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सब कुछ खत्म हो जाएगा उसके साथ
Posted on 24 Jul, 2010 01:54 PM ग्रीन आजकल फैशन में है। इस साल इन्वायरनमेंट डे पर मीडिया में जितनी कवरेज दिखी, वह बेमिसाल थी। हालांकि ग्लोबल वॉर्मिंग पर दुनिया के देश किसी समझौते पर नहीं पहुंच पाए और न ही ऐसी उम्मीद है कि धरती को इस सबसे बड़े खतरे से उबारने का तरीका जल्द ही खोजा जा सकेगा, लेकिन इन्वायरनमेंट को लेकर इस दौरान मचे शोर ने जागरूकता कई गुना बढ़ा दी है। लोग अपने लेवल पर धरती को बचाने की जुगत करने लगे हैं, सरकारी
विदेशी धन पर 'जंगलराज'
Posted on 05 Jul, 2010 09:18 AM
जंगलों की सुरक्षा और विकास के लिए जापान सरकार की ओर से दी गई सहायता राशि पर वन विभाग के अफसर जमकर मनमानी कर रहे हैं। विभाग के लगभग सभी डिवीजन में इस बजट से पौधरोपण, एनीकट आदि के काम किए जा रहे हैं। कई जगहों पर एनीकट बनाने का यह काम कागजों में ही पूरा करके बिल फाइनल हो रहे हैं और चेक भी काट दिए गए हैं।
जलीय जीव-मछली का विकास नदी बचाकर करना होगा
Posted on 03 Jul, 2010 10:15 AM उत्तराखण्ड राज्य नदी, पर्वत एवं उसमें विराजमान वन एवं जैव-विविधता से परिपूरित लगता है। वह चाहे मनुष्य हो या अन्य जीवधारी, यहां के निवासियों का जीवन एवं जीविका जल, जंगल एवं जमीन पर निर्भर है। हिमानी एवं जंगलों के बीच से निकलने वाले गाड़-गदेरों व नदियों के पानी से असंख्य जीव-जन्तु एवं वनस्पतियों के विकास की कहानी जुड़ी हुई है। अतः पानी में रहने वाले जीव-जन्तुओं की एक विशेषता यह है कि ये जल प्रदूषण क
इतिहास बनता जा रहा है भूगोल
Posted on 02 Jul, 2010 10:23 AM दिल्ली में 1857 के गदर का हाल बताते हुए मिर्जा गालिब अपनी एक चिट्ठी में दरियागंज का जिक्र 'दरिया किनारे बसा नया मुहल्ला' के रूप में करते हैं। पढ़ कर आश्चर्य होता है कि दरियागंज क्या सचमुच कभी यमुना नदी के किनारे रहा होगा? अभी तो इससे यमुना की दूरी दो-ढाई किलोमीटर से कम नहीं होगी। नदियों की धारा पलटना भूगोल में एक स्वाभाविक घटना मानी जाती है, लिहाजा डेढ़ सौ सालों में घटित इस आश्चर्य को हम अनदेखा भी कर सकते हैं। लेकिन राजधानी के तेजी से बदलते भूगोल के साथ इस तरह के कई आश्चर्य जुड़े हैं, जिनकी वजह कोई प्राकृतिक घटना नहीं बल्कि मानवीय गतिविधियां हैं। जैसे रायसीना हिल्स का किसी पहाड़ी से नाता अब बिल्कुल समझ में नहीं आता। लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य ने खुद को सल्तनत-ए-मुगलिया का कहीं बेहतर वारिस साबित करने की कोशिश में रायसीना नाम की पहाड़ी को समतल करके वहां वाइसराय हाउस की स्थापना की, जिसे हम आज
समुद्र किनारे शिक्षा
Posted on 30 Jun, 2010 01:18 PM अक्टूबर में चेन्नई समुद्रतट पर पहुंचे 24,300 टन वजनी सैलानी पोत से उतरे लोग दक्षिण भारत के सुंदर समुद्रतट को निरखने आए कैमरे लादे पर्यटक नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन के अनुभवों को पढ़ने आए 520 अमेरिकी छात्र और उनके अध्यापक थे। एक सेमेस्टर समुद्र पर पढ़ने वाले इन छात्रों को संसार को देखने की एक व्यापक दृष्टि के साथ ही शैक्षणिक क्रेडिट भी मिलेंगे। पोत पर और उससे परे लगने वाली इनकी कक्षाएं अपने आप में न
कचरा बीनने वालों का मसीहा बना इंजीनियर
Posted on 30 Jun, 2010 12:27 PM गुड़गांव : पिछले पंद्रह सालों से गुड़गांव तथा यूपी व बिहार के कई क्षेत्रों में कचरा बीनने वालों का मसीहा बने आरसी विद्यार्थी ने ऐच्छिक रिटायरमेंट लेकर इन्हीं लोगों के लिए काम कर रहे हैं व इन्हीं के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसी लड़ाई जिसमें न तो पैसा है और न ही नाम। हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, भारत एलुमिनियम कंपनी, इंजीनियरिंग इंडिया लिमिटेड , डेटामेशनल रिसर्च एनालिस्ट, नई दिल्ली जैसी दर्जनों सरकार
कचरा बीनने वालों के जीवन में उम्मीद
Posted on 29 Jun, 2010 01:25 PM
आपका कचरा, उसका कारोबार एक पर्यावरण कार्यकर्ता के प्रयासों से
सुनो, चिड़िया कुछ कहती है
Posted on 29 Jun, 2010 11:02 AM चिड़िया हमारे पर्यावरण की थर्मामीटर जैसी हैं। उनकी सेहत ,उनकी खुशी बताती हैकि जिस माहौल में हमरह रहे हैं , वह कैसा है।प्रदूषित हवा से होनेवाली तेजाबी बारिश काअसर हमारी जिंदगी मेंदेर से जाहिर होता है ,लेकिन इससे चिड़ियों केअंडे पतले पड़ने लगते हैंऔर उनकी आबादी घटने लगती है। मोबाइल फोन से निकलनेवाली तरंगें इंसान पर क्या प्रभाव छोड़ती हैं , इस पर रिसर्चअभी चल ही रही है। लेकिन गौरैया , श्यामा औ
अमीरी की गरीबी
Posted on 26 Jun, 2010 04:20 PM देश छोटा-सा है, आबादी भी हम जैसे देशों की तुलना में बहुत ही कम है। लेकिन दूध, डेयरी और मांस का उत्पादन बहुत ही ज्यादा है। इसलिए पशुओं की संख्या भी खूब है। यहां एक व्यक्ति पर आठ पशुओं का औसत आता है। और इस कारण पशुओं का गोबर भी खूब है। हमारे देश में वरदान माना गया गोबर यहां के पर्यावरण के लिए अभिशाप बन चुका है। यहां इसे ‘राष्ट्रीय’ समस्या माना जा रहा है।अपरिग्रह, जरूरत से ज्यादा चीजों का संग्रह न करने की ठीक सीख सभी पर लागू होती है। सभी पर यानी सभी समय, सभी जगह, सभी देशों में और सभी चीजों पर। ऐसा नहीं कि साधारण चीजों पर ही यह लागू होती हो। अमृत भी जरूरत से ज्यादा किसी काम का नहीं। गोबर को हमारे यहां अमृत जैसा ही तो माना गया है। पर यही गोबर यूरोप के एक देश नीदरलैंड में जरूरत से ज्यादा हो गया तो उसने वहां कैसी तबाही मचाई- इसे बता रहे हैं श्री राजीव वोरा। चीजों के संग्रह, बेतहाशा आमदनी-खर्च पर टिका आज का अर्थशास्त्र हर कभी हर कहीं गिर रहा है। दो बरस पहले अमेरिका में गिरा तो इस समय यह यूरोप में ग्रीस को हिला गया है। कई देशों पर यह संकट छा रहा है। कुछ बरस पहले नीदरलैंड ने अपने अर्थशास्त्र में छिपे अनर्थ को समझने के लिए भारत, इंडोनेसिया, ब्राजील और तंजानिया से चार मित्रो को बुलाकर लगभग पूरा देश घुमाया था, अपने समाज के विभिन्न पदों, क्षेत्रों
पहाड़ों में औधौगिक विकास तथा पर्यावरणः वास्तविकता व भावी दिशा
Posted on 25 Jun, 2010 04:25 PM पर्वतीय विकास और रोजगार-सुविधा के नाम से पिछले 10 वर्षों में उत्तराखण्ड में औद्यौगिकरण के कई नये उपायों को प्रारम्भ किया गया है। यूं तो रोजगार देने के हर प्रयास का स्वागत पहाड़ की जनता भी करती है और वहां के सरकारी, अर्द्धसरकारी व सामाजिक संस्थान भी करते हैं, क्योंकि पहाड़ की ‘युवा-पलायन’ की समस्या का हल इन उद्योगों के जरिये होगा तथा पहाड़ के under employment को पूरक-रोजगार भी इन उद्योगों से मिलेग
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