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राष्ट्रीय हरित अधिकरण की वर्तमान आवश्यकता
हमने पर्यावरण न्याय के सभी पूर्ववर्ती नियमों की अवमानना व अवहेलना की है। सामान्य न्याय प्रक्रिया में समय लगने के कारण तथा पर्यावरण विवादों के त्वरित निबटारे हेतु राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना से पर्यावरण को न्याय की आस बंधी है। देखना यह है कि पर्यावरण की याचिका की सुनवाई कितनी त्वरित व ईमानदारी से होती है। वस्तुतः यही होगा पर्यावरणीय न्याय का व्यवहारिक पक्ष । Posted on 04 Sep, 2023 05:06 PM

हमारे धर्म ग्रंथ उपनिषद एवं साहित्यिक कृतियां सनातन मानवीय व्यवस्था के साक्षी हैं और उनमें वर्णित न्याय सिद्धान्त पर्यावरण के प्रत्येक घटक को संपूर्ण संरक्षण प्रदान करते हैं। हमारा जीवन दर्शन धर्म व न्याय शास्त्र से निर्देशित है। चेतना के स्थान पर भौतिकता को प्रश्रय हमें अमानवीय बना रहा है और हमें न्याय से दूर ले जा रहा है। हमने प्रकृति के नाजुक तानेबाने को स्वयं के लाभ के लिए इतना ज्यादा नुकसा

राष्ट्रीय हरित अधिकरण की वर्तमान आवश्यकता
प्रकृति-कल और आज
कृषि में उर्वरकों और कीटनाशकों के बेतहाशा प्रयोग से कृषि-चक्र गड़बड़ा गया है। खाद्यान्नों का उत्पादन तो बढ़ा है परंतु उसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है। हाइब्रिड बीजों के कारण खाद्यान्नों के नैसर्गिक गुण लुप्तप्राय हो गए हैं। मेथी और धनियां जैसे पौधों से निकलने वाली विशेष गंध समाप्त हो गई है। कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण कैंसर जैसी बीमारियों में बढ़ोतरी हुई है। Posted on 04 Sep, 2023 04:54 PM

प्राचीन काल में मनुष्य ने पृथ्वी को माता और आकाश को पिता माना था अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त भी में लिखा गया है "हे धरती मां, जो कुछ भी मैं तुझसे लूंगा, वह उतना ही होगा, जिसे तू पुनः पैदा कर सके, तेरे मर्मस्थल पर या तेरी जीवन शक्ति पर कभी आघात नहीं करूंगा" परंतु आधुनिक मानव और पृथ्वी के मध्य शोषक और शोषित के संबंध बन गए हैं। मनुष्य आकाश और सौर मंडल में भी अतिक्रमण कर चुका है। तमाम प्राकृतिक आपदाएं

प्रकृति-कल और आज
ग्लोबल वॉर्मिंग से बढ़ता खतरा
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मानव जाति के साथ-साथ, वन्यजीवों, कृषि और ऋतुओं पर भी पड़ रहा है। इस वर्ष समय पर वर्षा न होने के कारण देश के लगभग 12 राज्य सूखे से प्रभावित हुए, जिसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था और अनेक प्रजातियों पर देखा गया। जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी पर रहने वाली सभी प्रजातियों को लगातार परिवर्तनशील होना पड़ रहा है Posted on 04 Sep, 2023 04:46 PM

आज पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन की समस्या से ग्रस्त है। मनुष्य प्रतिदिन पानी, वायु और वृक्षों को हानि पहुंचा रहा है। वह स्वयं के सुखों के संसाधनों को जुटाने के लिए प्रतिदिन प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहा है। वह अपने कारखानों/ घरों से गंदा पानी एंव कचरा नदियों में डाल रहा है या फिर खुले में कचरे को फेंक रहा है। मनुष्य के इस कृत्य से जल और वायु प्रदूषित हो रहे हैं। यह प्रदूषण हमारी ओजोन परत को नुकसान

ग्लोबल वॉर्मिंग से बढ़ता खतरा
मार्बल स्लरी : पर्यावरण समस्या एवं उपलब्ध समाधान
मार्बल खुदाई क्षेत्रों के आधार पर प्रचलित भैसलाना ब्लैक, मकराना अलबेटा, मकराना कुमारी, मकराना डुंगरी, आँधी इंडो, ग्रीन बिदासर केसरियाजी ग्रीन, जैसलमेर यलो आदि अपनी रासायनिक संरचना के कारण अलग-अलग बनावटों में पाये जाते हैं। मार्बल का सफेद, लाल, पीला एवं हरा रंग क्रमश: केल्साइट, हेमाटाइट, लिमोनाइट तथा सरपेंटाइन स्वरूप के कारण होता है। Posted on 04 Sep, 2023 04:37 PM

चमकीले पत्थर " मार्बल" से निर्मित विश्वप्रसिद्ध ताजमहल, विक्टोरिया मेमोरियल महल, दिलवाड़ा मंदिर एवं बिरला मंदिर जैसी अनेकों इमारतों, मकबरों एवं मंदिरों ने सब का मन मोहा है। भू-गर्भ के अत्यधिक ताप एवं दाब उपरांत कायांतरित चट्टानों में रूपांतरित अवसादी एवं आग्नेय चट्टान का ही एक नाम मार्बल है जिसकी राजस्थान के कुल 33 जिलों में से 16 जिलों में खुदाई की जा रही है एवं प्रसंस्करण भी किया जा रहा है। र

मार्बल स्लरी
जलवायु परिवर्तनः कृषि समस्याएं और समाधान,मौसम, जलवायु एवं परिवर्तन
मौसम को तय करने वाले मानकों में स्थानिक और सामयिक भिन्नता होने की वजह से मौसम एक गतिशील संकल्पना है। मौसम का बदलाव बड़ी ही आसानी से अनुभव किया जाता है क्योंकि यह बदलाव काफी जल्दी होता है और सामान्य जीवन को प्रभावित करता है। उदाहरण के तौर पर तापमान में अचानक हुई वृद्धि | जिस प्रकार मौसम में नित्य परिवर्तन होता है उसी प्रकार जलवायु में भी सतत बदलाव की प्रक्रिया जारी होती है परंतु इसका अनुभव जीवन में नहीं होता क्योंकि यह बदलाव बहुत ही धीमा और कम परिमाणों में होता है Posted on 02 Sep, 2023 02:48 PM

एक निश्चित समय और स्थान पर वातावरण की औसत स्थिति को मौसम के नाम से संबोधित किया जाता है, जबकि एक विशिष्ट क्षेत्र में प्रचलित दीर्घकालीन औसत मौसम को उसी क्षेत्र की जलवायु कहा जाता है। मौसम को तय करने वाले मानकों में वर्षा, तापमान, हवा की गति और दिशा, नमी और सूर्यप्रकाश का प्रमुखता से समावेश होता है। मौसम को तय करने वाले मानकों में स्थानिक और सामयिक भिन्नता होने की वजह से मौसम एक गतिशील संकल्पना

जलवायु परिवर्तन का अरुणाचल प्रदेश की जैव-विविधता पर प्रभाव
वनों पर प्राकृतिक आपदा एवं जलवायु परिवर्तन का प्रकोप
क्लोरोफ्लोरोकार्बन के विमोचन से ओजोन परत की अल्पता होने के कारण सूर्य की पैराबैंगनी किरणें धरातल तक पहुंच कर उसका तापमान बढ़ा देती हैं जिसके फलस्वरूप पादप एवं जंतु जीवन को भारी क्षति होती रही है तथा मनुष्य में चर्म कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो रही है। मनुष्य के द्वारा पर्यावरण का ह्रास इस कदर हो जाना कि वह होमियोस्टैटिक क्रिया से भी पर्यावरण को सही नहीं किया जा सकता है। Posted on 02 Sep, 2023 12:06 PM

वन किसी भी राष्ट्र की मूल्यवान संपत्ति हैं क्योंकि वनों से कच्चे पदार्थ लकड़ियाँ सूक्ष्म जीवों के लिए आवास, मिट्टी के अपरदन से बचाव, भूमिगत जल में वृद्धि होती है। वन, कार्बन डाईऑक्साइड का अधिक से अधिक मात्रा में अवशोषण करते हैं एवं कारखानों से निकलने वाली मानव जनित कार्बन डाईऑक्साइड को सोख कर वायुमंडल के हरित ग्रह प्रभाव को कम करते हैं। कारखानों से निकलने वाली गैसों के पर्यावरण पर कई प्रकार के

वनों पर प्राकृतिक आपदा एवं जलवायु परिवर्तन का प्रकोप
अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ताओं में विकासशील विश्व का नेतृत्व करता भारत
भारत ने जलवायु परिवर्तन कन्वेंशन में समान और साझा किंतु भिन्न-भिन्न उत्तरदायित्व, जो इसकाआधारभूत सिद्धांत है, को अंतः स्थापित करने में महत्वपूर्ण नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया। Posted on 01 Sep, 2023 02:44 PM

सीओपी 21 के दौरान भारत के मंडप में भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी
जलवायु परिवर्तन का अरुणाचल प्रदेश की जैव-विविधता पर प्रभाव : एक आकलन
वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन विश्व की सबसे ज्वलंत पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है। अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की पांचवी आकलन रिपोर्ट (एआर 5) के अनुसार इस शताब्दी के अंत तक वैश्विक तापमान में 0.3 से 4.8 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होगी। तापमान में उपरोक्त वृद्धि स्वास्थ्य, कृषि, वन, जल-संसाधन, तटीय क्षेत्रों, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्रों पर विपरीत प्रभाव डालेगी। Posted on 01 Sep, 2023 02:19 PM

वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन विश्व की सबसे ज्वलंत पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है। अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की पांचवी आकलन रिपोर्ट (एआर 5) के अनुसार इस शताब्दी के अंत तक वैश्विक तापमान में 0.3 से 4.8 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होगी। तापमान में उपरोक्त वृद्धि स्वास्थ्य, कृषि, वन, जल-संसाधन, तटीय क्षेत्रों, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्रों पर विपरीत प्रभाव डालेगी। आईपीसीसी के अनुसार, यद

जलवायु परिवर्तन का अरुणाचल प्रदेश की जैव-विविधता पर प्रभाव : एक आकलन
वैश्विक प्राकृतिक घटनाएं एवं उनका प्रभाव - ग्लोबल वार्मिंग के सन्दर्भ में
आज तक सम्पूर्ण विश्व इस ओर कुछ करने में असमर्थ है क्योंकि इसका सीधा प्रभाव विकसित देशों की औद्योगिक दर एवं विकास दर पर पड़ रहा है जिससे ये देश अपनी इस समस्या का उल्लेख कर इस वैश्विक समस्या ग्लोबल वार्मिंग के प्रति उदासीन दिखाई देते हैं। वैसे अगर देखा जाये तो देश से ज़्यादा देश के लोगों का इस समस्या के प्रति उदासीन रवैया इस समस्या को बढ़ा रहा है क्योंकि देखा जाए तो ग्लोबल वार्मिंग में उपस्थित ग्रीन हाउस गैसों के कारक सामान्य व्यक्ति से जुड़े हैं जिनमें कार्बन उत्सर्जन रेट मुख्य कारक है। Posted on 01 Sep, 2023 01:31 PM

ग्लोबल वार्मिंग आज के सन्दर्भ में बड़ा ही सामान्य सा नाम है। इसके अर्थ को आज कल हर सामान्य व्यक्ति जानता हैं परन्तु इसका प्रभाव जो आम जीवन पर पड़ता है वह एक विशेष अवस्था है जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। जैसे-जैसे समाज और देश प्रगति करते गए, वैसे-वैसे मानव और प्रकृति के बीच असंतुलन बढ़ता गया। गैसों के उत्सर्जन को लेकर भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व चिंतित है परन्तु विशेष बात यह है कि आज तक सम्पूर्ण व

वैश्विक प्राकृतिक घटनाएं एवं उनका प्रभाव - ग्लोबल वार्मिंग के सन्दर्भ में
विकास से उपजती है बाढ़
हिमालय से दिल्ली तक के हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तरप्रदेश राज्यों की नदियों के किनारे 13,900 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा कर दो करोड़ लोग निवास कर रहे हैं। Posted on 01 Sep, 2023 01:15 PM

यह जानने के लिए अब किसी गहन - गंभीर शोध की जरूरत नहीं बची है। कि आजकल विकास के नाम पर किया जाता धतकरम असल में भीषण त्रासदियों को जन्म देता है। इन दिनों देश की राजधानी दिल्ली जिस तरह से बाढ़ की चपेट में है उससे विकास की यही विडंबना खुलकर उजागर हो रही है। शहर के बुनियादी ढांचे की विकास परियोजनाओं ने स्थानीय जल निकास यानि सीवेज को बाधित कर दिया है। खराब तरीके से डिजाइन किए गए शहरी विस्तार में सीवे

विकास से उपजती है बाढ़
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