Posted on 15 Dec, 2012 03:04 PMबहती नदी के साथ बहता वह समय आता हुआ छूटती है दूर तक लहरों से बनी कृतियां शब्दों से दूर बसी नदी की गहराई में कविता पर्वतों के बीच से सबसे तरल दिल बह रहा है धड़कनों के साथ किनारों पर मिल रहा है जो बस छूटता है फिर भी अकेली जंगलों और पर्वतों के गांव प्यासे हैं दूर है अब भी नदी नदी के होंठ से