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गोरी-गोरी त्वचा सिर्फ घरेलू उबटनों से
Posted on 11 Nov, 2010 09:59 AM
आज की दौड़ती-भागती जिंदगी में अपना रंग रूप कम बजट में प्राकृतिक तौर से कैसे संवारे? यहां कुछ ब्यूटी टिप्स प्रस्तुत हैं :—
• 2 छोटे चम्मच अनार के रस में चुटकी भर हल्दी व थोड़ी-सी मलाई मिलाकर फेंटें। इस लेप को चेहरे पर मले, 15-20 मिनट उपरांत गुलाब जल युक्त पानी से चेहरा धो लें। चेहरा गुलाबी-गुलाबी आभा से दमकने लगेगा।
कच्चे दूध से त्वचा बने रेशम-रेशम
Posted on 11 Nov, 2010 09:52 AM
कच्चा दूध एक ऐसी चीज है, जिसमें कैल्शियम, प्रोटीन, वसा व चिकनाई की मात्रा काफी होती है। कच्चा दूध पीने से शरीर स्वस्थ एवं मजबूत रहता है। कच्चे दूध के प्रयोग से आप अपनी सुन्दरता में चार चांद भी लगा सकती है। आईए, देखें कि कच्चे दूध से सौन्दर्य कैसे निखारा जाता है। लीजिए प्रस्तुत हैं कुछ टिप्स—० चेहरे की झुर्रियां, शिकन इत्यादि दूर करने के लिए कच्चे दूध से चेहरा हल्के से रगड़ कर धो लें,
सौंदर्य प्रसाधन भी हैं फल-सब्जियां
Posted on 11 Nov, 2010 09:42 AM

फल, सब्जी प्राकृतिक सौंदर्य प्रसाधन भी है। आइए, इनमें छिपे सौंदर्य राज जानते हैं :—


चुकंदर : चुकंदर के रस में थोड़ी सी मात्रा सिरके की मिलाकर यदि बालों के जड़ों में लगाया जाए तो रूसी दूर हो जाएगी।

fruit
पानी महँगा, जहर सस्ता
Posted on 02 Nov, 2010 12:33 PM उदारवादी अर्थव्यवस्था में पले-बढ़े आधुनिक शिक्षित युवाओं के इस सवाल का जवाब शायद सरकार के पास नहीं है कि केवल भारत देश में पानी को अमृत क्यों कहा जाता है ? अब तेल, गैस, परमाणु ऊर्जा को वरदान क्यों नहीं माना जाता।दिल्ली सरकार अब एक बूँद पानी भी मुफ्त में नहीं देगी। देश इतनी तरक्की कर गया। परमाणु बम के टॉप क्लब का सदस्य बन गया। हवाई जहाज इंद्रप्रस्थ के आकाश से नीचे उतरने के लिए इंतजार करते रहते हैं। जनता के चुनिंदा प्रतिनिधियों और मंत्रियों के पास कारें ही नहीं, अपने हवाई जहाज हैं।

बड़े नेताओं को जेबी कम्प्यूटर से देश-दुनिया की जानकारी पल-पल मिलती रहती है। जनता के लिए पेरिस-बर्लिन की तरह मेट्रो ला दी गई।
जहाँ मीठा पानी एक सपना है
Posted on 27 Oct, 2010 12:46 PM चेतावनी जारी हो गई है। पता नहीं हम कहाँ जाएंगे। वह मंदिर जहाँ छह महीने पहले तक घंटियां गूंजा करती थी, वह चाय की छोटी दूकान जहाँ लोग चाय पर अपनी सुबहे, शामें बांटा करते थे...सब डूबने के इंतजार में हैं। बांध नंगे हो चुके हैं। तूफानी हवा, और खारे पानी को रोकने वाले मैन्ग्रूव जंगल गायब है। उसकी जड़े जो मजबूती से जमीन को पकड़ कर रखती थी वे उजड़ चुकी हैं। पानी को आना है, द्वीप को उसी तरह डूबना है जैसे कुछ साल पहले सागर आईलैंड के पास का एक द्वीप लोहाछाड़ा डूब गया था।अनादि राय दरार पड़े खेत की तरफ फटी फटी आंखों से देख रहा है। वहाँ से उसकी निगाहें खारे पानी के तालाब की तरफ जाती है और उसकी आंख में तालाब का खारा पानी भर जाता है।

डूबते द्वीप के साथ उसका दिल भी डूब रहा है। ना फटी जमीन का कोई रफूगर है ना उसकी फूटी किस्मत का।

गीली आंखों से देखता है, दूर से उसकी माँ गैलन में मीठा पानी लेकर चली आ रही है। चाची छवि राय अपनी बेटी को पुकार रही है...वह जिस द्वीप पर है वहाँ कुछ भी अनुकूल नहीं है...जीवन हर पल खतरे में। छह महीने पहले आए समुद्री चक्रवात आइला ने उनके समेत पूरे द्वीप के लोगो का जीवन तबाह कर दिया है। खेतों में खारा पानी क्या घुसा, किस्मत में दरारे पड़ गई। अब तीन साल तक गाँव में कोई खेती नहीं हो पाएगी। जमीन फटी रहेगी। कोई फसल नहीं उग सकती। तालाब ना जाने कब अपने खारेपन से उबरेगा। मीठा पानी एक सपना है। घर अब भी वैसे ही टूटे हैं, किसी भी रात गाँव का कोई एक सदस्य गायब हो सकता है।
सड़क से भूजल भरिए
Posted on 27 Sep, 2010 08:15 AM


सड़कों को नुकसान पहुंचाने वाले वर्षा जल का ठीक से इस्तेमाल कर देश में घटते भूजल स्तर को संभाला जा सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि योजनाओं को समावेशी बनाए जाए और जल की उपलब्धता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।

भूजल
लोक जीवन में जल
Posted on 23 Sep, 2010 11:50 AM
देश के बहुरंगी सांस्कृतिक परिवेश को एकता का सूत्र जल ही प्रदान करता है। जल की इस शक्ति का अनुभव लोक ने कर लिया था, इसलिए उसका प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान जल के पूजन से प्रारंभ होता है।
संदर्भ राजस्थान: पानी के रास्ते में खड़े हम
Posted on 21 Sep, 2010 02:41 PM मौसम को जानने वाले हमें बताएंगे कि 15-20 वर्षो में एक बार पानी का ज्यादा होना या ज्यादा बरसना प्रकृति के कलेंडर का सहज अंग है। थोड़ी-सी नई पढ़ाई कर चुके, पढ़-लिख गए हम लोग अपने कंप्यूटर, अपने उपग्रह और संवेदनशील मौसम प्रणाली पर इतना ज्यादा भरोसा रखने लगते हैं कि हमें बाकी बातें सूझती ही नहीं हैं। वरूण देवता ने इस बार देश के बहुत-से हिस्से पर और खासकर कम बारिश वाले प्रदेश राजस्थान पर भरपूर कृपा की है। जो विशेषज्ञ मौसम और पानी के अध्ययन से जुड़े हैं, वो हमें बेहतर बता पाएंगे कि इस बार कोई 16 बरस बाद बहुत अच्छी वर्षा हुई है।

हमारे कलेंडर में और प्रकृति के कलेंडर में बहुत अंतर होता है। इस अंतर को न समझ पाने के कारण किसी साल बरसात में हम खुश होते हैं, तो किसी साल बहुत उदास हो जाते हैं। लेकिन प्रकृति ऎसा नहीं सोचती। उसके लिए चार महीने की बरसात एक वर्ष के शेष आठ महीने के हजारों-लाखों छोटी-छोटी बातों पर निर्भर करती है। प्रकृति को इन सब बातों का गुणा-भाग करके अपना फैसला लेना होता है। प्रकृति को ऎसा नहीं लगता, लेकिन हमे जरूर लगता है कि अरे, इस साल पानी कम गिरा या फिर, लो इस साल तो हद से ज्यादा पानी बरस गया।

water rajasthan
ग्रीन मार्केटिंग वक्त की जरूरत
Posted on 21 Sep, 2010 02:31 PM वर्तमान व्यापारिक जगत में, मार्केटिंग के क्षेत्र में पर्यावरण पर आधारित मुद्दों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। उत्पादों व सेवाओं का, उनके पर्यावरणीय लाभों के आधार पर विक्रय करने की प्रक्रिया को 'ग्रीन मार्केटिंग' कहा जाता है। इसके अंतर्गत वे सभी क्रय/विक्रय आते हैं जिनके द्वारा मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके और साथ ही पर्यावरण को न्यूनतम क्षति पहुंचे। ऎसा उत्पाद या तो स्वयं पर्यावरण मित्र हो अथ
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