समाचार और आलेख

Term Path Alias

/sub-categories/news-and-articles

समाधान की बाट जोहती नदियां
Posted on 11 Sep, 2014 04:41 PM
बरसात का काम, धरती पर पड़े कचरे को बहाने के लिए पानी उपलब्ध क
river
बिन पानी सब सून
Posted on 28 Jul, 2014 11:57 AM

जल में उतपति जल में बास

कबीरदास

जल में उतपति जल में बास। जल में नलिनी तोर निवास।।
ना तलि तपति न ऊपरी आगि। तोर हेतु कहु कासनि लागि।।
कहै कबीर जे उदक समान। ते नहीं मुए हंमारे जान।।

सिमटि सिमटि जल भरहिं तलावा

तुलसीदास

घन घमंड नभ गरजत घोर। प्रिया हीन डरपत मन मोरा।।
दामिन दमक रही घन माहीं। खल के प्रीति जथा थिर नाहीं।।
बजट 2014 के आईने में निर्मल और अविरल गंगा
Posted on 15 Jul, 2014 10:29 AM
गंगा नदी के जलमार्ग में जगह-जगह बैराज बनाने का अर्थ जगह-जगह क
river
नए बसाएंगे तो पुराने शहरों का क्या करेंगे?
Posted on 12 Jul, 2014 04:06 PM

हमारे बड़े शहरों की परिभाषा यह हो गई है कि उनका पानी कितने किलोमीटर दूर से आता है। जिन शहरों को जितनी दूरी से पानी मिल रहा है, उन्हें उतना ही स्वावलंबी माना जा रहा है।

city
निमाड़ की जल चौपाल
Posted on 03 Jul, 2014 05:02 PM
'जल चौपाल' नाम से प्रकाशित पुस्तक सप्रे संग्रहालय और राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद की सहयोग से प्रकाशित हुई है। मध्य प्रदेश के विभिन्न अंचलों के लोक संस्कृति में जलविज्ञान व प्रकृति की खोज यात्रा है 'जल चौपाल'। ' निमाड़ की जल चौपाल' अध्याय 'जल चौपाल' का दूसरा अध्याय है।
polluted river
बुंदेलखण्ड की जल चौपाल
Posted on 01 Jul, 2014 01:28 PM


'लोक संस्कृति में जलविज्ञान और प्रकृति' की अध्ययन यात्रा की शुरुआत 'राष्ट्रीय वि
'लोक संस्कृति में जलविज्ञान और प्रकृति' की अध्ययन यात्रा की शुरुआत 'राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद' और 'माधव राव सप्रे स्मृति संचार संग्रहालय एवं शोध संस्थान' के आपसी सहयोग से हुई। इस यात्रा के मार्गदर्शक की भूमिका में जलविज्ञानी श्रीकृष्ण गोपाल व्यास थे।

water structure
अरवरी जल संसद
Posted on 09 Jun, 2014 01:51 PM
अरवरी जल संसद की कहानी, राजस्थान के एक पिछड़े इलाके में कम पढ
arvari sansad
तुम किस नदी से हो
Posted on 05 Apr, 2014 03:40 PM

1958 की फरवरी में बनारस में दिया गया भाषण


हमारे देश की कुल चालीस करोड़ की आबादी में से तकरीबन एक या दो करोड़ लोग प्रतिदिन नदियों में डुबकी लगाते हैं और पचास से साठ लाख लोग नदी का पानी पीते हैं। उनके दिल और दिमाग नदियों से जुड़े हुए हैं। लेकिन नदियां शहरों से गिरने वाले मल और अवजल से प्रदूषित हो गई हैं। गंदा पानी ज्यादातर फैक्ट्रियों का होता है और कानपुर में ज्यादातर फ़ैक्टरियां चमड़े की हैं जो पानी को और भी नुकसानदेह बना रही हैं। फिर भी हजारों लोग यही पानी पीते हैं, इसी से नहाते हैं। साल भर पहले इस दिक्कत पर कानपुर में मैं बोला भी था।...अब मैं ऐसे मुद्दे पर बोलना चाहता हूं जिसका संबंध आमतौर पर धर्माचारियों से है लेकिन जब से वे अनावश्यक और बेकार बातों में लिप्त हो गए हैं, इससे विरत हैं। जहां तक मेरा सवाल है, यह साफ कर दूं कि मैं एक नास्तिक हूं। किसी को यह भ्रम न हो कि मैं ईश्वर पर विश्वास करने लगा हूं। आज के और अतीत के भी भारत की जीवन-पद्धति, दुनिया के दूसरे देशों की ही तरह, लेकिन और बड़े पैमाने पर, किसी न किसी नदी से जुड़ी रही हैं।

राजनीति की बजाए अगर मैं अध्यापन के पेशे में होता तो इस जुड़ाव की गहन जांच करता। राम की अयोध्या सरयू के किनारे बसी थी। कुरू, मौर्य और गुप्त साम्राज्य गंगा के किनारे पर फले-फुले, मुगल और शौरसेनी रियासतें और राजधानियां यमुना के किनारे पर स्थित थीं। साल भर पानी की जरूरत हो सकती है, लेकिन कुछ सांस्कृतिक वजहें भी हो सकती हैं।

एक बार मैं महेश्वर नाम की जगह में था जहां कुछ समय के लिए अहिल्या ने एक शक्तिशाली शासन स्थापित किया था।
Nadi
महोबा में जैव विविधता संरक्षण एवं संवर्धन संगोष्ठी
Posted on 26 Jan, 2014 02:11 AM 25 जनवरी 2014 उत्तर प्रदेश बुन्देलखण्डद्ध के महोबा जनपद में जैव विविधता के संरक्षण एवं संब़र्द्धन विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया जाना तय हुआ है।
सड़क पर अपना हक
Posted on 11 Jan, 2014 03:01 PM सन् 1995 के आसपास हमारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट ने वायु प्रदूषण के खिलाफ अपना आंदोलन शुरू किया था। तब हमने जो कुछ भी किया वह लीक का काम था। इस आंदोलन ने ईंधन की गुणवत्ता को ठीक करने पर दबाव डाला। गाड़ियों से निकलने वाले बेहद जहरीले धुएँ को नियंत्रित करने के लिए नए कड़े नियम बनवाए। उनकी जांच-परख का नया ढांचा खड़ा करवाया और उस अभियान ने ईंधन का प्रकार तक बदलने का काम किया। यह लेख मैं अपने बिस्तरे से लिख रही हूं- एक सड़क दुर्घटना में बुरी तरह से घायल होने के बाद, हड्डियां टूटने के बाद मुझे ठीक होने तक इसी बिस्तर पर रहना है। मैं साइकिल चला रही थी। तेजी से आई एक मोटर गाड़ी ने मुझे अपनी चपेट में ले लिया था। टक्कर मारकर कार भाग गई। खून से लथपथ मैं सड़क पर थी।

ऐसी दुर्घटनाएँ बार-बार होती हैं हमारे यहां। हर शहर में होती हैं, हर सड़क पर होती हैं। यातायात की योजनाएं बनाते समय हमारा ध्यान पैदल चलने वालों और साइकिल चलाने वालों की सुरक्षा पर जाता ही नहीं। सड़क पर उनकी गिनती ही नहीं होती। ये लोग बिना कुछ किए, एकदम साधारण-सी बात में, बस सड़क पार करते हुए अपनी जान गँवा बैठते हैं। मैं इनसे ज्यादा भाग्यशाली थी। दुर्घटना के बाद दो गाड़ियाँ रुकीं, अनजान लोगों ने मुझे अस्पताल पहुंचाया। मेरा इलाज हो रहा है। मैं ठीक होकर फिर वापस इसी लड़ाई में लौटूंगी।
×