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समाचार और आलेख
पानी बचाने में अधिकारियों की मदद करें किसानः डा. एसपी सिंह
Posted on 25 Nov, 2013 01:49 AM-इंटीग्रेटेड वॉटरशेड मैनेजमैंट प्रोग्राम (आईडब्ल्यूएमपी) जल संरक्षण के क्षेत्र मील का पत्थर साबित होगा
-यमुनापार इलाके में रामगंगा कमांड द्वारा इंट्री प्वाइंट प्रोग्राम प्रारंभ, गोष्ठी के माध्यम से दी जा रही किसानों को जानकारी
चाल से खुशहाल
Posted on 29 Aug, 2013 03:13 PMउत्तराखंड के उफरैंखाल में कुछ लोगों ने किसी सरकारी या बाहरी मदद के बिना जो किया है उसमें कई हिमालयी राज्यों के सुधार का हल छिपा है।
सबसे पहले लोगों ने अखरोट के पौधों की एक नर्सरी बनाई। इन पौधों की बिक्री प्रारंभ हुई। वहीं के गाँवों से वहीं की संस्था को पौधों की बिक्री से कुछ आमदनी होने लगी। यह राशि फिर वहीं लगने जा रही थी। एक के बाद एक शिविर लगते गए और धीरे-धीरे उजड़े वन क्षेत्रों में वनीकरण होने लगा। इन्हीं शिविरों में हुई बातचीत से यह निर्णय भी सामने आया कि हर गांव में अपना वन बने। वह सघन भी बने ताकि ईंधन, चारे आदि के लिए महिलाओं को सुविधा मिल सके। इस तरह हर शिविर के बाद उन गाँवों में महिलाओं के अपने नए संगठन उभरकर आए, ये ‘महिला मंगल दल’ कहलाए ये महिला दल कागजी नहीं थे।ढौंड गांव के पंचायत भवन में छोटी-छोटी लड़कियां नाच रही थीं। उनके गीत के बोल थे : ठंडो पाणी मेरा पहाड़ मा, ना जा स्वामी परदेसा। ये बोल सामने बैठे पूरे गांव को बरसात की झड़ी में भी बांधे हुए थे। भीगती दर्शकों में ऐसी कई युवा और अधेड़ महिलाएं थीं जिनके पति और बेटे अपने जीवन के कई बसंत ‘परदेस’ में ही बिता रहे हैं। ऐसे वृद्ध भी इस कार्यक्रम को देख रहे थे जिन्होंने अपने जीवन का बड़ा भाग ‘परदेस’ की सेवा में लगाया है और भीगी दरी पर वे छोटे बच्चे-बच्चियां भी थे, जिन्हें शायद कल परदेस चले जाना है। एक गीत पहाड़ों के इन गाँवों से लोगों का पलायन भला कैसे रोक पाएगा? लेकिन गीत गाने वाली टुकड़ी गीत गाती जाती है। आज ढौंड गांव में है तो कल डुलमोट गांव में, फिर जंद्रिया में, भरनों में, उफरैंखाल में। यह केवल सांस्कृतिक आयोजन नहीं है। इसमें कुछ गायक हैं, नर्तक हैं, एक हारमोनियम, ढोलक है तो सैकड़ों कुदाल-फावड़े भी हैं जो हर गांव में कुछ ऐसा काम कर रहे हैं कि वहां बरसकर तेजी से बह जाने वाला पानी वहां कुछ थम सके, तेजी से बह जाने वाली मिट्टी वहीं रुक सके और इन गाँवों में उजड़ गए वन, उजड़ गई खेती फिर से संवर सके।
रावण सुनाए रामायण
Posted on 28 Jun, 2013 09:46 AMसनातन धर्म से भी पुराना एक और धर्म है। वह है नदी धर्म। गंगा को बचाने की कोशिश में लगे लोगों को पहले इस धर्म को मानना पड़ेगा।
हमारे समाज ने गंगा को मां माना और ठेठ संस्कृत से लेकर भोजपुरी तक में ढेर सारे श्लोक मंत्र, गीत, सरस, सरल साहित्य रचा। समाज ने अपना पूरा धर्म उसकी रक्षा में लगा दिया। इस धर्म ने यह भी ध्यान रखा कि हमारे धर्म, सनातन धर्म से भी पुराना एक और धर्म है। वह है नदी धर्म। नदी अपने उद्गम से मुहाने तक एक धर्म का, एक रास्ते का, एक घाटी का, एक बहाव का पालन करती है। हम नदी धर्म को अलग से इसलिए नहीं पहचान पाते क्योंकि अब तक हमारी परंपरा तो उसी नदी धर्म से अपना धर्म जोड़े रखती थी। पर फिर न जाने कब विकास नाम के एक नए धर्म का झंडा सबसे ऊपर लहराने लगा। बिलकुल अलग-अलग बातें हैं। प्रकृति का कैलेंडर और हमारे घर-दफ्तरों की दीवारों पर टंगे कैलेंडर/काल निर्णय/पंचाग को याद करें बिलकुल अलग-अलग बातें हैं। हमारे कैलेंडर/संवत्सर के पन्ने एक वर्ष में बारह बार पलट जाते हैं। पर प्रकृति का कैलेंडर कुछ हजार नहीं, लाख करोड़ वर्ष में एकाध पन्ना पलटता है। आज हम गंगा नदी पर बात करने यहां जमा हुए हैं तो हमें प्रकृति का, भूगोल का यह कैलेंडर भूलना नहीं चाहिए। पर करोड़ों बरस के इस कैलेंडर को याद रखने का यह मतलब नहीं कि हम हमारा आज का कर्तव्य भूल बैठें। वह तो सामने रहना ही चाहिए।
गंगा मैली हुई है। उसे साफ करना है। सफाई की अनेक योजनाएं पहले भी बनी हैं। कुछ अरब रुपए इसमें बह चुके हैं- बिना कोई परिणाम दिए। इसलिए केवल भावनाओं में बह कर हम फिर ऐसा कोई काम न करें कि इस बार भी अरबों रुपयों की योजनाएं बनें और गंगा जस की तस गंदी ही रह जाए।
बेटे-बेटियां जिद्दी हो सकते हैं। कुपुत्र-कुपुत्री हो सकते हैं पर अपने यहां प्राय: यही तो माना जाता है कि माता, कुमाता नहीं होती, तो जरा सोचें कि जिस गंगा मां के बेटे-बेटी उसे स्वच्छ बनाने कोई 30-40 बरस से प्रयत्न कर रहे हैं - वहां भी साफ क्यों नहीं होती।
अब स्वजल में डूबेंगे गांव
Posted on 30 Mar, 2013 03:23 PMजो सरकार विश्व बैंक से कर्ज लेकर गांव को स्वावलंबी बनाना चाहती हैं उसमें इतना साहस भी नहीं कि अपने दस्तावेज़ों म
यमुना बचाने को हुई महासभा
Posted on 28 Feb, 2013 08:40 PMबरसाना के विरक्त संत रमेश बाबा का यमुना बचाओ अभियान का कारवां एक बार फिर मथुरा से दिल्ली वाली सड़क कल से दिखेगा। लाखों लोगों को पदयात्रा में शामिल कर दिल्ली पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है। वृन्दावन के छंटीकरा के मैदान में पहुंचे किसानों के संगठनों ने यमुना महापंचायत का आयोजन किया।किसान महापंचायत में गुरुवार को उमड़ी भीड़ को देखकर यमुना रक्षक दल के पदाधिकारियों, पुष्टिमार्ग के संत, भाकियू के पदाधिकारियों ने यमुना मुक्ति आंदोलन को विजयश्री मिलने का भाव जाहिर किया। आंदोलन के प्रणेता संत रमेश बाबा ने कहा कि विजयश्री मिलना निश्चित है। हम जानते हैं कि जीत चुके हैं। विमुख लोग जब तक हार नहीं मानेंगे, तब तक वह चलते रहेंगे। हम कमजोर हैं, लेकिन हमसे अधिक ताकतवर भी कोई नहीं है।
यमुना की दिल्ली
Posted on 30 Oct, 2012 04:10 PMपहले हमारा समाज अक्सर ऐसी नदियों के दोनों किनारे एक खास तरह का तालाब भी बनाता था। इनमें वर्षा के पानी से ज्यादा नदी की बाढ़ का पानी जमा किया जाता था। नद्या ताल यानि नदी से भरने वाला तालाब। अब नदी के किनारे ऐसे तालाब कहां बचे हैं। इनके किनारों पर हैं स्टेडियम, सचिवालय और बड़े-बड़े मंदिर। कभी यह दिल्ली यमुना के कारण बसी थी। आज यमुना का भविष्य दिल्ली के हाथ उजड़ रहा है।
सबसे पहले तो एक छोटा-सा डिस्क्लेमर! मैं वास्तुकारों की बिरादरी से नहीं हूं। मेरी पढ़ाई-लिखाई बिलकुल साधारण-सी हुई और उसमें आर्किटेक्चर दूर-दूर तक कहीं नहीं था। जिन शहरों में पला-बढ़ा और जिन शहरों में आना-जाना हुआ करता तो वहां की गलियों में, बाजारों में घूमते फिरते दुकानों के अलावा कुछ भी बोर्ड पढ़ने को मिलते। इन बोर्डों में अक्सर वकील और डॉक्टरों के नाम लिखे दिखते। हमारे बचपन में ये बोर्ड भी थोड़े छोटे ही थे। फिर समय के साथ विज्ञापनों की आंधी में ये बोर्ड उखड़े नहीं बल्कि और मजबूत बन कर ज्यादा बड़े होते चले गए।फिर हमारे बड़े संयुक्त परिवार में एकाध भाई डॉक्टर बना, एक वकील बना और बाद में एक भाई आर्किटेक्ट भी। दो के बोर्ड लग गए लेकिन आर्किटेक्ट भाई का बोर्ड नहीं बना। बाद में उन्हीं से पता चला कि उनके प्रोफेशन में कोई एक अच्छी एसोसिएशन है जो बड़ी सख्ती से इस बात पर जोर देती है कि उसका कोई भी मेम्बर अपने नाम और काम का विज्ञापन नहीं कर सकता।
खुले में शौचमुक्त देश बनाने का सन्देश लेकर निर्मल यात्रा पहुंची इन्दौर
Posted on 10 Oct, 2012 08:37 PM -वाश प्रोग्राम में स्कूली बच्चे सीख रहे हैं हैंडवाशिंग- डांस व कनवरसेशन स्किल के माध्यम से करेबियन कोरियोग्राफर बच्चों को सिखा रहा है साफ-सफाई के तरीके
इन्दौर। वाश युनाइटेड व क्विकसैंड द्वारा देश को खुले में शौच मुक्त बनाने का सन्देश लेकर निकली निर्मल भारत यात्रा रविवार को इन्दौर पहुंची। यह यात्रा वर्धा से चली है, जो पांच राज्यों -महाराष्ट्र के वर्धा के अलावा, म.प्र. के इन्दौर, ग्वालियर, राजस्थान के कोटा, उ.प्र. के गोरखपुर से होकर बिहार के बेतिया तक जायेगी। इस दौरान इन सभी ऐतिहासिक शहरों में दो दिवसीय मेले का भी आयोजन किया जा रहा है।
‘आज भी खरे हैं तालाब’ का दीवाना फरहाद
Posted on 27 Mar, 2012 04:44 PM‘आज भी खरे हैं तालाब’ का पहला संस्करण कोई अट्ठारह बरस पहले आया था। तब से अब तक गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली ने इसके पांच संस्करण छापे हैं। पुस्तक पर किसी तरह का कॉपीराइट नहीं रखा था। गांधी शांति प्रतिष्ठान के पांच संस्करणों के अलावा देश भर के अनेक अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, संस्थाओं, आंदोलनों, प्रकाशकों और सरकारों ने इसे अपने-अपने ढंग से आगे बढ़ाया है, इन अट्ठारह बरसों में। कुछ ने बताकर तो कुछ ने बिना बताए भी।‘आज भी खरे हैं तालाब’ के कोई बत्तीस संस्करण और कुल प्रतियों की संख्या 2 लाख के आसपास छपी और बंटी।
कब तक सहेंगे हम मां गंगा की अनदेखी?
Posted on 13 Mar, 2012 04:16 PMस्वामी ज्ञानस्वरूप के जल त्याग को व्यापक समर्थन की अपील
मित्रों! क्या किसी की मृत्यु पर शोक जताने की रस्म अदायगी मात्र से हमारा दायित्व पूरा हो जाता है? गंगा के लिए प्राण देने वाले युवा संत स्व. स्वामी निगमानंद उनके बलिदान पर शोक जताने वालों की बाढ़ सी आ गई थी। समाचार पत्रों ने संपादकीय लिखे। चैनलों ने विशेष रिपोर्ट दिखाई। स्वयंसेवी जगत ने भी बाद में बहुत हाय-तौबा मचाई। गंगा एक्सप्रेसवे भूमि अधिग्रहण के विरोध में रायबरेली और प्रतापगढ़ में मौतें हुईं।