पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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मैंग्रोव :- प्रस्तावना
Posted on 08 Mar, 2011 12:58 PM मैंग्रोव शब्द की उत्पत्ति पुर्तगाली शब्द ‘मैंग्यू’ तथा अंग्रेजी शब्द ‘ग्रोव’ से मिलकर हुई है। मैंग्रोव शब्द का उपयोग पौधों के उस समूह के लिये किया जाता है जो खारे पानी और अधिक नमी वाले स्थानों पर उगते है। इस शब्द का प्रयोग पौधों की एक विशेष प्रजाति के लिये भी किया जाता है। मैंग्रोव, उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों के तटों पर उस स्थान पर उगने वाली वनस्पति को कहा जाता है जहां ज्वार के समय समुद्र का खार
जैविक खेती
Posted on 01 Mar, 2011 09:30 AM भारत एक कृषि प्रधान तथा कृषि देश की अर्थ व्यवस्था का प्रमुख साधन है । भोजन मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है और अन्न से ही जीवन है, इसकी पूर्ति के लिए 60 के दशक में हरित क्रान्ति लाई गई ओर अधिक अन्न उपजाओं का नारा दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप रासायनिक उर्वरकों ओर कीटनाशकों का अन्धा-धुन्ध व असन्तुलित उपयोग प्रारम्भ हुआ । इससे उत्पादन तो बढ़ा उत्पादकता में स्थिरता आने के कारण पूर्व वर्षो की उत्पादन वृद्ध
चिनाब
Posted on 26 Feb, 2011 11:14 AM कश्मीर से लौटते समय पैर उठते ही नहीं थे। जाते समय जो उत्साह मन में था, वह वापस लौटते वक्त कैसे रह सकता था?
सहस्रधारा
Posted on 24 Feb, 2011 03:09 PM


पुराना ऋण शायद मिट भी सकता है; किन्तु पुराने संकल्प नहीं मिट सकते। पचीस वर्ष पहले मैं देहरादून में था, तब सहस्त्रधारा देखने का संकल्प किया था। उत्कंठा बहुत थी, फिर भी उस समय जा नहीं सका था। कुछ दिनों तक इसका दुःख मन में रहा, किन्तु बाद में वह मिट गया। सहस्त्रधारा नामक कोई स्थान संसार में कहीं है, इसकी स्मृति भी लुप्त हो गयी। मगर संकल्प कहीं मिट सकता है?

सहस्रधारा
पानी का निजीकरण
Posted on 01 Feb, 2011 10:53 AM

एक अध्ययन रिपोर्ट



असीम मुनाफे के उपासक भारत में भी पानी के निजीकरण के लिए दिन रात जुटे हुए हैं और काफी तैयारी पहले ही कर ली गई है। विशेषज्ञों को समझा लिया गया है, नौकरशाही को अपने खेमे में मिला लिया गया है। हर कोई पूरी लागत वसूली के नए मंत्र का जाप करता दिखाई देता है। इस पवित्र जाप की लय हर दिशा में गूंजती सुनाई देने लगी है।
ओजोन परत
Posted on 28 Jan, 2011 12:46 PM सूर्य का प्रकाश ओजोन परत से छनकर ही पृथ्वी पर पहुंचता हैं। यह खतरनाक पराबैंगनी विकिरण को पृथ्वी की सतह पर पहुंचने से रोकती है और इससे हमारे ग्रह पर जीवन सुरक्षित रहता है। ओजोन परत के क्षय के मुद्दे पर पहली बार 1976 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की प्रशासनिक परिषद (यूएनईपी) में विचार-विमर्श किया गया। ओजोन परत पर विशेषज्ञों की बैठक 1977 में आयोजित की गई। जिसके बाद ‘यूएनईपी’ और विश्व मौसम सं
जल संबंधी तकनीकी शब्दावली
Posted on 20 Jan, 2011 12:31 PM केन्द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला जल संसाधन मंत्रालय का एक सम्बद्ध कार्यालय है। इसे मुख्य रूप से राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नदी घाटी परियोजनाओं के निर्माण से संबंधित भू-तकनीकी अभियांत्रिकी एवं निर्माण सामग्री के आधारभूत तथा अनुसंधान समस्याओं के संबंध में कार्य करने वाले एक प्रमुख संस्थान के रूप में जाना जाता है । अनुसंधानशाला में उच्च प्रशिक्षण प्राप्त इंजीनियर तथा वैज्ञानिक हैं
'पानी बचाने के सरल उपाय' पुस्तिका
Posted on 18 Jan, 2011 01:07 PM
केन्द्रिय भूमि जल बोर्ड द्वारा प्रकाशित पुस्तिका में पानी बचाने के बारे में काफी जानकारियां पा सकते हैं।

पुस्तिका पढ़ने के लिए आप यहां क्लिक करें।
 
छुटकी की मनरेगा पर जागरूकता
Posted on 03 Dec, 2010 10:24 AM

छुटकी (छोटी लड़की) समर्थन की एक ऐसी पहल है जिसके माध्यम से कठिन मुद्दों को बड़े ही सरलतम तरीके से पेश किया गया है। छुटकी श्रोताओं को नरेगा के संबंध में क्या और कैसे जैसी जानकारियां बड़े ही कॉमिक अंदाज में बता रही है। इन आसान और कॉमिक तरीको को जानने के लिये आप यह पुस्तक पढ़ सकते हैं।

NAREGA
गोदावरी : दक्षिण की गंगा
Posted on 22 Oct, 2010 10:19 AM जिस प्रकार तेरे किनारे रामचंद्र ने दुष्ट रावण के नाश का संकल्प किया था, वैसा ही संकल्प मैं कब से अपने मन में लिए हुए हूं। तेरी कृपा होगी तो हृदय में से तथा देश में से रावण का राज्य मिट जायेगा, रामराज्य की स्थापना होते मैं देखूंगा और फिर तेरे दर्शन के लिए आऊंगा। और कुछ नहीं तो कांस की कलगी के स्थावर प्रवाह की तरह मुझे उन्मत बना दे, जिससे बिना संकोच के एक-ध्यान होकर मैं माता की सेवा में रत रह सकूं और बाकी सब कुछ भूल जाऊं। तेरे नीर में अमोघ शक्ति है। तेरे नीर के एक बिंदु का सेवन भी व्यर्थ नहीं जायेगा। बचपन में सुबह उठकर हम भूपाली गाते थे। उनमें से ये चार पंक्तियां अब भी स्मृतिपट पर अंकित हैं:

‘उठोनियां प्रातःकाळीं। वदनीं वदा चंद्रामौळी।
श्री बिंदुमाधवाजवळी। स्नान करा गंगेचें। स्नान करा गोदेचें।।’

कृष्णा वेण्ण्या तुंगभद्रा। सरयू कालिंदी नर्मदा।
भीमा भामा गोदा। करा स्नान गंगेचें।।


गंगा और गोदा एक ही हैं दोनों के माहात्म्य में जरा भी फर्क नहीं है। फर्क कोई हो भी तो इतना ही कि कालिकाल के पाप के कारण गंगा का माहात्म्य किसी समय कम हो सकता है, किन्तु गोदावरी का माहात्म्य कभी कम हो ही नहीं सकता। श्री रामचंद्र के अत्यंत सुख के दिन इस गोदावरी के तीर पर ही बीते थे, और जीवन का दारुण आघात भी उन्हें यहीं सहना पड़ा था। गोदावरी तो दक्षिणी की गंगा है।

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