन करता था। अब तीन लोगों का प्राधिकरण इन कामों को करेगा। प्राधिकरण ने पहले काम की शुरूआत भी बड़ी जल्दी कर दी यानी पानी के दरें तय करना। बड़े पैमाने पर पानी के इस्तेमाल के लिए किस तरीके से दरें तय हों यह बताने के लिए ए.बी.पी. इन्फ्रास्ट्रकचर प्रा. लि. नामक कंपनी को टेंडर निकाल
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