समुद्री शैवाल खारे पानी में पाया जाने वाला एक वृहद शैवाल है विविध वंशावली के अंतर्गत इन्हें मूलतः तीन वर्गों जैसे क्लोरोफाइटा, फियोफाइटा और रोडोफाइटा में विभाजित किया गया है। आगार, कैरेजेनन और एल्गिनेट प्राथमिक हाइड्रोकार्बन हैं जिनकी उत्पत्ति समुद्री शैवाल से ही होती है। इन हाइड्रोकार्बन में उच्च व्यावसायिक क्षमता होती है, जिनका उपयोग दैनिक जरूरतों के उत्पादों में नियमित रूप से किया जाता है।
वैश्विक दृष्टि से समुद्री शैवाल का उत्पादन लगभग 32.59 मिलियन टन के नए शिखर पर पहुंच गया है, जिसकी कीमत लगभग 13.3 बिलियन अमेरीकी डॉलर है। इसमें से तकरीबन 97.1% (91.5 मिलियन टन) पूरी तरह से समुद्री शैवाल की खेती द्वारा उत्पन्न किया जाता है, जबकि केवल 2.9% (0.9 मिलियन टन ) प्राकृतिक रूप से पर्यावरण से एकत्रित किया जाता है। दुनियाभर में समुद्री शैवाल का उत्पादन (वर्ष 2018 के दौरान) तालिका 1 में प्रस्तुत किया गया है। विश्व युद्ध के दौरान शैवाल संसाधनों ने विश्व स्तर पर अपना ध्यान आकर्षित किया, क्योंकि उनकी आपूर्ति विशेष रूप से भारत सहित धनी देशों में घट गयी थी। आज दोहरे अंकों की औसत वार्षिक वृद्धि के साथ मत्स्य पालन को 'सनराइज सेक्टर के रूप में मान्यता प्राप्त हो रही है। मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) वर्ष 2018-19 के दौरान 2,12,915 करोड़ रहा, यह कुल राष्ट्रीय जीवीए का 1.24% है, और कृषि जीवीए का 7.28% है। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से मत्स्य पालन क्षेत्र में मछुआरों और मछली किसानों की आय को दोगुना करने की संभावनाओं को स्पष्ट करता है। भारत में लगभग 75166 किमी की एक विस्तृत तट रेखा है, जिसमें 70 तटीय जिलों के अंतर्गत 3288 मछली पकड़ने वाले गांवों को मिलाकर करीब 10 लाख मछुआरों की आबादी वाले नौ समुद्री राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों का समावेश होता है। खाद्य व कृषि संगठन (एफएओ) के ताजे आंकड़ों के अनुसार भारत 5.8 हजार टन समुद्री शैवाल ( गीले) के उत्पादन में विश्व स्तर पर 13वें स्थान पर है, जो कि वैश्विक समुद्री शैवाल उत्पादन का केवल 0.2% है। हालांकि आंकड़े उत्साहजनक नहीं हैं, तथापि यह खेती के तहत क्षेत्र का विस्तार करके समुद्री शैवाल की खेती में वृद्धि का एक सुअवसर प्रदान करता है।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना
वर्तमान में समुद्री शैवाल की वाणिज्यिक खेती तमिलनाडु के केवल चार जिलों तक ही सीमित है। भारत सरकार ने हाल ही में "प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएसवाई)" नामक एक योजना का लोकार्पण किया है जिसमें देश में स्थायी संसाधनों के माध्यम से मत्स्य पालन क्षेत्र में विकास के लिए 'नीली क्रांति की परिकल्पना की गई है।
इस योजना में अब तक सर्वाधिक 20050 करोड़ का निवेश हुआ है, जिसमें 9407 करोड़ का केंद्रीय हिस्सा, 4880 करोड़ का राज्य का हिस्सा और 5763 करोड़ का लाभार्थियों का योगदान शामिल है। इसके अलावा, समुद्री कृषि में समुद्री शैवाल की खेती और सजावटी मछली पालन सहित ग्रामीण तटीय क्षेत्रों में रोजगार उत्पन्न करने की काफी संभावनाएं हैं और पीएमएसवाई के तहत इसे बढ़ावा भी दिया जा रहा है। इसके तहत समुद्री शैवाल के उत्पादन का लक्ष्य प्रत्येक वर्ष क्रमश: 15%, 15%, 20%, 20%, 30% के वृद्धिशील अनुपात में पांच वर्षों में 11.20 लाख टन रखा गया है। तमिलनाडु ( 3 लाख टन ), गुजरात (2 लाख टन) और आंध्र प्रदेश (1.5 लाख टन) उसके बाद महाराष्ट्र, ओडिशा और पश्चिम बंगाल (सभी 1 लाख टन) और समुद्री शैवाल के उत्पादन के लक्ष्य के लिए केरल, कर्नाटक, गोवा, पुडुचेरी, दमन और दीव, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप-समूह (सभी 1 लाख टन) रखा गया है।
समुद्री शैवाल योजना में समुद्री शैवाल की खेती और प्रसंस्करण के लिए 354 करोड़ रुपये और संबद्ध क्षेत्रों में सहायक गतिविधियों के लिए 286 करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष निवेश का प्रावधान है। इसके अलावा, केंद्रीय और राज्य मत्स्य पालन विभाग, पोत परिवहन मंत्रालय, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय, वाणिज्य विभाग, समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् और कपड़ा मंत्रालय को नीति, अभिसरण और प्रौद्योगिकी हैंड-होल्डिंग के लिए शामिल किया गया है।
वैज्ञानिक कार्यक्रमों का उद्देश्य उच्च उपज का उत्पादन, विभिन्न समुद्री शैवाल प्रजातियों का गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादन, संभावित वाणिज्यिक समुद्री शैवाल की खेती के क्षेत्रों का मानचित्रण, तकनीकी बैकस्टॉपिंग, कौशल के माध्यम से प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण, प्रजातियों के विविधीकरण, खेती के तरीकों का मानकीकरण और नई तकनीक का समावेश है।
मौजूदा लोकप्रिय सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं में समुद्री शैवाल की खेती और प्रसंस्करण को जोड़ने के लिए प्रावधान किए गए हैं। इसके तहत, बुनियादी ढांचा प्रदान करने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा), समुद्री शैवाल स्वयं सहायता समूहों के गठन के साथ-साथ क्रेडिट लिंकेज के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम): समुद्री शैवाल उत्पादकों के लिए किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) का समावेश किया गया है।
समुद्री 24 अगस्त 2020 को एक राष्ट्रीय परामर्श बैठक का आयोजन किया गया जिसमें कृषि, उद्योग, संस्थानों और तटीय राज्य केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया। इस बैठक में समुद्री शैवाल की खेती, प्रसंस्करण, निर्यात और संवर्धन पर विशेषज्ञ राय और विकास संबंधी जरूरतों के विभिन्न स्तरों के बारे में जानकारी पर चर्चा की गई। विचार-विमर्श के बाद लिए गए ये कुछ मुख्य निर्णाय:
- समुद्री शैवाल की प्रमुख प्रजातियों के लिए समुद्री राज्यों संघ राज्य क्षेत्रों में कई समुद्री शैवाल बैंक बनाये जाएंगे,
- ग्रासिलेरिया ड्यूरा, ग्रासिलेरिया एडुलिस, गेलिडिएला एसरोसा, सरगासम वाइटी आदि जैसी देशी प्रजातियों के लिए संभावित स्थलों और खेती के मानचित्रण को बढ़ावा दिया जाएगा;
- औद्योगिक उपयोग के लिए प्रतिबंधित क्षेत्रों के अलावा तटीय जल से 'देशी प्रजातियों जैसे ग्रासिलेरिया इयूरा, ग्रासिलेरिया एडुलिस, गेलिडिएला एसरोसा, सरगासम वाइटी आदि के संग्रह की अनुमति देने के प्रयास किए जाएंगे
- गुणवत्ता वाले बीज के विकास की दिशा में प्रयासों को मजबूत करने के लिए संबंधित समुद्री राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मत्स्य विभाग, आईसीएआर केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान, सीएसआईआर- केंद्रीय नमक और समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान आदि जसे अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर काम करेंगे।
शैवाल का उत्पादन बढ़ाने के लिए माननीय केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने इस साल के बजट में रु. 100 करोड़ के निवेश के साथ तमिलनाडु में 'द सीवीड पार्क' की स्थापना की घोषणा की जो कि विशेष उल्लेखनीय कार्य है। यह शैवाल की सभी गतिविधियों को जोड़ने वाली संपूर्ण समुद्री शैवाल की मूल्य श्रृंखला के लिए वन स्टॉप पार्क के रूप में एक मुख्य केंद्र का काम करेगा।
फसल से पहले और बाद के बुनियादी ढांचे, रसद, विपणन, निर्यात संवर्धन, नवाचार, प्रौद्योगिकी ऊष्मायन और ज्ञान प्रसार से इष्टतम आउटपुट तक पहुंचने के लिए तथा मूल्यवर्धन को अधिकतम करने, अपव्यय को कम करने और सभी भागीदारों की आय में वृद्धि करना ही इन प्रयासों का मुख्य उद्देश्य हैं। इससे यह पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है कि तटीय ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए समुद्री शैवाल के उद्योग को "विकास के केन्द्र" के रूप में पहचाना जायेगा।
कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए, सीएसआईआर-सीएसएमसीआरआई. ( भावनगर, गुजरात) लंबे समय से समुद्री शैवाल आधारित जैव उद्दीपक विकसित करने का प्रयास कर रहा है। इसी प्रयास में स्वदेशी तकनीक पर आधारित देश में समुद्री शैवाल आधारित पशु चारा को लॉन्च किया गया है। यह मवेशियों और कुक्कुट की उत्पादकता, स्वास्थ्य (प्रतिरक्षा) में सुधार करता है। इसमें जुगाली करने वाले जानवरों से मीथेन उत्सर्जन को कम करने और उच्च ऊर्जा उपयोग क्षमता बढ़ाने का भी गुणधर्म है। इसके उपयोग से संकर नस्ल के बछड़ों में उच्च दैनिक वृद्धि दर प्राप्त की गई है। इन उत्पादों का पक्षियों के पेट के स्वास्थ्य पर उत्तम प्रभाव पड़ता है जिससे अंडे देने की क्षमता में वृद्धि होती है।
सीएसआईआर और आईसीएआर के सहयोग से सीएसआईआर- एनएमआईटीएलआई परियोजना के अंतर्गत इसका सफल परीक्षण भी किया गया। भारत के 20 राज्यों में कृषि विश्वविद्यालयों के सहयोग से बहु-स्थानीय, बहु-फसलीयः परीक्षणों के माध्यम से कप्पाफाइकस अल्वारेज़ी और ग्रेसिलेरिया एडुलिससे निर्मित जैव उद्दीपक का मूल्यांकन पूरे भारत में किया गया और यह परिणाम प्रदर्शित हुआ कि समुद्री शैवाल निर्मित जैव उद्दीपक के उपयोग से फसलों की उपज में 11.37% तक सुधार संभव है। भारत में कप्पाफायकस अल्वारेज़ी का 15 वर्षों का व्यावसायिक उत्पादन 2005 से लेकर 2020 तक स्पष्ट रूप से निष्काषित किया गया है। समुद्री शैवाल निर्मित जैवउद्दीपक का उपयोग करने के पर्यावरणीय लाभों को भी जीवन चक्र आंकलन दृष्टिकोण के माध्यम से इसकी उपयोगिता का मूल्यांकन किया गया है।
फूलों की खेती, मसालों की फसलों के साथ-साथ कला लिली और केसर में भी इसके उत्साहजनक परिणाम पाए गए हैं। पौधों के साथ-साथ मिट्टी की नमी के तनाव एवं रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को 25% तक कम करने की संभावनाओं की पुष्टि भी की गई है। समुद्री शैवाल कप्पाफाइकस सरगासम सहित जैव उद्दीपक उत्पादों के विभिन्न उद्यमियों को भी लाइसेंस दिया गया और यह भारतीय किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय साबित हुआ है।
लाइसेंस प्राप्त उत्पादों में से एक का विपणन उर्वरक निगमित इफ्को ( IFFCO) द्वारा किया जा रहा है। ग्रेसिलेरिया डेबिलिस, ग्रेसिलेरिया लिकोर्निया, सोलिरिया कॉडलिस जसी अन्य गर अन्वेषित समुद्री शैवाल की प्रजातियों से और अधिक फॉर्मुलेशन विकसित करने का प्रयास जोर-शोर से किया जा रहा है जिससे उनके सक्रिय अवयवों को चिह्नित किया जा सके 22 जनवरी 2021 को केंद्रीय मंत्री श्री गिरिराज सिंह मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय,भारत सरकार) द्वारा शैवाल से निर्मित सागरिका गोल्ड नामक जैवउर्वरक का शुभारंभ किया गया।
इस प्रकार, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के माध्यम से समुद्री शैवाल उत्पादन में अपेक्षित भारी वृद्धि समय पर हो सकती है। यह योजना स्वदेशी समुद्री शैवाल प्रसंस्करण उद्योगों (जैव-उद्दीपक, फाइकोकोलॉइड्स, पशु फीड एडिटिव्स न्यूट्रास्यूटिकल्स आदि जैसे उत्पादों के लिए), समुद्री शैवाल के उत्पादकों के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण और पर्यावरणीय रूप से स्थायी तरीकों से फसल की पैदावार को बढ़ाकर किसानों की आय में वृद्धि की अत्यंत सुखदाई शुरुआत करेगी।
डॉ. संतलाल जैसवार
वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी
बायोटेक्नोलॉजी और फाइकोलोजी विभागसीएसआईआर-केन्द्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान गिजुभाई बधेका मार्ग, भावनगर 364 002 (गुजरात)
डॉ. अरूप घोष, प्रधान वैज्ञानिक
बायोटेक्नालोजी और फाइकोलोजी विभागसीएसआईआर केन्द्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान गिजुभाई बधेका मार्ग, भावनगर 364002 (गुजरात)
डॉ. वैभव अ. मंत्री, प्रधान वैज्ञानिक
बायोटेक्नालोजी और फाइकोलोजी विभाग
सीएसआईआर-केन्द्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान गिजुभाई बधेका मार्ग, भावनगर 36-4002 (गुजरात)
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