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नये पुरुषार्थ का प्रारम्भ हिमालय से हो
Posted on 25 Jun, 2010 03:48 PM मेरी सहज समर्पित सेवाओं के लिए मुझे जो सम्मान दिया गया है, उसको मैं समाज का स्नेहपूर्ण आशीर्वाद मानती हूं।
नील का धब्बा
Posted on 22 Jun, 2010 11:30 AM हरा, पीला, लाल, सफेद, काला- ये सभी रंग प्रकृति में आसानी से मिल जाते हैं। पर नीला रंग मिलना सबसे मुश्किल रहा है। इसीलिए नीला रंग दे सकने वाले पौधे पर सबकी नजर टिक गई थी। व्यापारी की भी और शोषण करने वालों की भी। मारा गया किसान। नील के पौधे की खेती बिहार के चंपारण क्षेत्र में होती रही है। दुनिया की मांग का एक बड़ा भाग चंपारण से पैदा होता था और इसका सारा लाभ नील की खेती करने वाले किसानों को नहीं, बल्
कोई खास चिंता या पहल नहीं
Posted on 10 Jun, 2010 04:41 PM
अभी थोड़े दिनों पहले की बात है, जब यूरोप के आसमान पर छाई धुंध और गुबार ने यूरोपीय जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया था। आइसलैंड के एक ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे और धुएं से पूरा आसमान कई दिनों तक भरा रहा। यह महज एक उदाहरण भर है कि किस तरह दुनिया भर में पर्यावरण संबंधी मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। आज से कुछेक साल पहले तक किसी ने नहीं सोचा होगा कि पर्यावरण संबंधी ऐसी मुश्किलें भी आएंगी। हकीकत
सबसे बड़ा संकट- पानी
Posted on 29 May, 2010 09:20 AM बाबर ने अपने बाबरनामा में एक जगह लिखा है कि हिन्दुस्तान में चारों तरफ पानी-ही-पानी दिखाई देता है। यहां जितनी नदियां, मैने कहीं नहीं देखीं हैं। यहां पर वर्षा इतनी जोरदार होती है कि कई-कई दिनों तक थमने का नाम नहीं लेती है। बाबर के इस लेख से ज्ञात होता है कि पानी के मामले में भारत आत्मनिर्भर था लेकिन अब तो वह बूंद-बूंद पानी के लिए तड़प रहा है।भुखमरी, महामारी, अकाल के शिकार होकर प्राणियों को मरते तो देखा गया है, परन्तु किसी व्यक्ति ने पानी के बिना प्यास से दम तोड़ दिया हो इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता। 20वीं सदी की पहचान यही होगी कि प्यास के मारे प्राणियों ने दम तोड़ा है। बाबर ने अपने बाबरनामा में एक जगह लिखा है कि हिन्दुस्तान में चारों तरफ पानी-ही-पानी दिखाई देता है। यहां जितनी नदियां, मैने कहीं नहीं देखीं हैं। यहां पर वर्षा इतनी जोरदार होती है कि कई-कई दिनों तक थमने का नाम नहीं लेती है। बाबर के इस लेख से ज्ञात होता है कि पानी के मामले में भारत आत्मनिर्भर था लेकिन अब तो वह बूंद-बूंद पानी के लिए तड़प रहा है। पर्याप्त वर्षा न होना पर्यावरण प्रदूषण की गंभीरता
तृप्ति वो ही प्याऊ वाली
Posted on 26 May, 2010 09:45 PM
समाज में कई परंपराएँ जन्म लेती हैं और कई टूट जाती हैं। परंपराओं का प्रारंभ होना और टूटना विकासशील समाज का आवश्यक तत्त्व है। कुछ परंपराएँ टूटने के लिए ही होती हैं पर कुछ परंपराएँ ऐसी होती हैं, जिनका टूटना मन को दु:खी कर जाता है और परंपराएँ हमारे देखते ही देखते समाप्त हो जाती हैं, उसे परंपरा की मौत कहा जा सकता है।
साफ पानी पर बोतलबंद डाका
Posted on 20 May, 2010 10:37 PM शेयर बाजार हमें सिखाता है कि आपको कल्पनाशील होना चाहिए. यह कल्पनाशीलता किसी भी ऊंचाई तक जा सकती है.

इसलिए साफ पानी के बारे में आपको भी कुछ कल्पनाएं करनी चाहिए. एक ऐसी दुनिया की कल्पना करिए जहां सारा साफ पानी बोतलों में बंद है. बहुत से लोग भले ही इस बात से इत्तेफाक न रखें लेकिन कुछ लोगों को पता है कि यह संभव हो सकता है. शीर्ष शीतलपेय कंपनियां इस तरह की कल्पना कर रही हैं और संभावना भी टटोल रही हैं कि भविष्य में साफ पानी और बोतल एक दूसरे के पर्याय कैसे बन जाएं. वैसे भी साफ पानी करोड़ों लोगों के लिए सपना हो गया है ऐसे में राजनीतिक दल कुछ बेहतर काम कर सकते हैं. उन्हें राष्ट्रीय स्वच्छ पेयजल योजना पर काम करना चाहिए. आजकल जैसे राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के तहत 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी जा रही है उसी तरह चौबीसों घण्टे साफ पानी उपलब्ध कराने की योजना पर काम किया जाना चाहिए
पानी, जहर और जीडीपी
Posted on 17 May, 2010 10:13 PM

भारत में नदियों को प्रदूषित करने की अनुमति दी जाती है. आप जितना प्रदूषित पानी पिएंगे, बीमार पड़ने की उतनी ही अधिक संभावना होगी. फिर आप डाक्टर के पास जाएंगे, जो आपसे फीस वसूलेगा. जिसका मतलब हुआ कि पैसा हाथों से गुजरेगा. इससे जीडीपी बढ़ेगी. यहां तक कि सफाई अभियान भी, जैसे यमुना की सफाई के लिए एक हजार करोड़ रुपए, जीडीपी की गणना को ही बढ़ाती है.

इस चिलचिलाती गरमी में पानी का मुद्दा गरमाया हुआ है. जैसे-जैसे तापमान चढ़ रहा है और प्रमुख जलस्त्रोत सूखते जा रहे हैं, दिन-ब-दिन पीने के पानी को लेकर खून बहने लगा है. अपनी रोजमर्रा की जरूरत भी पूरी न होने से गुस्साएं प्रदर्शनकारी सड़कों पर निकल रहे हैं. आने वाले महीनों में, पानी की अनुपलब्धता सुर्खियों में रहने वाली है.

पिछले 15 सालों से खतरे की घंटी बज रही है, किंतु किसी ने भी परवाह नहीं की. 1990 के दशक के मुकाबले पिछले दशक में 70 प्रतिशत अधिक भूजल का दोहन हुआ है और देश भर में जलस्त्रोत प्रदूषित हो गए हैं. जिससे कैंसर और फ्लूरोसिस जैसी बीमारियां फैल रही हैं.

पानी तय करेगा हमारा मानवीय होना
Posted on 16 May, 2010 05:23 PM

अब कोई अपने पानी को बांटना नहीं चाहता। वे भी नहीं जिनके पास अच्छा-खासा पानी है। मसलन, मुंबई की हाउसिंग सोसाइटी ये नियम बना रही हैं कि कोई बाहरी शख्स पानी को बाहर न ले जाए। असल में ये बाहरी भी अंदर के ही लोग हैं। ये हमारे घरों में काम करने वाले हैं। उनके बिना हमारी जिंदगी नहीं चल सकती। ये वे लोग हैं जो घरों में साफ-सफाई करते हैं, कपड़े धोते हैं, बर्तन मांजते हैं। ये उन घरों में काम करते हैं, जहां पानी पाइप के जरिए आता है। यहां काम करने के बाद वे अपने घरों को जाते हैं।

चार बाल्टी पानी से क्या आप पांच लोगों के परिवार का काम चला सकते हैं? यह ज्यादा से ज्यादा 80 लीटर दिन भर में हुआ। यानी 20 लीटर प्रति व्यक्ति हर रोज। यही नहीं कभी-कभी तो दिन भर में एक बूंद भी पानी नहीं। ये लाखों लोग इस चुनौती को किसी रेगिस्तान में नहीं झेल रहे हैं। ये मुंबई के लोग हैं, जहां हिंदुस्तान के किसी भी शहर से बेहतर पानी की व्यवस्था है। अगली पानी की लड़ाई देशों के बीच नहीं होगी। वह तो शहरों में दो वर्गो के बीच होगी। अगर लोग ऐसा कहते हैं, तो क्या गलत है।

असल में अगली लड़ाई गरीब और अमीर के बीच होनी है। यों अमीरों को भी पानी कटौती का सामना करना पड़ेगा।
जल अनुशासन ही समाधान
Posted on 16 May, 2010 08:57 AM

सरकार ने जीवन के हर क्षेत्र में समाज को अपने ऊपर निर्भर बनाने की कोशिश की है। सस्ता विकल्प था समाज की पहल से तालाब, कुएं, बेरियां खुदवा कर समाज के सुपुर्द कर देना। आज भी बिप्रासर का तालाब इसलिए सिर उठाए खड़ा है, क्योंकि वहां के समाज ने उसके आगोर में कोई अतिक्रमण स्वीकार नहीं किया।

राजस्थान के 33 में से 26 जिले अकालग्रस्त घोषित किए जा चुके हैं। जैसलमेर और बाड़मेर तो अनंतकाल से ही 'सूखाग्रस्त' रहे हैं, लेकिन वहां पानी के लिए कभी दंगा नहीं हुआ, जैसा इंदिरा गांधी नहर का लाभ पा रहे श्रीगंगानगर, बीकानेर या हनुमानगढ़ में हुआ। यहां के समाज ने कमतर पानी की उपलब्धता के साथ जीना सीखा है। पानी के परिवहन के बजाय पानी के अनुशासन के साथ जीना सीखा है। ऎसा नहीं कि बीकानेर, श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के लोगों में ये गुण नहीं थे। वे भी उतने ही गुणवान रहे हैं और अनुशासित भी। लेकिन नहर के झुंझुने ने उनका अनुशासन बहुत पहले तोड़ दिया।
वर्षा जल संचयन और इसके लाभ | Rainwater Harvesting Essay in Hindi
जानिए कैसे वर्षा जल संचयन आपके जीवन और पर्यावरण को कैसे बेहतर बना सकता है और इसके लाभों को समझें | Get information about rain harvesting in hindi. Posted on 13 Feb, 2010 10:52 AM
वर्षा जलसंग्रहण क्‍या है ?

वर्षा के पानी का बाद में उत्‍पादक कामों में इस्‍तेमाल के लिए इकट्ठा करने को वर्षा जल संग्रहण कहा जाता है। आपकी छत पर गिर रहे बारिश के पानी को सामान्‍य तरीके से इकट्ठा कर

वर्षा जल संचयन और इसके लाभ
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