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समाचार और आलेख
अन्तरराज्यीय जल विवाद
Posted on 14 Oct, 2015 01:17 PMकन्फ्लिक्ट रिजोल्यूशन दिवस, 15 अक्टूबर 2015 पर विशेष
भारत नदियों का देश है। गंगा, यमुना, सिन्धु, झेलम, ब्यास, ब्रह्मपुत्र, चम्बल, केन, बेतवा, नर्मदा, महानदी, सोन, ताप्ती, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा जैसी अनेक नदियाँ इसकी पहचान हैं। उक्त सूची में दर्ज कुछ नदियाँ अन्तरराज्यीय हैं तो कुछ अपने ही प्रदेश के आँगन में अपनी यात्रा पूरी कर लेती हैं।
कुछ नदियों में पानी की विपुल मात्रा प्रवाहित होती है तो कुछ कम पानी पर सन्तोष करती हैं। सिन्धु और ब्रह्मपुत्र का अस्तित्व भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी है। उनके पानी के बँटवारे को लेकर अन्तरराष्ट्रीय समझौते तथा कतिपय समस्याएँ हैं।
भारत की जलवायु मानसूनी है इसलिये यहाँ बमुश्किल चार महीने ही पानी बरसता है। ऐसे देश में जहाँ लगभग आठ माह सूखे हों उस देश के राज्यों के बीच अन्तरराज्यीय नदियों के पानी के बँटवारे का मामला, अपने आप ही प्रभावित आबादी की पानी की मूलभूत ज़रूरतों, खेती और आजीविका से जुड़ा मामला बन जाता है।
बाढ़ और सूखा
Posted on 11 Oct, 2015 03:59 PMइंटरनेशनल नेचुरल डिजास्टर रिडक्शन दिवस, 13 अक्टूबर 2015 पर विशेष
बरसात, कुदरत की नियामत है। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से उठे बादल, हर साल, भारत की भूमि को पानी की बूँदों की सौगात देते हैं। कहीं कम तो कहीं अधिक पर बूँदों के अवदान का सिलसिला तीन से चार माह चलता है। शीत ऋतु में, भूमध्य सागर से पूरब की ओर चली हवाएँ जब लम्बी दूरी तय कर उत्तर भारत में प्रवेश करती हैं तो हिमालय की पर्वतमाला उन्हें रोककर बरसने के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित करती हैं।
हिमालय की इसी निर्णायक भूमिका के कारण, रबी के मौसम में उत्तर भारत में बरसात होती है। बरसात के आँकड़ों को देखने से पता चलता है कि भारत के पूर्वी भाग में अधिक तो पश्चिमी भाग में कम वर्षा होती है। राजस्थान के थार मरुस्थल में उसकी मात्रा सबसे कम है।
गाँधी जी का पर्यावरण मंत्र संयम, स्वावलम्बन और सोनखाद
Posted on 01 Oct, 2015 10:13 AMस्वच्छता दिवस, 02 अक्टूबर 2015 पर विशेष
कचरा, पर्यावरण का दुश्मन है और स्वच्छता, पर्यावरण की दोस्त। कचरे से बीमारी और बदहाली आती है और स्वच्छता से सेहत और समृद्धि। ये बातें महात्मा गाँधी भी बखूबी जानते थे और हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी भी। इसीलिये गाँधी जी ने स्वच्छता को स्वतंत्रता से भी ज्यादा जरूरी बताया। मैला साफ करने को खुद अपना काम बनाया।
गाँवों में सफाई पर विशेष लिखा और किया। कुम्भ मेले में शौच से लेकर सुर्ती की पीक भरी पिचकारी से हुई गन्दगी से चिन्तित हुए। श्रीमान मोदी ने भी स्वच्छता को प्राथमिकता पर रखते हुए स्वयं झाड़ू लगाकर अपने प्रधानमंत्रित्व काल के पहले ही वर्ष 2014 में गाँधी जयन्ती को ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की शुरुआत की।
वर्ष-2019 में गाँधी जयन्ती के 150 साल पूरे होने तक 5000 गाँवों में दो लाख शौचालय तथा एक हजार शहरों में सफाई का लक्ष्य भी रखा।
नदी की कहानी : नदी की जुबानी
Posted on 15 Sep, 2015 11:43 AMविश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष
पानी चाहिए तो हिमालय बचाना होगा
Posted on 08 Sep, 2015 04:17 PMहिमालय दिवस 9 सितम्बर 2015 पर विशेष
अलवर, राजस्थान स्थित तरुण भारत संघ ने वर्ष 2007 में एक पुस्तक छापी थी- भारतीय जल दर्शन। इसके एक अध्याय- प्रलयकाल में जल का वर्णन- में पुराणों के हवाले से कहा गया है कि प्रलय का समय आने तक मेघ पृथ्वी पर वर्षा नहीं करते। किसी को अन्न नहीं मिलता, ब्रह्माण्ड गोबर के उपले की तरह धू-धूकर जलने लगता है... सब कुछ समाप्त हो जाता है... इसके बाद सैकड़ों वर्षों तक सांवर्तक वायु चलती है और इसके पश्चात असंख्य मेघ सैकड़ों वर्षों तक वर्षा करते हैं। सब कुछ जलमग्न हो जाता है...”
नहीं मालूम कि यह पौराणिक आख्यान कितना सच होगा पर आज इस सबकी अनुभूति सी होने लगी है। वर्षा का चक्र बिगड़ गया है, अन्न की कमी हो ही चुकी है और पृथ्वी उपले की तरह तो नहीं जल रही पर तापमान खूब बढ़ गया है और वैसा ही कुछ अहसास दे रही है।
जलवायु वैज्ञानिकों का एक वर्ग भी मानता है कि हर एक लाख वर्ष के बाद धरती 15-20 हजार वर्ष तक गर्म रहती है और वर्तमान जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया कोई 18 हजार वर्ष पहले शुरू हो गई थी।
स्कूलों में जल का पाठ्यक्रम अलग से जोड़ने की जरूरत
Posted on 04 Sep, 2015 02:02 PMविश्व साक्षरता दिवस 08 सितम्बर 2015 पर विशेष
ज्ञान-विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में नई-नई चुनौतियाँ खड़ी हो रही हैं। कुछ ऐसी चुनौतियाँ जिनका समाधान हमें पारम्परिक ज्ञान से मिलने में दिक्कत आ रही है। ऐसी ही एक समस्या या संकट जल की उपलब्धता का है। वैसे ज्ञान-विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में कम-से-कम दो हजार साल का ज्ञात इतिहास हमारे पास है। दृश्य और लौकिक जगत में अपने काम की लगभग हर बात के पता होने का हम दावा करते हैं। लेकिन जल से सम्बन्धित ज्ञान-विज्ञान का पर्याप्त पाठ्य हमें मिल नहीं रहा है।
जल प्रबन्धन पर पारम्परिक और आधुनिक प्रौद्योगिकी जरूर उपलब्ध है लेकिन पिछले दो दशकों में बढ़ा जल संकट और अगले दो दशकों में सामने खड़ी दिख रही भयावह हालत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सामने बिल्कुल नई तरह की चुनौती खड़ी कर दी है।
हालांकि जागरूक समाज का एक बहुत ही छोटा सा हिस्सा जल संकट को लेकर पिछले एक दशक से वाटर लिटरेसी यानी जल शिक्षा या जल जागरुकता की मुहिम चलाता दिख जरूर रहा है लेकिन नतीजे के तौर पर देखें तो ऐसे आन्दोलन का कोई असर नजर नहीं आया।
नदी पुनर्जीवन की भूजल विज्ञान अवधारणा
Posted on 22 Aug, 2015 01:40 PMआदिकाल से कलकल करती सदानीरा नदियाँ स्वच्छ जल का स्रोत रही हैं। समाज ने उनके जल का विविध उपयोग कर अपनी प्यास बुझाई है। गरीबों ने आजीविका कमाई है। किसानों ने खेती की जरूरतें पूरी की हैं। वह, समाज की निस्तार जरूरतों को पूरा करने वाला भरोसेमन्द साधन भी रहा है। यह पानी नदियों में रहने या पलने वाले जलचरों और जलीय वनस्पतियों की भी जरूरतों को पूरा करता है। नदीतंत्र में बहने वाला पानी महत्त्वपूर्ण सं
भीमकुण्ड की आत्मकथा
Posted on 06 Aug, 2015 09:57 AM
मैं, भीमकुण्ड अर्थात पानी का विशालकाय कुण्ड हूँ। लोेक कथाएँ बताती हैं कि मेरे जन्म का कारण, धार के महाप्रतापी परमार राजा भोज की जानलेवा बीमारी थी। इस बीमारी से निजात पाने के लिये किसी ऋषि ने उन्हें 365 नदी-नालों की मदद से बनवाए जलाशय में स्नान करने की सलाह दी थी। इसी कारण, राजा भोज (1010 से 1055) ने भोजपुर ग्राम में मेरा निर्माण कराया।
तवा परियोजना पर संकट के बादलों का आगाज
Posted on 25 Jul, 2015 12:18 PMसन् 1997 में लगभग 142 करोड़ रुपए की लागत से पूरी हुई मध्य प्रदेश की तवा परियोजना पर सिल्ट (गाद) के संकट की खबर आई है। विदित हो, यह बाँध नर्मदा की सहायक नदी तवा पर बना है। इस बाँध को सतपुड़ा पर्वतमाला के लगभग 5982 वर्ग किलोमीटर में फैले कैचमेंट में बहने वाली 90 छोटी-बड़ी सहायक नदियों का पानी मिलता है।